Wednesday 11 February 2015

किरण बेदी की राजनीति का अंत?

राष्ट्रीय राजधानी में हुए विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद किरणबेदी के बयान से लगता है कि आने वाले समय में उन्होंने अपने लिए राजनीति के सारे दरवाजे बंद कर लिए हैं।  उन्होंने कहा, ‘यह मेरी हार नहीं है। यह भारतीय जनता पार्टी की हार है।’
पुलिस अधिकारी के रूप में तीस साल से अधिक समय तक काम करने वाली भारत की पहली महिला भारतीय पुलिस सेवा अधिकारी किरण बेदी को कर्तव्य निर्वहन के दौरान कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। लेकिन भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाया जाना, उनके जीवन की सबसे बड़ी चुनौती बन गई। उनकी साफ सुथरी छवि देखकर चुनाव में अपनी नैया पार लगाने की भाजपा ने जुगत लगाई थी। साल 1993 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद यह पहला सबसे दिलचस्प चुनाव था। लेकिन भाजपा की सबसे सुरक्षित सीट मानी जाने वाली कृष्णानगर से बेदी की हार और शर्मनाक हो गई। साल 1993 से ही डॉक्टर हर्षवर्धन इस सीट का प्रतिनिधित्व करते आ रहे हैं। हालांकि फिलहाल वह केंद्रीय मंत्री हैं। किरण बेदी 2,277 मतों के अंतर से चुनाव हारीं। चुनाव जीतने वाले आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी वकील एस.के. बग्गा को 65,919 मत मिले, जबकि बेदी को 63,642 मत मिले। बग्गा के समर्थक उन्हें मृदुभाषी व आत्मविश्वासी बताते हैं। उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान बाहरी और भीतरी प्रत्याशी का मुद्दा उठाया।
पार्टी में 65 वर्षीय बेदी को पार्टी कार्यकर्ताओं ने बाहरी के तौर पर ही स्वीकार किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित भाजपा के कई नेताओं का साथ होने के बावजूद उनका चुनाव प्रचार आक्रामक नहीं हो पाया। लोकपाल आंदोलन के दौरान टीम अन्ना की वह प्रमुख सदस्य थीं। साथ ही उन्होंने आप के अरविंद केजरीवाल के साथ मिलकर काम किया। हालांकि चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने केजरीवाल को झूठा तक करार दिया। भाजपा में शामिल होने के बाद सोशल मीडिया में उनके द्वारा भाजपा और खासकर मोदी तथा साल 2002 में गोधरा दंगों पर उनकी टिप्पणी को रिट्वीट किया गया। भाजपा में आने के बाद बेदी ने मोदी और भाजपा की कई मौकों पर प्रशंसा की थी। हार के बारे में पूछे जाने पर बेदी ने कहा, ‘यह मेरी हार नहीं है। यह भाजपा की हार है। उन्हें इस पर मंथन करना चाहिए।’ लेकिन अपना बचाव करते हुए उन्होंने कहा कि वह भाजपा की कोर सदस्य हैं। रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता किरण बेदी को दिल्ली की तिहाड़ जेल में पुलिस महानिरीक्षक (कारा) रहते हुए कैदियों की जिंदगी सुधारने का श्रेय मिला था।

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