Tuesday 31 May 2016

फेडरेशन के धोबी पाट में फंसे सुशील और नरसिंह यादव

ढुलमुल कुश्ती- अदालत भी असमंजस में
ओलम्पिक खेल बिल्कुल करीब हैं लेकिन भारतीय खिलाड़ियों की रहनुमाई को लेकर इन दिनों कुश्ती के दो महायोद्धा सुशील कुमार और नरसिंह यादव के बीच अदालत में कांटे की नूरा-कुश्ती चल रही है। इसकी वजह फेडरेशन का ढुलमुल रवैया कहें तो गलत न होगा। इस मामले में जिस तरह की खींचतान चल रही है, उसे देखते हुए यही साबित हो रहा है कि सुनियोजित तैयारी न होने के अलावा भी दूसरे कई तत्त्व अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भारत के शर्मसार होने की वजह हैं। ताजा विवाद ओलम्पिक में पुरुषों की कुश्ती प्रतियोगिता के ७४ किलोग्राम वर्ग में भारत के प्रतिनिधित्व का है।
भारतीय कुश्ती महासंघ जहां लगातार नरसिंह यादव को मिले ओलम्पिक कोटे को प्रमुखता दे रहा है वहीं देश के अधिकांश खेलप्रेमियों का मानना है कि इन दोनों में जो जीते वही ब्राजील में ताल ठोके। नरसिंह पंचम यादव और सुशील कुमार में से किसी एक को चुनने का मामला इतना उलझ गया कि न्यायालय को दखल देना पड़ा है। न्यायालय की भी समझ में नहीं आ रहा कि वह क्या फैसला दे। हालत यह है कि इस मसले पर सुशील कुमार की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट को कहना पड़ा है कि भारतीय कुश्ती महासंघ सुशील के रिकॉर्ड पर गौर करते हुए उसकी सुने और फैसला करे कि रियो ओलम्पिक में कुश्ती प्रतियोगिता के पुरुषों के ७४ किलोग्राम वर्ग में भारत की नुमाइंदगी कौन करेगा।
इस मामले में दोनों खिलाड़ियों के दावों के बीच जिस तरह की मुश्किल खड़ी हो गई है, उससे तो यही लगता है कि यहां देश के बजाय व्यक्तियों का सवाल ज्यादा अहम हो गया है। गौरतलब है कि भारत की ओर से ७४ किलोग्राम वर्ग में नरसिंह पंचम पहले ही रियो ओलम्पिक के लिए चुने जा चुके हैं। लेकिन चूंकि सुशील कुमार ने ज्यादा योग्य उम्मीदवार को ओलम्पिक में भेजने की मांग के साथ उनके और नरसिंह पंचम के बीच मुकाबले का सवाल उठा दिया है, इसलिए मामला और उलझ गया है। मुश्किल यह है कि अगर भारतीय कुश्ती महासंघ इस पर विचार करता है तो बाकी के सात वजन वर्गों में भी अन्य पहलवानों के बीच ऐसे मुकाबले की मांग उसकी नाक में दम कर सकती है। दरअसल, ओलम्पिक में दावेदारी के लिए मौका कुश्ती के सीधे मुकाबलों में नहीं मिलता, बल्कि भारतीय कुश्ती महासंघ पूर्व के प्रदर्शन के आधार पर किसी पहलवान को चुनता है। चूंकि नरसिंह यादव ७४ किलोग्राम वर्ग में कुश्ती खेलते रहे हैं और पिछले साल लॉस वेगास में हुई विश्व कुश्ती प्रतियोगिता में उन्होंने इस वर्ग में कांस्य पदक जीता था, इसीलिए उन्हें ७४ किलोग्राम वर्ग के तहत रियो ओलम्पिक के लिए चुना गया। दूसरी ओर, सुशील कुमार ६६ किलोग्राम वर्ग में खेलते रहे हैं। लेकिन अब ओलम्पिक में इस भारवर्ग की कुश्ती नहीं होगी सो यह बखेड़ा खड़ा हो गया। सुशील कुमार चोट और तैयारियों से जुड़े सवालों से भी जूझ रहे हैं। लेकिन उनकी यह शिकायत वाजिब है कि अगर भारतीय कुश्ती महासंघ ने कोई फैसला कर लिया था तो उन्हें पहले यह संकेत क्यों नहीं दिए गए। नरसिंह यादव और सुशील कुमार के बीच मुकाबले की जहां तक बात है, सुशील २१ हैं। वह नरसिंह को हरा चुके हैं लेकिन उन मुकाबलों के अब कोई मायने नहीं रहे। जाहिर है, अगर यह विवाद इतना तूल पकड़ चुका है तो इसके पीछे भारतीय कुश्ती महासंघ का ढुलमुल रवैया है। कम से कम