



बड़बोले बिशन सिंह बेदी ने कहा कि वे इस नयी समिति के स्वरूप को नहीं समझ सके हैं। अगर उनके जैसे लोग भी समझने में नाकाम रहे हैं, तो फिर यह मामला किसे समझ में आयेगा। तथ्य यह है कि क्रिकेट बोर्ड भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए ही पुराने खिलाड़ियों को अपने पक्ष में रखना चाहता है। सुनील गावस्कर और रवि शास्त्री ने बेमतलब के कामों के लिए चुपके से कई करोड़ रुपये के करार बोर्ड के साथ किये हैं, जबकि ये दोनों कमेंटेटर भी हैं। जब यह बात अखबारों में छपी, तो उन्होंने कुछ अस्पष्ट-सा स्पष्टीकरण दिया जो बहुतों के गले नहीं उतर सका। शास्त्री इन दिनों क्रिकेट बोर्ड के अनधिकृत, लेकिन वेतनभोगी प्रवक्ता हैं, कथित रूप से निरपेक्ष कमेंटेटर हैं और अब टीम निदेशक भी बन गये हैं (यह नया मनमोहक पद पहले अस्तित्व में नहीं था)
क्रिकेट बोर्ड इन मामलों में पूरी तरह आपसी लेन-देन वाली संस्था है। लोगों का एक छोटा समूह हर चीज को नियंत्रित करता है, जिनमें कुछ व्यापारी और राजनेता हैं तथा कुछ पुराने खिलाड़ी हैं। आखिर यह समूह इतना छोटा क्यों है और अपना काम इस गोपनीयता से क्यों करता है? इसका कारण यह है कि यह घोटालों से भरा पड़ा है। इंडियन प्रीमियर लीग के संस्थापक फरार हैं, इंटरनेशनल क्रिकेट कौंसिल के अध्यक्ष का दामाद सट्टेबाजी के आरोप में जेल में है, आईपीएल की अनेक टीमों पर मालिकाना और अन्य मामलों को लेकर गंभीर आरोप हैं तथा मैच फिक्सिंग के आरोप में खिलाड़ी गिरफ्तार किये जा रहे हैं और उन पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है। इस अव्यवस्था को कौन ठीक करने की कोशिश में है? कोई नहीं। जब भी क्रिकेट बोर्ड, जो अपने को नियमित करने का दावा करता है, यह कहता है कि वह खेल की बेहतरी के लिए कुछ करने जा रहा है, तो मुझे बहुत संदेह होता है। यह एक पैसा बनाने की मशीन है तथा सभी राजनेता इसमें अपना हिस्सा चाहते हैं।
कांग्रेस के राजीव शुक्ला से लेकर राष्ट्रवादी कांग्रेस के शरद पवार और भाजपा के अरुण जेटली तक, जो देश के सबसे ताकतवर और जाने-माने नेता हैं, भारत के क्रिकेट बोर्ड में जगह बनाने की चाहत रखते हैं। नियमन और पारदर्शिता में क्रिकेट बोर्ड का रिकॉर्ड खराब रहा है, खासकर जब मामला आईपीएल का आता है, जो दुधारू गाय है। एक अखबार ने रिपोर्ट किया कि इस नये पैनल से आईपीएल के बारे में सलाह लिये जाने की सम्भावना नहीं है। तो फिर इसका तात्पर्य क्या है और सचिन, सौरव और लक्ष्मण को क्यों बुलाया गया है तथा क्यों द्रविड़ ने इससे अलग रहने का निर्णय लिया है?
मेरा अनुमान है कि क्रिकेट बोर्ड को लगता है कि अंदर के ऐसे भरोसेमंद लोगों का उसके प्रभाव क्षेत्र से बाहर रहना खतरनाक है। इन तीन पूर्व खिलाड़ियों जैसे लोगों को बोर्ड अपने तम्बू के भीतर रखना चाहता है। इस पूरे प्रकरण में क्रिकेट बोर्ड वरिष्ठ और कनिष्ठ टीम की बेहतरी की किसी इच्छा से कतई प्रेरित नहीं है। इसकी पूरी कोशिश खुद को बचाये रखने की है। अगर इसकी चाहत खेल की जानकारी रखने वाले पूर्व खिलाड़ियों को अधिक जिम्मेदारी देने की होती, तो फिर सैयद किरमानी को यह शिकायत क्यों होती कि उन्हें नजरअंदाज किया जा रहा है? सम्भवत: ऐसा इसलिए है कि बहुत कम लोग ही आज उन्हें याद करते हैं। सचिन जैसे पूर्व खिलाड़ियों के विचारों से क्रिकेट बोर्ड को डर लगता है।
अगर वे भारतीय बोर्ड के भीतर चल रहे भ्रष्टाचार और परिवारवाद के खिलाफ बोल दें, तो बोर्ड का दर्शकों के साथ भारी झमेला खड़ा हो सकता है। इसलिए उन्हें अंदर रखने की कोशिश बोर्ड कर रहा है। मेरे विचार में द्रविड़ ने बोर्ड के प्रस्ताव को इसलिए ठुकरा दिया, क्योंकि उन्हें इस जिम्मेदारी के असली चरित्र की समझ है। और यह चरित्र है बोर्ड का आखिरकार बचाव करना, भले ही वे कुछ भी हरकत करते रहें। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड का यह सलाहकार बोर्ड इसी नजरिये से देखा जाना चाहिए, क्योंकि उसके इतिहास को देखते हुए अच्छे भरोसे के प्रदर्शन की जिम्मेदारी पूरी तरह उन्हीं के ऊपर है।
आकार पटेल
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