Friday, 27 December 2013

...रहम को तरसती जिन्दगी


सियासत बुरी बला है, यदि यह न होती तो शायद मुल्क के अमन को कभी कोई राजनीतिक दल आग न लगा पाता। मुजफ्फरनगर दंगों को हुए तीन माह से अधिक समय बीत चुका है लेकिन वहां की आवाम आज भी खून के आंसू रो रही है। जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव करीब आते जा रहे हैं, राजनीतिक दल मुजफ्फरनगर को लेकर घड़ियाली आंसू बहाने का कोई मौका जाया नहीं करना चाहते। हर दल पीड़ितों का मसीहा बनने की कोशिश तो कर रहा है पर लोगों की पीड़ा कम होने की बजाय बढ़ती ही जा रही है। अब भी वहां दुर्दशा ऐसे पसरी हुई है, मानो इन पीड़ितो की कोई सरकार नहीं है। तीन माह पहले भी राजनीतिक दलों ने पीड़ितों की पीड़ा हरने की खूब बातें की थीं और आज भी खूब तमाशा हो रहा है। राजनीतिक दल एक-दूसरे पर जहां आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं वहीं पीड़ित शिविरों को छोड़कर घर जाने को तैयार नहीं हैं।
शिविरों में रह रहे लोग सरकार और प्रशासन की अनदेखी, संवेदनहीनता, लापरवाही का बखान करते नहीं थक रहे जबकि राजनीतिक दल ऐसी बातें कर रहे हैं मानों वहां सब कुछ भला-चंगा हो। इन दंगों ने उस समाज का क्रूर चेहरा एक बार फिर उजागर कर दिया, जिसे हम सभ्य समझने की खुशफहमी लम्बे समय से पाले हुए हैं। राजनीतिक दलों ने मुजफ्फरनगर साम्प्रदायिक हिंसा की नाजुक घड़ी में संयम और समझदारी दिखाने के बजाय समाज का ध्रुवीकरण करने का उतावलापन अधिक दिखाया है। राजनीतिक दलों के इसी नतीजे का परिणाम है कि तीन महीने बाद भी पीड़ित आवाम किसी पर भी विश्वास करने की स्थिति में नहीं है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी दंगा पीड़ितों के शिविरों में जाकर उनका हालचाल लेकर उन्हें अपने घर वापस लौटने की सलाह देते हैं तो समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव इसे सियासत की नजर से देख रहे हैं। बकौल मुलायम सिंह मुजफ्फरनगर दंगा पीड़ितों के लिये बनाये गये राहत शिविरों में अब कोई पीड़ित नहीं रह रहा है। जो लोग वहां हैं वे षड्यंत्रकारी हैं। यह भाजपा और कांग्रेस का षड्यंत्र है। भाजपा और कांग्रेस के लोग रात में जाकर पीड़ितों से कहते हैं कि बैठे रहो, धरना दो और लोकसभा चुनाव तक इसे मुद्दा बनाए रखो। हो सकता है मुलायम जो कह रहे हों वही सच हो पर उन्होंने यदि पीड़ितों के आंसू पोछने में उदारता दिखाई होती तो आज शिविरों में कोई शरणार्थी नहीं होता।
शिविरों में शरणार्र्थी खुद को सुरक्षित महसूस कर रहे हैं। उन्हें डर है कि अगर वे अपने गांव गए तो वापस उन्हें साम्प्रदायिक हिंसा का शिकार होना पड़ेगा। उनका यह डर दरअसल केन्द्र और प्रदेश सरकार की नाकामी का ही परिचायक है। यह सच है कि दंगों के बाद मृतकों के परिजनों और पीड़ितों को उत्तर प्रदेश सरकार तथा प्रधानमंत्री सहायता कोष से इमदाद के रूप में करोड़ों रुपए की सहायता राशि दी गई है, पर टके भर का सवाल यह है कि जो लोग अपने घर नहीं लौटना चाहते, उन्हें मुआवजा राशि देकर दूसरी जगह बसाने की व्यवस्था क्यों नहीं की गई? हालात बद से बदतर आखिर क्यों हैं? इन शिविरों में आज भी लगभग नौ सौ से अधिक बच्चे घुटनभरी जिन्दगी जी रहे हैं और 34 बच्चे ठण्ड के आगोश में समा चुके हैं। तीन माह पहले मुजफ्फरनगर में जो करुण क्रंदन हुआ उस पर राजनीतिक दल सियासत तो कर रहे हैं पर पीड़ितों के आंसू पोछने की जहमत उठाने को कोई तैयार नहीं है। किसी पर तोहमत लगाने से पहले प्रदेश सरकार ने यदि स्वविवेक से पीड़ितों की मदद की होती तो शायद सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप न करना पड़ता। देखा जाये तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ही प्रदेश सरकार नींद से जागी और उसने अस्थायी अस्पताल बनाने से लेकर दूध, दवा व अन्य आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति करवाई। उत्तर प्रदेश में कितनी भीषण ठण्ड पड़ती है, यह सभी जानते हैं। हर वर्ष शीतलहर से कितने ही लोगों की मौत हो जाती है। दंगों के कारण अपनी जमीन से बेदखल लोग शिविरों में किन परिस्थितियों में रह रहे हैं, इससे सरकार का अनजान रहना चिन्ता की ही बात है।  ठण्ड के पहले एहतियात बरती गई होती तो मासूम बच्चे ठण्ड में ठिठुर-ठिठुर कर नहीं मरते। प्रदेश सरकार कह रही है कि बच्चे ठण्ड से नहीं बल्कि बीमारी से मरे हैं, पर बच्चे मरे तो हैं। दरअसल इन नौनिहालों का नाम भी दंगों के कारण मृत हुए लोगों की सूची में जोड़ा जाना चाहिए क्योंकि ये बच्चे संवेदनहीनता की परोक्ष हिंसा का शिकार हुए हैं। आश्चर्य की ही बात है कि तीन दर्जन से अधिक बच्चे मौत के आगोश में समा गये लेकिन किसी राजनीतिक दल ने इसे संज्ञान में नहीं लिया। मुल्क में इस बात को लेकर कोई हंगामा नहीं मचा कि आखिर क्यों मासूमों को साम्प्रदायिक ताकतों और सरकार की अनदेखी का खामियाजा अपनी जान देकर चुकाना पड़ा? जो भी हो, फिलहाल राजनीतिक दलों की निगाहें मुजफ्फरनगर पीड़ितों की तरफ कम आगामी आम चुनाव पर अधिक टिकी हुई हैं। राजनीतिक दल गठबंधन के सम्भावित स्वरूप को लेकर एक-दूसरे से मंत्रणा कर रहे हैं। देखा जाये तो फिलवक्त देश में बहुत कुछ हो रहा है, पर साम्प्रदायिकता का शिकार लोग पुन: सम्मान का जीवन बसर करें, उनके दिलों से दोबारा पीड़ित होने का खौफ खत्म हो, वे अपने रोजगार में फिर से लगें और किसी की दया पर गुजारा न करें, इसके लिए कोई ठोस प्रयास   होते नहीं दिख रहे। इसे विडम्बना ही कहेंगे कि केन्द्र तथा राज्य सरकार वोटों के ध्रुवीकरण में तो लगी हैं लेकिन फिलवक्त मुजफ्फरनगर के लोई, शामली के मदरसा तैमुल शाह, मलकपुर, बरनवी तथा ईदगाह शिविरों में घुट-घुट कर जी रहे 4783 लोगों के लिए किसी राजनीतिज्ञ के दिल में कोई जगह नहीं है। मुजफ्फरनगर को लेकर ये अल्फाज बरबस याद आते हैं:-
ये कैसी तौहीन-ए-शग्ले मस्ती है,
रहने वालों ये कैसी बस्ती है?
मौत को तो लोग देते हैं कांधा,
जिन्दगी रहम को तरसती है।

Saturday, 21 December 2013

एथलेटिक्स: नाकामी भरे साल में डोपिंग का डंक

एथलेटिक्स में भारत के लिये इस साल एकमात्र उपलब्धि दूसरी बार एशियाई चैम्पियनशिप की मेजबानी रही जबकि डोपिंग प्रकरण और प्रशासनिक अनियमितताओं ने एक बार फिर खेल को शर्मसार किया।
राष्ट्रीय डोपिंग निरोधक एजेंसी द्वारा कराये गए टेस्ट में एथलेटिक्स में सबसे ज्यादा 23 खिलाड़ी पाजीटिव पाये गए। भारत को पुणे में तीन से सात जुलाई तक हुई एशियाई चैम्पियनशिप की शुरुआत से एक दिन पहले शर्मिंदगी झेलनी पड़ी जब शाटपुटर पी. उदय लक्ष्मी को डोप टेस्ट में पाजीटिव पाये जाने के कारण पीछे हटना पड़ा। एएफआई को फिर शर्मसार होना पड़ा जब उसने रिले धाविका अश्विनी अकुंजी को महिलाओं की चार गुणा 400 मीटर टीम में शामिल करने की कोशिश की। डोपिंग मामले में उसका दो साल का प्रतिबंध खत्म होने के कुछ दिन बाद ही यह प्रयास किया गया जिसे चैम्पियनशिप की तकनीकी टीम ने खारिज कर दिया। राष्ट्रीय रिकार्डधारी त्रिकूद खिलाड़ी रंजीत माहेश्वरी पांच साल पुराने डोप मामले के कारण विवाद में फंस गए। इसकी वजह से उन्हें अर्जुन पुरस्कार से वंचित रहना पड़ा और वह भी पुरस्कार समारोह से चंद घंटे पहले।  खेल मंत्रालय ने पाया कि वह 2008 में कोच्चि में राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में डोप टेस्ट में नाकाम रहे थे। खेल मंत्रालय ने माहेश्वरी के बारे में यह अहम सूचना नहीं देने के लिये एएफआई को लताड़ा। एएफआई ने पहले तो पाजीटिव टेस्ट के बारे में इनकार किया लेकिन बाद में मंत्रालय को बताया कि कोच्चि में हुई राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में वह डोप टेस्ट में पाजीटिव पाये गए थे लेकिन उसे वह फाइल नहीं मिल रही।
एएफआई ने जनवरी 2009 में माहेश्वरी के नियोक्ता रेलवे खेल संवर्धन बोर्ड को लिखे पत्र में उसके निलंबन की जानकारी दी थी जो इस मामले में अहम सबूत साबित हुआ। इससे पहले एएफआई ने चीन के नानजिंग में 16 से 28 अगस्त तक हुए एशियाई युवा खेलों में अधिक उम्र के खिलाड़ी भेज दिये जिससे 17 ट्रैक और फील्ड खिलाड़ियों को लौटना पड़ा। एथलेटिक्स और भारोत्तोलन में एक जनवरी 1997 को या उसके बाद पैदा हुए खिलाड़ी ही भाग ले सकते थे जबकि बाकी खेलों में उम्र संबंधी योग्यता शर्तें अलग थीं।       एएफआई अधिकारियों ने 1996 में जन्में 17 खिलाड़ियों को भेज दिया जिन्हें आयोजकों ने अयोग्य करार दिया। भारतीय खेल प्राधिकरण ने इस पर सफाई मांगी और अयोग्य खिलाड़ियों की यात्रा पर खर्च हुए 10 लाख रुपये का मुआवजा भी मांगा। भारत ने पुणे में 20वीं एशियाई चैम्पियनशिप की मेजबानी की। इससे पहले दिल्ली ने 1989 में इस टूर्नामेंट की मेजबानी की थी। भारत को इसमें सिर्फ दो स्वर्ण पदक मिले और टीम छठे स्थान पर रही। चीन ने इसमें अपने कई शीर्ष खिलाड़ी नहीं भेजे थे। लंदन ओलंपिक के कांस्य पदक विजेता कतर के हाईजम्पर मुताज इस्सा बारशिम और लंदन ओलंपिक के रजत पदक विजेता डिस्कस थ्रोवर ईरान के एहसान हदादी ने भी इसमें भाग नहीं लिया।
चीन ने 16 स्वर्ण, छह रजत और पांच कांस्य जीते जबकि बहरीन दूसरे और जापान तीसरे स्थान पर रहा। भारत के लिये डिस्कस थ्रो खिलाड़ी विकास गौड़ा और महिलाओं की चार गुणा 400 मीटर रिले टीम (एमआर पूवम्मा, टिंटु लुका, अनु मरियम जोस और निर्मला) ने स्वर्ण पदक जीते। जबकि कृष्णा पूनिया महिला डिस्कस थ्रो और सुधा सिंह दौड़ में फ्लाप रही। अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में साल भर भारत का प्रदर्शन उल्लेखनीय नहीं रहा। गौड़ा पेरिस में डायमंड लीग के नौवें चरण में चौथे स्थान पर रहे। एशियाई चैम्पियनशिप से ठीक पहले आईओए के पूर्व प्रमुख और भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे सुरेश कलमाडी एशियाई एथलेटिक्स संघ के अध्यक्ष का चुनाव कतर के अहमद दहलान से हार गए।

