भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड न केवल क्रिकेट पर लगी भ्रष्टाचार की कालिख साफ करने को संजीदा है बल्कि इसके स्वदेशीकरण का भी मन बना चुका है। बीसीसीआई ने भारत रत्न सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली और वैरी-वैरी स्पेशल वीवीएस लक्ष्मण को सलाहकार समिति में तो राहुल द्रविड़ को अण्डर-19 की कायाकल्प का जिम्मा देकर इसके संकेत दे दिये हैं। बांग्लादेश दौरे के लिए रवि शास्त्री की अंतरिम प्रशिक्षक के रूप में तैनाती के भी निहितार्थ हैं। बीसीसीआई के इस कदम की चहुंओर सराहना मिलना सुखद संकेत है। इन अच्छाइयों के बावजूद भारत की टेस्ट क्रिकेट में लगातार होती अरुचि चिन्ता का कारण बनती जा रही है। बीसीसीआई को मूल क्रिकेट की बेहतरी के लिए अधिकाधिक टेस्ट मैच खेलने का भी कार्यक्रम बनाना चाहिए।
भारतीय क्रिकेट को बुलंदियों तक पहुंचाने का जो सिलसिला जून 1983 में हरफनमौला कपिल देव ने शुरू किया था, उसमें महेन्द्र सिंह धोनी ने इजाफा ही किया है। धोनी की कप्तानी में भारतीय क्रिकेट टीम ने कई नए प्रतिमान कायम किये हैं। एक-दो साल से भारतीय क्रिकेट टीम का प्रदर्शन ताली पीटने लायक नहीं रहा, इसकी वजह प्रशिक्षक की कमी कहें तो गलत न होगा। अब भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड को लगने लगा है कि विदेशी प्रशिक्षकों के बिना भी हमारे जांबाज खिलाड़ी काबिलेतारीफ प्रदर्शन कर सकते हैं। बीसीसीआई ने एक जून से स्वदेशीकरण की जो पहल की है उसकी क्रिकेट मुरीदों की सराहना मिलना इस बात का ही संकेत है कि अब हमें विदेशियों की सलाह की जरूरत नहीं है। बीसीसीआई ने सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण को सलाहकार समिति में भारतीय टीम को सजाने-संवारने का जो काम सौंपा है, इसका सुफल तो वक्त बतायेगा, पर इस तिकड़ी के कारनामों से पूरी दुनिया भलीभांति परिचित है। शनिवार को बीसीसीआई ने राहुल द्रविड़ को बेशक अण्डर-19 टीम के कायाकल्प की जवाबदेही सौंपी हो पर इससे इस बात के संकेत जरूर मिल रहे हैं कि उसका मन अभी विदेशियों से भरा नहीं है।
अभी तक बीसीसीआई कोच के रूप में विदेशी खिलाड़ियों को ही वरीयता देती आई है, जबकि सुनील गावस्कर, कपिल देव, मोहिंदर अमरनाथ और मदनलाल के रिटायरमेंट के समय से ही यह मांग चली आ रही है कि टीम को इन दिग्गजों का मार्गदर्शन मिलना चाहिए। देर से ही सही भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने अब भारतीय दिग्गजों की ओर जो रुख किया है, हम इसके सकारात्मक परिणामों की आशा कर सकते हैं। सचिन अपनी टीम को बल्लेबाजी के गुर सिखा सकते हैं, तो लक्ष्मण भारतीय टीम में तालमेल बैठाकर विरोधियों का किला ध्वस्त करने का जुनून पैदा करने की क्षमता रखते हैं। सौरव गांगुली टीम को बताएंगे कि विदेशों में जीत कैसे हासिल की जाती है। इन तीन सलाहकारों के अलावा रवि शास्त्री के रूप में एक धुरंधर निदेशक टीम के साथ रहेगा। शास्त्री की प्रशासनिक क्षमताएं असंदिग्ध हैं। यही वजह है कि क्रिकेट से संन्यास के बाद भी उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि बरकरार रखी है। भारतीय टीम के पिछले आॅस्ट्रेलिया दौरे के दौरान ही बीसीसीआई ने उन्हें निदेशक की भूमिका सौंप दी थी, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया भी।
