समय दिन-तारीख देखकर आगे नहीं बढ़ता। इस अनवरत यात्रा में कई सुखद और दु:खद पड़ाव आते हैं। रविवार 21 जून का दिन भारतीय जीवन शैली की पवित्रता के रूप में दुनिया भर के दिलों में अपनी पैठ बना चुका है। अब हर साल एक दिन ही सही समूची दुनिया जाति-धर्म से परे कोई पांच हजार साल पुरानी यौगिक क्रियाओं से अपने तन-मन को स्वस्थ रखने का माध्यम जरूर बनाएगी। योग: कर्मसु कौशलम् की स्वीकार्यता आसानी से युगांतकारी नहीं बनी। स्वस्थ जीवन समस्त मानव जाति का अधिकार है, इस बात को दुनिया भर के 198 मुल्कों की लगभग दो अरब आवाम ने रविवार को अपनी स्वीकार्यता देकर उन कुछेक धर्मबीमार तथा संकीर्ण विचारधारा के लोगों को नसीहत जरूर दी है, जोकि योग को लेकर अनर्गल प्रलाप करते हैं। योग का अंतरराष्ट्रीय फलक पर उभरना और उसको स्वीकारना सिर्फ भारत ही नहीं समूची मानवता के लिए गौरव की बात है। समय का संकेत भारत के पक्ष में है, यह आज सबने न केवल देखा बल्कि महसूस भी किया है। दुनिया शांति चाहती है लेकिन उसके पास इसे प्राप्ति के संसाधन नहीं हैं। योग में शांति का ऐसा रहस्य समाहित है, जो दिखता तो नहीं पर इससे सात्विक, दिव्य, शाश्वत और परम शांति जरूर मिलती है। योग के बहाने दुनिया ने शांति का जो संकल्प लिया है, उससे एक ऐसा आत्मविश्व बनेगा जिसमें कोई विभेद नहीं होगा। जहां तक योग के विश्वव्यापी पहचान की बात है, यह दशकों से लोगों के मन-मानस में दर्ज थी लेकिन हाल के कुछ वर्षों में इसकी लोकप्रियता में जबरदस्त इजाफा हुआ है। वर्षों पहले स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि कुछ तो ऐसा हो जिसे समूची दुनिया का समर्थन मिले, जिसमें जाति, धर्म, भाषा या राजनीति आडे न आये। सच कहें तो विवेकानंद जी के सपने को भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने न केवल साकार रूप देने की नायाब कोशिश की बल्कि दुनिया ने उसे फलीभूत भी कर दिखाया। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर मुल्क की आवाम ने एक साथ योगासन करविश्व को यह संदेश दिया कि भारत एक है। उसकी राष्ट्रीय एकता अखण्ड है। योग ईश्वरवाद और अनीश्वरवाद की तार्किक बहस में नहीं पड़ता। वह इसे विकल्प ज्ञान मानता है। योग को ईश्वर के होने या नहीं होने से कोई मतलब नहीं, किंतु यदि किसी काल्पनिक या यथार्थ ईश्वर की प्रार्थना करने मात्र से ही मन और शरीर को शांति मिलती है तो उसे सिर्फ एक दिन ही क्यों हर दिन क्यों न अमल में लाया जाये। सच तो यह है कि योग एक ऐसा मार्ग है, जो विज्ञान और धर्म के बीच से निकलता है। वह दोनों में ही संतुलन बनाकर चलता है। योग के लिए महत्वपूर्ण है मनुष्य और मोक्ष। मनुष्य को शारीरिक-मानसिक रूप से स्वस्थ रखना विज्ञान और मनोविज्ञान का कार्य है तथा मनुष्य के लिए मोक्ष का मार्ग बताना धर्म का कार्य है। योग में दोनों ही बातें समाहित हैं। योग की सार्थकता तभी है जब इसे हर दिन, हर पल अमल में लाया जाये।
Sunday, 21 June 2015
योग की स्वीकार्यता