अब जरूरत है कि ताजा विवाद में भारतीय कुश्ती महासंघ किसी ऐसे निष्कर्ष पर पहुंचे, जिससे उस पर पक्षपात करने का आरोप न लगे। इस संदर्भ में हाईकोर्ट ने बिल्कुल ठीक कहा है कि किसी व्यक्ति को नुकसान उठाना पड़ सकता है, लेकिन देश को सर्वोपरि रखना चाहिए। यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में भारत का रिकॉर्ड अगर संतोषजनक नहीं रहा है तो इसका एक बड़ा कारण खिलाड़ियों के चयन की प्रक्रिया, उसमें आपसी खींचतान और कई बार बेहतर खिलाड़ियों को मौका न मिलना भी रहा है। इसमें खेल संगठनों के कर्ताधर्ताओं से लेकर दूसरे सत्ता केंद्रों के बीच टकराव और हित भी काम करते रहते हैं। इसका असर न केवल खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर पड़ता है बल्कि देश को भी नुकसान उठाना पड़ता है।
भारतीय कुश्ती महासंघ ने दिल्ली उच्च न्यायालय में दलील दी है कि पहलवान नरसिंह पंचम यादव रियो ओलम्पिक में ७४ किलोग्राम फ्रीस्टाइल वर्ग में सुशील कुमार से बेहतर दांव है। नरसिंह ने विश्व कुश्ती चैम्पियनशिप २०१५ में कांस्य पदक जीतकर भारत के लिए ओलम्पिक कोटा हासिल किया था और वह च्सबसे सुयोग्य पहलवानज् और सुशील की तुलना में बेहतर प्रतिभागी हैं। भारतीय कुश्ती महासंघ ने तो यहां तक कहा कि सुशील पिछले दो वर्षों में चयन ट्रायल के दौरान लगातार नरसिंह का सामना करने से बचता रहा। सुशील ने इन दावों के जवाब में आरोप लगाया कि उन्हें ओलम्पिक में ७४ किलोग्राम भारवर्ग में भारत का प्रतिनिधित्व करने का मौका देने के लिए ट्रायल पर इसलिए विचार नहीं किया जा रहा क्योंकि उसने प्रो कुश्ती लीग में हिस्सा नहीं लिया था। सुशील की तरफ से शामिल हुए सीनियर वकील अमित सिब्बल ने न्यायमूर्ति मनमोहन से कहा कि भारतीय कुश्ती महासंघ इस तरह का मनमाना फैसला नहीं कर सकता। सुशील का प्रो कुश्ती लीग में हिस्सा नहीं लेना कोई कारण नहीं हो सकता। सुशील केवल ट्रायल के लिए कह रहा है।
अदालत में भारतीय कुश्ती महासंघ ने जिस तरह नरसिंह यादव का पक्ष रखा उससे साफ जाहिर है कि सुशील कुमार रियो ओलम्पिक में शायद ही ताल ठोक पाएं। भारतीय कुश्ती महासंघ ने अदालत में पेश हलफनामे में कहा, च्प्रतिवादी संख्या पांच (नरसिंह  को आगामी ओलम्पिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए सर्वश्रेष्ठ पहलवान आंका गया है। चयन पूरी तरह से निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से हुआ है। नरसिंह ७४ किलोग्राम फ्रीस्टाइल वर्ग में बेहतर प्रतिभागी है क्योंकि वह २००६ से इस भार वर्ग में पूरे दबदबे के साथ खेल रहा है जबकि सुशील जनवरी २०१४ तक ६६ किलोग्राम भार वर्ग में खेलता रहा है। रियो के लिए अभ्यास शिविर में अपना नाम नहीं होने के बाद ३२ वर्षीय सुशील ने उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल करके भारतीय कुश्ती महासंघ को ट्रायल करवाने का निर्देश देने का आग्रह किया जिससे यह तय हो सके कि रियो खेलों में ७४ किलोग्राम फ्रीस्टाइल में भारत का प्रतिनिधित्व कौन करेगा। भारतीय कुश्ती महासंघ ने अदालत से कहा कि २६ वर्षीय नरसिंह को ७४ किलोग्राम भार वर्ग में रियो ओलम्पिक में भेजने का फैसला पहलवानों के अपने भार वर्ग में उपलब्धियों, वर्तमान प्रदर्शन और अभ्यास शिविरों में मुख्य कोच और ट्रेनरों के आकलन के बाद पूरे विचार विमर्श के बाद किया गया। नरसिंह की तरफ से उपस्थित सीनियर एडवोकेट दिनेश गुप्ता ने कहा कि उनके मुवक्किल का नाम ओलम्पिक के लिए भेजा गया क्योंकि उन्होंने देश के लिए कोटा हासिल किया था। उन्होंने कहा, च्यदि आज ट्रायल कराए जाते हैं तो फिर क्वालीफिकेशन प्रतियोगिता को व्यर्थ माना जाएगा।