Wednesday 10 June 2015

योग पर सियासत


भारत विश्व गुरु है, इसकी गंगा-जमुनी संस्कृति की दुनिया भर में तारीफ होती है। देश का दुर्भाग्य कहें या सियासत कुछ लोग उस योग को मिथ्या साबित करने की कोशिश कर रहे हैं, जोकि स्वस्थ मानव जीवन के लिए निहायत जरूरी है। केन्द्र में जब से मोदी सरकार आई है, उसके अच्छे कामकाज पर भी उंगलियां उठाई जा रही हैं। योग को जिस तरह साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिशें हो रही हैं, वह न केवल गलत है बल्कि मानव कल्याण के लिए भी उचित नहीं है। भारतीय जनता पार्टी के लोग भी मामले की गम्भीरता को न समझते हुए आग में ही घी डालने का काम कर रहे हैं। भारत विचार बहुल देश है लेकिन जिस तरह उसके नेक कार्यों को विवादित बनाया जा रहा है, उससे मुल्क की गरिमा को आंच आने से इंकार नहीं किया जा सकता। योग को लेकर चल रही मौजूदा बहस हमारी नेक पारम्परिक व्यवस्था का ही एक गलत उदाहरण है। भारतीय परम्परा में योग मनुष्य को निरोगी रखने का जरिया ही नहीं आत्मा की सार्वभौमिक चेतना का प्रतिबिम्ब भी है। इसमें ध्यान, व्यायाम और ज्ञान सभी कुछ सम्मिलित है। दुर्भाग्य से शांत, सम्यक और संतुलित जीवन-शैली तथा परिष्कृत वैचारिकी की राह प्रशस्त करने वाले योग को धर्म और राष्ट्र के प्रतीक के रूप में संकुचित करने के प्रयास हो रहे हैं। भारतीय योगियों ने इस धारा को विश्व के कोने-कोने में हमेशा शोहरत दिलाते हुए इसकी सार्थकता को सिद्ध किया है। अफसोस चंद मुट्ठी भर लोग योग की विश्व स्वीकार्यता पर प्रश्नचिह्न लगा रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र में 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने के प्रस्ताव को 177 देशों का समर्थन मिला है। योग की महत्ता को चीन, अमेरिका, क्यूबा, जापान, संयुक्त अरब अमीरात, ईरान, इराक, सीरिया, अफगानिस्तान, बांग्लादेश जैसे देशों ने भी समर्थन दिया है लेकिन इसे हमारे देश में एक समूह ने धर्म-विशेष के गौरव के रूप में स्थापित करने की संकीर्ण मानसिकता दर्शाई है। ऐसी मानसिकता से योग जैसी सांस्कृतिक और सभ्यतागत उपलब्धियों को सीमित करना अनुचित ही नहीं, सिद्धांतों के विपरीत भी है। योग को थोपने की कवायद और इसके विरोधियों को भारत छोड़ने या समुद्र में डूब मरने की सलाह जैसा रवैया भी निन्दनीय है। योग का विरोध करने वालों को भी अपनी चिन्ताओं को धार्मिक आवरण न देकर इसकी व्यापकता और उपयोगिता पर मंथन करना चाहिए। सरकार ने योग दिवस के कार्यक्रमों से सूर्य-नमस्कार को हटाकर वाकई सराहनीय पहल की है। योग के पक्ष और विपक्ष में खड़े समूहों को योग-परम्परा के महत्व को सियासत का जामा पहनाने की बजाय इसके प्रचार-प्रसार की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में सहयोग देना चाहिए। 

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