ऐसे बनी ग्वालियर-चम्बल सम्भाग की पहली अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी
ग्वालियर। मां-बाप नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी हाकी को हाथ लगाए।
उन्हें डर था उस समाज का जोकि बेटियों के खिलाड़ी बनने के हमेशा खिलाफ रहा है। लेकिन
मेहरा गांव की यदुवंशी बेटी तो ऐसा कुछ कर गुजरने को बेताब थी जोकि घर-परिवार ही
नहीं कालांतर में अंचल से भी किसी ने न किया हो। हाकी न खेलने की मनाही पर वह
बीमार भी हो गई। बेटी की जिद और जुनून के आगे पहले तो सामाजिक परम्पराएं टूटीं उसके
बाद वह मिथक भी टूट गया जिसे ग्वालियर-चम्बल सम्भाग में कभी नामुमकिन करार दिया
गया था। हम बात कर रहे हैं हाकी के उस करिश्मा की जिसे आज टीम की रीढ़ की हड्डी
कहा जाता है।
सेण्टर हाफ करिश्मा यादव ने दर्पण मिनी स्टेडियम से न्यूजीलैण्ड तक का सफर
किसी गाड फादर के रहमोकरम से नहीं बल्कि अपनी जीतोड़ मेहनत और काबिलियत से हासिल
किया है। वह एक बार फिर जूनियर इण्डिया कैम्प में शिरकत करने बेंगलूरु रवाना हो
चुकी है। उसके साथ नौ और हाकी बेटियां भी अपना खेल निखारने गई हैं लेकिन हाकी
जानकारों की कही सच मानें तो जो बात करिश्मा में है, वह दूसरी लड़कियों में
दूर-दूर तक नजर नहीं आती। करिश्मा के प्रथम हाकी गुरु अविनाश भटनागर का कहना है कि
इस लड़की में पहले सीखने फिर उसे मैदान में साकार करने का जो कौशल है, वह वाकई
प्रशंसनीय है। बात-बात में एक बार इस लड़की ने कहा था कि वह एकेडमी में प्रवेश
चाहती है। उसका सपना देश के लिए खेलना है। करिश्मा जानती थी कि उसे अपना सपना
साकार करने के लिए कुछ विशेष करना होगा। करिश्मा मैदान में उस सेण्टर हाफ पोजीशन
पर खेलती है, जिस पर सरदारा सिंह खेलते हैं।
करिश्मा की कद-काठी बेशक दूसरी लड़कियों से 19 हो लेकिन मैदान में उसका फौलादी
प्रदर्शन सबसे अलग और निराला है। भारतीय टीम से न्यूजीलैण्ड के खिलाफ दमदार प्रदर्शन
कर चुकी करिश्मा यादव कहती है कि वह आज जिस मुकाम पर है, उसका सारा श्रेय अविनाश
सर को जाता है क्योंकि वही मेरे पहले हाकी गुरु हैं। वह कहती है कि हम खेल मंत्री
यशोधरा राजे सिंधिया की भी शुक्रगुजार हैं जिन्होंने ग्वालियर में महिला हाकी
एकेडमी खोली। एकेडमी में हमें परमजीत सर से हौसला मिला। उन्होंने हमेशा एक ही बात कही
कि करिश्मा तू हाकी का करिश्मा है। मेहनत कर और टीम इण्डिया से खेलकर भारत का मान
बढ़ा। करिश्मा कहती है कि यही उसका आखिरी पड़ाव नहीं है। वह सीनियर टीम से देश का
प्रतिनिधित्व करना चाहती है।
अविनाश भटनागर ने एकेडमियों को दिए 27 प्रतिभाशाली
प्रशिक्षक अविनाश भटनागर की जहां तक बात है उन्हें ग्वालियर में महिला हाकी का
द्रोणाचार्य कहें तो उपयुक्त होगा। दर्पण मिनी स्टेडियम के ग्रासी मैदान से
उन्होंने महिला हाकी एकेडमी को जहां 14 प्रतिभाशाली बालिकाएं दीं वहीं भोपाल की
पुरुष एकेडमी को 13 प्रतिभाएं देकर प्रदेश की हाकी में अपनी काबिलियत को जो परिचय
दिया है, वैसा कोई हाकी प्रशिक्षक नहीं कर सका। एकेडमियों के अलावा अविनाश के
सिखाए दर्जनों प्रतिभाशाली खिलाड़ी भारतीय खेल प्राधिकरण के विभिन्न सेण्टरों में
प्रवेश पा चुके हैं।
ये हैं हाकी का दर्पण
बालिका- करिश्मा यादव, नेहा
सिंह, इशिका चौधरी, नीरज राणा, राखी प्रजापति, श्वेता कुशवाह, प्रियंका परिहार,
स्नेहा सिंह, सोनम रजक, प्रतिभा आर्य, याशिका भदौरिया, योगिता वर्मा, निशी यादव और
कृतिका चंद्रा।
बालक- निकी कौशल, मोहित
पाठक, तरुण प्रताप सिंह, अर्जुन शर्मा, अमित गुर्जर, हिमांशु साहनी, जय राठौर,
अभिजीत माहौर, पुष्पेन्द्र शर्मा, मुनेन्द्र सिंह, शिवेन्द्र यादव, लव कुमार और
अंकित पाल।
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