मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जी और खेल मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया जी यह क्या हो रहा है?
ग्वालियर। खिलाड़ियों का हक और उनके अरमान मध्यप्रदेश में बेईमानों के हाथ खेले जा रहे हैं। सब कुछ खुले में हो रहा है, पर जवाबदेहों को दिखाई ही नहीं दे रहा। प्रदेश के खेलनहार केरल में हो रहे 35वें राष्ट्रीय खेलों में बाहरी प्रदेशों के खिलाड़ी खेला रहे हैं। यह क्यों और किसकी शह पर हो रहा है? इसकी जानकारी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और खेल मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया को है या नहीं यह तो वही जानें पर जो भी हो रहा है, वह खेलों के साथ धोखा है।
शिवराज सरकार ने खेल क्षेत्र में सराहनीय कार्य किए। खिलाड़ियों को सुविधाएं मिलें इसके लिए लगभग दो अरब के खेल बजट का प्रावधान भी किया, पर मध्यप्रदेश की इस खेल उत्सुकता का जो लाभ प्रदेश के खिलाड़ियों को सहजता से मिलना चाहिए उसका अधिकांश लाभ तो प्रदेश से बाहर के खिलाड़ियों ने उठाया। बचा-खुचा प्रतियोगिताओं के उद्घाटन और समापन में खर्च हो रहा है। मध्यप्रदेश सरकार ने पुश्तैनी खेल हॉकी के उत्थान को मुकम्मल मैदान और दो एकेडमियां (ग्वालियर और भोपाल) खोलीं। अपनी प्रतिभाओं के प्रोत्साहन को प्रदेश भर में फीडर सेण्टर खोले गए, रिजल्ट मिलता कि उस पर कुठाराघात हो गया। चना-चिरौंजी की कौन कहे प्रतिभाओं को खेल उपकरण तक मयस्सर नहीं हैं। राष्ट्रीय खेल खिलाड़ियों का पर्व है। इस पर्व में पहली बार मध्यप्रदेश की हॉकी टीमें शिरकत नहीं कर रही हैं। पिछली बार की कांस्य पदक विजेता मध्यप्रदेश की बेटियों का नहीं खेलना अचरज की बात है। तब तो और जब इन पर मनचाहा खर्च किया गया हो। अशोक ध्यानचंद केरल में हॉकी की हुकूमत चला रहे हैं, पर वहां उनकी ही टीम नहीं है। सरकार को अशोक कुमार और परमजीत सहित अन्य जवाबदेहों से पूछना चाहिए कि ऐसा क्यों हुआ? हॉकी से हटकर तरणताल में भी बेईमानी बह रही है अन्य खेलों में भी बाहरी प्रदेशों के खिलाड़ी खेल रहे हैं। सवाल यह कि खेलों में अरबों निसार करने के बाद भी हम कब तक पराये पूतों के बल पर खेल तरक्की की ढिंढोरा पीटेंगे। माना कि प्रदेश की जनता को पदकों से सरोकार है, पर अपने खिलाड़ी यदि खेलेंगे नहीं तो जीतेंगे कैसे?
ग्वालियर। खिलाड़ियों का हक और उनके अरमान मध्यप्रदेश में बेईमानों के हाथ खेले जा रहे हैं। सब कुछ खुले में हो रहा है, पर जवाबदेहों को दिखाई ही नहीं दे रहा। प्रदेश के खेलनहार केरल में हो रहे 35वें राष्ट्रीय खेलों में बाहरी प्रदेशों के खिलाड़ी खेला रहे हैं। यह क्यों और किसकी शह पर हो रहा है? इसकी जानकारी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और खेल मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया को है या नहीं यह तो वही जानें पर जो भी हो रहा है, वह खेलों के साथ धोखा है।
शिवराज सरकार ने खेल क्षेत्र में सराहनीय कार्य किए। खिलाड़ियों को सुविधाएं मिलें इसके लिए लगभग दो अरब के खेल बजट का प्रावधान भी किया, पर मध्यप्रदेश की इस खेल उत्सुकता का जो लाभ प्रदेश के खिलाड़ियों को सहजता से मिलना चाहिए उसका अधिकांश लाभ तो प्रदेश से बाहर के खिलाड़ियों ने उठाया। बचा-खुचा प्रतियोगिताओं के उद्घाटन और समापन में खर्च हो रहा है। मध्यप्रदेश सरकार ने पुश्तैनी खेल हॉकी के उत्थान को मुकम्मल मैदान और दो एकेडमियां (ग्वालियर और भोपाल) खोलीं। अपनी प्रतिभाओं के प्रोत्साहन को प्रदेश भर में फीडर सेण्टर खोले गए, रिजल्ट मिलता कि उस पर कुठाराघात हो गया। चना-चिरौंजी की कौन कहे प्रतिभाओं को खेल उपकरण तक मयस्सर नहीं हैं। राष्ट्रीय खेल खिलाड़ियों का पर्व है। इस पर्व में पहली बार मध्यप्रदेश की हॉकी टीमें शिरकत नहीं कर रही हैं। पिछली बार की कांस्य पदक विजेता मध्यप्रदेश की बेटियों का नहीं खेलना अचरज की बात है। तब तो और जब इन पर मनचाहा खर्च किया गया हो। अशोक ध्यानचंद केरल में हॉकी की हुकूमत चला रहे हैं, पर वहां उनकी ही टीम नहीं है। सरकार को अशोक कुमार और परमजीत सहित अन्य जवाबदेहों से पूछना चाहिए कि ऐसा क्यों हुआ? हॉकी से हटकर तरणताल में भी बेईमानी बह रही है अन्य खेलों में भी बाहरी प्रदेशों के खिलाड़ी खेल रहे हैं। सवाल यह कि खेलों में अरबों निसार करने के बाद भी हम कब तक पराये पूतों के बल पर खेल तरक्की की ढिंढोरा पीटेंगे। माना कि प्रदेश की जनता को पदकों से सरोकार है, पर अपने खिलाड़ी यदि खेलेंगे नहीं तो जीतेंगे कैसे?
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