Thursday, 19 December 2013

भारतीय हाकी में इस साल लड़कियों का रहा जलवा, पुरुषों ने कटाई नाक

भारतीय हाकी में जहां इस साल पुरुष टीम बड़ी जीत के लिये तरसती रही, वहीं लड़कियों ने इतिहास रचते हुए जूनियर विश्व कप में पहले कांस्य पदक समेत तीन तमगे भारत की झोली में डाले। आईपीएल की तर्ज पर हाकी इंडिया लीग के जरिये खिलाड़ियों की जेबें भरीं तो भारत को एफआईएच के कई अहम टूर्नामेंटों की मेजबानी मिली।
महिला टीम ने जुलाई-अगस्त में जर्मनी के मोंशेंग्लाबाख में हुए जूनियर विश्व कप में इंग्लैंड को पेनल्टी शूटआउट में 3-2 से हराकर पहली बार कांस्य पदक जीता। इसके अलावा सितम्बर में कुआलालम्पुर में जूनियर एशिया कप में भी कांसा अपने नाम किया और नवम्बर में जापान में सम्पन्न एशियाई चैम्पियंस ट्राफी में रजत पदक जीतकर वर्ष 2013 को भारतीय महिला हाकी के लिये यादगार बनाया। वहीं पुरुष टीम ने एकमात्र खिताबी जीत सितंबर में मलेशिया में हुए जोहोर कप में दर्ज की। दिल्ली में फरवरी में विश्व हाकी लीग में शीर्ष रही महिला टीम सेमीफाइनल में हार गई। वहीं पुरुष टीम भी हालैण्ड के रोटरडम में हुए सेमीफाइनल में बुरी तरह हारकर अगले साल हालैंड में होने वाले विश्व कप में सीधे जगह नहीं बना सकी। इसके कारण कोच माइकल नोब्स की भी रवानगी हुई। भारत को बाद में ओशियाना क्षेत्र से उसे विश्व कप 2014 में बैकडोर प्रवेश मिल गया। मार्च में हुए अजलन शाह कप और नवंबर में जापान में एशियाई चैम्पियंस ट्राफी में भारत छह टीमों में पांचवें स्थान पर रहा। वहीं इपोह में सितंबर में हुए एशिया कप में फाइनल में कोरिया से हारकर रजत पदक जीता। दिल्ली में दिसंबर में हुए जूनियर विश्व कप में मेजबान भारत शर्मनाक दसवें स्थान पर रहा। इस साल की शुरूआत में फ्रेंचाइजी आधारित हाकी इंडिया लीग के जरिये खेल में एक नये युग का आगाज हुआ।  इंडियन प्रीमियर लीग की तर्ज पर शुरू हुई इस लीग का पहला सत्र पांच टीमों के बीच जनवरी-फरवरी में खेला गया जिसमें जैमी ड्वायेर, टान डे नूयरे, मौरित्ज फुर्त्से जैसे दुनिया के शीर्ष खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया। नूयरे जहां सबसे महंगे विदेशी खिलाड़ी रहे तो सरदार सिंह सबसे महंगे भारतीय। पहले सत्र में रांची राइनोस ने दिल्ली वेवराइडर्स को 2-1 से हराकर खिताब जीता। लीग विवाद से अछूती नहीं रही जब सीमा पर जारी तनाव के कारण पाकिस्तान के नौ खिलाड़ियों को एक भी मैच खेले बगैर स्वदेश लौटना पड़ा। दूसरे सत्र में भी पाकिस्तानी खिलाड़ी इस लीग का हिस्सा नहीं होंगे। भारत और पाकिस्तान के बीच बहुप्रतीक्षित द्विपक्षीय श्रृंखला इस साल भी बहाल नहीं हो सकी। मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम पर विश्व हाकी लीग के दूसरे दौर में भारतीय पुरुष और महिला दोनों टीमों ने शानदार प्रदर्शन किया। पुरुष टीम ने फीजी (16 -0), ओमान (9-1), आयरलैंड (3-2), चीन (4-0) और बांग्लादेश को 5-1 से हराया जबकि महिला टीम ने कजाखस्तान (8-0), मलेशिया (3-0), फीजी (10-0), जापान (3-2) और रूस को  1-0 से मात दी।
मार्च में अजलन शाह कप में पांच बार की चैम्पियन भारतीय टीम छह टीमों में पांचवें स्थान पर रही। प्लेआफ में भारत ने पाकिस्तान को 4-2 से हराया। इसके बाद जून में रोटरडम में विश्व लीग के तीसरे दौर में भारत का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। पूल चरण में न्यूजीलैंड और आयरलैंड से ड्रा खेलने के बाद टीम मेजबान हालैंड से हार गई वहीं क्वार्टर फाइनल में आस्ट्रेलिया से हारी और अंतत: छठे स्थान पर रही। इस टूर्नामेंट में विफलता के बाद आस्ट्रेलियाई कोच माइकल नोब्स की भी दो साल के कार्यकाल के बाद रवानगी हो गई। उनकी जगह आस्ट्रेलिया के ही टैरी वाल्श को नया कोच बनाया गया जबकि हालैंड के रोलैंट ओल्टमेंस हाई परफार्मेंस निदेशक हैं।
विश्व लीग का फाइनल दिल्ली में अगले साल जनवरी में खेला जायेगा जिसमें बतौर मेजबान भारत को जगह मिल गई है। इपोह में सितंबर में हुए एशिया कप में भारत पूल चरण में शीर्ष पर रहा और सेमीफाइनल में मलेशिया को 2-0 से हराया। फाइनल में हालांकि टीम कोरिया से 3-4 से हार गई। सितंबर में मलेशिया में ही हुए जोहोर कप में भारत ने मलेशिया को 3-0 से हराकर खिताब जीता।  वहीं जूनियर विश्व कप की तैयारी के लिये जापान के काकामिगाहारा में नवंबर में हुई तीसरी एशियाई चैम्पियंस ट्राफी में मनप्रीत सिंह की अगुवाई में युवा टीम भेजी गई। पहले सत्र 2011 की चैम्पियन भारतीय टीम छह टीमों में पांचवें स्थान पर रही। साल के आखिर में दिल्ली में जूनियर विश्व कप में पूल चरण से ही बाहर होकर मेजबान ने घरेलू दर्शकों को फिर निराश किया। पूल चरण में हालैंड से हारने के बाद भारत ने कनाडा को हराया और अहम मैच में कोरिया से 3-3 से ड्रा खेला। क्लासीफिकेशन मुकाबले में पाकिस्तान से पेनल्टी शूट आउट पर 2-4 से मिली हार ने रही सही कसर भी पूरी कर दी।
महिला टीम ने हालांकि भारतीय हाकी के इतिहास के कुछ सुनहरे पन्ने लिखे। जर्मनी में 27 जुलाई से चार अगस्त तक हुए जूनियर विश्व कप में भारत ने इंग्लैंड को पेनल्टी शूटआउट पर 3-2 से हराकर पहला कांस्य जीता। पूल चरण में आस्ट्रेलिया से  6-1 से हारने के बाद भारत ने न्यूजीलैंड  को 2-0 और रूस  को 10-1 से   हराया था। क्वार्टर फाइनल में स्पेन  को 4-2 से हराने के बाद टीम सेमीफाइनल में हालैंड  से 3-0 से हारी।
सितंबर में कुआलालम्पुर में महिला एशिया कप में सेमीफाइनल में कोरिया से हारने के बाद भारतीय टीम ने कांस्य पदक के मुकाबले में चीन को पेनल्टी शूटआउट पर 3-2 से हराया। भारतीय टीम हालांकि विश्व कप में जगह बनाने से चूक गई। एशियाई चैम्पियंस ट्राफी फाइनल में जापान से एक गोल से हारने के बाद टीम को रजत पदक से ही संतोष करना पड़ा। भारतीय कप्तान सरदार सिंह और महिला कप्तान रितु रानी को इस साल एशिया का सर्वश्रेष्ठ पुरूष और महिला खिलाड़ी चुना गया। भारतीय हाकी टीम को अगले साल राष्ट्रमंडल खेल, एशियाई खेल, विश्व कप के अलावा अपनी मेजबानी में विश्व लीग फाइनल और चैम्पियंस ट्राफी में भाग लेना है जो ओड़िशा के भुवनेश्वर में खेली जायेगी। इसके अलावा 2018 विश्व कप भी भारत में होगा। एफआईएच अध्यक्ष लिएंड्रो नेग्रे ने भारत को हाकी के लिये अहम बताते हुए कहा, भारत विश्व हाकी में अहम स्थान रखता है और यहां खेल काफी लोकप्रिय है। भारतीय हाकी का गौरवमयी इतिहास रहा है लिहाजा लोग टीम से सिर्फ पदक की अपेक्षा करते हैं जो मुमकिन नहीं है। हाकीप्रेमियों को संयम से काम लेना होगा और मुझे यकीन है कि टीम 2018 विश्व कप में अच्छा प्रदर्शन करेगी ।

