Monday 8 June 2015

मजबूरी का गठबंधन

राजनीति में कोई किसी का दोस्त और दुश्मन नहीं होता। यह बात भारतीय लोकतंत्र में एक नहीं अनेकों बार सच साबित हो चुकी है। बिहार में आगामी विधान सभा चुनाव को लेकर मजबूरी में ही सही पर सोमवार को राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाइटेड के बीच लम्बे समय से चल रही तनातनी का पटाक्षेप हो गया है। मुलायम की मौजूदगी में लालू प्रसाद यादव ने नीतिश कुमार को बिहार का मुख्यमंत्री बनाने पर सहमति की मुहर लगा दी है। जनता परिवार के नेताओं की वैचारिक पृष्ठभूमि में विरोधाभास के चलते छह दलों का गठबंधन बेशक आकार नहीं ले सका हो पर बिहार विधान सभा चुनावों में कमल दल को टक्कर देने के लिए राजद और जदयू ने जरूर हाथ मिला लिया है। लालू प्रसाद यादव और नीतिश कुमार की एका में सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव की विशेष भूमिका रही है। लालू प्रसाद यादव ने नीतिश कुमार को भावी मुख्यमंत्री मानने पर सहमति तो दे दी है लेकिन इन दोनों दलों के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर गतिरोध पैदा होने से इनकार नहीं किया जा सकता। राजद और जदयू के बीच गठबंधन को लेकर काफी समय से ऊहापोह की स्थिति चल रही थी। बिहार में इस बेमेल गठबंधन का हश्र क्या होगा, भारतीय जनता पार्टी इससे कैसे मुकाबला करेगी इन बातों से ज्यादा जरूरी है कि अब जीतनराम मांझी का रुख क्या रहेगा? लालू प्रसाद यादव की जहां तक बात है, वह चाहते थे कि भाजपा से मुकाबले के लिए मांझी को साथ रखा जाये जबकि नीतिश को यह बात मंजूर नहीं थी। दरअसल इस एका का श्रेय बेशक मुलायम को दिया जा रहा हो पर इसमें पर्दे के पीछे कांग्रेस ने जिस भूमिका का निर्वहन किया उसे सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। बिहार में अपना जनाधार खो चुकी कांग्रेस का झुकाव राजद की बजाय जदयू की तरफ अधिक है। बिहार में कैसे भी समीकरण बनें, अगर लालू प्रसाद और नीतिश कुमार अलग-अलग रहते तो भाजपा की चुनौती से पार पाना उनके लिए बहुत कठिन होता। उनका साथ आना क्या गुल खिला सकता है यह विधानसभा की दस सीटों के उप चुनावों में दिख गया था, जब भाजपा को केवल चार सीटें हासिल हुई थीं, जबकि उससे कुछ महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में उसने राजद और जदयू का लगभग सफाया कर दिया था। लालू और नीतिश की इस एका के बाद तय है अब भाजपा मांझी पर न केवल डोरे डालेगी बल्कि उन्हें ऐसा प्रलोभन देगी ताकि सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने जनता परिवार में कथित रूप से मुख्यमंत्री पद को लेकर चल रहे मतभेदों को तो दूर करवा दिया है, पर राजद और जदयू सीटों को लेकर नहीं उलझेंगे इसकी कोई गारंटी नहीं है। बिहार विधान सभा चुनावों में नीतिश कुमार की छवि और चेहरे का राजद और कांग्रेस को कितना लाभ मिलता है, यह तो समय बताएगा लेकिन राह इतनी आसान भी नहीं दिखती। लालू प्रसाद यादव लाख बिहार से देश को नया संदेश देने की बात कह रहे हों पर सच यह है कि वह जो भी कर रहे हैं, यह उनकी मजबूरी है। 

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