Monday, 29 June 2015

मोदी का मौन

अपनी वक्तव्य कला से दुनिया को सम्मोहित करने वाले भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इन दिनों मौन धारण किये हुए हैं। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का मौनी बाबा कहकर उपहास उड़ाने वाले भाजपाई न केवल नंगनाच कर रहे हैं बल्कि चार देवियों ने पार्टी के सामने संकट खड़ा कर रखा है। मोदी के मौन पर न केवल विपक्ष मुखर है बल्कि आम जनमानस भी चुटकी ले रहा है कि क्या वह सिर्फ मन की ही बात सुनायेंगे? सवाल यह भी कि जिस व्यक्ति को वक्तव्य कला में महारत हासिल हो वह बार-बार गहरी खामोशी क्यों ओढ़ लेता है? देखा जाये तो इस साल के शुरू में जब कुछ गिरजाघरों पर हमले होने लगे और मुसलमानों की कथित घर वापसी की कोशिशों पर बखेड़ा मचा था तब भी मोदी खामोश रहे। जब पानी सिर से ऊपर जाने लगा तब 17 फरवरी को उन्होंने न केवल अपनी खामोशी तोड़ी बल्कि करोड़ों भारतीयों को दिलासा दिलाया कि हर किसी को अपने मजहब पर चलने की स्वतंत्रता है। उनकी सरकार किसी को एक-दूसरे के धर्म के खिलाफ नफरत फैलाने की इजाजत नहीं देगी। इन दिनों कमल दल क्रिकेट को लेकर असहज है। पूर्व आईपीएल प्रमुख ललित मोदी ने बेशक नरेन्द्र मोदी की तारीफ की हो लेकिन भाजपा की दिग्गज नेत्रियों की करतूत ने उनकी बोलती बंद कर रखी है। वैसे तो क्रिकेट की कालिख दीगर दलों के नेताओं पर भी लगी हुई है लेकिन सत्ताधारी पार्टी पर उंगली उठने की खास वजह है। मोदी ने मुल्क की सल्तनत सम्हालने से पहले आवाम से भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देने का वादा किया था। मोदी को उम्मीद थी कि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे सिंधिया ललित मोदी की मदद के मामले में स्वेच्छा से कुर्सी छोड़ देंगी, पर इन देवियों ने नैतिकता दिखाने की बजाय कुर्सी को अहमियत देकर पार्टी को ही मुश्किल में डाल दिया है। विपक्ष चिल्ला रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी आखिर चुप क्यों हैं? इस चुप्पी की वजह भाजपा की देवियां नहीं बल्कि गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष नरेन्द्र मोदी स्वयं हैं। अतीत में नरेन्द्र मोदी और ललित मोदी के सम्बन्ध न केवल प्रगाढ़ थे बल्कि मोदी चाहते थे कि ललित मोदी के सहारे अडाणी आईपीएल में अहमदाबाद की टीम उतारें। नरेन्द्र मोदी सोशल मीडिया पर हमेशा सक्रिय रहते हैं। वह दुनिया भर के नेताओं को बधाई संदेश देना कभी नहीं भूलते, लेकिन देश के अंदर उठे तूफान पर उनकी उंगलियां के क्यों नहीं चल रहीं, यह सबसे बड़ा आश्चर्य है। मोदी की खामोशी नादानी हो या रणनीति का हिस्सा, लेकिन मुल्क चाहता है कि वह अपनी चुप्पी तोड़ें। अतीत में इंदिरा गांधी को गूंगी गुड़िया तो डॉक्टर मनमोहन सिंह को गूंगा सरदार कहा गया था लेकिन उनकी खामोशी भी रणनीति का ही एक हिस्सा थी। मोदी भी मौन कला में महारत रखते हैं। 2002 के गुजरात दंगों पर मुख्यमंत्री की हैसियत से उन्होंने जो लम्बी खामोशी ओढ़ी थी, वह उनके लिए काफी मददगार साबित हुई थी। मोदी की चुप्पी क्या रंग लायेगी यह तो समय बतायेगा लेकिन फिलवक्त का मौन उनकी छवि पर बट्टा जरूर लगा रहा है।

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