जूनियर इण्डिया कैम्प में 18 की जगह 10 को
मौका
ग्वालियर। देश में महिला हाकी के उत्थान को संकल्पित मध्यप्रदेश खेल
एवं युवा कल्याण विभाग के साथ हाकी इण्डिया लगातार पक्षपात कर रहा है। जिस जूनियर
इण्डिया कैम्प में मध्यप्रदेश राज्य महिला हाकी एकेडमी की 18 बेटियां होनी थीं,
वहां सिर्फ 10 को मौका मिला है। इसे दुर्भाग्य कहें या षड्यंत्र आठ उन सर्वश्रेष्ठ
हाकी बेटियों को शिविर में प्रतिभाग का मौका नहीं मिला जोकि टीम इण्डिया में
प्रवेश की काबिलियत रखती हैं।
हाकी इण्डिया द्वारा 20 मई से बेंगलूरु में लगाए जा रहे राष्ट्रीय जूनियर
बालिका हाकी प्रशिक्षण शिविर में ग्वालियर एकेडमी की 10 बेटियों को जगह मिली है।
इस शिविर को लेकर हाकी इण्डिया से चूक हुई है या फिर कोई और बात, आठ सर्वश्रेष्ठ हाकी
बेटियों के चेहरे पर मायूसी छाई है। हाकी इण्डिया ने एक माह के जूनियर इण्डिया
कैम्प में जिन 10 बेटियों को प्रतिभाग का मौका दिया है, उनमें ग्वालियर की जूनियर अंतरराष्ट्रीय
खिलाड़ी करिश्मा यादव के साथ ही मध्यप्रदेश की ही श्यामा तिड़गम, दिव्या थेपे,
अनुजा सिंह, बृजनंदिनी धूरिया, मीना और सोनम तिवारी शामिल हैं। चंचल (सोनीपत
हरियाणा), सरिता देवी (मणिपुर) और नूतन टोपनो (झारखण्ड) बेशक अन्य राज्यों की हों
लेकिन इनकी हाकी पाठशाला ग्वालियर एकेडमी ही है।
देखा जाए तो इस जूनियर इण्डिया कैम्प को लेकर हाकी इण्डिया से एक बड़ी चूक हुई
है। दरअसल, आनन-फानन में किए गये खिलाड़ी बेटियों के नामों की घोषणा में
मध्यप्रदेश एकेडमी की सर्वश्रेष्ठ हाकी बेटियों को ही नजरअंदाज कर दिया गया है।
इनमें ग्वालियर की इशिका चौधरी, नेहा सिंह, प्रतिभा आर्य, भोपाल की सीमा वर्मा,
नीलू, उपासना सिंह, ज्योति पाल और सुमन देवी शामिल हैं। इन बेटियों की प्रतिभा का
अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इन्होंने बीते महीने बेंगलूरु में ही खेली
गई सीनियर महिला हाकी में उड़ीसा को 2-1 से पराजित कर कांस्य पदक जीता था। ग्वालियर
की इशिका चौधरी ने तब विजयी गोल दागा था। सीनियरों पर जूनियर खिलाड़ियों का यह
पराक्रमी प्रदर्शन कम से कम उन्हें जूनियर इण्डिया कैम्प में प्रवेश के लिए काफी
था लेकिन यह हाकी बेटियां पक्षपात यानि कोटा सिस्टम का शिकार हो गईं। सर्वश्रेष्ठ
खिलाड़ी बेटियों को नजरअंदाज क्यों किया गया, इसकी वजह इन्हें टीम इण्डिया में
प्रवेश से रोकना मान सकते हैं।
हाकी इण्डिया द्वारा मध्यप्रदेश महिला हाकी एकेडमी की बेटियों से की गई
उपेक्षा का यह कोई पहला मौका नहीं है। इससे पहले भी जब-जब शिविर लगे प्रतिभाशाली
खिलाड़ियों को तवज्जो मिलने की बजाय कोटा सिस्टम से ही काम चलाया गया। 36 साल बाद
रियो ओलम्पिक खेलने जा रही भारत की बेटियों के चयन में भी यदि कोटा सिस्टम लागू
हुआ तो सच मानिए 12 टीमों की ओलम्पिक जंग में भारतीय टीम अंतिम पायदान पर ही नजर
आएगी।
अन्याय के खिलाफ आखिर बोले कौन
मध्यप्रदेश महिला हाकी एकेडमी की बेटियों से लगातार हो रहे भेदभाव पर हर कोई
चुप्पी साधे है। हाकी इण्डिया के खिलाफ आवाज न उठाने की वजह है उसका हिटलरशाही
रवैया। आज तक जिसने भी हाकी इण्डिया के खिलाफ आवाज बुलंद करने का दुस्साहस दिखाया
उसे न केवल मुंह की खानी पड़ी बल्कि बत्रा ने उसका पत्रा ही सदा के लिए बंद कर
दिया है। सच्चाई यह है कि हाकी इण्डिया के पास इस खेल की बेहतरी का कोई फार्मूला
नहीं है। राज्यों के किए-धरे पर ही हाकी इण्डिया अपनी हुकूमत चला रही है। बत्रा के
कार्यकाल में उन लोगों का ही नुकसान हुआ है जोकि इस खेल के जानकार हैं। हाकी
इण्डिया के नियम-कायदों से तो हर कोई आजिज है लेकिन बिल्ली के गले में आखिर घण्टी
बांधे भी तो कौन।
....और शिवराज सरकार ने एक दशक में ही बदल दी तस्वीर
देखा जाए तो एक दशक में ही मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार के खेल एवं युवा कल्याण
विभाग ने महिला हाकी के उत्थान की दिशा में जो मील का पत्थर स्थापित किया है, वह
काम तो भारतीय हाकी महासंघ से लेकर हाकी इण्डिया तक अपने सम्पूर्ण कार्यकाल में भी
नहीं कर सके। 31 मार्च, 2006 को जिला खेल परिसर कम्पू में ग्वालियर की बेटी और खेल
मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया ने प्रदेश में महिला तथा पुरुष हाकी एकेडमियां खोलने
की न केवल घोषणा की बल्कि उसी साल जुलाई माह में ग्वालियर में महिला हाकी एकेडमी
खोल दी गई। देश की कोई 21 प्रतिभाशाली बेटियों से खुली एकेडमी आज मुल्क की शान है।
इस एकेडमी ने देश को अब तक तीन दर्जन से अधिक खिलाड़ी बेटियां देकर यही सिद्ध किया
है कि मध्यप्रदेश ही महिला हाकी का असल पालनहार है।
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