शिवराज जी! बाहरी नहीं खेलते तो राष्ट्रीय खेलों में 50 पदक भी नहीं होते
ग्वालियर। झारखण्ड में हुए पिछले राष्ट्रीय खेलों की अपेक्षा केरल में हुए 35वें नेशनल खेलोत्सव में मध्यप्रदेश को कुछ कम पदक मिले हैं। पिछले खेलों की ही तरह मध्य प्रदेश खेल एवं युवा कल्याण विभाग ने झूठी शॉन की खातिर अपने खिलाड़ियों से परहेज करते हुए आयातित खिलाड़ियों पर अधिक भरोसा किया, बावजूद उसके प्रदेश को 23 स्वर्ण, 26 रजत और 42 कांस्य सहित कुल 91 पदक ही हासिल हुए। घटते पदकों पर खेलों के आका इन खेलों में कराते के शामिल न होने का बहाना बना सकते हैं। जो भी हो खुशी के इस अवसर पर मध्यप्रदेश के विजेता खिलाड़ियों ही नहीं प्रदेश से बाहर के खिलाड़ियों संदीप सेजवाल, रिचा मिश्रा, आरोन एंजिल डिसूजा, नैनो देवी, सोनिया देवी और पश्चिम बंगाल की उदीयमान जिम्नास्ट प्रणति नायक आदि को भी बधाई। बधाई इसलिए कि वे नहीं होते तो मध्यप्रदेश के पदकों की संख्या 50 भी नहीं होती।
खेलों में प्रदेश की इस झूठी बलैया पर मंत्री से संतरी तक इतरा रहे हैं। खेलप्रेमियों के सामने सच आना चाहिए। आखिर शिवराज सरकार प्रतिवर्ष लगभग दो अरब रुपया खेलवाड़ में जाया कर रही है। 14 फरवरी को राष्ट्रीय खेलों के समापन के बाद प्रदेश छठवें स्थान पर रहा। इन खेलों में रिचा मिश्रा, संदीप सेजवाल, आरोन एंजिल डिसूजा, नैनो देवी, सोनिया और प्रणति नायक आदि प्रदेश से बाहर के खिलाड़ियों ने 40 से अधिक पदक जीते हैं। प्रदेश सरकार और खेल विभाग उन्मादित है, पर वे बताएं कि राष्ट्रीय खेलों में प्रदेश का नाम रोशन करने वाले इन गैर खिलाड़ियों से क्या हासिल हुआ? हमें शेखी बघारने की बजाय बड़े दिल से स्वीकारना होगा कि श्रेष्ठता की जंग जीतने का माद्दा हममें नहीं है। शिवराज सरकार खेलों में सिर्फ ठकुरसुहाती से गद-गद है। मीडिया सच उजागर करने की हिम्मत इसलिए नहीं जुटा पा रहा कि कहीं महल नाराज न हो जाए और खेल विभाग दाना-पानी न बंद कर दे।
मध्य प्रदेश में खेलोत्थान की कोशिशों को खेल विभाग के कारिंदों से काफी नुकसान हुआ है। सरकार ने बेशक हॉकी और वॉटर स्पोर्ट्स पर कई करोड़ खर्च किए हों पर राष्टÑीय खेलों में प्रदेश की हॉकी टीमें नहीं खेलीं। पिछले खेलों की कांस्य पदक विजेता महिला टीम से इस बार स्वर्ण पदक की उम्मीद थी, पर कोच साहब की करतूतों ने उम्मीदों पर पानी फेर दिया। प्रदेश के खिलाड़ियों ने जो 50 पदक जीते हैं, उनमें ऐसे खिलाड़ी भी हैं जिन्होंने प्रदेश सरकार की बिना मदद राज्य का गौरव बढ़ाया है। खेल संगठनों को ऐसे खिलाड़ियों के प्रदर्शन का उत्साह के साथ स्वागत किया जाना चाहिए। ये खिलाड़ी क्षेत्रीय सीमाओं में बंधे हुए नहीं हैं बल्कि उनकी प्रतिभा राज्य के कोने-कोने के खिलाड़ियों की प्रेरणा बने, ऐसी कोशिश जरूर होनी चाहिए। खेलों का अच्छा व नया वातावरण तैयार करना है तो सुविधाओं पर ही नहीं बल्कि प्रतिभावान खिलाड़ियों पर भी पूरा ध्यान देना होगा। हाल में प्रदेश के खिलाड़ियों की उपेक्षा पर हमने जो पदक जीते हैं, उन पर इतराने की बजाय हमें कोशिश करनी चाहिए कि भविष्य में मध्य प्रदेश के खिलाड़ी अधिक से अधिक पदक जीतें। आखिर हम पराये पूतों से कब तक यश की ताली पीटेंगे। राष्ट्रीय खेलों में पदक जीतकर आने वाले खिलाड़ियों की चर्चा और सरकार की ओर से उनकी उपलब्धियों को मिलती सराहना ठीक है, पर इसके लिए ईमानदार प्रयास भी जरूरी हैं।
35वें राष्ट्रीय खेल 2015 (केरल), टॉप 15 राज्य
राज्य स्वर्ण रजत कांस्य कुल स्थान
सर्विसेज 91 33 35 159 पहला
केरल 54 48 60 162 दूसरा
हरियाणा 40 40 27 107 तीसरा
महाराष्टÑ 30 43 50 123 चौथा
पंजाब 27 34 32 93 पांचवां
एमपी 23 27 41 91 छठा
मणिपुर 22 21 26 69 सातवां
तमिलनाडु 16 16 20 आठवां
गुजरात 10 04 06 20 नौवां
असम 09 05 11 25 दसवां
कर्नाटक 08 21 24 53 ग्यारहवां
तेलंगाना 08 14 11 33 बारहवां
झारखण्ड 08 03 12 23 तेरहवां
यूपी 07 31 30 68 चौदहवां
पश्चिम बंगाल 06 12 30 48 पंद्रहवां
इन पर मध्यप्रदेश का दांव सफल
खिलाड़ी स्वर्ण रजत कांस्य कुल
रिचा मिश्रा 04 01 02 07
संदीप सेजवाल 04 00 02 06
आरोन एंजिल 03 01 04 08
नैनो देवी 01 05 00 06
सोनिया देवी 01 04 02 07
प्रणति नायक 00 02 01 03
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