दिल्ली में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे देश की राजनीति पर दूरगामी असर डालेंगे, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। जिस तरह से दिल्ली में आम आदमी पार्टी की रिकॉर्ड जीत हुई है, उसने देश की जनता को सोचने के लिए विवश कर दिया है कि कोई युवा तरुणायी में भी कुछ कर सकता है महज कुछ महीने पहले देश में सम्पन्न हुए लोकसभा चुनावों में जहां भाजपा को आश्चर्यजनक सफलता मिली थी, वहीं दिल्ली में भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया।
भाजपा की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार किरण बेदी भी चुनाव नहीं जीत सकीं। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि भाजपा ने जनता का विश्वास खो दिया है। यदि लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिली अपार सफलता का श्रेय मोदी और अमित शाह पर जाता है तो दिल्ली की हार का ठीकरा भी मोदी और शाह के सिर जाना चाहिए। इससे पहले महाराष्ट्र व जम्मू कश्मीर में हुए विधानसभा चुनाव में मिली सफलता का श्रेय भी अमित शाह को दिया गया। भाजपा से जनता और पार्टी कार्यकर्ताओं का विश्वास तो उसी दिन से टूटने लगा था जिस दिन अमित शाह को भाजपा अध्यक्ष चुना गया। मोदी के इस निर्णय से आम कार्यकर्ताओं को लगने लगा था कि अब भाजपा पर मोदी और शाह की ही चलेगी। दिल्ली चुनाव में भाजपा का यह अब तक का सबसे शर्मनाक प्रदर्शन है। इस हार का सबसे बड़ा कारण बाहरी नेताओं को तवज्जो देना है। वहीं किरण बेदी जो लाख कोशिशों के बाद भी लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल नहीं हुर्इं वहीं केंद्र में सरकार बनने के बाद जब लगने लगा कि भाजपा दिल्ली में सरकार बनाएगी तो पार्टी में शामिल हो गर्इं वह भी शर्त के आधार पर कि हमें ही मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करो।
भाजपा कार्यकर्ताओं में इसका गलत संदेश गया कि जिन्होंने वर्षों से पार्टी को खड़ा किया आज उनकी उपेक्षा की गई। अमित शाह और मोदी ने किरण बेदी को आगे करने का निर्णय लिया। दिल्ली के अन्य नेताओं से इस बारे में सलाह मशविरा भी नहीं किया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि भाजपा नेताओं ने प्रचार से दूरी बना ली। अमित शाह की सख्त मिजाजी के कारण उस समय किरण बेदी के प्रवेश पर भले ही भाजपा नेताओं ने बोलने की हिम्मत नहीं जुटाई, लेकिन अंदर कसक बरकरार रही। भय के कारण किसी भाजपा नेता ने जुबान खोलने की जहमत नहीं उठाई जिस किसी ने आवाज उठाई भी उसे शांत करा दिया गया। इस चुनाव ने भाजपा नेतृत्व को सबक सिखा दिया।
लोकसभा चुनाव के दौरान सभाओं में किसानों को वाजिब मूल्य दिलाने का वायदा किया गया था लेकिन सरकार बनने के बाद गेहूं के समर्थन मूल्य में एक पैसे की बढ़ोतरी नहीं की गई। इससे किसान अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहा है। लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी अपने भाषणों में हर खेत को पानी, हर घर को बिजली, उपज की लागत के आधार पर लाभकारी मूल्य और किसानों के लिए ब्याज रहित कर्ज दिलाने का वायदा किया था। इसके अलावा फसल बीमा योजना शुरू करने और मनरेगा को कृषि कार्यों से जोड़ने की बात की जा रही थी। सरकार इनमें से एक भी वायदे को पूरा नहीं कर सकी। चुनाव से पूर्व भाजपा किसानों की बात करती थी इसलिए किसानों ने खुलकर मोदी को समर्थन दिया लेकिन सरकार बनने के बाद किसानों को भुला दिया गया। बजट में भी केंद्र सरकार ने कृषि के लिए कुछ नहीं किया।
