कहते हैं गुजरा हुआ जमाना वापस नहीं आता, परंतु बीते वक्त के रोमांच का एहसास किया जा सकता है। जी हां! भोपाल के माधवराव सप्रे स्मृति समाचार-पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान में संग्रहित अलग-अलग कालखंडों के समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं की इबारत पढ़ते हुए ऐसा ही एहसास होता है, मानों इतिहास के रूबरू खड़े हो गए हों। देश में अपनी तरह के इस अनूठे संग्रहालय में 25 हजार शीर्षक से अधिक समाचार पत्र-पत्रिकाएं संजोए जा चुके हैं। भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी के सन 1780 से लेकर 2015 तक प्रकाशित होने वाले इन पत्र-पत्रिकाओं में भारतीय नवजागरण (स्वतंत्रता संग्राम समाज सुधार आंदोलन और आर्थिक स्वावलंबन की चेतना), विम्बलडन टेनिस कोर्ट का निर्माण, विनाशकारी प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध, भारत की आजादी, महात्मा गांधी की हत्या, प्रेसीडेंट कैनेडी की हत्या, चंद्रमा पर मानव के कदमों का पड़ना, चंबल की घाटी के बागियों का आत्मसमर्पण, भारत के सेनापति के सम्मुख नब्बे हजार पाकिस्तानी फौज का हथियार डालना और भोपाल गैस कांड जैसी तमाम ऐतिहासिक घटनाओं पर तत्काल जो प्रतिक्रियाएं उभरीं और सुर्खियां बनीं... इन इबारतों को पढ़ते समय पाठक कहीं इतिहास के उन क्षणों के रोमांच में खो जाते हैं तो कहीं अचंभित होकर निहारते रहते हैं।
19 जून, 1984 को भारतीय पत्रकारिता इतिहास के अध्येता वरिष्ठ पत्रकार विजयदत्त श्रीधर द्वारा स्थापित माधवराव सप्रे स्मृति समाचार-पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान में दो करोड़ पृष्ठों से अधिक शोध संदर्भ सामग्री संग्रहित है। इसमें समाचार पत्र-पत्रिकाओं के साथ-साथ 734 पाण्डुलिपियां, एक लाख से अधिक पुस्तकें, विश्वकोष, 274 अभिनंदन ग्रंथ, 144 गजेटियर, 327 शोध प्रबंध, 863 जांच रिपोर्ट एवं प्रतिवेदन, 4190 संपादकों, साहित्यकारों और अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों का पत्राचार तथा विषय केन्द्रित पांच हजार से अधिक संदर्भ फाइलें सम्मिलित हैं। सप्रे संग्रहालय की मासिक शोध पत्रिका आंचलिक पत्रकार पत्रकारिता, जनसंचार और विज्ञान संचार पर विमर्श और संवाद का नियमित माध्यम है। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के चार विश्वविद्यालयों ने सप्रे संग्रहालय को शोध केन्द्र के रूप में मान्यता प्रदान की है।
900 शोध छात्र यहां से अब तक लाभान्वित हो चुके हैं। देश-विदेश से भी शोधकर्ता और लेखक इस विपुल संदर्भ सामग्री का लाभ उठाने के लिए निरंतर आ रहे हैं। मनीषी संपादकों, साहित्यकारों, शिक्षाविदों ने इस संस्थान को ह्यपत्रकारिता का तीर्थह्ण निरूपित किया है। सप्रे संग्रहालय में चित्रदीर्घा भी है, जिसमें भारत के मूर्द्धन्य संपादकों तथा प्रतिनिधि समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं के 500 चित्र प्रदर्शित किए गए हैं। प्रदर्शनी पटल पर सन् 1511 से लेकर उन्नीसवीं सदी तक की पाण्डुलिपियों को भी देखा जा सकता है, जिसमें गोस्वामी तुलसीदास कृत तीन दुर्लभ पाण्डुलिपियां भी हैं। लब्ध-प्रतिष्ठ संपादकों की स्मृति को अक्षुण्ण बनाने के उद्देश्य से परिसर में स्मृति वाटिका विकसित की गई है। सप्रे संग्रहालय राष्ट्र की बौद्धिक धरोहर को भावी पीढ़ियों के लिए एक छत के नीचे संकलित और संरक्षित करने का सारस्वत अनुष्ठान है, जिसमें विद्या- व्यसनी परिवारों की धरोहर संजोते जाने का सिलसिला एक प्रतिष्ठित और प्रामाणिक परंपरा बन गई है। स्वनामधन्य सर्वश्री दादा माखनलाल चतुवेर्दी, पं. रामेश्वर गुरु, सेठ गोविन्ददास, देवीदयाल चतुवेर्दी ह्यमस्तह्ण, हुक्मचंद नारद, भवानीप्रसाद मिश्र, रायबहादुर