कुछ महीने पहले की ही बात है जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने मन की बात में निःशक्तजनों को एक अच्छा नाम दिव्यांग देकर यह जताने की कोशिश की थी कि मुल्क अपनी पांच फीसदी आबादी को लेकर काफी संवेदनशील है। मोदी जी को शायद ही यह बात पता हो कि देश में लगभग सवा छह करोड़ दिव्यांग उचित परवरिश और अपने अधिकारों से वंचित हैं। बावजूद इसके देश के चार राज्यों उत्तर प्रदेशए उड़ीसाए तमिलनाडु और कर्नाटक में ही दिव्यांगों से संबंधित मामलों के लिए अलग से विभाग का सृजन किया गया है। इतना ही नहीं 36 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में से 19 राज्यों में ही दिव्यांगों के लिए स्वतंत्र राज्य आयुक्त कार्य कर रहे हैंए जबकि शेष 17 राज्यों में इस पद का प्रभार अलग.अलग हाथों में है या फिर कुर्सी खाली है। समुचित सुविधाओं के अभाव में जी रही सवा छह करोड़ आबादी की पैरोकारी के लिए राजनीतिक दल बेशक बेसुरा राग अलापें लेकिन इनके जीवन.यापन की स्थिति बेहद चिन्तनीय है। देखा जाए तो हर क्षेत्र में इन दिव्यांगों ने सशक्तों के मुकाबले मादरेवतन का मान बढ़ाने में कोई कमी नहीं छोड़ी हैए पर वे अपने उन अधिकारों से वंचित हैं जोकि उन्हें बिना कठिनाई के मिल जाना चाहिए। मोदी जी नाम बदल देने से दिव्यांगों की पीड़ा कम नहीं होगी। यदि आप वाकई दिव्यांगों की भलाई के लिए संजीदा हैं तो प्रत्येक राज्य में इनके लिए अलग से विभाग गठित कर देना चाहिए। जब हर राज्य में इनके लिए अलग से विभाग होगा तो मुमकिन है इन्हें योजनाओं का लाभ कुछ अधिक मिलेगा।
52 दिन में एवरेस्ट पर चढ़ी थी दिव्यांग अरुणिमा
एवरेस्ट के मिथक को तोड़ने वाली अरुणिमा सिन्हा विकलांगता का दंश झेल रही बेटियों के लिए उम्मीद और भरोसे की सुनहरी किरण साबित हुई हैं। दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर फतह हासिल करने वाली अरुणिमा ने यह चढ़ाई एक कृत्रिम पैर के सहारे 52 दिन में पूरी की थी। 12 अप्रैल 2011 को लखनऊ से दिल्ली जाते समय कुछ अपराधियों ने बरेली के निकट पदमवाती एक्सप्रेस से अरुणिमा को बाहर फेंक दिया थाए जिसके कारण वह अपना पैर गंवा बैठी थी। 2013 में अरुणिमा माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराकर वे विश्व की पहली विकलांग पर्वतारोही बन गईं।
दीपा मलिक -एथलीट
अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित दीपा तैराकीए शॉटपुटए डिस्क व जैवलिन थ्रो जैसे खेलों में अब तक 42 स्वर्ण पदक जीत चुकी हैं। बचपन से ही उन्हें कमजोर पैरों की शिकायत थी। 36 की उम्र में तीन ट्यूमर सर्जरी और शरीर का निचला हिस्सा सुन्न हो जाने के बावजूद उन्होंने न केवल शॉटपुट एवं जैवलिन थ्रो जैसी विधाओं में राष्ट्रीय.अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुई प्रतियोगिता में पदक जीते हैंए बल्कि तैराकी एवं मोटर रेसलिंग स्पर्धाओं में भी हिस्सा लिया है। वर्ष 2008 तथा 2009 में उन्होंने यमुना नदी में तैराकी तथा स्पेशल बाइक सवारी में भाग लेकर दो बार लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में अपना नाम दर्ज कराया। 2011 में वे पहली ऐसी महिला बनीं जिन्होंने शारीरिक असमर्थता के बावजूद लेह.लद्दाख के सबसे ऊंचाई वाले 3000 किलोमीटर लम्बे रास्तों को 10 दिन में ड्राइव करते हुए पार किया। इसके लिए भी उनका नाम लिम्का बुक में दर्ज किया गया।