सपा की जमीनी सियासत

हाल के पांच राज्यों के चुनाव नतीजों ने यह दिखा दिया कि देश में हवा और युवाओं का रुख किस ओर है। यह कहना अभी मुश्किल है कि यह हवा आने वाले महीनों में तूफान की शक्ल लेगी या नहीं लेकिन भाजपा के पक्ष में बह रहे हवा के इस प्रवाह को रोकने के लिए उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने जमीनी प्रयास तेज कर दिये हैं। सपा जानती है कि यदि आगामी लोकसभा भी अंग-भंग हुई तो देश की सियासत में उसकी क्या अहमियत होगी। समाजवादी पार्टी यह भी जानती है कि मुल्क के तख्तोताज में उत्तर प्रदेश कितना मायने रखता है। खुशखबर है कि सपा उत्तर प्रदेश की सरताज है।
देखा जाए तो मुल्क के प्रत्येक राज्य की राजनीतिक परिस्थितियां भिन्न-भिन्न हैं और आगामी लोकसभा चुनाव में समीकरण अलग-अलग ढंग से काम करेंगे। केन्द्र सरकार से जुड़कर 10 साल मजे करने वाले राजनीतिक दलों को अब अहसास हो रहा है कि गलाकाट महंगाई के चलते कांग्रेस के पैरों के नीचे से जमीन बहुत तेजी से खिसक रही है। कांग्रेस से मोहभंग होते मतदाता भाजपा की गोदी में न बैठें इसके लिए छोटे-छोटे राजनीतिक दलों ने अपने-अपने सूबों में युवाओं को लोकलुभावन सौगातों का प्रलोभन देना प्रारम्भ कर दिया है। आगत लोकसभा चुनानों में कांग्रेस की मतदाताओं पर कमजोर होती पकड़ का असर कई तरह से पड़ने वाला है, इस बात के मद्देनजर उसकी सहयोगी पार्टियां कांग्रेस की सरपरस्ती में चुनाव लड़ने से जरूर परहेज करेंगी। सबको डर है कि कहीं उनके लिए कांग्रेस की यारी आत्मघाती न साबित हो जाए। एक माह पहले तक जो दल कांग्रेस का हाथ थामकर कमल दल के खिलाफ चुनाव लड़ने का मन बना रहे थे, उन्हें अब सांप सूंघ गया है और वे अब एकला चलकर ही दिल्ली पहुंचने में भलाई समझ रहे हैं।  सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव, मायावती, ममता बनर्जी, नवीन पटनायक, नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव हवा देखकर रुख बदलने में माहिर हैं और वे सिद्धांतों या आदर्शों की परवाह किए बिना सफलता की जहां गारण्टी मिलेगी उसी के साथ चल पड़ेंगे। कांग्रेस के सहयोगी दलों की चिन्ताएं दो तरह की हैं। सबसे पहली चिन्ता यह कि क्या कांग्रेस ऐसा नेतृत्व दे सकती है जो चुनाव में विजय दिलाने की क्षमता रखता हो। पिछले कुछ समय से कांग्रेस घोषित तौर पर न सही, लेकिन साफ संकेत दे रही है कि आगत लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ही उसके तारणहार होंगे। कांगेस के अब तक के प्रदर्शन को देखें तो राहुल गांधी यह भरोसा नहीं जगा पाए हैं कि वे कारगर नेतृत्व देने की क्षमता रखते हैं। जबकि उसके उलट कमल दल ने अनुभवी और वाक्पटु नरेन्द्र मोदी को जब से आगे किया है, देश का युवा मतदाता केसरिया रंग में रंगता दिख रहा है।
समय कम है और सामने चुनौती बड़ी है इस बात को ध्यान में रखते हुए समाजवादी पार्टी ने चार राज्यों की असफलता पर विधवा विलाप करने की बजाय उत्तर प्रदेश में ही अपनी सारी शक्ति झोंक देने का मन बना लिया है। सपा जानती है कि यूपी में उसके पास न केवल मुस्लिमों का बड़ा जनाधार है बल्कि अखिलेश सरकार ने युवाओं के हाथ कम्प्यूटर सौंपकर अन्य दलों को उलझन में डाल दिया है। उत्तर प्रदेश में चार राजनीतिक दलों का जनाधार है और हर दल यहां की 80 लोकसभा सीटों में अधिक से अधिक पर विजय हासिल करने को उतावला है। कांग्रेस ने  खाद्य सुरक्षा कानून और लोकपाल के जरिये आमजन का दिल जीतने की कोशिश तो जरूर की है पर महंगाई की धार इतनी तेज है कि उसका असर शायद ही लोगों के दिलोदिमाग पर असर दिखाए।
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस, भाजपा, बसपा और सपा की शक्ति का अंदाजा लगाएं तो सपा का वजूद ज्यादा मजबूत दिखाई दे रहा है। लोकपाल विधेयक पर कांग्रेस का साथ न देकर सपा ने जता दिया है कि वह लोकसभा चुनाव से पहले सूबे के प्रशासनिक अधिकारियों के जेहन में किसी प्रकार का कोई डर पैदा नहीं करना चाहती। सपा जानती है कि युवा शक्ति और प्रशासनिक मशीनरी ही उसे अधिक से अधिक सीटें दिला सकती है। कुछ दिन पहले मुलायम सिंह ने आधी आबादी को तरजीह देने की मंशा जताकर भाजपा को बैकफुट पर ला दिया है। सूबे के मुखिया अखिलेश यादव की मंशा है कि प्रदेश में चहुंओर विकास की बयार बहे। इसी गरज से उन्होंने वित्त वर्ष शुरू होने से पहले ही महत्वपूर्ण विकास कार्यों का विभागवार एजेण्डा बनाकर इसे लागू करने का काम तेज गति से प्रारम्भ कर दिया है। प्रदेश के विकास को गति देने को सरकार ने लोक निर्माण, ऊर्जा, अवस्थापना, औद्योगिक विकास और चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में जान फंूक दी है। अखिलेश सरकार ने चिकित्सकों की कमी को दूर करने और लोगों को अच्छी चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के लिए न केवल एमबीबीएस की 500 सीटों में बढ़ोत्तरी कराई बल्कि नए मेडिकल कॉलेजों के संचालन की भी नेक पहल प्रारम्भ कर दी है। राज्य में अच्छी सड़कों एवं पुलों का जाल बिछने लगा है तो सरकार ने लगभग दो लाख किलोमीटर ग्रामीण सड़कों के अनुरक्षण के लिए ग्राम सम्पर्क मार्ग अनुरक्षण नीति बनाकर लागू करने का फैसला भी ले लिया है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने प्रदेश की बिजली समस्या के समाधान के लिए कमर कस ली है तो खेल-खिलाड़ियों के प्रोत्साहन और मदद के लिए अपना पिटारा खोल दिया है। सूबे के मुखिया का मानना है कि जब तक उत्तर प्रदेश का विकास नहीं होगा, तब तक देश   का विकास नहीं होगा, इसी गरज से राज्य सरकार कृषि के साथ-साथ औद्योगीकरण पर भी खास ध्यान दे रही है। सपा उत्तर प्रदेश में अधिक से अधिक सीटें जीतकर अपने सुप्रीमो मुलायम को मुल्क का तख्तोताज सौंपना चाहती है लेकिन यह तभी सम्भव होगा जब कमल दल सूबे में उससे आगे न निकले।

Wednesday, 18 December 2013

सीईओ की नियुक्ति करेगा साई

भारतीय खेल प्राधिकरण ने राष्ट्रीय खेल महासंघों के प्रबंधन को पेशेवर बनाने के लिये प्रशिक्षित सीईओ की नियुक्ति का फैसला किया है ।
यह फैसला खेलमंत्री जितेंद्र सिंह की अध्यक्षता में साइ की 42वीं बैठक में लिया गया। सीईओ के पारिश्रमिक का खर्च साई उठायेगा । बैठक में यह भी फैसला लिया गया कि सरकार इन चुनिंदा पेशेवरों की नियुक्ति में दखल नहीं देगी। खेल मंत्रालय ने अक्तूबर में शीर्ष खेल महासंघों को पत्र भेजकर सीईओ की नियुक्ति के बारे में उनकी राय मांगी थी। ये पत्र 13 महासंघों तीरंदाजी, एथलेटिक्स, बैडमिंटन, मुक्केबाजी, फुटबाल, केनोइंग कयाकिंग, जिम्नास्टिक, हाकी, नौकायन, निशानेबाजी, तैराकी, कुश्ती और वुशू के साथ भारतीय स्कूली खेल महासंघ को भेजे गए । सिर्फ बैडमिंटन, केनोइंग कयाकिंग, कुश्ती और एजीएफआई ने जवाब भेजे। खेल महासंघों ने मंत्रालय का प्रस्ताव यह कहकर ठुकरा दिया कि महासंघों का कामकाज पेशेवर तरीके से चल रहा है और उन्हें सीईओ की जरूरत नहीं है। फिलहाल सिर्फ हाकी और बास्केटबाल में प्रशासनिक प्रमुख के तौर पर सीईओ हैं। आस्ट्रेलिया की एलेना नार्मन हाकी इंडिया की सीईओ है जिसके पास खेल प्रबंधन का अपार अनुभव है। देश में 54 एनएसएफ हैं और सीईओ के जरिये इनका कामकाज पेशेवर तरीके से चलाने की कोशिश है। बैठक में पेशेवर एजेंसियों की तकनीकी सहायता और कारपोरेट संगठनों के सहयोग से मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम पर विश्व स्तरीय खेल संग्रहालय बनाने का फैसला भी लिया गया है। इसके अलावा आदिवासी इलाकों, जम्मू कश्मीर, पूर्वोत्तर और नक्सल प्रभावित इलाकों में विशेष खेल क्षेत्र (एसएजी) बनाकर देशी खेलों को बढ़ावा देने का फैसला भी लिया गया।
इसके अलावा राजस्व विभाजन के आधार पर देश भर में साइ केंद्रों पर अनुभवी खिलाडियों या एजेंसियों द्वारा निजी अकादमियों के गठन का भी फैसला लिया गया। इसमें यह भी तय किया गया कि साइ से वित्तीय मदद लेने वाले सभी एनएसएफ को घरेलू या अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों में सभी प्रचार सामग्रियों, आधिकारिक साजो सामान और खेल किटों पर साइ का लोगो दर्शाना चाहिये। 

कपिल देव को लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार

भारत के पहले विश्व कप विजेता कप्तान कपिल देव को बीसीसीआई के वार्षिक पुरस्कार समारोह में वर्ष 2013 के लिए कर्नल सीके नायुडू लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने आज इसकी घोषणा की।
पुरस्कार समिति में बीसीसीआई के अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन, संजय पटेल (बीसीसीआई के मानद सचिव) और अयाज मेमन (वरिष्ठ पत्रकार) शामिल थे। इस समिति ने आज विजेता को नामित करने के लिए चेन्नई में बैठक की। समिति ने सर्वसम्मति से महान आलराउंडर कपिल को इस पुरस्कार के लिए चुना। बीसीसीआई सचिव पटेल ने कहा, कपिल देव निखंज को बीसीसीआई पुरस्कार समारोह में 2012-13 के लिए कर्नल सीके नायुडू लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार के लिए चुना गया है जिसमें ट्राफी, स्मृति चिन्ह और 25 लाख रूपये का चेक शामिल है। सर्वकालिक महान आलराउंडरों में शुमार कपिल ने भारत के लिए 131 टेस्ट खेले जिसमें उन्होंने 434 विकेट चटकाए जो एक समय रिकार्ड था। वह टेस्ट क्रिकेट में 5000 रन और 400 विकेट का डबल बनाने वाले पहले खिलाड़ी हैं।
      इसके अलावा कपिल ने 225 एकदिवसीय मैच भी खेले जिसमें उन्होंने 253 विकेट चटकाए और 3783 रन बनाए। भारतीय क्रिकेट में उनका सबसे यादगार योगदान 1983 विश्व कप में भारत की जीत है। कप्तान कपिल ने इस टूर्नामेंट में गेंद और बल्ले के अलावा क्षेत्ररक्षण में भी शानदार प्रदर्शन किया। कपिल 2007 में अब भंग हो चुकी इंडियन क्रिकेट लीग (आईसीएल) से भी जुडेÞ और बीसीसीआई ने गैर अधिकृत लीग का हिस्सा बनने पर उन पर प्रतिबंध लगा दिया था। लेकिन पिछले साल कपिल और बीसीसीआई ने अपने मतभेद भुला दिए जब इस क्रिकेटर ने आईसीएल से इस्तीफा दे दिया। बोर्ड ने इसके बाद कपिल को खिलाड़ियों को दी गई एकमुश्त फायदा भुगतान योजना का लाभ देते हुए उन्हें 1.5 करोड़ रूपये दिये। भारत के पहले टेस्ट कप्तान कर्नल सीके नायुडू के नाम पर दिया जाने वाला लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार उन लोगों को मिलता है जिनका भारतीय क्रिकेट में असाधारण योगदान है।
इस पुरस्कार के अब तक के विजेता इस प्रकार हैं:- 1994: लाला अमरनाथ, 1995: सैयद मुश्ताक अली, 1996: विजय हजारे, 1997: केएन प्रभु, 1998: पीआर उमरीगर, 1999: कर्नल हेमचंद्र अधिकारी, 2000: सुभाष गुप्ते, 2001: मंसूर अली खान पटौदी, 2002: भाउसाहेब निंबलकर, 2003: चंद्रकांत बोर्डे, 2004: बिशन सिंह बेदी, बी. चंद्रशेखर, इरापल्ली प्रसन्ना, एस वेंकटराघवन, 2007: नरीमन कांट्रैक्टर, 2008: गुंडप्पा विश्वनाथ, 2009: मोहिंदर अमरनाथ,  2010: सलीम दुर्रानी, 2011: अजित वाडेकर, 2012: सुनील गावस्कर।