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड सचिन, सौरव और लक्ष्मण की सेवाएं क्रिकेट के घरेलू ढांचे को मजबूत बनाने के अलावा राष्ट्रीय टीम को विदेशी दौरों की तैयारी में मार्गदर्शक के रूप में लेना चाहता है। भारतीय टीम की तथा-कथा पर नजर डालें तो वह अपनी पट्टियों पर तो बेहतर प्रदर्शन करती है लेकिन विदेशी पट्टियों पर हमारे पट्ठे हमेशा शर्मसार कर देते हैं। बीसीसीआई अध्यक्ष जगमोहन डालमिया को भरोसा है कि यह त्रिमूर्ति भारतीय क्रिकेट को नयी ऊंचाइयों तक ले जायेगी। बीसीसीआई सचिव अनुराग ठाकुर को भी यकीन है कि सचिन, सौरव और लक्ष्मण की बेशकीमती सलाह से भारतीय क्रिकेट को सभी प्रारूपों में फिर शिखर पर पहुंचने में मदद मिलेगी। देखा जाये तो सौरव गांगुली को मुख्य कोच या टीम निदेशक बनाये जाने की अटकलें लम्बे समय से लगाई जा रही थीं लेकिन सलाहकार समिति में उनकी नियुक्ति के मायने हैं कि या तो रवि शास्त्री ही टीम निदेशक बने रहेंगे या नये मुख्य कोच और सहयोगी स्टाफ की नियुक्ति की जायेगी।
भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड की इस कवायद के बाद यह सवाल भी महत्वपूर्ण है कि हम टेस्ट क्रिकेट की सुध कब लेंगे। भारतीय टीम बांग्लादेश का दौरा करने जा रही है, जहां वह केवल एक टेस्ट मैच और तीन एकदिवसीय अंतराष्ट्रीय मैच खेलेगी। आज जब पूरे क्रिकेट जगत में टेस्ट क्रिकेट की जीवंतता को लेकर चर्चा परवान चढ़ रही हो ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या एक या दो टेस्ट मैचों की सीरीज से मूल क्रिकेट में जान फूंकी जा सकती है? बांग्लादेश ने अपना पहला टेस्ट मैच भारत के ही खिलाफ साल 2000-01 में खेला था लेकिन 15 साल बाद भी भारत ने आज तक बांग्लादेश को कभी भी अपने यहां टेस्ट मैच खेलने का न्यौता नहीं दिया। आईसीसी टेस्ट क्रिकेट में दर्शकों की अरुचि पर तो प्राय: चिन्ता जताती है, लेकिन उसने इसकी वजह पर गौर करना कभी मुनासिब नहीं समझा। टेस्ट क्रिकेट से दर्शकों की अरुचि पर कहा जाता है कि आजकल लोगों के पास अधिक समय नहीं है इसलिए एकदिवसीय और टी-20 मुकाबले अधिक लोकप्रिय हो रहे हैं।
भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड चाहे तो वह दर्शकों का रुख टेस्ट क्रिकेट की ओर भी मोड़ सकता है। इसके लिए उसे विदेशी टीमों की अधिकाधिक मेजबानी करनी होगी। वैसे भी हमें यदि विश्वस्तरीय अच्छे युवा खिलाड़ी तैयार करने हैं तो हमें अधिकाधिक टेस्ट क्रिकेट खेलनी होगी। आॅस्ट्रेलिया में जब भी टेस्ट खेले जाते हैं, दर्शक मैदानों की तरफ रुख करते हैं। इसकी वजह वहां का शानदार मौसम और जीवंत पट्टियां हैं। क्रिकेट को अनिश्चितता का खेल कहा जाता है। यह अनिश्चितता इंग्लैण्ड में कुछ अधिक परवान चढ़ती है लेकिन भारत में ऐसा बहुत कम होता है। टेस्ट क्रिकेट से दर्शकों की अरुचि का पहला कारण जहां परिणाम को लेकर है वहीं दूसरा कारण प्रोत्साहन से भी जुड़ा है। भारत को टेस्ट क्रिकेट को आबाद करने के लिए पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश को अपने यहां आमंत्रित करने के साथ ही उसे इंग्लैण्ड, आॅस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका जाकर वहां अधिकाधिक टेस्ट मैच खेलने चाहिए। छोटे फॉर्मेट की क्रिकेट में जिस तरह भ्रष्टाचारियों की पैठ बढ़ी है उसे देखते हुए बीसीसीआई को मूल क्रिकेट की तरफ ध्यान देना चाहिए। क्रिकेट की असली कसौटी ताबड़तोड़ क्रिकेट नहीं टेस्ट क्रिकेट ही है।
