मुल्क में शिक्षा की बिगड़ती स्थिति पर चिन्ता जताना राजनीतिज्ञों का शगल बन गया है। मध्यप्रदेश के व्यावसायिक परीक्षा मण्डल में हुए भ्रष्टाचार में 42 लोगों की असमय मौत के बाद भी भारत सरकार और विभिन्न राज्य सरकारें कोई नसीहत लेने को तैयार नहीं हैं। आज एक जुलाई से देश भर में फिर बेहतर शिक्षा की अलख जगाने की झूठी परम्परा परवान चढ़ेगी। मुल्क में शिक्षा की बेहतरी कब और कैसे परवान चढ़ेगी, इसका जवाब शायद किसी भी हुकूमत के पास नहीं है। मोदी सरकार से बेहतरी की उम्मीद थी लेकिन उसने भी मौका जाया कर दिया है। स्मृति इरानी के फर्जी दस्तावेजों पर मौन धारण किये कमल दल को शायद यह भी भान नहीं होगा कि आम लोगों के लिए लागू की गई प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना के लक्ष्यों को प्राप्त करने की जिम्मेदारी अघोषित रूप से उन शिक्षकों को सौंपी जा रही है, जिनका काम सिर्फ और सिर्फ छात्र-छात्राओं को सुयोग्य बनाना होना चाहिए। मरता क्या न करता, शिक्षकों को लक्ष्य पूरा न करने की स्थिति में वेतन कटौती का डर है। यह गम्भीर और विचारणीय मुद्दा है। एक ओर तो सरकार शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू कर नौनिहालों को शिक्षा उपलब्ध करवाना चाहती है, स्कूलों में अधिकाधिक बच्चों को लाने के लिए स्कूल चलें हम जैसे अभियान चलाती है वहीं दूसरी ओर जब भी मौका मिलता है, वह शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्यों में बगैर सोचे समझे लगा देती है। विरोध के स्वर उठने पर सरकार हर बार यह वादा करती है और आश्वासन देती है कि शिक्षकों से गैर शैक्षणिक कार्य नहीं कराया जायेगा। समय बीतते ही सारे के सारे आश्वासन धरे के धरे रह जाते हैं। जनगणना हो, पशुगणना हो, संसद से लेकर स्थानीय निकाय तक के चुनाव हों या फिर इस तरह के और भी काम। लगता है सरकार को शिक्षक ही ऐसा सरकारी कर्मचारी नजर आता है, जिनका वास्तविक कार्य महत्वहीन या गैरजरूरी है। सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर कैसा है, यह बात किसी से छिपी नहीं है। इन स्कूलों में शिक्षा के गिरते स्तर के चलते ही पालक अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में दाखिला दिलवाने से परहेज करता है। आज आवश्यकता इस बात की है कि सरकार शिक्षकों की महत्ता को न केवल समझे बल्कि उन्हें गैरजरूरी कार्यों में न लगाकर सरकारी स्कूलों और उसकी शिक्षा के स्तर में सुधार के उपाय करे। आमजन से सरोकार रखने वाली योजनाओं से किसी को गुरेज नहीं है, पर हमारी हुकूमतों को योजनाएं लागू करने से पहले यह देखना जरूरी है कि उसे अमल में लाने के लिए पर्याप्त संसाधन और अमला मौजूद है या नहीं? योजना की उपयोगिता कितनी है और क्या वे अपने उद्देश्यों में सफल हो पाएंगी। प्रधानमंत्री जनधन योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना और अटल पेंशन योजना की शुरुआत मोदी सरकार का सराहनीय प्रयास है, पर क्या यह सच नहीं कि इनमें से कुछ योजनाएं केवल आंकड़ों की बाजीगरी साबित हो रही हैं। मोदी सरकार को शिक्षा के महत्व को स्वीकारते हुए शिक्षकों से गैरजरूरी कार्य कराने की बजाय उनका शिक्षण कार्य में ही सदुपयोग करना चाहिये।
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