Friday, 27 May 2016

शालिनी के जज्बे को सलाम

                         
इंसान का जज्बा और जुनून जब सातवें आसमान पर हो, तब वह कुछ भी कर सकता है। कहा भी गया है हिम्मत बंदे मदद खुदा। बेंगलुरु की शालिनी सरस्वती दोनों हाथ और पैरों से अशक्त हैं, पर उनमें जुनून ऐसा कि हर मुश्किलें पस्त हो जाती हैं। एक कुशल भरतनाट्यम नृत्यांगना रह चुकी भारत की इस बेटी को चार साल पहले एक बीमारी के चलते अपने दोनों हाथ-पांव गंवाने पड़े बावजूद इसके उसकी इच्छाशक्ति और बलवती हो गई। बिना पैरों के दौड़ने का जुनून उन पर ऐसे सवार हुआ कि उन्होंने 10 लाख रुपये का कार्बन फाइबर रनिंग ब्लेड्स लोन पर खरीद डाला। हाल ही में शालिनी ने TCS World 10K मैराथन में 10 किलोमीटर की दौड़ पूरी कर सबको दांतों तले उंगली दबाने को विवश कर दिया। शालिनी का लक्ष्य 2020 के पैरालम्पिक
खेल हैं।

बेंगलुरु की रहने वाली शालिनी सरस्वती के दोनों हाथ-पैर नहीं हैं, लेकिन वे मैराथन में सहभागिता करती हैं। उन्होंने पिछले दिनों TCS World 10K मैराथन में 10 किलोमीटर की रेस पूरी की। शालिनी जन्म से ही अशक्त नहीं थीं। बचपन से भरतनाट्यम नृत्य का शौक रखने वाली भारत की इस बेटी ने पढ़ाई के बाद कॉल सेण्टर की नौकरी फिर उसके बाद विवाह रचाया। इस तरह जिन्दगी में सब कुछ सामान्य ढंग से चल रहा था। शालिनी प्रोफेशनली भी अच्छा कर रही थीं। वर्ष 2012 में वह अपने पति प्रशांत के साथ छुट्टी मनाने कम्बोडिया गई थीं, वहां पहुंच कर पता चला कि वह गर्भवती हैं। पति-पत्नी की खुशी का ठिकाना नहीं था।
भारत लौटने पर शालिनी को हल्का-सा बुखार हो गया। डॉक्टरों को यह डेंगू का संक्रमण लगा और उसका इलाज शुरू हुआ। कुछ हफ्तों में शालिनी को पता चला कि उनके शरीर में रिकेटसियल एटमॉस नाम का बैक्टीरिया घर कर चुका है। इस बैक्टीरिया की वजह से उनका बच्चा गर्भ में ही मर गया। शालिनी को लगा कि यह बीमारी गर्भावस्था से जुड़ी हुई है, ठीक हो जायेगी। लेकिन खतरनाक गैंगरीन ने आक्रमण किया और धीरे-धीरे शालिनी के हाथ-पांव भी सड़ने लगे। उन्हें आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया। वह चार दिन बेहोश रहीं। डॉक्टरों ने उम्मीद छोड़ दी थी लेकिन शालिनी उठीं। ठीक अपने जन्मदिन के दिन यानी पांच अप्रैल को। शालिनी ने अगले एक महीने तक अपने हाथ-पांव सड़ते हुए देखे। उनसे आती हुई बदबू झेली। शालिनी का बायां हाथ 2013 में ही काट कर अलग कर दिया गया था। कुछ ही महीनों बाद एक दिन अस्पताल में दायां हाथ अपने आप कट कर गिर गया।
शालिनी अपने ब्लॉग www.soulsurvivedintact.blogspot.in पर लिखती हैं, छह महीने के बाद एक दिन मेरा दायां हाथ अपने आप कट कर गिर गया। जब शरीर को किसी हिस्से की जरूरत नहीं होती, तो वह उसे छोड़ देता है। मैं समझ गयी थी कि जिंदगी कुछ छोड़कर आगे बढ़ने का संकेत दे रही है। शालिनी की कठिन परीक्षा जैसे अभी शुरू ही हुई थी। डॉक्टरों ने उनकी दोनों टांगें भी काटने का फैसला कर लिया। जिस दिन उनके दोनों पैर काटे जाने थे, उस दिन वह पैरों में चमकती लाल नेल पेंट लगाकर अस्पताल गयीं। इस बारे में उन्होंने अपने ब्लॉग पर लिखा है, अगर मेरे कदम जा रहे हैं तो उन्हें खूबसूरती से विदा करूंगी।

शालिनी न सिर्फ इन भयावह हालात से स्वयं उबरीं, बल्कि हर किसी के लिए एक मिसाल बनकर उभरी हैं। उन्हें यह मालूम नहीं था कि उन्हें अपने बचे हुए शरीर के साथ क्या करना है। फिर एक दोस्त ने उनके कोच बीपी अयप्पा से मुलाकात कराई। 2015 में शालिनी की ट्रेनिंग शुरू हुई। अब उन्होंने अपनी नौकरी भी फिर से पकड़ ली है। उन्होंने दौड़ने के लिए जर्मनी की एक कम्पनी से दस लाख रुपये के कार्बन फाइबर-ब्लेड लोन पर लिये हैं और दौड़ना अब शालिनी का जुनून बन गया है। वह रनिंग ब्लेड पर रोज घंटों पसीना बहाती हैं।
शालिनी ने अपने ब्लॉग में लिखा है, इतना सब होने के बाद मैं कैसे उबर पायी? सचमुच मुझे नहीं पता। हर दिन का एक-एक पल मैंने जिया। छोटे-छोटे पड़ाव पार किये, प्रेरणा देने वाली खूब किताबें पढ़ीं, जिन पर मेरी जिंदगी टिकी थी। शास्त्रीय संगीत सीखा। इससे भी ज्यादा एक उम्मीद की रोशनी में जी रही थी, हर दिन लगता था कि आने वाला दिन इससे बेहतर होगा। मैं जानती थी कि आने वाला कल और खुबसूरत होता जायेगा, क्योंकि जब आप सबसे नीचे होते हैं तो हर रास्ता आपको ऊपर ही ले जाता है। शालिनी के जज्बे को सलाम।

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