Tuesday, 17 December 2013

शर्मनाक: पांच साल में 500 भारतीय खिलाड़ी डोप परीक्षण में विफल

राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी (नाडा) ने पिछले साढ़े चार साल में जो डोप परीक्षण किए हैं उसमें 500 खिलाड़ी विफल रहे हैं जिसमें अधिकतर भारोत्तोलक और ट्रैक एवं फील्ड खिलाड़ी शामिल हैं।
जनवरी 2009 से जुलाई 2013 तक 500 एथलीटों को देश की प्रमुख डोपिंग रोधी एजेंसी ने डोपिंग रोधी नियमों के उल्लंघन का दोषी पाया है और डोपिंग रोधी अनुशासन पैनल ने इनमें से 423 खिलाड़ियों को सजा सुनाई है। नाडा ने सूचना का अधिकार कानून के तहत डाली गली याचिका के जवाब में यह खुलासा किया है। नाडा द्वारा जारी की गई यह आधिकारिक संख्या कुछ स्तब्ध करने वाले आंकड़ों की तरफ इशारा करती है। नाडा ने आरटीआई के जवाब में कहा, नाडा जनवरी 2009 से प्रभावी हुआ। डोप परीक्षण में जुलाई 2013 तक कुल 500 खिलाड़ी डोपिंग रोधी नियमों के उल्लंघन के दोषी पाए गए हैं। डोपिंग रोधी अनुशासन पैनल ने कुल 423 खिलाड़ियों को सजा सुनाई है। डोपिंग के दोषियों की सूची में एथलीट सबसे ऊपर हैं। नाडा ने कहा, जनवरी 2009 में नाडा के प्रभावी होने के बाद से जनवरी 2009 से जुलाई 2013 तक कुल 14684 डोप नमूने एकत्रित किए गए। नाडा ने पिछले तीन साल में एथलीटों पर 9898 डोप परीक्षण किए। एथलीट 113 डोपिंग उल्लंघन के साथ शीर्ष पर हैं जबकि उनके बाद भारोत्तोलन का नंबर आता है जिसके 92 खिलाड़ी डोपिंग में फंसे।
एथलेटिक महासंघों के अंतरराष्ट्रीय संघ (आईएएएफ) की इस साल अगस्त में जारी रिपोर्ट में खुलासा किया गया था कि डोप उल्लंघन के मामले भारत (43) में दूसरे सर्वाधिक हैं। रूस के सर्वाधिक 44 खिलाड़ी निलम्बित सूची में शामिल हैं। भारत जुलाई तक शीर्ष में था लेकिन निलम्बित एथलीटों की संख्या 52 से 43 हो गई जब आईएएएफ ने नौ खिलाड़ियों से निलंबन हटा दिया। एथलेटिक्स और भारोत्तोलन के अलावा डोपिंग दोषियों की सूची में कबड्डी के 58, बाडीबिल्डिंग के 51, पावर लिफ्टिंग के 42, कुश्ती के 41, मुक्केबाजी के 36 और जूडो के छह खिलाड़ी शामिल हैं। नाडा ने कहा कि उसने 2009 से 2012 के बीच विभिन्न खेलों में डोपिंग के खिलाफ कड़े कदम उठाए।

सिंधू के लिये यादगार रहा साल, खिताब के अकाल से जूझती रही साइना

नयी दिल्ली। साइना नेहवाल इस साल एक भी खिताब नहीं जीत सकी लेकिन नये सितारे के रूप में पीवी सिंधू के उभरने और इंडियन बैडमिंटन लीग की शुरूआत के साथ भारतीय बैडमिंटन ने प्रगति की।
पिछले साल लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर स्टार बनी साइना इस साल फिटनेस समस्याओं और खराब फार्म से जूझती रही। वह इंडोनेशिया, डेनमार्क, स्विट्जरलैंड और थाईलैंड में अपना खिताब बरकरार नहीं रख सकी। इस साल उसकी झोली में एक भी खिताब नहीं आया और वह बीडब्ल्यूएफ रैंकिंग में भी छठे स्थान पर खिसक गई। वह इन टूर्नामेंटों के फाइनल्स में भी नहीं पहुंच सकी। इस साल उसका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन मलेशिया सुपर सीरिज और आल इंग्लैंड सुपर सीरिज प्रीमियर में रहा जहां वह सेमीफाइनल तक पहुंची।  इस बीच सिंधू ने चीन के ग्वांग्झू में विश्व चैम्पियनशिप में एकल वर्ग में पदक जीता और वह इस श्रेय हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला हो गई। इसके अलावा उसने दो ग्रांप्री गोल्ड खिताब जीते। अठारह बरस की सिंधू ने अप्रैल में मलेशिया ग्रांप्री गोल्ड और दिसंबर में मकाउ ग्रांप्री गोल्ड जीता।  पुरुष खिलाड़ियों में पी. कश्यप विश्व रैंकिंग में शीर्ष दस में जगह बनाने वाले पुलेला गोपीचंद के बाद दूसरे खिलाड़ी हो गए।  वह जनवरी में दुनिया के नौवें नंबर के खिलाड़ी बने और छठी रैंकिंग तक पहुंचे हालांकि बाद में शीर्ष 10 से बाहर हो गए। उदीयमान खिलाड़ी के. श्रीकांत ने थाईलैंड ओपन ग्रांप्री गोल्ड जीता जबकि उनके भाई नंदगोपाल ने मालदीव अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन चैलेंज में के. मनीषा के साथ मिश्रित युगल खिताब अपने नाम किया। अगस्त में इंडियन बैडमिंटन लीग की शुरूआत हुई जिसमें श्रीकांत, एचएस प्रणय और अजय जयराम जैसे युवा भारतीयों ने तियेन मिन्ह एंगुयेन और जान ओ जोर्गेसेन जैसे शीर्ष खिलाड़ियों को हराया। आईबीए में साइना बेहतरीन फार्म में थी और उसके अपराजेय अभियान से हैदराबाद हाटशाट्स ने लखनऊ की अवध वारियर्स को हराकर खिताब जीता। इस साल आईबीएल के दौरान कई विवाद भी सामने आये। भारतीय खिलाड़ियों ज्वाला गुट्टा और अश्विनी पोनप्पा की बेसप्राइज नीलामी के दिन घटा दी गई। इसके अलावा दिल्ली स्मैशर्स ने हांगकांग के चोटिल हू युन की जगह आखिरी मिनट में डेनमार्क के जान जोर्गेसेन को शामिल किये जाने के खिलज्ञफ बंगा बीट्स के खिलाफ मैच से पीछे हटने की धमकी दे दी थी। भारतीय बैडमिंटन संघ की अनुशासन समिति ने दिल्ली स्मैशर्स टीम के खिलाड़ियों को मैच नहीं खेलने के लिये उकसाने की कोशिश के कारण ज्वाला पर आजीवन प्रतिबंध की सिफारिश की। बाद में दिल्ली उच्च न्यायालय ने मामला सुलझाया।

चौथे नम्बर पर सचिन ने बनाये 13492 रन, लगाये 44 शतक और 58 अर्धशतक

सचिन तेंदुलकर अपने पदार्पण के बाद से लेकर संन्यास लेने तक जिन 17 टेस्ट मैचों में नहीं खेले उनमें भारत ने केवल चार बल्लेबाजों को इस स्टार बल्लेबाज के पसंदीदा चौथे स्थान पर बल्लेबाजी के लिये भेजा।
भारत कल से दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ दो टेस्ट मैचों की श्रृंखला खेलेगा और सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर जिस चौथे नम्बर पर पिछले दो दशक से भी अधिक समय से तेंदुलकर खेलते रहे, उसकी जिम्मेदारी कौन संभालेगा। भारत की वर्तमान टीम में किसी भी सदस्य को अभी तक टेस्ट मैचों में नंबर चार पर खेलने का अनुभव नहीं है। तेंदुलकर ने अपने पदार्पण के कुछ समय बाद ही भारतीय बल्लेबाजी क्रम में चौथा स्थान अपने नाम पक्का कर दिया था। वह अपने करियर में चोटों या किसी अन्य वजह से केवल 17 टेस्ट मैच नहीं खेल पाये। इन मैचों की 30 पारियों में जो चार बल्लेबाज चौथे नंबर पर खेलने के लिये उतरे उनमें से तीन संन्यास ले चुके हैं जबकि एक अन्य वर्तमान टीम का हिस्सा नहीं है। तेंदुलकर की गैरमौजूदगी में राहुल द्रविड़ सात मैचों की 11 पारियों में चौथे नम्बर पर बल्लेबाजी के लिये आये जिनमें उन्होंने 76.62 की औसत से 613 रन बनाये। सौरव गांगुली ने भी इस तरह के पांच मैचों की आठ पारियों में 75.28 की औसत से 527 रन ठोके। उन्होंने अपने करियर की सर्वोच्च पारी 239 रन भी चौथे नम्बर पर बल्लेबाजी करते हुए खेली।
वीवीएस लक्ष्मण ने तेंदुलकर की अनुपस्थिति में सात मैचों की दस पारियों में चौथे नंबर पर बल्लेबाजी की और 47.60 की औसत से 476 रन बनाये। इन तीनों बल्लेबाजों ने इस दौरान एक एक शतक ठोका। सुरेश रैना वेस्टइंडीज के खिलाफ जुलाई 2011 में रोसेउ में दूसरी पारी में चौथे नंबर पर बल्लेबाजी के लिये उतरे थे जिसमें उन्होंने आठ रन बनाये थे। तेंदुलकर ने अपने करियर में 179 मैचों की 275 पारियां चौथे नम्बर पर बल्लेबाजी करते हुए खेली। इनमें उन्होंने 54.40 की औसत से 13492 रन बनाये जिसमें 44 शतक और 58 शतक दर्ज हैं। तेंदुलकर के पदार्पण के बाद से भारतीय टीम चौथे नंबर पर इस स्टार बल्लेबाज पर कितनी निर्भर रही इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि 15 नवंबर, 1989 (तेंदुलकर के पदार्पण वाला दिन) से लेकर अब तक भारत के जो अन्य खिलाड़ी चौथे नंबर पर बल्लेबाजी के लिये उतरे उन्होंने 89 पारियों में 43.96 की औसत से 3605 रन बनाये। इन बल्लेबाजों ने सात शतक और 19 अर्धशतक भी लगाये। पिछले 20 वर्षों में भारत की तरफ से तेंदुलकर के अलावा केवल गांगुली ही चौथे स्थान पर बल्लेबाजी करते हुए टेस्ट मैचों में 1000 से अधिक रन बना पाये हैं। इस पूर्व भारतीय कप्तान ने इस नंबर पर 16 मैच की 20 पारियों में 66.00 की औसत से 1188 रन बनाये। इनमें से 11 मैच की 12 पारियों में वह तेंदुलकर की मौजूदगी में चौथे नंबर पर बल्लेबाजी के लिये उतरे और इनमें उन्होंने 661 रन बनाये जिसमें दो शतक भी शामिल हैं। तेंदुलकर के पदार्पण के बाद चौथे नंबर पर सर्वाधिक रन बनाने वाले बल्लेबाजों में सचिन और गांगुली के बाद द्रविड (957 रन), लक्ष्मण (500 रन), मोहम्मद अजहरुद्दीन (423 रन) और दिलीप वेंगसरकर (338 रन) का नंबर आता है। अजहर और वेंगसरकर ने अपने सभी रन तेंदुलकर की मौजूदगी में बनाये थे जबकि द्रविड़ ने ऐसे नौ मैच की दस पारियों में 344 रन बनाये थे। तेंदुलकर के रहते हुए लक्ष्मण केवल एक पारी में चौथे नंबर पर बल्लेबाजी के लिये उतरे थे। जिन अन्य खिलाड़ियों ने तेंदुलकर की उपस्थिति में चौथे नंबर पर बल्लेबाजी करने सुख प्राप्त किया उनमें अधिकतर नाइटवाचमैन शामिल हैं। इशांत शर्मा ने तीन पारियों में ऐसी भूमिका निभायी। वेंकटेश प्रसाद, आशीष नेहरा, सुनील जोशी, अनिल कुंबले और अमित मिश्रा भी तेंदुलकर की मौजूदगी में नाइटवाचमैन के रूप में चौथे नंबर पर बल्लेबाजी के लिये उतर चुके हैं। संजय मांजरेकर, नयन मोंगिया, विनोद कांबली, गौतम गंभीर और इरफान पठान को भी तेंदुलकर के टीम में होने के बावजूद एक एक पारी में चौथे नंबर पर बल्लेबाजी का सुख मिला था। हालांकि इनमें से कोई भी बल्लेबाज प्रभावशाली पारी नहीं खेल पाया। भारत की तरफ से यदि चौथे नंबर पर बल्लेबाजी करने वाले बल्लेबाजों के प्रदर्शन पर गौर किया जाए तो तेंदुलकर इस स्थान पर सर्वाधिक रन बनाने वाले बल्लेबाजों में सूची में भारत ही नहीं दुनिया में भी नंबर एक हैं। भारत में उनके बाद गुंडप्पा विश्वनाथ का नंबर आता है जिन्होंने 82 मैचों की 124 पारियों में 43.05 की औसत 5081 रन चौथे नंबर पर बल्लेबाजी करते हुए बनाये। भारत के जिन अन्य बल्लेबाजों ने चौथे नंबर पर बल्लेबाजी करते हुए 1000 से अधिक रन बनाये उनमें वेंगसरकर (2605), विजय मांजरेकर (1714), विजय हजारे (1623) और गांगुली (1188) का नंबर आता है।

