Thursday 4 June 2015

संकल्प का दिन

पर्यावरण हमारे जीवन का आलम्बन है। आज वह पूरी तरह से दूषित हो गया है। प्रकृति के अंधाधुंध दोहन से मनुष्य के स्वास्थ्य पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। वायु प्रदूषण से स्वास्थ्य के बढ़ते खतरे को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन हमें लगातार चेता रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि दुनिया भर में स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाले पर्यावरणीय कारकों में वायु प्रदूषण प्रमुख है। आज हर आठ में से एक मौत वायु प्रदूषण से ही हो रही है। दुनिया के सोलह सौ शहरों में हवा की गुणवत्ता का अध्ययन करने पर दिल्ली को सबसे प्रदूषित शहर का शर्मनाक दर्जा मिला है। दिल्ली ही नहीं मुल्क के दूसरे शहरों की आबोहवा भी विषैले तत्वों की चपेट में है। इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि आज दुनिया के बीस सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण वाले शहरों में 13 तो अकेले भारत में हैं। मुल्क के तमाम शहरों में वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर तक पहुंचने का ही दुष्परिणाम है कि अधिकांश लोग सांस की बीमारी का शिकार हैं। वायु प्रदूषण से लोगों के फेफड़े कमजोर हो रहे हैं तो दमा, हृदय रोग और रक्त विकार के मामले भी लगातार बढ़ रहे हैं। एक माह पहले पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने वायु प्रदूषण के हालिया आंकड़ों को निहित स्वार्थी तत्वों की चाल निरूपित कर समस्या की गम्भीरता को ही सवालों के घेरे में लाने का प्रयास किया था। पर्यावरण मंत्री का यह बयान नि:संदेह बचकाना और पर्यावरण के प्रति असंवेदनशील माना जायेगा। आवश्यकता आविष्कार की जननी है। पहले हमें प्रकृति की जरूरत थी। प्रकृति ने हमारी जरूरतों को पूरा किया लेकिन अब उसे हमारी जरूरत है। मानव समाज हर रोज विकास की नई पटकथा लिख रहा है, वह उस अत्याधुनिक दुनिया में जी रहा है, जिसकी शायद आज से दो सौ साल पहले किसी ने कल्पना भी न की होगी। हम पलक झपकते मनचाही चीज तो उपलब्ध करा लेते हैं लेकिन विकास की कीमत पर हम पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं। दुनिया में स्वच्छ वातावरण के लिए पृथ्वी पर 33 फीसदी जंगल होना आवश्यक है। आजादी से पहले हमारे मुल्क में 45 प्रतिशत वन क्षेत्र हुआ करता था लेकिन आज सिर्फ 19 फीसदी वन क्षेत्र ही रह गया है। पर्यावरण चक्र के संचालन उपादान हैं पर्वत, समुद्र, नदियां, वन,  वन्य प्राणी, वृक्षादि। यदि यही दूषित हो जाएं तो भला पर्यावरण कैसे शुद्ध रहेगा? कैसे स्वस्थ रहेगा मानव जीवन? मुल्क को यदि इस त्रासदपूर्ण समस्या से निजात दिलाना है तो हमें पर्यावरण की भयावहता से नसीहत लेनी होगी। पर्यावरण का बदला हुआ विकराल स्वरूप एक दिन के संकल्प मात्र से अपना पुराना वैभव वापस नहीं पा सकता। हमें चुप नहीं बैठना है बल्कि स्वयं पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक होने के साथ ही दूसरे लोगों को भी खतरे से सावधान करना होगा। 

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