समय दिन-तारीख देखकर आगे नहीं बढ़ता। इस अनवरत यात्रा में कई सुखद और दु:खद पड़ाव आते हैं। रविवार 21 जून का दिन भारतीय जीवन शैली की पवित्रता के रूप में दुनिया भर के दिलों में अपनी पैठ बना चुका है। अब हर साल एक दिन ही सही समूची दुनिया जाति-धर्म से परे कोई पांच हजार साल पुरानी यौगिक क्रियाओं से अपने तन-मन को स्वस्थ रखने का माध्यम जरूर बनाएगी। योग: कर्मसु कौशलम् की स्वीकार्यता आसानी से युगांतकारी नहीं बनी। स्वस्थ जीवन समस्त मानव जाति का अधिकार है, इस बात को दुनिया भर के 198 मुल्कों की लगभग दो अरब आवाम ने रविवार को अपनी स्वीकार्यता देकर उन कुछेक धर्मबीमार तथा संकीर्ण विचारधारा के लोगों को नसीहत जरूर दी है, जोकि योग को लेकर अनर्गल प्रलाप करते हैं। योग का अंतरराष्ट्रीय फलक पर उभरना और उसको स्वीकारना सिर्फ भारत ही नहीं समूची मानवता के लिए गौरव की बात है। समय का संकेत भारत के पक्ष में है, यह आज सबने न केवल देखा बल्कि महसूस भी किया है। दुनिया शांति चाहती है लेकिन उसके पास इसे प्राप्ति के संसाधन नहीं हैं। योग में शांति का ऐसा रहस्य समाहित है, जो दिखता तो नहीं पर इससे सात्विक, दिव्य, शाश्वत और परम शांति जरूर मिलती है। योग के बहाने दुनिया ने शांति का जो संकल्प लिया है, उससे एक ऐसा आत्मविश्व बनेगा जिसमें कोई विभेद नहीं होगा। जहां तक योग के विश्वव्यापी पहचान की बात है, यह दशकों से लोगों के मन-मानस में दर्ज थी लेकिन हाल के कुछ वर्षों में इसकी लोकप्रियता में जबरदस्त इजाफा हुआ है। वर्षों पहले स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि कुछ तो ऐसा हो जिसे समूची दुनिया का समर्थन मिले, जिसमें जाति, धर्म, भाषा या राजनीति आडे न आये। सच कहें तो विवेकानंद जी के सपने को भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने न केवल साकार रूप देने की नायाब कोशिश की बल्कि दुनिया ने उसे फलीभूत भी कर दिखाया। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर मुल्क की आवाम ने एक साथ योगासन करविश्व को यह संदेश दिया कि भारत एक है। उसकी राष्ट्रीय एकता अखण्ड है। योग ईश्वरवाद और अनीश्वरवाद की तार्किक बहस में नहीं पड़ता। वह इसे विकल्प ज्ञान मानता है। योग को ईश्वर के होने या नहीं होने से कोई मतलब नहीं, किंतु यदि किसी काल्पनिक या यथार्थ ईश्वर की प्रार्थना करने मात्र से ही मन और शरीर को शांति मिलती है तो उसे सिर्फ एक दिन ही क्यों हर दिन क्यों न अमल में लाया जाये। सच तो यह है कि योग एक ऐसा मार्ग है, जो विज्ञान और धर्म के बीच से निकलता है। वह दोनों में ही संतुलन बनाकर चलता है। योग के लिए महत्वपूर्ण है मनुष्य और मोक्ष। मनुष्य को शारीरिक-मानसिक रूप से स्वस्थ रखना विज्ञान और मनोविज्ञान का कार्य है तथा मनुष्य के लिए मोक्ष का मार्ग बताना धर्म का कार्य है। योग में दोनों ही बातें समाहित हैं। योग की सार्थकता तभी है जब इसे हर दिन, हर पल अमल में लाया जाये।
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