भारतीय क्रिकेट को बुलंदियों तक पहुंचाने का जो सिलसिला जून 1983 में हरफनमौला कपिल देव ने शुरू किया था, उसमें महेन्द्र सिंह धोनी ने इजाफा ही किया है। धोनी की कप्तानी में भारतीय क्रिकेट टीम ने कई नए प्रतिमान कायम किये हैं। एक-दो साल से भारतीय क्रिकेट टीम का प्रदर्शन ताली पीटने लायक नहीं रहा, इसकी वजह प्रशिक्षक की कमी कहें तो गलत न होगा। अब भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड को लगने लगा है कि विदेशी प्रशिक्षकों के बिना भी हमारे जांबाज खिलाड़ी काबिलेतारीफ प्रदर्शन कर सकते हैं। बीसीसीआई ने एक जून से स्वदेशीकरण की जो पहल की है उसकी क्रिकेट मुरीदों की सराहना मिलना इस बात का ही संकेत है कि अब हमें विदेशियों की सलाह की जरूरत नहीं है। बीसीसीआई ने सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण को सलाहकार समिति में भारतीय टीम को सजाने-संवारने का जो काम सौंपा है, इसका सुफल तो वक्त बतायेगा, पर इस तिकड़ी के कारनामों से पूरी दुनिया भलीभांति परिचित है। शनिवार को बीसीसीआई ने राहुल द्रविड़ को बेशक अण्डर-19 टीम के कायाकल्प की जवाबदेही सौंपी हो पर इससे इस बात के संकेत जरूर मिल रहे हैं कि उसका मन अभी विदेशियों से भरा नहीं है।
अभी तक बीसीसीआई कोच के रूप में विदेशी खिलाड़ियों को ही वरीयता देती आई है, जबकि सुनील गावस्कर, कपिल देव, मोहिंदर अमरनाथ और मदनलाल के रिटायरमेंट के समय से ही यह मांग चली आ रही है कि टीम को इन दिग्गजों का मार्गदर्शन मिलना चाहिए। देर से ही सही भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने अब भारतीय दिग्गजों की ओर जो रुख किया है, हम इसके सकारात्मक परिणामों की आशा कर सकते हैं। सचिन अपनी टीम को बल्लेबाजी के गुर सिखा सकते हैं, तो लक्ष्मण भारतीय टीम में तालमेल बैठाकर विरोधियों का किला ध्वस्त करने का जुनून पैदा करने की क्षमता रखते हैं। सौरव गांगुली टीम को बताएंगे कि विदेशों में जीत कैसे हासिल की जाती है। इन तीन सलाहकारों के अलावा रवि शास्त्री के रूप में एक धुरंधर निदेशक टीम के साथ रहेगा। शास्त्री की प्रशासनिक क्षमताएं असंदिग्ध हैं। यही वजह है कि क्रिकेट से संन्यास के बाद भी उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि बरकरार रखी है। भारतीय टीम के पिछले आॅस्ट्रेलिया दौरे के दौरान ही बीसीसीआई ने उन्हें निदेशक की भूमिका सौंप दी थी, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया भी।