Friday, 13 December 2013

गुरूर का ऊंट पहाड़ के नीचे

अपनी पट्टियों और अपने पट्ठों के नायाब प्रदर्शन का दम्भ पाले दक्षिण अफ्रीका गये धोनी के धुरंधरों की धड़कनें बढ़ गई हैं। उनके गुरूर का ऊंट पहाड़ के नीचे आ गया है। धोनी कल तक जिनकी बलैयां ले रहे थे वही तेज और उछाल मारती पट्टियों पर नाकाबिल साबित हुए हैं। टेस्ट क्रिकेट से पूर्व खेली गई फटाफट क्रिकेट में टीम इण्डिया के न गेंदबाज चले और न ही बल्ले से उनके त्रिदेवों ने कमाल दिखाया। कुछ दिन पहले तक घरेलू पट्टियों पर बब्बर शेर की तरह दहाड़ रहे भारतीय जांबाज बल्लेबाजों को दक्षिण अफ्रीकी पट्टियों और उनके पट्ठों के सामने सांप सूंघ गया और उनकी घिग्घी बंध गई है।
उम्मीद है कि मरती नहीं। हर बार की तरह इस बार भी प्रत्येक हिन्दुस्तानी को यकीन था कि धोनी ब्रिगेड दक्षिण अफ्रीकी सरजमीं पर अपने फौलादी प्रदर्शन से 22 साल में पहली बार फटाफट क्रिकेट सीरीज जीतने की अपनी हसरत जरूर पूरी करेगी पर अफसोस उसके धाकड़ बल्लेबाज स्टेन एण्ड कम्पनी की आग उगलती गेंदबाजी के सामने असहाय नजर आये तो हमारे गेंदबाज दक्षिण अफ्रीकी बल्लेबाजों क्विंटन डी कॉक और हाशिम अमला के हमलावर अंदाज पर जरा भी नकेल नहीं डाल सके। विश्व चैम्पियन और दुनिया की नम्बर एक भारतीय टीम की फटाफट क्रिकेट में शिकस्त ने कई सवाल खड़े कर दिये हैं। टीम इण्डिया की अब तक की दुर्गति को देखते हुए नहीं लगता कि दक्षिण अफ्रीकी टेस्ट क्रिकेट में कुछ रहम दिखाएंगे। दक्षिण अफ्रीका में धोनी ब्रिगेड का दौरा जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है, जख्म गहराते ही जा रहे हैं। दक्षिण अफ्रीकी तेज और उछाल भरी पट्टियों पर भारतीय मजबूत बल्लेबाजी की जिस तरह कलई खुली उसकी खूब जगहंसाई हो रही है। तीन मैचों की सीरीज केवांडरर्स पर खेले गये पहले मुकाबले में जहां भारत को 141 रन की करारी शिकस्त मिली वहीं किंग्समीड में उसके जांबाज 136 रन से पस्त हो गये। भला हो बारिश का जिसने सेंचुरियन में भारत को एक और पराजय से बचा लिया। कमजोर गेंदबाजी पर सवालों के साथ शुरू हुए दक्षिण अफ्रीकी दौरे के अधसफर के बाद अब हमारे दबंग बल्लेबाजों पर उंगलियां उठने लगी हैं। अब तक शिखर धवन ने जहां कोई धमाल नहीं मचाया तो विराट कोहली ने भी कोई विराट पारी नहीं खेली है। रोहित शर्मा, सुरेश रैना और युवराज सिंह भी अभी तक अपने बल्लों से इंसाफ नहीं कर पाये हैं। अब तक के भारत के दक्षिण अफ्रीकी दौरे पर नजर डालें तो पहले मुकाबले में हमारे गेंदबाजों के खराब प्रदर्शन का बल्लेबाजों पर दबाव बना लेकिन दूसरे मुकाबले में अपेक्षाकृत धीमी पट्टी पर भारतीय पट्ठे डेल स्टेन के सामने पनाह मांग बैठे और उसके पांच ओवर पूरा होने से पहले ही मैच का नतीजा दीवार पर लिखी इबारत की तरह साफ हो गया। देखा जाए तो दक्षिण अफ्रीकी दौरे से पूर्व टीम इण्डिया के शीर्ष बल्लेबाज पूरे रौ में थे। शिखर धवन, विराट कोहली और रोहित शर्मा ने अपनी पट्टियों पर न केवल खूब चौके-छक्के उड़ाये बल्कि मौजूदा साल में एक हजार रनों का आंकड़ा भी पार कर दिखाया। दुनिया के सर्वश्रेष्ठ दक्षिण अफ्रीकी तेज आक्रमण के सामने हमारे त्रिदेवों को ही नहीं मध्यक्रम के बल्लेबाजों को भी वहां की पट्टियां रास नहीं आर्इं। तेज उछाल वाली पट्टियां भारतीय बल्लेबाजों के लिए हमेशा से ही दु:स्वप्न रही हैं, यही वजह है कि हमारे बल्लेबाजों को हमेशा घरेलू शेर माना गया। टीम इण्डिया जब-जब आस्ट्रेलिया, इंग्लैण्ड या दक्षिण अफ्रीकी दौरे पर जाती है, उसके डरपोक बल्लेबाज एक-एक रन को तरसते हैं।
दक्षिण अफ्रीका में अब तक भारत के पक्ष में शर्मनाक पराजयों के सिवाय कुछ भी हाथ नहीं लगा है। क्विंटन डी कॉक, हाशिम अमला और कप्तान अब्राहम डीविलियर्स ने जहां अपनी धाकड़ बल्लेबाजी से टीम इण्डिया की गेंदबाजी को भोथरा साबित कर दिखाया वहीं 20 साल के नवोदित बल्लेबाज डी कॉक ने लगातार तीन सैकड़े जमाकर 18 दिसम्बर से होनी वाली टेस्ट सीरीज से पहले भारतीय खेमे में खतरे की घण्टी बजा दी है। डी कॉक जहां सैकड़े पर सैकड़े उड़ा रहा है वहीं हमारे कागजी फौलादी बल्लेबाज दक्षिण अफ्रीकी खौफजदा गेंदबाजी के सामने थर-थर कांप रहे हैं। दक्षिण अफ्रीकी तेज गेंदबाजों के डर का आलम यह है कि फटाफट क्रिकेट के दो मुकाबलों में रोहित शर्मा 37, शिखर धवन 12, विराट कोहली 31, सुरेश रैना 50, रविन्द्र जड़ेजा 55 और चतुर चालाक महेन्द्र सिंह धोनी 84 रन ही बना सके। इसे दुर्भाग्य कहें या कुछ और दक्षिण अफ्रीकी युवा बल्लेबाज क्विंटन डी कॉक की ताबड़तोड़ बल्लेबाजी पर हमारे गेंदबाज अंकुश नहीं लगा सके हैं। डी कॉक ने जोहांसबर्ग में 135, डरबन में 106 और सेंचुरियन में 101 रन की शतकीय पारियां खेलकर भारतीय गेंदबाजों को उनकी औकात बता दी। विकेटकीपर बल्लेबाज डी कॉक सीरीज में लगातार तीन शतक और 342 रन बनाकर जहां जहीर अब्बास, सईद अनवर, हर्शल गिब्स और अब्राहम डीविलियर्स की जमात में खड़ा हो गया वहीं टीम इण्डिया के सभी बल्लेबाज फटाफट क्रिकेट के दो मुकाबलों में कुल जमा 363 रन ही बना सके। कुछ दिन पहले की ही बात है जब यही टीम इण्डिया अपनी पट्टियों पर हर मुकाबले में तीन सौ से अधिक रन बना रही थी लेकिन दक्षिण अफ्रीका में वह अकेले डी कॉक से हार गई। शांत चेहरा, सौम्य स्वभाव और तेजतर्रार बल्लेबाजी करने वाले डी कॉक ने न केवल दक्षिण अफ्रीका को फटाफट सीरीज जिता दी बल्कि हर किसी का दिल भी जीत लिया। सीरीज के तीन मैचों में 114 की औसत से 342 रन बनाने वाले क्विंटन डी कॉक ने सीरीज में 36 चौके और पांच छक्के उड़ाये। इस दौरान उसका स्ट्राइक रेट 95.26 रहा। जाहिर तौर पर नम्बर वन टीम के खिलाफ फटाफट सीरीज में इस प्रकार का प्रहार दक्षिण अफ्रीकी चयनकर्ताओं को इतना बताने के लिए काफी है कि डी कॉक लम्बी रेस का घोड़ा है और धोनी सेना को यह संदेश देने के लिए कि अब आंखें खोलने का समय है, क्योंकि गद्दी रुतबे की नहीं, प्रदर्शन की मोहताज होती है जोकि टीम इण्डिया फटाफट क्रिकेट में नहीं कर सकी। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टेस्ट क्रिकेट में भी भारत की स्थिति कुछ खास अच्छी नहीं है। इन दोनों देशों के बीच अब तक खेले गये 42 टेस्टों में भारत को नौ में जीत तो 19 में पराजय से दो-चार होना पड़ा है। 14 टेस्ट बराबरी पर छूटे हैं। दक्षिण अफ्रीकी सरजमीं पर तो भारतीय रिकॉर्ड  और भी खराब है। यहां खेले गये 15 टेस्टों में भारत सिर्फ दो टेस्ट जीता है जबकि उसे सात में पराजय स्वीकारनी पड़ी है।

Monday, 9 December 2013

रामलला हम आएंगे...!

