Thursday, 12 May 2016

प्रियंका को मिले हाथ का साथ

प्रियंका गांधी-वाड्रा को राजनीति में लाने को लेकर कुछ भी कहा जा रहा हो लेकिन यदि उन्हें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बतौर लाया जाता है तो दूसरे दलों की पेशानियों में बल पड़ने से इंकार नहीं किया जा सकता। रायबरेली हमारी जन्मभूमि है। बाल्यावस्था में जब इंदिरा जी के खिलाफ कोई प्रचार के लिए नहीं निकलता था, उस समय भी मुझे जनसंघ के लिए काम करने पर हंसी का पात्र बनना पड़ता था। मुझे उस दिन अपार खुशी हुई जिस दिन राजनारायण ने इंदिराजी को पराजय का सबक सिखाया। इंदिराजी उस समय विश्व के गिने-चुने राजनेताओं में शुमार थीं। उनकी पराजय के अनेकों कारण थे। मुझे अच्छी तरह मालूम है कि उस समय शिक्षकों को परिवार नियोजन के केश दिए गये थे। इन्हीं शिक्षकों ने अपनी नौकरी पकाने के चक्कर में ऐसा कुचक्र रचा कि मेला-हाटों में उन लोगों के आपरेशन कर दिए गये जिनकी शादी भी नहीं हुई थी। मेरे गांव के कुछ कुंवारे आज भी उस संत्रास को झेल रहे हैं। खैर, उस समय कांग्रेस की महिलाओं और हरिजनों में इतनी पकड़ मजबूत थी कि जनसंघ का दीपक जलने का नाम ही नहीं लेता था। उस दौर में जिस महिला से भी वोट की बात करते वही तपाक से कहती जा-जा पपुआ हमार वोट तो गाइ-बछवा में ही पड़ेगा।
राजनीति में प्रियंका गांधी को लाने की मांग पहली बार नहीं उठी है। पहले भी कुछ नेता समय-समय पर ऐसी मांग करते रहे हैं, जिसे कांग्रेस उनकी निजी राय बताकर दरकिनार करती रही है। अपने भविष्य के संकट से जूझ रही कांग्रेस के पुनरुत्थान की जिम्मेदारी जिन चर्चित पेशेवर प्रशांत किशोर को सौंपी गयी है, उन्होंने भी पिछले दिनों खासकर उत्तर प्रदेश में राहुल या प्रियंका में से किसी एक को चेहरा बनाने का सुझाव दिया था। आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि कांग्रेस ने इसे भी उनकी निजी राय बताते हुए साफ कर दिया कि राहुल गांधी उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं होंगे। इस सबके बावजूद देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में खुद कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच से प्रियंका के पक्ष में जैसी मांग मुखर हुई है, उसके निहितार्थों को समझना होगा। यह मांग न तो रायबरेली-अमेठी के किसी स्थानीय नेता ने सस्ते प्रचार की खातिर की है और न ही किसी बड़े नेता ने भविष्य के राजनीतिक समीकरणों के गणित के हिसाब से। यह मांग एकदम जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं की ओर से आयी है।
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के ६२२ ब्लॉक अध्यक्ष हैं, जिनमें से ६०० ने मांग की है कि अगले साल होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के प्रचार अभियान की कमान प्रियंका गांधी को सौंपी जाये। यह मांग मीडिया के माध्यम से भी नहीं आयी है। इन ब्लॉक अध्यक्षों ने उत्तर प्रदेश चुनाव के लिए नियुक्त रणनीतिकार प्रशांत किशोर के साथ लखनऊ में एक बैठक में यह मांग की। बेशक उन्होंने अपनी मांग के पक्ष में तर्क भी दिये और प्रियंका के कमान संभालने पर कांग्रेस को हो सकने वाले चुनावी लाभ का विश्वास भी जताया। यह बात पहले भी कही जाती रही है कि प्रियंका में उनकी दादी एवं पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की झलक दिखती है। कांग्रेस ब्लॉक अध्यक्षों का मानना है कि सहज ही जन साधारण से प्रभावी संवाद स्थापित कर लेने वाली प्रियंका को नेहरू परिवार के गढ़-रायबरेली और अमेठी तक सीमित रखने के बजाय पूरे उत्तर प्रदेश में प्रचार की कमान सौंपने से, अन्य दलों के साथ चला गया परंपरागत समर्थक ब्राह्मण समुदाय तो वापस आ ही जायेगा, पार्टी में एकजुटता भी बढ़ेगी। चेहरों पर केन्द्रित हो चली चुनावी राजनीति में इस मांग को नजरअंदाज करना आसान नहीं होगा।

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