महिला हाकी में
महाकौशल का कौशल
अफसोस मध्य प्रदेश से कोई
महिला
नहीं खेली ओलम्पिक
ग्वालियर। खेलों में महाकौशल के कौशल को कभी नकारा नहीं जा सकता। जब
यहां सुविधाएं नहीं थीं तब भी एक से बढ़कर एक बेजोड़ खिलाड़ियों ने अंतरराष्ट्रीय
स्तर पर अपने शानदार प्रदर्शन से मध्य प्रदेश को गौरवान्वित किया। आज प्रदेश सरकार
खिलाड़ियों को सुविधाएं तो मुहैया करा रही है लेकिन कुप्रबंधन और इच्छाशक्ति के
अभाव में जो परिणाम मिलने चाहिए वह नहीं मिल रहे। यह ओलम्पिक वर्ष है। 1980 मास्को
ओलम्पिक के बाद भारतीय बेटियां हाकी में दूसरी बार रियो ओलम्पिक खेलने जा रही हैं।
शिवराज सरकार प्रफुल्लित है। लोग मुख्यमंत्री और खेलमंत्री को जानकारी दे रहे हैं
कि भारतीय टीम में आधा दर्जन लड़कियां मध्यप्रदेश एकेडमी से होंगी। हाकी की हाकने
वालों से मेरा टके भर का सवाल यह है कि क्या उसमें कोई मध्य प्रदेश की बेटी भी
होगी। इस प्रश्न का जवाब शायद किसी के पास नहीं है। हम आपको बता दें कि भारतीय
महिला हाकी को छह अंतरराष्ट्रीय महिला खिलाड़ी देने वाले जबलपुर की भी कोई बेटी
ओलम्पिक नहीं खेली है।
मध्य प्रदेश सरकार ने हाकी के उत्थान में वाकई गजब का काम किया है। अब हमारे
प्रदेश की बेटियां भी हाकी उठा चुकी हैं। उनकी प्रतिभा भी परवान चढ़ने लगी है।
प्रदेश की हाकी बेटियों का कारवां आहिस्ते-आहिस्ते टीम इण्डिया की तरफ बढ़ रहा है
लेकिन एकेडमी के प्रशिक्षकों की चूक से हमारी बेटियों को उतने मौके नहीं मिल रहे
जितने मिलने चाहिए। मेरे सच लिखने से लोगों का दिल दुखेगा। मैं सच लिखकर किसी का
दिल नहीं दुखाना चाहता। मुझे सब पता है कि मध्यप्रदेश महिला हाकी की जड़ों पर
कौन-कौन मठा डाल रहा है।
जी, हां हम बात कर रहे थे उस महाकौशल के जबलपुर की जहां एक दो नहीं आधा दर्जन
बेटियों ने भारतीय हाकी टीम का प्रतिनिधित्व किया है। इनमें अविनाश कौर सिद्धू,
गीता पण्डित, कमलेश नागरत, आशा परांजपे, मधु यादव और विधु यादव शामिल हैं। मधु
यादव हाकी में एकमात्र प्रदेश की महिला अर्जुन अवार्डी हैं। स्वर्गीय एस.आर. यादव
की बेटी मधु ने लम्बे समय तक मुल्क की महिला हाकी का गौरव बढ़ाया। वह 1982 एशियन
गेम्स की स्वर्ण पदक विजेता टीम का सदस्य भी रहीं लेकिन ओलम्पिक वह भी नहीं खेलीं।
मधु यादव के परिवार की जहां तक बात है इस यदुवंशी परिवार की रग-रग में हाकी समाई
हुई है। मधु और विधु ने भारत का प्रतिनिधित्व किया तो इसी घर की बेटी वंदना यादव
ने भारतीय विश्वविद्यालयीन हाकी में अपना कौशल दिखाया।
छह अंतरराष्ट्रीय महिला हाकी खिलाड़ी देने वाले जबलपुर की गीता पंडित, कमलेश
नागरत तथा आशा परांजपे भारत छोड़ विदेश जा बसी हैं लेकिन अविनाश कौर, मधु और विधु
यादव आज भी गाहे-बगाहे ही सही हाकी की जरूर चिन्ता करती हैं। महिला हाकी में