हर चुनावी महासमर से पहले कमल दल ही नहीं बल्कि मुल्क की आम आवाम के जेहन में रामलला को लेकर उथल-पुथल सी मचने लगती है। भगवान राम सबके हैं यह बात जानते हुए भी भारतीय जनता पार्टी सहित अन्य राजनीतिक दल भी इस मामले पर सियासत करने से बाज नहीं आते। राम नाम जनभावना से जुड़ा मसला है उसे चाहकर भी खारिज नहीं किया जा सकता। जो भाजपा 1986 से 1992 तक रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे का राग अलाप रही थी, वह भी अब सत्ता सुख के लिए राम नाम से परहेज करती दिख रही है। वजह साफ है, जिस देश की 60 फीसदी से अधिक आबादी 40 साल से कम उम्र की हो उसके लिए जाहिरतौर पर रामलला मंदिर से कहीं अधिक शिक्षा मंदिरों की दरकार है। आज मुल्क में बेरोजगारी चरम पर है। ऐसे में युवा वर्ग को नौकरी चाहिए,आगे बढ़ने के मौके चाहिए और एक ऐसा माहौल चाहिए जो मंदिर-मस्जिद की लड़ाई से परे हो।
भाजपा मुल्क के युवाओं का मन भांप चुकी है यही वजह है कि उसके कट्टरपंथियों को छोड़कर अधिकांश लोग राम नाम को अपने एजेण्डे से दूर मानने लगे हैं। भाजपा ने मुल्क में राम नाम की जो आग 1992 में लगाई थी, सत्ता मिलते ही उसे बिसर गई। कमल दल को अपनी वादाखिलाफी की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है। राम नाम से छल करने के चलते ही उसका जनाधार अर्श से फर्श पर आ गिरा है। जहां तक राम मंदिर की बात है, इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच का फैसला आ चुका है। कोर्ट मान चुका है कि राम लला अयोध्या में ही विराजमान हैं और मंदिर के ऊपर मस्जिद बनाई गयी थी। जन्म स्थान की 2.7 एकड़ जमीन निर्मोही अखाड़ा, सुन्नी वक्फ बोर्ड और रामलला के बीच एक-एक तिहाई करके बांटी गयी है। निर्मोही अखाड़े के हिस्से राम चबूतरा और सीता रसोई आई है। भीतरी हिस्से पर हिन्दू और मुस्लिम दोनों का हक कोर्ट ने बताया है। इस फैसले को सुन्नी बोर्ड और राम जन्म भूमि न्यास ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे रखी है। जाहिर है कि अंतिम फैसला सुप्रीम कोर्ट में होना है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला कब आयेगा कहना मुश्किल है पर जन भावना के इस मुद्दे पर कोर्ट के बाहर दोस्ताना फैसले की जो कोशिशें चल रही हैं, उनमें भी कोई हर्ज नहीं है।
भाजपा के राम मंदिर मसले पर बैकफुट होने के अपने निहितार्थ हैं। उसे पता है कि अब लोगों को राम मंदिर के नाम पर मतदान बूथों तक नहीं लाया जा सकता। राम नाम का जादू हिन्दीभाषी राज्यों में तो कारगर हो सकता है लेकिन अन्य राज्यों में तो उसे कमल खिलाने के लिए विकास की ही अलख जगानी होगी। भाजपा को मालूम है कि राम के बिना उसका काम कभी नहीं पूरा हो सकता। पिछले एक दशक में कमल दल की राम नाम की भूल ने ही उसके बढ़ते जनाधार को जबर्दस्त ठेस पहुंचाई है। पांच राज्यों के चुनाव नतीजे आने में महज कुछ घण्टे शेष बचे हैं। मीडिया रिपोर्टें चार राज्यों में कमल खिला रही हैं। ऐसे में देश की सल्तनत के लिए भाजपा को राम मंदिर मुद्दा संघ और संतों पर छोड़ना ही हितकारी दिख रहा है। देखा जाये तो भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार और कठोर हिन्दुत्व के पहरुआ नरेन्द्र मोदी भी नहीं चाहते कि मुल्क की आवाम को धोखे में रखा जाये। यही वजह है कि वे इलाहाबाद के कुम्भ तक में नहीं गये क्योंकि वहां संतों की धर्म संसद चल रही थी। इतना ही नहीं उन्होंने अयोध्या की यात्रा से भी परहेज किया। मोदी जहां-जहां जा रहे हैं, उनको सुनने लाखों लोग अपना काम-धाम छोड़कर आ रहे हैं। अब तक मोदी ने जितनी भी सभाएं सम्बोधित की हैं उनमें उन्होंने हिन्दुत्व से परे गुजरात मॉडल के विकास को ही फोकस किया है और लोगों को मोदी का विकास एजेण्डा खूब भा रहा है।
भाजपा को यदि लोकसभा 2014 का महासमर फतह करना है तो उसे हिन्दीभाषी राज्यों में अधिक से अधिक सफलता हासिल करनी होगी। देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की बात करें तो फिलहाल कमल दल सपा और बसपा से भी पीछे है। भाजपा आगत लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में 50 से 60 सीटें जीतने का लक्ष्य सामने रखे है, पर सवाल यह उठता है कि वह मुलायम और माया के वोट बैंक में सेंध लगाएगी भी तो कैसे? उत्तर प्रदेश के चुनाव प्रभारी अमित शाह और विनय कटियार जैसे हिन्दुत्व के पहरुआ यदि राम मंदिर का राग अलाप भी रहे हैं तो उसकी वजह है। दरअसल भाजपा में ऐसे लोगों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से ऊर्जा मिलती है। अटलकाल में जो संघ पर्दे के पीछे अपना खेल खेलता था वही आज सियासत में खुलकर सामने है। भाजपा की आंतरिक मजबूती में संघ के दखल और उसके योगदान को सहजता से नहीं बिसराया जा सकता। यही वजह है कि संघ कुछ समय से भाजपा के अंत:पुर में तेजी से सक्रिय हुआ है। मोदी के उत्थान और आडवाणी के पतन को राजनीतिक वीथिका में लोग किसी भी नजर से देखें पर संघ केलिए यह दोनों ही पुरोधा महत्वपूर्ण हैं। सच तो यह है कि संघ ने अब बाहर से राय देने का अपना चोला उतार दिया है। उसे लगता है कि सत्ता में टिकी कांग्रेस को बेदखल करने का इससे अच्छा मौका अब शायद ही मिले, यही वजह है कि उसने आडवाणी की जगह मोदी को देश की राजगद्दी हासिल करने को आगे किया है। मोदी को आगे करने के बाद भी संघ को आडवाणी की भी जरूरत है। संघ जानता है कि कट्टर हिन्दुत्व के हिमायती यदि नरेन्द्र मोदी को चाहते हैं तो गठबंधन के इस युग में लालकृष्ण आडवाणी भाजपा से इतर दूसरे दलों में सबसे लोकप्रिय हैं। संघ और संत के भरोसे सत्ता वापसी को तैयार भाजपा को पता है कि यदि वह राम लला को याद करती है तो इससे सवर्ण और उदारवादी हिन्दू उससे अलग हो सकते हैं। यह खतरा उत्तर प्रदेश की 80 में से 60 सीटों पर साफ दिखाई देता है। भाजपा की कट्टरता शहरी मध्यम वर्ग को भी बिदका सकती है, जो व्यवस्था बदलने के नाम पर मोदी को अगले प्रधानमंत्री के रूप में देख रहा है। सच्चाई यह है कि रामलला के मसले पर भाजपा नौ दिन चले अढ़ाई कोस की तर्ज पर चल रही है।

Saturday, 30 November 2013

आन-बान-शान का अपमान

तिरंगा झण्डा हमारे देश की सम्प्रभुता ही नहीं उसकी आन-बान और शान का प्रतीक है, मगर आजादी के 66 साल बाद भी हम अपने समाज को तिरंगे की महत्ता व उसके स्वाभिमान से अवगत कराने में नाकारा साबित हुए हैं। जहां तक तिरंगे के अपमान की बात है मुल्क में इसके अनगिनत उदाहरण हैं। तिरंगे के अपमान के जितने मामले सामने आये उनमें किसी को कोई सजा नहीं हुई। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। यह बात हर राजनीतिज्ञ और देश की आवाम मानती है पर कश्मीर के क्रियाकलापों पर नजर डालें तो लगता ही नहीं कि यह हमारा स्वर्ण मुकुट है। कश्मीर में चल रही हैदर की शूटिंग में कुछ अराजक तत्वों द्वारा तिरंगा नहीं फहराने दिया गया। चन्द विश्वविद्यालयीन छात्रों के विरोध का प्रतिकार करने की बजाय तिरंगा उतार लिया जाना हमारी सल्तनतों के मानसिक दब्बूपन का ही सूचक है।
अब सवाल यह उठता है कि कश्मीर में तिरंगे के साथ जो हुआ उसमें हमारी केन्द्र और कश्मीर सरकार ने क्या कदम उठाए? केन्द्र सरकार प्रतिवर्ष कश्मीर की सुरक्षा व्यवस्था पर अरबों रुपये पानी की तरह बहाती है लेकिन कभी सैनिकों के सर कलम कर दिये जाते हैं तो कभी तिरंगे के स्वाभिमान को चोट पहुंचती है। इतना सब होने के बाद भी कश्मीर हमारा है, यह हमें जान से प्यारा है, यह मानसिकता वहां के लोगों में आज तक हम पैदा क्यों नहीं कर सके? सवाल अकेले कश्मीर का नहीं है तिरंगे के अपमान की कई कारगुजारियां हमारी सरकारों को बार-बार मुंह चिढ़ाती रही हैं। दुर्भाग्य की बात है कि तिरंगे के अपमान के भूलवश वाक्यों में तो हमारे राजनीतिज्ञ खूब हायतौबा मचाते हैं लेकिन जान-बूझकर तिरंगे का अपमान और उसका सरेराह फूंका जाना किसी को नजर नहीं आता।
दरअसल, हम आजादी के 66 साल बाद भी में देश की आवाम के मन में तिरंगे के प्रति सम्मान की भावना नहीं ला सके हैं। निश्चय ही इस स्वाभिमान से जुड़े मसले पर हमारी सल्तनतों में कहीं न कहीं कोई कमी जरूर है। देखा जाए तो तिरंगे के अपमान पर सारा का सारा दोष केन्द्र सरकार पर मढ़ दिया जाता है, जबकि तिरंगे के स्वाभिमान की हिफाजत की जवाबदेही सभी राज्य सरकारों सहित हम सबकी है। हमें इसके लिए न केवल दूरगामी और साहसपूर्ण कदम उठाने होंगे बल्कि अपने अंतस में एक शक्तिशाली, मानवीय और दृढ़ मानसिकता लानी होगी। जाने-माने निर्माता-निर्देशक व संगीतकार विशाल भारद्वाज की फिल्म हैदर की श्रीनगर में चल रही शूटिंग के दौरान तिरंगा लहराने और शूटिंग करने पर विश्वविद्यालय के छात्रों ने न केवल हंगामा बरपाया बल्कि इन बिगड़ैलों ने मुल्क के खिलाफ नारे भी लगाए। अब सवाल यह उठता है कि श्रीनगर में फिल्म की शूटिंग में तिरंगा फहराना क्यों मुहाल हुआ?
इस वाक्ये से हमारी सल्तनतों और हमारी सम्प्रभुता पर कई सवाल खड़े होते हैं। इन कश्मीरी बिगड़ैलों का यह हंगामा सिर्फ हंगामा नहीं बल्कि देशद्रोह का मामला है। इस अक्षम्य हरकत पर हमारी सरकारों की मूकदर्शिता दयनीय स्थिति का ही परिचायक है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर मुल्क की सल्तनतें कुछ मुट्ठी भर लोगों के सामने इतनी दयनीय क्यों होती जा रही हैं? हमारे इस दब्बूपन से क्या एक देश की सीमाएं, उनकी शुतुरमुर्गी मानसिकता से बची रह सकती हैं? तिरंगे का यह अपमान क्या देश के सम्मान को ठेस नहीं है? दरअसल, यह पूरा का पूरा प्रकरण सम्प्रभु नागरिकों की मानसिकता को आहत करने वाला है। सरकार को जो भी सम्भव हो इसके लिए कठोर कदम उठाने चाहिए। किसी शक्तिशाली राष्ट्र के लिए जरूरी है कि वह अपनी आन-बान-शान से कोई समझौता न करे। कोई भी राष्ट्र अपनी शक्ति से ही पहचाना जाता है। तिरंगे के अपमान पर आंखें चुराने की यह मानसिकता देश के लिए दूरगामी तौर पर नुकसानदायक साबित हो सकती है। हमारे ही देश में ऐसे लोग क्यों हैं, जोकि यहां खुशहाल जीवन बसर करते हुए भी पाकिस्तान की मुखालफत करते हैं। एक सक्षम देश के लिए मानवीयता का सम्मान करना जहां उसका दायित्व है वहीं अपराध और देशद्रोह का पूरी ताकत के साथ प्रतिकार करना उसका नैतिक अधिकार है।
कश्मीर में हैदर फिल्म की शूटिंग के दौरान जो हुआ उसे सहजता से बिसराया नहीं जा सकता। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है बावजूद वहां जब-तब  कश्मीर की आजादी और पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाए जाते हैं। कश्मीर तो कश्मीर हैदराबाद सहित मुल्क के अन्य शहरों में भी पाकिस्तानपरस्त लोग प्राय: तिरंगे को आग के हवाले करते देखे गये पर हमारी डरपोक हुकूमतें हमेशा स्वाभिमान के इस मसले पर कार्रवाई करने की बजाय चुप्पी साध लेती हैं। दरअसल, जब तक मुल्क में राजनीतिज्ञ जातिवाद की अलख जगाते हुए वोट बैंक की राजनीति करते रहेंगे हमारी आवाम को अपने स्वाभिमान से बार-बार समझौता करना ही पड़ेगा। एक जाति विशेष के लोगों का तिरंगे के प्रति नफरत रखना अखण्ड भारत के लिए शुभ संकेत नहीं कहा जा सकता। मुल्क के भीतर इस नफरत को समय रहते खत्म नहीं किया गया तो सच मानिये देश एक और विभाजन की तरफ बढ़ जाएगा, जोकि हिन्दुस्तान के लिए काला अध्याय साबित होगा। हमारी सल्तनतों को ऐसे फिरकापरस्त लोगों पर नकेल डालनी ही होगी वरना मुल्क के स्वाभिमान को पहुंचाई जा रही ये छोटी-छोटी चोटें एक दिन नासूर का रूप ले लेंगी। 

