Friday 27 February 2015

यमुना उद्धार का संकल्प

मंद-मंद ही सही इन दिनों ब्रज में यमुना उद्धार की बयार बह रही है। जल उद्धार की इस बयार में उन आठ करोड़ लोगों की मुसीबतें समाहित हैं, जिनकी तरफ किसी सरकार ने आज तक गम्भीरता से ध्यान नहीं दिया है। यमुना उद्धार की जब भी बात होती है तब बरबस कुछ सवाल उठाए जाते हैं। मसलन, क्या अकेला चना भाड़ फोड़ सकता है, क्या एक फूल से बहार आ सकती है? इन्हीं सवालों का जवाब देने की खातिर एक संत उठ खड़ा हुआ है। संत जयकृष्ण दास यमुना आंदोलन के प्रेरक व संचालक आचार्य प्रवर स्वामी विज्ञानाचार्य महाराज और अपने गुरु रमेश बाबा के संकल्प को पूरा करना चाहते हैं। अविरल और निर्मल यमुना का संकल्प पूरा हो इसके लिए  समाज, संत और सरकार को एक साथ प्रयास करने की दरकार है।
व्यक्ति की कार्यशैली, व्यवहार, कर्म, वाणी, रहन-सहन और प्रकृति-स्वभाव ही उसका मापदण्ड है। महानता भाग्य की फसल और पुरुषार्थ की निष्पत्ति है। हर किसी को वह नसीब नहीं होती, यह सतत् जागरूकता, जीवन के प्रति सकारात्मकता एवं अच्छाई की ग्रहणशीलता से ही सम्भव है। कुछ अलग पहचान बनाने या महानता को हासिल करने के लिये जरूरी है कि हम जिस चेहरे पर जिस विशेषता की गरिमा को देखें, उसे आदर से जीना सीखें, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति चाहता है अच्छा बनना, महान बनना। हमें उन भूलों को लगाम देनी होगी, जिनकी स्वच्छंदता आत्मविकास में बाधक बनती है। उनका फौलादी व्यक्तित्व होता है और वे बिना सोचे-समझे जल्दबाजी में जीवन का कोई निर्णय नहीं लेते, जो परिणाम में महंगा पड़ने के साथ-साथ जीवन की सार्थकता पर भी प्रश्नचिह्न लगाये। ऐसे व्यक्ति अन्याय और शोषण को सहते नहीं, उनका दमन भी नहीं करते, अपितु उनका मार्गान्तरीकरण करते हैं। मानवीय संवेदना के कारण वे सबके सुख-दु:ख को अपना सुख-दु:ख मानते हैं। उनकी जिन्दगी औरों के लिये समर्पित हो जाती है। ऐसे व्यक्ति श्रेष्ठता का प्रमाण नहीं देते, बल्कि वे स्वयं प्रमाण होते हैं।
यमुना उद्धार और ब्रजवासियों के कल्याण को उठ खड़े संत जयकृष्ण दास का संकल्प कब और कैसे पूरा होगा यह भविष्य के गर्भ में है, पर यमुना हमारी धर्म-संस्कृति तथा राष्ट्रीय अस्मिता की अमूल्य धरोहर हैं, इससे इंकार नहीं किया जा सकता। आज यमुना का अस्तित्व और यमुनोत्री से इलाहाबाद तक कोई 1376 किलोमीटर के तटों पर निवास करने वाली आवाम तथा जीव-जंतुओं का जीवन संकट में है। कलुषित यमुना जल से हजारों लोग घातक बीमारियों का शिकार हो रहे हैं तो दूसरी तरफ जन आकांक्षाओं से बेखबर हमारी हुकूमतें गहरी नींद सोई हुई हैं। यमुना रक्षक दल बीते चार साल से सरकार को जगाने के साथ ही यमुना भक्तों को संकट से बचाने के लिए जन जागरण अभियान चला रहा है। राह कठिन तो मंजिल दूर है लेकिन यमुना उद्धार का भरोसा जिन्दा है। मानव कल्याण की कोई भी मुहिम क्यों न हो बिना संघर्ष के वह कभी पूरी नहीं हो सकती। जल और वायु प्रदूषण मुल्क में महामारी की शक्ल ले चुका है। जो दिल्ली ब्रजवासियों को जल प्रदूषण का दंश दे रही है वह स्वयं भी वायु प्रदूषण की गिरफ्त में है।
