Thursday, 11 June 2015

पाकिस्तान का बेसुरा राग

रस्सी जल गई पर ऐंठन नहीं गई, फिलवक्त यही कुछ स्थिति पाकिस्तानियों की भी है। आतंकवाद से जूझ रहे पाकिस्तान को भारतीय जांबाज सैनिकों को शाबासी देनी चाहिए कि उन्होंने म्यांमार सीमा में घुसकर सौ से अधिक आतंकियों को मार गिराया। सैनिकों की इस कार्रवाई से भारतीय आवाम तो खुश है लेकिन पाकिस्तान बौखला गया है। आॅपरेशन के तुरंत बाद ही पाकिस्तानी गृहमंत्री निसार अली खान का यह कहना कि हम म्यांमार नहीं जो कोई हमारी सीमा में घुसकर ऐसे आॅपरेशन को अंजाम दे वहीं पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति व पूर्व सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ का यह कहना कि हमारे देश के परमाणु बम शब-ए-बरात के लिए नहीं रखे या पाकिस्तान ने चूड़ियां नहीं पहनी हुई हैं, निहायत बचकानी बात है। गुरुवार को निसार अली खान का बयान केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर की उस टिप्पणी के बाद आया जिसमें उन्होंने कहा था कि म्यांमार में उग्रवादियों के खिलाफ की गई सैन्य कार्रवाई दूसरे देशों के लिए संदेश है। राठौर की टिप्पणी को पाकिस्तान ने चेतावनी के रूप में लिया और निसार ने कहा कि जो पाकिस्तान के खिलाफ नापाक इरादे रखते हैं, उनको कान खोलकर सुन लेना चाहिए कि हमारे सुरक्षा बल किसी भी दुस्साहस का जवाब देने में सक्षम हैं। निसार के बयान के बाद रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने चुटली लेते हुए कहा कि जो लोग भारत की बदली सोच से भयभीत हैं, उन्हीं को पीड़ा हो रही है। भारत-म्यांमार सीमा पर उग्रवादी ठिकानों पर हमले हमारी सैनिक और कूटनीतिक क्षमता के सराहनीय उदाहरण हैं। यह कार्रवाई एक तरफ जहां मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति का नतीजा है, वहीं इसकी सफलता के पीछे म्यांमार के साथ वर्षों से चल रहे सकारात्मक कूटनीतिक प्रयास भी हैं। म्यांमार और भारत के बीच सम्बन्धों की जहां तक बात है 1990 के दशक से ही सैन्य सहायता के जरिये भारत ने सहयोग और विश्वास का माहौल बनाया है। वर्ष 1995 में भारतीय सेना की 57वीं डिवीजन ने म्यांमार सेना के साथ मिलकर ‘आॅपरेशन गोल्डेन बर्ड’ नामक कार्रवाई में 38 उग्रवादी मार गिराये थे तो दोनों देशों ने जनवरी, 2006 में भी म्यांमार सीमा के भीतर कुछ आॅपरेशन किये थे। 2010 में दोनों देशों के बीच एक समझौता हुआ था जिसमें भारत को म्यांमार की सीमा के भीतर उग्रवादियों पर हमले की अनुमति दी गयी थी। जो भी हो हमें पाकिस्तान की नीति और नीयत पर कभी भरोसा न करते हुए यह भी नहीं भूलना चाहिए कि सिर्फ सैन्य कार्रवाई से ही पूर्वोत्तर राज्यों में शांति कायम हो जाएगी।  

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