Saturday, 23 November 2013

पड़ोसी राज्यों में सपा का इम्तिहान

मध्य प्रदेश और राजस्थान की सल्तनत का फैसला तो आठ दिसम्बर को सुनाया जाएगा पर उससे पहले मतदाताओं ने अपना फैसला सुनाने का मन बना लिया है। इस बार चुनाव आयोग की शक्ति जहां राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों के चुनाव पूर्व हथकण्डों पर भारी पड़ी वहीं राजनीतिक विशेषज्ञों के आकलन भी धरे के धरे रह गये। इन दोनों सूबों में प्रमुख मुकाबला भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच ही होता दिख रहा है, पर आगामी लोकसभा चुनावों से पहले इन दोनों राज्यों में समाजवादी पार्टी भी अपनी ताकत का आकलन पुरजोर तरीके से कर रही है। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को भरोसा है
कि उत्तर प्रदेश से सटे इन दोनों ही राज्यों में उनकी पार्टी बीते विधान सभा चुनावों से बेहतर प्रदर्शन करेगी।
देश की सल्तनत के लिए समाजवादी पार्टी वर्तमान नही बल्कि भविष्य देख रही है। इसी गरज से उसने मध्य प्रदेश और राजस्थान में तीसरे मोर्चे का गठन किया है।  इन दोनों राज्यों के विधान सभा चुनावों में तीसरे मोर्चे का क्या हश्र होगा यह तो समय बताएगा पर तीसरा मोर्चा यदि अपने मकसद में कामयाब हुआ तो आगामी लोकसभा चुनाव काफी पेंचीदा हो जाएगा। मध्य प्रदेश और राजस्थान में समाजवादी पार्टी ने अलग-अलग दलों से गठबंधन और सीटों का बंटवारा किया है। राजस्थान में समाजवादी पार्टी जनता दल (यू), जनता दल (एस), सीपीआई और सीपीएम के साथ गठबंधन कर 200 में से 50 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। पिछले चुनाव में ये सभी दल अलग-अलग चुनाव लड़े थे। 2008 में समाजवादी पार्टी को एक, जनता दल (यू) को एक और सीपीएम को तीन सीटें मिली थीं।
देखा जाए तो समाजवादी पार्टी लम्बे समय से राजस्थान में अपना जनाधार बढ़ाने की जुगत में है। अपनी प्राथमिक शिक्षा का धौलपुर से श्रीगणेश करने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का भी राजस्थान से दिली लगाव है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद से वह कई बार राजस्थान का दौरा कर चुके हैं। जो भी हो राजस्थान की सियासत फिलहाल कांग्रेस और भाजपा के बीच ही चल रही है। मौजूदा विधान सभा चुनावों में सियासत का ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो समय बतायेगा पर इन चुनावों में तीसरे मोेर्चे की उम्मीदों को जिस तरह पर लगे हैं उससे कांग्रेस और भाजपा की दाल में कंकड़ परड़ने से इंकार नहीं किया जा सकता।
राजस्थान से इतर समाजवादी पार्टी ने मध्य प्रदेश में सीपीआई, सीपीएम और समानता दल से गठबंधन किया है जबकि रिपब्लिकन पार्टी आॅफ इंडिया मोर्च को बाहर से समर्थन कर रही है। मध्य प्रदेश में 25 नवम्बर को होने जा रहे विधान सभा चुनाव में 67 दलों के 2583 प्रत्याशी 230 सीटों के लिए मशक्कत कर रहे हैं। सत्तासीन भाजपा जहां सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है वहीं कांग्रेस 229 सीटों पर अपना भाग्य आजमा रही है। बहुजन समाज पार्टी 227 तो समाजवादी पार्टी 164 सीटों पर ताल ठोक रही है। मध्य प्रदेश सपा अध्यक्ष गौरीशंकर यादव को भरोसा है कि इस बार उनकी पार्टी पिछले चुनाव से बेहतर प्रदर्शन करेगी। मध्य प्रदेश में 2008 के विधान सभा चुनावों में समाजवादी पार्टी 187 सीटों पर चुनाव लड़ी थी जिसमें उसे केवल निवाड़ी में सफलता मिली थी। तब मीरा यादव ने समाजवादी पार्टी का जीत का खाता खोला था।
देखा जाए तो इस बार के चुनावों में सपा ने राजस्थान और मध्य प्रदेश में जातीय गणित और वोटों को ध्यान में रखकर मोर्चा बनाया है। राजस्थान और मध्य प्रदेश में सपा के पास एक-एक सीट थी। इस बार जिस तरह कांग्रेस और भाजपा के असंतुष्ट भितरघात कर रहे हैं उसे देखते हुए अगर सारे जातीय समीकरण और वोट मिल जाते हैं तो इन दोनों राज्यों में तीसरे मोर्चे को कुछ हद तक संजीवनी मिल सकती है। राजस्थान में समाजवादी पार्टी ने मुस्लिम और जनजातियों को अपने वोट का आधार बनाते हुए जहां उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं वहीं मध्य प्रदेश में मुस्लिम, जनजाति, यादव और दलित वोटों पर फोकस किया है, एमपी में उसका यह काम आसान नहीं लगता। हां, इस बार सपा ग्वालियर चम्बल सम्भाग की कुछ सीटों खासकर भिण्ड में अपना जनाधार बढ़ा सकती है। मध्य प्रदेश में पिछली बार समाजवादी पार्टी 187 सीटों पर चुनाव लड़ी थी जिसमें 183 सीटों पर उसके प्रत्याशियों की जमानत तक जब्त हो गई थी और उसे केवल 1.99 फीसदी वोट ही मिले थे।  इस बार सपा की सीटों और जनाधार में इजाफा होने से इंकार नहीं किया जा सकता।  सपा की प्रमुख प्रतिद्वन्द्वी बहुजन समाज पार्टी से तुलना की जाए तो पिछले चुनाव में उसे ज्यादा वोट और सीटें मिली थीं। बसपा मध्य प्रदेश में पिछली बार 228 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और सात सीटों पर परचम लहराते हुए 8.97 फीसदी वोट कबाड़े थे। इस बार भी बहुजन समाज पार्टी बेहतर स्थिति में है। वह मौजूदा चुनावों में अपने जीत का आंकड़ा दो अंकों में कर सकती है।

Saturday, 16 November 2013

दोस्तों मैं चला...

अपने तेज, वेग और चमत्कारिक खेल से 24 साल तक क्रिकेट को गौरवान्वित करने वाले सचिन तेंदुलकर आज से अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धी क्रिकेट में कभी नहीं खेलेंगे। टीम इण्डिया ने उनकी मंशानुरूप उन्हें आज उनके ही गृह शहर में विजयी रथ से विदा किया। सचिन के इस शाही संन्यास के बाद क्रिकेट मुरीद महानतम सचिन का अश्क दूसरे खिलाड़ियों में जरूर खोजेंगे पर सूर्य सा तेज और वायु सा वेग हर किसी में शायद ही मिले। शिद्दत से 24 साल तक अपने मुरीदों के दिलों पर राज करने वाला यह खिलाड़ी तो रहेगा पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धी क्रिकेट उसके नायाब खेल की कसक जरूर महसूस करेगी।
आज क्रिकेट से बेशुमार मोहब्बत करने वाले हर शख्स के मन में सचिन के संन्यास की पीड़ा है। कल जिन्होंने उनकी 74 रनों की पारी देखी उनके मन में एक टीस है कि काश यह जीनियस कुछ साल और खेलता। दुनिया भर की तमाम समझदारी का साझा सच यही है कि अब क्रिकेट तो रहेगी पर सचिन सा अनमोल हीरा नहीं होगा। सचिन जब भी बल्लेबाजी करने के लिए उतरे उन पर करोड़ों लोगों की उम्मीदों और आशाओं का बोझ रहा। मुम्बई में भी ऐसा ही था। अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धी क्रिकेट में 24 साल तक अपने शानदार खेल का आगाज और शतकों का शतक तथा 34000 से अधिक रन बनाना हंसी खेल नहीं है। लोगों को बहुत समय तक याद नहीं रहता पर सचिन की चपलता, अपर कट और उसके दर्शनीय स्ट्रेट ड्राइव लोगों के जेहन में जरूर होंगे। अगर हम सचिन को क्रिकेट का भगवान मानते रहे हैं, अगर हम यह मानते हैं कि क्रिकेट इतिहास में वह दुर्लभ जीनियस हैं और इतिहास के पन्नों में हमेशा अजर अमर रहेंगे तो हमें इस नटवर नागर को दिल से सलाम करते हुए इस दुर्लभ संयोग का आनंद लेना चाहिए। 

हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है, बड़ी मुश्किल से होता है चमन में सचिन सा दीदावर पैदा

क्रिकेट को मजहब और उन्हें खुदा मानने वाले देश में एक अरब से अधिक क्रिकेटप्रेमियों की अपेक्षाओं का बोझ भी कभी सचिन तेंदुलकर को उनके लक्ष्य से विचलित नहीं कर सका और ऐसा उनका आभामंडल रहा कि कैरियर की आखिरी पारी तक भारत ही नहीं दुनिया की नजरें उनके बल्ले पर गड़ी रहीं।
मुंबई में अपने 200वें और आखिरी टेस्ट के बाद तेंदुलकर महान खिलाड़ियों की जमात से भी ऊपर उठ गए। क्रिकेट खुशकिस्मत रहा कि उसे तेंदुलकर जैसा खिलाड़ी मिला जिसने न सिर्फ समूची पीढ़ी को प्रेरित किया बल्कि उसके इर्द-गिर्द क्रिकेट प्रशासकों ने करोड़ों कमाई करने वाला एक उद्योग स्थापित कर डाला। चौबीस बरस तक सचिन ने जिस सहजता से अपेक्षाओं का बोझ ढोया, उससे सवाल उठने लगे थे कि वह इंसान हैं या कुछ और। पूरे कैरियर में एक भी गलतबयानी नहीं, मैदान के भीतर या बाहर कोई विवाद नहीं, शर्मिंदगी का एक पल नहीं। तेंदुलकर एक संत से कम नहीं रहे जिन्होंने अपनी विनम्रता से युवा पीढ़ी के क्रिकेटरों को सिखाया कि शोहरत और दबाव का सामना कैसे करते हैं। सिर्फ 16 बरस की उम्र में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में उतरे सचिन का सामना चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान से पहले ही कदम पर हुआ। वसीम अकरम और वकार युनूस के सामने उन्होंने जिस परिपक्वता का परिचय दिया, क्रिकेट पंडितों को इल्म हो गया कि एक महान खिलाड़ी का पदार्पण कर चुका है।
दुनिया ने सचिन की शख्सियत का एक और पहलू देखा जब 1999 विश्व कप के दौरान अपने पिता की मौत के शोक में डूबे होने के बावजूद उन्होंने अंतिम संस्कार के बाद लौटकर कीनिया के खिलाफ शतक जड़ा। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 100 शतक जड़ने वाले एकमात्र बल्लेबाज सचिन को डान ब्रैडमैन के बाद सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटर के रूप में याद रखा जायेगा। बतौर कप्तान वह कामयाब नहीं रहे और वह ऐसा दौर था जब बल्लेबाजी का दारोमदार उन पर इस हद तक था कि उनके आउट होने को भारतीय पारी का अंत माना जाता था। पिछले साल इंग्लैंड के खिलाफ वह खराब फार्म में थे और आस्ट्रेलिया के दौरे पर भी अपेक्षाओं का बोझ उन पर बढ़ गया। लेकिन सचिन ने आत्मविश्वास की नयी परिभाषा गढ़ते हुए सुनिश्चित किया कि अपने घरेलू दर्शकों के सामने अपनी शर्तों पर क्रिकेट को अलविदा कहें। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण से काफी पहले तेंदुलकर ने 1988 में लार्ड हैरिस शील्ड अंतर विद्यालय मैच में विनोद कांबली के साथ 664 रन की साझेदारी करके अपनी प्रतिभा की बानगी पेश कर दी थी। उन्होंने पहला टेस्ट शतक 1990 में इंग्लैंड में लगाया। इसके बाद उन्होंने ब््राायन लारा के सर्वोच्च टेस्ट पारी (नाबाद 400) और सर्वोच्च प्रथम श्रेणी स्कोर (नाबाद 501) को छोड़कर बल्लेबाजी के सारे रिकार्ड ध्वस्त कर दिये। वनडे क्रिकेट में दोहरा शतक जड़ने वाले भी वह पहले बल्लेबाज थे। उन्होंने फरवरी 2010 में ग्वालियर में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ यह कमाल किया। 