हीरालाल, रामानुजलाल श्रीवास्तव, डॉ. धर्मवीर भारती, यशवंत नारायण मोघे, जगदीशप्रसाद चतुवेर्दी, डॉ. श्रीरंजन सूरिदेव, व्यौहार राजेन्द्र सिंह, अमृतलाल वेगड़, राजा गंगासिंह पाड़ौन, आचार्य हरिहर निवास द्विवेदी, डॉ. जगदीशप्रसाद व्यास, आचार्य वासुदेव शरण गोस्वामी, राजेन्द्रशंकर भट्ट, मनीषी संपादक नारायण दत्त, एचवाय शारदाप्रसाद, वीरेन्द्र त्रिपाठी, गोविन्द मिश्र, डॉ. विजय बहादुर सिंह, डॉ. धनंजय वर्मा, हनुमानप्रसाद वर्मा, भाई रतन कुमार, पं. झाबरमल्ल शर्मा, अयोध्याप्रसाद गुप्त ह्यकुमुदह्ण, नितिन मेहता, अवधबिहारी गुप्ता, प्रो. आफाक अहमद, ईशनारायण जोशी, रतनलाल जोशी, सूर्यनारायण शर्मा, नईम कौशल, मुस्तफा ताज, नजमुद्दीन हकीमुद्दीन, अनंत मराल शास्त्री, आरिफ अजीज, शंकरभाई ठक्कर, प्रो. लक्ष्मीनारायण अग्रवाल, प्रताप ठाकुर प्रभृति संपादकोंसाहित् यकारों-शिक्षाविदों ने सप्रे संग्रहालय के ज्ञानकोश को भरने में चिरस्मरणीय अवदान दिया है। अन्य सहस्राधिक सामग्रीदाताओं का भी योगदान कम नहीं है। मई-2015 में माधवराव सप्रे स्मृति समाचार-पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान की ज्ञान संपदा में असाधारण अभिवृद्धि आगरा के सन् 1916 में स्थापित चिरंजीव पुस्तकालय की अपार संदर्भ सामग्री उपलब्ध होने से हुई। श्री चिरंजीवलाल पालीवाल की इस कालजयी विरासत को उनके सुपौत्र श्री विजयदत्त पालीवाल ने भावी पीढ़ियों के शोध संदर्भ और ज्ञान लाभ के लिए सप्रे संग्रहालय को उदारतापूर्वक सौंप दिया। यह सामग्री 25 हजार पुस्तकों और पत्रिकाओं की फाइलों के रूप में संचित है। इसका सप्रे संग्रहालय के लिए इस रूप में भी महत्व है कि देशभर के विद्या- अनुरागी परिवार इस संस्था पर पूरा भरोसा करते हैं। शिक्षा और शोध संदर्भ के क्षेत्र में उल्लेखनीय अवदान को रेखांकित करते हुए मध्यप्रदेश शासन के संस्कृति विभाग ने मार्च-2015 में माधवराव सप्रे स्मृति समाचार-पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान को ह्यमहर्षि वेदव्यास राष्ट्रीय सम्मानह्ण से सम्मानित करने की घोषणा की है। यह प्रकारांतर से लोक मान्यता का प्रमाण है। सप्रे संग्रहालय ने भारतीय पत्रकारिता कोश, पहला संपादकीय, भारतीय पत्रकारिता: नींव के पत्थर, माधवराव सप्रे: व्यक्तित्व और कृतित्व, शब्द सत्ता, छत्तीसगढ़: पत्रकारिता की संस्कार भूमि, समय से साक्षात्कार: पं. झाबरमल्ल शर्मा की संपादकीय टिप्पणियां और अग्रलेख, तेवर: पं. द्वारकाप्रसाद मिश्र के अग्रलेख, स्मृति बिम्ब, खबरपालिका की आचार संहिता, चौथा पड़ाव, शह और मात, मध्यप्रदेशातील मराठी पत्रकारिता, मध्यप्रदेश की उर्दू सहाफत: इब्दता और इरतिका, हस्ताक्षर, नारायण दत्त मनीषी संपादक, स्वामी श्रद्धानंद और उनका पत्रकार कुल आदि प्रामाणिक ग्रंथों का प्रकाशन किया है। समाज में विज्ञान चेतना के प्रसार के लिए सप्रे संग्रहालय एक दशक से विज्ञान पत्रकारिता और लोकप्रिय विज्ञान लेखन तथा विज्ञान संचार कार्यशालाओं, संगोष्ठियों तथा समूह संवादों की शृंखला चला रहा है। समाज में समय-सिद्ध लोकविज्ञान को पुन: व्यवहार में प्रचलित करने के लिए चलाया गया अभियान गति पा रहा है। सप्रे संग्रहालय इन अनुभवों को सुरुचिपूर्ण और बोधगम्य प्रकाशनों में ढालकर सर्वसुलभ बना रहा है। विज्ञान संचार और पत्रकारिता, पानी की बात विज्ञान के साथ, पानी, समाज और सरकार, जल चौपाल- लोक संस्कृति में जल विज्ञान और प्रकृति, जनजातीय संस्कृति में जल विज्ञान और प्रकृति, पानी की कहानी, पेड़ों की दुनिया में सप्रे संग्रहालय के लोक विज्ञान और विज्ञान जगत में चर्चित प्रकाशन हैं।
-विजयदत्त श्रीधर
बहुत अच्छी जानकारी प्रस्तुति हेतु आभार
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