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड सचिन, सौरव और लक्ष्मण की सेवाएं क्रिकेट के घरेलू ढांचे को मजबूत बनाने के अलावा राष्ट्रीय टीम को विदेशी दौरों की तैयारी में मार्गदर्शक के रूप में लेना चाहता है। भारतीय टीम की तथा-कथा पर नजर डालें तो वह अपनी पट्टियों पर तो बेहतर प्रदर्शन करती है लेकिन विदेशी पट्टियों पर हमारे पट्ठे हमेशा शर्मसार कर देते हैं। बीसीसीआई अध्यक्ष जगमोहन डालमिया को भरोसा है कि यह त्रिमूर्ति भारतीय क्रिकेट को नयी ऊंचाइयों तक ले जायेगी। बीसीसीआई सचिव अनुराग ठाकुर को भी यकीन है कि सचिन, सौरव और लक्ष्मण की बेशकीमती सलाह से भारतीय क्रिकेट को सभी प्रारूपों में फिर शिखर पर पहुंचने में मदद मिलेगी। देखा जाये तो सौरव गांगुली को मुख्य कोच या टीम निदेशक बनाये जाने की अटकलें लम्बे समय से लगाई जा रही थीं लेकिन सलाहकार समिति में उनकी नियुक्ति के मायने हैं कि या तो रवि शास्त्री ही टीम निदेशक बने रहेंगे या नये मुख्य कोच और सहयोगी स्टाफ की नियुक्ति की जायेगी।
भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड की इस कवायद के बाद यह सवाल भी महत्वपूर्ण है कि हम टेस्ट क्रिकेट की सुध कब लेंगे। भारतीय टीम बांग्लादेश का दौरा करने जा रही है, जहां वह केवल एक टेस्ट मैच और तीन एकदिवसीय अंतराष्ट्रीय मैच खेलेगी। आज जब पूरे क्रिकेट जगत में टेस्ट क्रिकेट की जीवंतता को लेकर चर्चा परवान चढ़ रही हो ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या एक या दो टेस्ट मैचों की सीरीज से मूल क्रिकेट में जान फूंकी जा सकती है? बांग्लादेश ने अपना पहला टेस्ट मैच भारत के ही खिलाफ साल 2000-01 में खेला था लेकिन 15 साल बाद भी भारत ने आज तक बांग्लादेश को कभी भी अपने यहां टेस्ट मैच खेलने का न्यौता नहीं दिया। आईसीसी टेस्ट क्रिकेट में दर्शकों की अरुचि पर तो प्राय: चिन्ता जताती है, लेकिन उसने इसकी वजह पर गौर करना कभी मुनासिब नहीं समझा। टेस्ट क्रिकेट से दर्शकों की अरुचि पर कहा जाता है कि आजकल लोगों के पास अधिक समय नहीं है इसलिए एकदिवसीय और टी-20 मुकाबले अधिक लोकप्रिय हो रहे हैं।
भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड चाहे तो वह दर्शकों का रुख टेस्ट क्रिकेट की ओर भी मोड़ सकता है। इसके लिए उसे विदेशी टीमों की अधिकाधिक मेजबानी करनी होगी। वैसे भी हमें यदि विश्वस्तरीय अच्छे युवा खिलाड़ी तैयार करने हैं तो हमें अधिकाधिक टेस्ट क्रिकेट खेलनी होगी। आॅस्ट्रेलिया में जब भी टेस्ट खेले जाते हैं, दर्शक मैदानों की तरफ रुख करते हैं। इसकी वजह वहां का शानदार मौसम और जीवंत पट्टियां हैं। क्रिकेट को अनिश्चितता का खेल कहा जाता है। यह अनिश्चितता इंग्लैण्ड में कुछ अधिक परवान चढ़ती है लेकिन भारत में ऐसा बहुत कम होता है। टेस्ट क्रिकेट से दर्शकों की अरुचि का पहला कारण जहां परिणाम को लेकर है वहीं दूसरा कारण प्रोत्साहन से भी जुड़ा है। भारत को टेस्ट क्रिकेट को आबाद करने के लिए पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश को अपने यहां आमंत्रित करने के साथ ही उसे इंग्लैण्ड, आॅस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका जाकर वहां अधिकाधिक टेस्ट मैच खेलने चाहिए। छोटे फॉर्मेट की क्रिकेट में जिस तरह भ्रष्टाचारियों की पैठ बढ़ी है उसे देखते हुए बीसीसीआई को मूल क्रिकेट की तरफ ध्यान देना चाहिए। क्रिकेट की असली कसौटी ताबड़तोड़ क्रिकेट नहीं टेस्ट क्रिकेट ही है।
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