Tuesday, 30 June 2015

क्रिकेट में नई नहीं कलह और गुटबाजी

मतभेद, विवाद और गुटबाजी भारतीय क्रिकेट के लिए कोई नई बात नहीं है। अक्सर इस तरह की बातें भारतीय क्रिकेट के ड्रेसिंग रूम से बाहर आती रही हैं। एक जमाना था जब भारतीय क्रिकेट टीम नई बनी थी और 1932 में उसने इंग्लैंड का दौरा किया था, तभी से टीम में विवाद और कलह ने घर बनाना शुरू कर दिया था। तब क्रिकेट महाराजाओं के संरक्षण में फल-फूल रही थी लिहाजा टीम के अच्छे खिलाड़ियों पर राजे-महाराजा हावी रहते थे। टीम की कप्तानी पर उनकी बपौती होती थी। यह स्थिति काफी समय तक बनी रही। इसी के चलते जब एक बार महाराजा कुमार विजयनगरम से लाला अमरनाथ जैसे प्रतिभाशाली खिलाड़ी का विवाद हुआ तो उन्हें इंग्लैंड के बीच दौरे से वापस भेज दिया गया।
टीम और भारतीय क्रिकेट कप्तानों के संबंधों के बीच उतार-चढा़व अक्सर खबरें बनते रहे हैं। इसी स्थिति से मौजूदा भारतीय टीम फिर गुजरती हुई नजर आ रही है। ऐसा लगता है कि भारत के सबसे सफल और कूल कप्तान कहे जाने वाले महेंद्र सिंह धौनी इसी हालात से दो चार हो रहे हैं। कुछ समय पहले टीम में टेस्ट और वन-डे के लिए अलग कप्तान नियुक्त किए जाने के बाद स्थिति ज्यादा विवादित हो गई है। वैसे अगर दो तीन दशकों के इतिहास पर गौर करें तो हमारे सभी कप्तानों की विदाई में टीम के असंतोष और कलह का ज्यादा योगदान रहा है।
सुनील गावस्कर से लेकर कपिलदेव और अजहरुद्दीन, सौरव गांगुली व राहुल द्रविड़ इसी हालात से दो चार हुए हैं। जब सुनील गावस्कर कप्तान थे तब बाद के बरसों में उबर क्षेत्र के क्रिकेटरों की लॉबी उनके खिलाफ आवाज बुलंद करने लगी थी। कपिल और सुनील गावस्कर के संबंध खासे कटु हो गए थे। फिर कपिलदेव को तब कप्तानी गंवानी पड़ी जब वो अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रहे थे और गावस्कर के साथ उनकी तनातनी बनी हुई थी, लिहाजा टीम बंटी हुई थी। अजहर भारत के सफल कप्तानों में थे। शायद उनके सरीखा ताकतवर कप्तान भारतीय फिकेट ने कम देखे होंगे। उन्हें धौनी और सौरव गांगुली के बाद भारत का तीसरा सबसे सफल कप्तान कहा जाता है। उनकी कप्तानी के आंकड़े भी इस बात की तस्दीक करते हैं कि भारतीय टीम को वह अपनी कप्तानी में एक स्तर पर ले गए।
हालांकि कहा जाता है कि बाद के बरसों में उनकी कप्तानी के दौरान सचिन तेंदुलकर और सौरव गांगुली के साथ युवा खिलाड़ियों का भरोसा उन पर से उठ गया था। वह खुद फिक्सिंग में फंसने के बाद खासे विवादित हो चुके थे। लिहाजा उन्हें हटना पड़ा था। उनकी जगह सौरव गांगुली को कप्तान बनाया गया। गांगुली ने टीम को एक नई पहचान दी और नए तेवर भी। वर्ष 2005 के बाद कोच के रूप में कोच ग्रेग चैपल के आने के बाद उनकी और कोच की जो ठनी तो सबकुछ बदलने लगा। टीम में दो गुट बन गए। गांगुली खुद अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रहे थे और चैपल से विवाद इस कदर बढ़ चुका था कि उन्हें कप्तानी गंवानी पड़ी। हालांकि यह कहने में कोई हिचक नहीं कि वह भारतीय टीम को सर्वोच्च शिखर तक ले गए।
राहुल द्रविड़ को जब कप्तान बनाया गया तो वह खुद बहुत सहज स्थिति में नहीं रहे। टीम में एक ओर वे सीनियर प्लेयर थे, जो उनके साथ क्रिकेट खेल चुके थे तो दूसरी ओर नए फिकेटर। सीनियर क्रिकेटर्स से भी उन्हें जो समर्थन मिलना चाहिए था, वह नहीं मिल सका। उसी दौरान महेंद्र सिंह धौनी कप्तान के तौर पर भारतीय टीम को वर्ष 2007 में टी20 वर्ल्ड कप में चैंपियन बनवा चुके थे। हालात कुछ ऐसे बने कि टीम पर नियंत्रण रख पाना और गुटबाजी के साथ कलह को बर्दाश्त कर पाना उनके लिए बर्दाश्त के बाहर हो गया। अब कुछ ऐसी ही स्थितियां भारत के सबसे सफल कप्तान धौनी के साथ भी बनती दीख रही हैं। भारतीय फिकेट में अक्सर सफल कप्तानों का अवसान गुटबाजी के चलते ही हुआ है।
इसमें सौरव गांगुली से लेकर राहुल द्रविड़ तक का नाम लिया जा सकता है। एक जमाने में जब कप्तान धौनी को टीम के अगुवाई की बागडोर सौंपी गई थी, तब भी टीम में गुटबाजी काफी हावी थी। धौनी को तब सीनियर खिलाड़ियों से खासा जूझना पड़ा था। तब विराट कोहली उनके साथ खड़े दीखते थे। कोहली तब उस माहौल में अपने ही दिल्ली के ही कुछ सीनियर क्रिकेटरों के खिलाफ जाकर धौनी के साथ खड़े नजर आए थे। तब कोहली अपने कप्तान धौनी की कप्तानी की तारीफ करते नहींथकते थे। तब ऐसा लगता था कि वह धौनी का मजबूत कंधा बन चुके हैं। लेकिन अब समय और महत्वाकांक्षाओं ने हालात बदल दिए हैं।
(लेखिका रत्ना स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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