जबलपुर की एक और प्रतिभा रैना यादव भी मेरे जेहन में है। इस बेटी में भी भारतीय
टीम का प्रतिनिधित्व करने की काबिलियत थी लेकिन बेचारी जबलपुर की ही गंदी राजनीति
का शिकार हो गई। इस बेटी की राह में किसी और ने नहीं जबलपुर की ही खेलनहारों ने
कांटे बिछा दिए। रैना के खेल को मैंने देखा है। मैदान में हिरण सी कुलांचे भरती इस
बेटी पर हम भरोसा करते थे। यह बेटी अपने तमाशाई खेल से जीवाजी विश्वविद्यालय को
राष्ट्रीय स्तर पर खिताबी जश्न मनाने का मौका दे चुकी है। मध्य प्रदेश की यह
बिटिया अब रेलवे में है। राजनीति का शिकार न होती तो यह बेटी रियो ओलम्पिक खेलने
जरूर जाती।
एक खिलाड़ी, कितने बाप
एक कहावत है, सफलता के कई बाप होते हैं। आज देश में खिलाड़ियों के नाम भुनाने
का यही अजीबोगरीब खेल चल रहा है। जैसे ही खिलाड़ी पर टीम इण्डिया का ठप्पा लगता
है, उसके कई बाप हो जाते हैं और उस खिलाड़ी को तराशने वाले असली प्रशिक्षक गुमनामी
के अंधेरे में खो जाते हैं। इसके लिए खिलाड़ी भी कसूरवार होते हैं लेकिन उतना नहीं
जितना राज्य, रेलवे, एकेडमियां और खिलाड़ी को नौकरी देने वाले अन्य संस्थान। अब
सवाल यह उठता है कि एक खिलाड़ी किसको-किसको बाप कहे। मध्य प्रदेश में खुली
एकेडमियों में भी ऐसा ही अजीब खेल कोई एक दशक से चल रहा है। उत्तर प्रदेश,
हरियाणा, पंजाब, मणिपुर, मिजोरम, दिल्ली आदि राज्यों के खिलाड़ी जैसे ही मध्य
प्रदेश की एकेडमियों से हटते हैं, वे अपने-अपने राज्यों या संस्थानों का मंगल गीत
गाने लगते हैं। मध्य प्रदेश की एकेडमियों में कार्यरत प्रशिक्षक भी ऐसा ही कर रहे
हैं।
ग्वालियर तीन बार कर चुका है राष्ट्रीय जूनियर महिला हाकी की मेजबानी
क्या आपको पता है कि ग्वालियर अब तक तीन बार राष्ट्रीय जूनियर महिला हाकी
प्रतियोगिता की मेजबानी कर चुका है। सच कहें तो ग्वालियर को मेजबानी का बहुत पहले
से शौक है। हम खेलें या न खेलें दूसरों के लिए तालियां तो पीट ही सकते हैं। जी हां
हमने तीन बार यही किया है। ग्वालियर में पहली बार 1969-70 में राष्ट्रीय जूनियर
महिला हाकी प्रतियोगिता हुई थी। तब खिताबी मुकाबले में पेप्सू ने पंजाब को पराजित
किया था। ग्वालियर में 1976-77 में दूसरी बार हुई राष्ट्रीय जूनियर महिला हाकी
प्रतियोगिता में केरल ने कर्नाटक को हराकर खिताब जीता था। तीसरी और अंतिम बार यहां
1982-83 में राष्ट्रीय जूनियर महिला हाकी प्रतियोगिता हुई। इस वर्ष खिताबी मुकाबले
में पंजाब ने बाम्बे का मानमर्दन किया था। ग्वालियर में हाकी की मेजबानी का पुराना
इतिहास है। यहां लम्बे समय से चल रही सिंधिया गोल्ड कप हाकी प्रतियोगिता को भला
कौन नहीं जानता। यह बात अलग है कि 1958-59 को छोड़कर ग्वालियर कभी विजेता तो क्या
फाइनल तक भी नहीं पहुंचा है।
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