साधना ढांड -फोटोग्राफर
छत्तीसगढ़ की ये चित्रकार अब तक 80 फ्रैक्चरों का सामना कर चुकी है और ऑस्ट्रियोपॉरेसिस जैसी गंभीर बीमारी से आज भी जूझ रही हैं। 12 वर्ष की उम्र में इन्होंने सुनने की ताकत खो दी और पैरों से भी निरूशक्त हो गईं। इन सबके साथ जिंदगी की तमाम चुनौतियों से लड़ते हुए उन्होंने पेंटिंगए शिल्पकला तथा फोटोग्राफी के क्षेत्र में सुकून तलाशाए जिसके लिए 2012 में उन्हें रोल मॉडल की श्रेणी में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1982 से अब तक वे लगभग 20 हजार से भी अधिक छात्रों को प्रशिक्षण दे चुकी हैं।
के. जेनिथा अटू -शतरंज चैम्पियन
तमिलनाडु की केण्जेनिथा अटू ने अक्टूबर 2015 में विकलांगों के वर्ग में विश्व शतरंज चैम्पियनशिप मंए तीसरी बार स्वर्ण पदक के साथ जीत हासिल की। इसके लिए उन्हें आईपीसीए महिला शतरंज खिताब से सम्मानित किया गया। जेनिथा को तीन वर्ष की उम्र में पोलियो हो गया था। 9 वर्ष की उम्र में उनके पिता ने उनका पहली बार शतरंज से परिचय कराया। शरीर का 90 फीसदी हिस्सा असक्रिय है। उनका बायां हाथ ही सही चल पाता हैए जिससे वे खेलती हैं। जेनिथा ने बीकॉम किया है। वो लगातार तीन साल से चैम्पियनशिप जीत रही हैं और आगे वे इसमें ही फोकस करना चाहती हैं।
बेनो जेफीन -विदेश सेवा अधिकारी
शत प्रतिशत रूप से नेत्रहीन होने के बावजूद बेनो जफीन वर्ष 2015 में भारत के विदेश सेवा विभाग में अधिकारी बनी हैं। विदेश मंत्रालय के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि किसी पूर्ण रूप से नेत्रहीन व्यक्ति को अधिकारी पद पर नियुक्ति मिली है। इससे पहले जेफीनए भारतीय स्टेट बैंक में प्रोबेनशरी ऑफिसर के पद पर काम कर रही थीं। वह 2008 में अमेरिका में आयोजित ग्लोबल यंग लीडर्स कांफ्रेंस में हिस्सा ले चुकी हैं। अपनी नियुक्ति पर उन्होंने कहा था कि मेरे पास दृष्टि नहीं थीए लेकिन सिविल सेवा में जाने की दृष्टि मेरे पास थीए जिसने मुझे यहां पहुंचा ही दिया।
इरा सिंघल -यूपीएससी टॉपर
इरा सिंघल 2014 की सिविल सर्विसेज परीक्षा में टॉपर रही हैं। 32 साल की इरा ने स्कॉलोसिस बीमारी को अपनी राह में कभी बाधा नहीं बनने दिया। इरा ने दिल्ली के एफएमएस से एमबीए करने के बाद कैडबरी कम्पनी में मैनेजर के पद पर काम किया। इससे पहले वे 2010 में भारतीय राजस्व सेवा में चयनित हुई थींए लेकिन उनकी विकलांगता को कारण बताते हुए नियुक्ति नहीं दी गई थी। इस फैसले के विरोध में इरा ने ष्सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनलष् में केस दर्ज कराया और चार साल बाद आखिर इरा को जीत मिलीए जिससे दूसरे विकलांग प्रतियोगियों के लिए भी रास्ते खुले।
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