Wednesday, 3 June 2015

आंकड़ों की बाजीगरी

मोदी सरकार आम आवाम को दो जून की रोटी देने की बजाय आंकड़ों की बाजीगरी पर कुछ अधिक ध्यान दे रही है। असमय बारिश, बर्बाद फसलें, तेल की कीमतों में वृद्धि और खाद्य प्रबंधन की दुर्दशा के चलते महंगाई लगातार बढ़ रही है। सेवा कर में बढ़ोत्तरी और खराब मानसून का आकलन अब देश के सामने बड़े खतरे का संकेत है। भारतीय जनता पार्टी ने आम चुनाव के समय मुल्क की आवाम से जो अच्छे दिन लाने का वादा किया था, उसमें वह असफल साबित हुई है। बीता एक साल प्राकृतिक प्रकोप वाला रहा है तो एक जून से वस्तु एवं सेवा कर के लागू होने से कई क्षेत्रों में महंगाई ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है। वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतों में इजाफा होने के चलते घरेलू बाजार में सरकारी तेल कम्पनियों ने विमान र्इंधन की दर 7.5 प्रतिशत और बिना सब्सिडी वाले रसोई गैस सिलेण्डर की कीमत 10.50 रुपये बढ़ा दी है। आम उपभोक्ता के लिए ये छोटे-छोटे दिखने वाले दबाव महंगाई का बड़ा पहाड़ बन जाते हैं। यूं भी भारतीय रिजर्व बैंक के गर्वनर ने द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा पेश करते हुए रेपो रेट 0.25 घटाकर 7.25 फीसदी कर दिया है। जनवरी से अब तक रेपो रेट में यह तीसरी कटौती है। रेपो रेट वह दर है जिस पर रिजर्व बैंक आॅफ इण्डिया वाणिज्य बैंकों को कम अवधि के लिए उधारी देता है। इस दर के कम होने से यह उम्मीद बंधती है कि बैंक ग्राहकों के लिए ब्याज दरें कम करेंगे और इस तरह आम जनता को थोड़ी राहत मिलेगी। रेपो रेट कम करने के पीछे मंशा देश में आर्थिक गतिविधियों को भी तेज करने की होती है। केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली, केन्द्र सरकार के आर्थिक सलाहकार अरविन्द सुब्रमण्यम के साथ-साथ कॉरपोरेट जगत लगातार ब्याज दरों को कम करने की मांग कर रहा था। ब्याज दरें कम होने से बैंक के ग्राहकों और ऋण लेने वालों को बेशक राहत मिली हो किन्तु आम जनता को महंगाई से निजात मिलती नहीं दिखती। बीते शुक्रवार को केन्द्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने वर्ष 2014-15 के सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़े जारी किए, जिसमें जीडीपी की दर 7.3 प्रतिशत बताई गई। इसे मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धि बताया जा रहा है। आंकड़ों की यह बाजीगरी सरकार को पुलकित होने का बेशक मौका दे रही हो पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए  कि एक साल में कृषि क्षेत्र में किसी तरह के विकास के बजाय 2.3 प्रतिशत की गिरावट आई है। देशवासियों का पेट निर्माण क्षेत्र में वृद्धि से कतई नहीं भरने वाला, उसे जिन्दा रहने के लिए अनाज चाहिए, जो चौपट होती कृषि से दिन-ब-दिन कठिन होता जा रहा है। जीडीपी, विकास दर, रेपो रेट ये तमाम आंकड़े अर्थशास्त्रियों और नीति निर्माताओं के लिए सुविधाजनक हो सकते हैं पर जनता इन आंकड़ों को नहीं समझती। आम आवाम को तो दो जून की रोटी से वास्ता होता है। मोदी सरकार को आंकड़ों की बाजीगरी करने की बजाय मौसम के पूर्वानुमान और गरीब की थाली से गायब होती पौष्टिकता पर ध्यान देना चाहिए। 

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