मोदी सरकार बनने से किसानों में आशा की किरण जगी थी लेकिन उनका भरोसा भी टूट रहा है। पिछले कई वर्षों में देश का किसान, सरकार की गलत नीतियों को झेल रहा था। डीजल, खाद, बीज, पानी, बिजली आदि सभी के दाम कई गुना बढ़ चुके हैं। इसके बावजूद किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य देने की सरकार के पास कोई योजना नहीं है। इसके अलावा उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए केन्द्र सरकार ने भूमि अधिग्रहण अध्यादेश लाकर और किसानों की नाराजगी मोल ले ली। किसानों के इस मुद्दे को विपक्षी पार्टियों ने जोरदार ढंग से उठाया भी था। इन सब विफलताओं का असर दिल्ली चुनाव नतीजों पर पड़ा है। दिल्ली में आप की ऐतिहासिक जीत का देश के अन्य राज्यों पर भी असर पड़ेगा। दिल्ली चुनाव उत्तर प्रदेश व बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव पर स्पष्ट प्रभाव डालेगा।
इन दोनों प्रदेशों में भाजपा जीत के प्रति आश्वस्त लग रही थी लेकिन दिल्ली चुनाव के बाद थोड़ा माहौल जरूर बदलेगा। लोकसभा चुनाव के बाद बिहार व उत्तर प्रदेश में अन्य पार्टियों के नेताओं के आने का सिलसिला शुरू हो गया था इससे अब यह सिलसिला जरूर थमेगा। इसका सबसे खामियाजा भाजपा को इन राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है। दिल्ली में जिस तरह आप ने प्रचंड बहुमत हासिल किया है इससे भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की रणनीति भी पूरी तरह से फ्लॉप साबित हुई है। इससे नरेंद्र मोदी और अमित शाह की रणनीति पर भी सवाल उठना लाजिमी है। अमित शाह को अब तक चाणक्य के तौर पर पेश किया जाता रहा है, लेकिन दिल्ली की हार से यह भी सवाल उठने लगेंगे कि नेताओं की पूरी फौज और सेनापति के रूप में नरेंद्र मोदी को झोंकने के बावजूद अगर पार्टी को कामयाबी नहीं मिली तो जाहिर है कि पार्टी की रणनीति ही फेल हो गई।
हर्षवर्धन जमीन से जुड़े नेता हैं वह काम करने में विश्वास करते हैं। केंद्र में भाजपा सरकार बनने के बाद उन्हें स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया इसके बाद कुछ ही महीने में उनका मंत्रालय बदल दिया गया। इसका भी दिल्ली की जनता में गलत संदेश गया। अगर हर्षवर्धन को मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट किया जाता तो दिल्ली में पार्टी के लिए केजरीवाल का सामना करना अपेक्षाकृत आसान होता। इसके बाद किसी को भी मुख्यमंत्री का उम्मीदवार न बनाने का फैसला भी बदल दिया गया। मुख्यमंत्री का उम्मीदवार भी पार्टी के भीतर के बजाय किरण बेदी को बनाया, जिसका असर यह हुआ कि नेता से लेकर कार्यकर्ता तक नाराज हो गए। अंत में भाजपा घोषणा पत्र में भी बड़ी गलती हो गई। उत्तर-पूर्व राज्य के लोगों के लिए इसमें प्रवासी लिख दिया गया। बाद में पार्टी ने तुरंत माफी मांगते हुए इस गलती को सुधार लिया और बड़ा राजनीतिक मुद्दा नहीं बन पाया। लेकिन वोटरों के बीच यह संकेत चला गया कि पार्टी कितनी हताशा में है। अमित शाह के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की कमान संभालने के बाद पार्टी को उम्मीद से ज्यादा सफलता मिली। इसके बाद अध्यक्ष बनाए जाने के बाद उन्होंने हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड और जम्मू एवं कश्मीर में पार्टी को जीत दिलाई लेकिन उनका ये विजयी रथ दिल्ली पहुंचते-पहुंचते फेल हो गया। इस चुनाव नतीजे के बाद आप तेजी से देश के अन्य राज्यों में पैस पसारेगी। जिस तरह लोकसभा चुनाव में देश की जनता ने भाजपा को और दिल्ली चुनाव में आप को पूर्ण बहुमत दिया है, यह देश की राजनीति के लिए सुखद संदेश और स्वस्थ्य लोकतंत्र की निशानी है।
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