ज् इसके साथ ही उन्होंने आगे कहा कि राष्ट्रीय प्रतिष्ठा को लेकर कोई विवाद नहीं है। उन्होंने कहा कि निष्पक्ष प्रक्रिया से चयन किया गया है और मनमाना या दुराग्रहपूर्ण जैसा कुछ नहीं हुआ है। सुशील के इस आरोप पर कि उन्हें ट्रायल का मौका इसलिए नहीं दिया गया क्योंकि उन्होंने प्रो कुश्ती लीग में हिस्सा नहीं लिया था। भारतीय कुश्ती महासंघ ने कहा कि सुशील के प्रति पक्षपातपूर्ण रवैया नहीं अपनाया गया। भारतीय कुश्ती महासंघ के वकील ने कहा, च्आज तक भारत में या हमारी जानकारी के हिसाब से यहां तक कि विश्व में भी एक भी वाकया ऐसा नहीं है जबकि देश के लिए कोटा हासिल करने वाले खिलाड़ी को ओलम्पिक में नहीं भेजा गया हो। प्रतियोगिता के लिए पहलवान को भेजना देश का अधिकार है।ज् उन्होंने इसके साथ ही कहा कि ओलम्पिक में जो १८ पहलवान इस भार वर्ग में भाग लेने जा रहे हैं नरसिंह ने उनमें से छह को हराया है।
सुशील के वकील ने कहा कि भारतीय कुश्ती महासंघ को पदक जीतने की सम्भावना बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए और जहां तक अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं की बात है तो उनका मुवक्किल काफी आगे है। उन्होंने कहा, च्निष्पक्ष चयन और राजनीतिक या अन्य तरह के प्रभाव कम करने के लिए ट्रायल का आयोजन सबसे बेहतर तरीका है। ओलम्पिक सबसे बड़ी प्रतियोगिता है और ट्रायल की जरूरत है जोकि निष्पक्ष तरीके से और अग्रिम नोटिस पर किया जाना चाहिए। पारदर्शिता के लिए ऐसा करना चाहिए। याचिकाकर्ता (सुशील) भारत का सबसे सफल खिलाड़ी है और व्यक्तिगत स्पर्धा में दो ओलम्पिक पदक जीत चुका है।ज् सुशील के वकील ने यह भी कहा कि उनका मुवक्किल पदक का प्रबल दावेदार और बेजोड़ खिलाड़ी है और यदि ट्रायल नहीं कराये गए तो इस स्पर्धा में भारत की पदक जीतने की सम्भावना क्षीण हो जाएगी। उन्होंने कहा कि चयन ट्रायल पिछले साल जुलाई में किया गया और सुशील इसलिए भाग नहीं ले पाया क्योंकि तब वह चोटिल था। पूर्व वाकये पर नजर डालें तो ओलम्पिक में ट्रायल को लेकर योगेश्वर दत्त एवं अर्जुन अवार्ड विजेता कृपाशंकर का मामला भी काफी चर्चित रहा है। २००४ में ओलम्पिक क्वालीफाइंग मुकाबलों के दौरान एक क्वालीफाई मुकाबले में जब योगेश्वर दत्त हार गए थे तब दूसरा कृपाशंकर को लड़ना था, लेकिन तब भी राजनीति हावी रही। फेडरेशन में हरियाणा की लाबी थी। महेन्द्र सिंह मलिक डीजीपी हरियाणा पुलिस भारतीय कुश्ती संघ के प्रधान थे। जहां कृपाशंकर का मौका था वहां भी योगेश्वर दत्त लड़े थे और विजयी हुए थे। तब कहा गया कि वजन क्वालीफाई हुआ है। इस बात का शोर मचा तो कहा गया हम ट्रायल लेंगे। लेकिन ट्रायल हुआ नहीं और मामला कोर्ट तक पहुंच गया था। इसके बाद ओलम्पिक में रवानगी का एक अन्य मामला इंदौर के पप्पू यादव का था,जिसमें वाइल्ड कंट्री इंट्री के बाद ट्रायल हुई थी और पप्पू यादव विजयी हुआ था। नियमतः क्वालीफाई करने के बाद विजयी पहलवान को दोबारा कभी ट्रायल नहीं देनी पड़ी। जो भी हो यह मामला भारतीय पहलवानों का दिल तोड़ने वाला ही साबित हो रहा है। फेडरेशन की इस लड़ाई में नुकसान पहलवानों का है, जिसे उचित नहीं कहा जा सकता।

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