यमुना तलहटी की कोई आठ करोड़ आबादी की आसन्न नियति का अंदाजा प्रतिवर्ष हजारों लोगों की कैंसर आदि से होती मौतों से सहज लगाया जा सकता है।  गंगा प्रदूषण का ढोल पीटती मोदी सरकार का ध्यान कलुषित यमुना की तरफ दिलाने की खातिर ही यमुना रक्षक दल 11 मार्च को दिल्ली कूच कर रहा है। मोदी सरकार को सोचना होगा कि एक भारत, श्रेष्ठ भारत का संकल्प तब तक पूरा नहीं हो सकता जब तक कि हमारी जीवनदायिनी नदियां प्रदूषण मुक्त नहीं हो जातीं। दिल्ली ही नहीं आज मुल्क के तकरीबन सभी नगर वायु और जल प्रदूषण का संत्रास झेल रहे हैं। शहरों का मलमूत्र, कारखानों का जहरीला रसायन और मवेशियों की लाशें मोक्षदायिनी नदियों को विषाक्त बना रही हैं। यही प्रदूषित जल नदियों के किनारे बसे गांवों को असाध्य बीमारियां बांट रहा है। जल प्रदूषण सिर्फ मानव के लिए ही नहीं जीव-जंतुओं के लिए भी जानलेवा है। आज विभिन्न प्रदूषणों को लेकर हमारी सरकारें हायतौबा मचा रही हैं लेकिन मानव को इससे निजात दिलाने के कोई ठोस प्रयास होते नहीं दिखते। शहरीकरण के नाम पर विश्वस्तरीय सुविधाओं के सपने दिखाने वाली विकास नीतियां पर्यावरण संरक्षा के भाव से कोसों दूर हैं। इस मसले पर न केवल सिलसिलेवार विचार होना चाहिए बल्कि तत्काल उन पर अमल भी जरूरी है।
1376 किलोमीटर लम्बी यमुना और उसके जल को लेकर कितने भी तर्क-कुतर्क क्यों न दिए जाते हों पर यमुनोत्री से 180 किलोमीटर के बाद जल की जगह असाध्य बीमारियां ही प्रवाहित हो रही हैं। हरियाणा में हथिनी कुंड पर बंधक बनी यमुना की जब तक मुक्ति नहीं होगी तब तक यमुना भक्त काल के गाल में समाते ही रहेंगे। ब्रज में पहुंचने वाली यमुना का जल जल न होकर विष है। वजीराबाद से ओखला के बीच लगभग दो सौ छोटे-बड़े नालों से बहता मलमूत्र और रसायन इतना विषाक्त है कि उसके छूने मात्र से असाध्य रोग हो जाते हैं। आमतौर पर किसी त्योहार, धार्मिक अनुष्ठान के बाद यमुना में बहती या उसके किनारों पर जमा पूजा सामग्री और विसर्जित मूर्तियों का अम्बार देखा जा सकता है। नालों के रास्ते शहर की गंदगी और औद्योगिक कचरे के जहरीले रसायनों से मरती इस नदी के सामने लोगों की आस्था भी एक बड़ी समस्या बन चुकी है। मुश्किल यह है कि तमाम जागरूकता कार्यक्रमों के बावजूद लोग समझने या मानने को तैयार नहीं हैं।
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने मैली से निर्मल यमुना पुनर्जीवन योजना-2017 को हरी झंडी देते हुए यमुना के डूब क्षेत्र में किसी भी तरह के निर्माण कार्य और नदी में मलबा डालने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है। इन नियमों के उल्लंघन पर पचास हजार रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान भी किया गया है। यमुना को बचाने के लिए हरित पंचाट से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक ने कई बार दिशा-निर्देश तो दिए हैं लेकिन लापरवाही की प्रवृत्ति आम लोगों से लेकर सरकारी महकमों तक में आज भी पसरी हुई है। यूं तो एक सभ्य और जागरूक समाज अपने आसपास अच्छी आदतों की संस्कृति को न केवल बढ़ावा देता है बल्कि इसके उलट कुछ होता देख उस पर उंगली भी उठाता है, पर हम सुधरने का नाम नहीं ले रहे। यमुना में कचरा फेंकने पर भारी जुर्माने का निर्देश देकर हरित पंचाट ने नेक काम किया है। सोचने की बात है कि जो गतिविधियां एक सभ्य नागरिक की आदत में शुमार होनी चाहिए उन्हें सुनिश्चित कराने के लिए हरित न्यायाधिकरण जैसे निकाय को सख्त कदम उठाने पड़ते हैं? यमुना रक्षक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयकृष्ण दास और राष्ट्रीय महासचिव रमेश सिसौदिया की अगुआई में यमुना उद्धार का जो बिगुल बजा है उसकी अनुगूंज सरकार के कानों तक पहुंचे इसके लिए जरूरी है कि सभी एक साथ उठ खड़े हों। एक सभ्य समाज के बिना अर्थव्यवस्था के सुहाने आंकड़े विकास का पर्याय नहीं हो सकते लिहाजा सरकार और समाज, दोनों को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए वरना ब्रजवासियों का जीवन संकट में पड़ जाएगा।

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