गरीब नहीं, गरीबी दूर हो

एक तरफ राजनीतिक दल सल्तनत की खातिर गरीबों से महंगाई और भुखमरी दूर करने के बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं तो दूसरी तरफ महंगाई सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती ही जा रही है। मुल्क में महंगाई का आलम यह है कि अब गरीब ही नहीं मध्यम वर्ग भी त्राहिमाम-त्राहिमाम करने लगा है। ताजा आंकड़ों पर नजर डालें तो खुदरा कीमतों पर आधारित महंगाई दर अक्टूबर में 10.09 फीसद पर पहुंच गई। बीते अगस्त और सितम्बर महीनों में भी महंगाई में कोई राहत की स्थिति नहीं थी, तब यह आंकड़ा साढ़े नौ फीसद से ऊपर था। पिछले सात महीनों में पहली बार हुआ कि खुदरा महंगाई की दर दो अंकों की शर्मनाक स्थिति में जा पहुंची है। महंगाई की मौजूदा स्थिति को देखें तो यह सबसे ज्यादा खाने-पीने की वस्तुओं पर असरकारक रही है। गलाकाट महंगाई की तपिश कल तक जिन लोगों को हलाकान नहीं कर रही थी, अब उन लोगों के लिए भी घर खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है। अगर खानपान की मूल्यवृद्धि को हिसाब में लें तो इनका महंगाई ग्राफ साढ़े बारह फीसद के भी ऊपर जा पहुंचा है। महंगाई की सबसे बड़ी मार साग-सब्जियों और फलों के दामों में हुई है। यह आंकड़ा पिछले साल के मुकाबले पैंतालीस फीसद अधिक है।
सरकार महंगाई को दूर भगाने का राग तो अलापती है, पर सात महीने में आमजन को इससे निजात मिलना तो दूर क्षणिक राहत भी नहीं मिली है। सवाल यह उठता है कि  क्या देश में महंगाई की यह स्थिति स्वाभाविक है और इसे नियति के रूप में स्वीकार कर लिया जाना चाहिए? केन्द्र में काबिज कांग्रेस महंगाई के लिए ओड़िसा, बंगाल और आंध्र प्रदेश में हाल में आए तूफानों की लाख दलील दे पर देखें तो इसका आंशिक असर ही रहा है। सात महीने पहले मुल्क में कोई आंधी-तूफान और बवंडर नहीं आया था फिर भी महंगाई दर सातवें आसमान पर ही रही है। दरअसल, मुल्क में महंगाई का काला सच यह है कि सरकार जमाखोरी और कालाबाजारी पर नकेल कसने में पूरी तरह से विफल है। मौजूदा महंगाई की सबसे बड़ी वजह ही जमाखोरी और कालाबाजारी है। देश में खानपान सामग्री में महंगाई का एक दूसरा पहलू कुप्रबंधन और आपूर्ति की खामियों का भी है। देखा जाए तो हर साल देश में हजारों करोड़ रुपए के फल और सब्जियां रखरखाव के अभाव में बर्बाद हो जाते हैं।
गलाकाट महंगाई को कालाबाजारी और जमाखोरी के अलावा वायदा बाजार ने भी मुश्किल में डाला है। इसे दुर्भाग्य कहें या कुछ और सरकार वायदा बाजार पर लगाम लगाना तो दूर, इस बारे में कभी विचार करने को भी तैयार नहीं हुई। थोक और खुदरा कीमतों के अंतराल को कैसे तर्कसंगत बनाया जाए यह भी सरकार के लिए कोई विचारणीय मुद्दा नहीं लगता। फिलवक्त देश में खाद्य पदार्थों के साथ-साथ अन्य उत्पादों और सेवाओं की कीमतों में भी बेतहाशा वृद्धि हुई है। एक तरफ महंगाई आमजन का जीना मुश्किल कर रही है तो दूसरी तरफ केन्द्र में काबिज कांग्रेस पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की चुनावी रैलियों में गरीब परवरदिगारों को गरीबी दूर भगाने का झूठा भरोसा देती दिख रही है। गरीबों पर महंगाई की चौतरफा मार यूपीए के लिए गहरी चिन्ता का सबब होना चाहिए पर सत्ता में बैठे लोग सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक नफा-नुकसान पर ही गम्भीर हैं। केन्द्र में सत्तासीन कांग्रेस ही नहीं प्रमुख विपक्षी कमल दल भी मुल्क में महंगाई से उपजे जन असंतोष का राजनीतिक लाभ तो लेना चाहता है, पर उसके पास भी महंगाई से निपटने की कोई ठोस कार्ययोजना नहीं दिखती।
देखा जाए तो आजादी के बाद से ही राजनीतिक दलों द्वारा हिन्दुस्तान से गरीबी और भुखमरी मिटाने के बड़े-बड़े सब्जबाग दिखाए जाते रहे हैं पर मुल्क से गरीबी दूर होने के बजाय गरीब जरूर असमय काल के गाल में समा गये। बेहतर होता सभी राजनीतिक दल महंगाई के इस दंश को लोकसभा चुनाव से पहले बेअसर करने के साझा प्रयास करते और गरीब नहीं गरीबी दूर करने का संकल्प लेते, पर अफसोस कोई भी दल एक-दूसरे को नीचा दिखाने के सिवाय भूखे पेटों को भरने पर बात करने को तैयार नहीं है। देश का गरीब और मध्यम वर्ग जहां महंगाई से आहत राहत मांग रहा है वहीं राजनीतिक दल नंगानाच दिखा रहे हैं। देखा जाए तो मुल्क में जब भी महंगाई का संकट आता है लोग रिजर्व बैंक से बड़ी-बड़ी उम्मीदें करने लगते हैं लेकिन सच यह है उसकी मौद्रिक कवायद गलाकाट महंगाई पर आसानी से काबू नहीं पा सकती।
कांग्रेस ने चुनावी वैतरणी पार करने की खातिर बेशक देश में महंगाई, बढ़ती बेरोजगारी और दीगर असमानताओं को लेकर उपजे जनाक्रोश को शांत करने के लिए पहले रोजगार गारंटी योजना और उसके बाद खाद्य सुरक्षा कानून का झुनझुना थमाने का चालाकीपूर्ण कार्य किया हो, पर यह समस्या का स्थाई समाधान कभी नहीं हो सकता। सच यह है कि सरकारी मदद के आधार पर कभी भी कोई स्थायी समाधान नहीं निकला है। महंगाई पर नियंत्रण पाने के लिए जमाखोरी को जब तक हतोत्साहित नहीं किया जाएगा, सरकार के सारे प्रयास अकारथ ही जाएंगे। सरकार किसी भी दल की क्यों न हो जब तक गरीब की सम्पत्ति की सुरक्षा और उसके लिए रोजगार के स्थायी अवसर उपलब्ध नहीं होंगे उसे गरीबी और भुखमरी का भूत हमेशा डराएगा। किसी राज्य के विकास मॉडल की चर्चा अथवा किसी गरीब के घर में जाकर एक रात गुजार देने से न तो महंगाई कम होगी और न ही गरीबों का भला होगा, यह बात हमारे राजनीतिक आकाओं को भलीभांति समझ लेनी चाहिए। देश से गरीबी और भुखमरी यदि भगानी ही है तो ऐसी नीतियां अमल में लाई जाएं जिसमें ग्रोथ के नाम पर किसी गरीब की भूमि न छिने और ऐसे उद्यम चलाए जाएं जिसमें श्रम का अधिक से अधिक उपयोग हो। देश में जब तक अमीर को और अमीर बनाने की कोशिशें बंद नहीं होंगी, लोग भूखे पेट ही सोते रहेंगे।

रोते क्रिकेट भगवान ने कहा 'आखिरी सांस तक नहीं भूलूंगा सचिन-सचिन का शोर'

शनिवार का दिन सचिन के नाम रहा। भारत की तरफ से मोहम्मद शमी ने जैसे ही दसवीं विकेट झटकी, मैदान में चारों ओर सचिन-सचिन का शोर गूंज उठा। टीम इंडिया के खिलाड़ी सचिन को घेरे हुए थे, लेकिन सचिन की आंखों से आंसू निकल रहे थे। वे अपनी भावनाओं का छिपाने का पूरा प्रयास करने के बाद भी आंसू नहीं रोक पाए।
प्रजेंटेशन सैरेमनी में भी तेंदुलकर जब स्पीच दे रहे थे, कई बार भावुक हुए। सैरेमनी के अंत में सचिन ने कहा कि ग्राउंड के चारों कोनों से आ रही सचिन-सचिन की आवाज को मरते दम तक नहीं भूल पाऊंगा। रवि शास्त्री ने सचिन को बुलाया और अपना माइक उन्हें थमाते हुए कहा, 'यह अब पूरी तरह आपका है'. सचिन ने जैसे ही माइक थामा, सचिन-सचिन का शोर और तेज हो गया।
सचिन तेंदुलकर ने लोगों से कुछ देर के लिए शांत रहने को कहा। उन्होंने कहा, 'मैं बहुत भावुक हो रहा हूं। कृपया मुझे बोलने दें।' शोर थोड़ा थमा तो सचिन ने सबसे पहले अपने पिता रमेश तेंदुलकर को याद किया। तेंदुलकर ने कहा, '22 गज की पिच पर मेरी जिंदगी के 24 साल बहुत अच्छे रहे, लेकिन अब इसका अंत हो रहा है। मैं पिता जी को बहुत मिस कर रहा हूं। भावनाओं पर नियंत्रण करना बहुत मुश्किल है, पर मुझे करना ही होगा। पिता जी की गाइडेंस के बिना यहां तक पहुंचना मुश्किल था। उन्होंने 11 साल की उम्र में मुझे अपने सपनों की ओर बढ़ने की आजादी दे दी थी, पर उन्होंने यह भी कहा था कि कभी शॉर्ट कट रास्ता मत अपनाना।'
सचिन तेंदुलकर ने इसके बाद अपनी मां को धन्यवाद किया। सचिन ने बताया, 'मां में बहुत पेशेंस था, जो उन्होंने मेरे जैसे शरारती की तमाम हरकतों को सहा। उन्होंने मेरी हर तरह से देखरेख की.' यहां सचिन एक बार फिर भावुक हुए और पानी का घूंट पीया, थोड़ा रिलेक्स हुए और कहा, 'मैंने जब खेलना शुरू किया था, मां ने मेरे लिए प्रेयर शुरू कर दी थी। जब तक मैं खेला, तब तक मां की प्रार्थना भी चलती रही।'
सचिन तेंदुलकर ने कहा कि जब वे चौथी क्लास में थे, तब वे अपने घर से दूर अंकल और आंटी के घर में रहते थे। उन्होंने मुझे अपने बच्चे की तरह पाला। आंटी मुझे अपने हाथों से खिलाती थीं, ताकि मैं फिर से तैयार हो जाऊं और खेलने के लिए जा सकूं।' इसके बाद सचिन ने अपनी बहन सविता का धन्यवाद किया। सचिन ने कहा, 'मेरी जिंदगी का पहला बैट बहन ने दिया था, वहीं से यह यात्रा शुरू हुई। मेरे बड़े भाई को मुझ पर पूरा भरोसा था, उन्होंने मुझे मानसिक रूप से मजबूत बने रहने में बड़ी मदद की।'
सचिन ने अपने बड़े भाई अजीत तेंदुलकर के बारे में कहा कि उन्हें समझ नहीं आ रहा कि वे अजीत के बारे में क्या कहें। सचिन ने कहा, 'अजीत ने मेरे लिए अपना करियर दांव पर लगा दिया। वही मुझे मेरे कोच रमाकांत आचरेकर तक ले गए। कल जब मैं आउट हुआ तो उन्होंने मुझे बुलाया और आउट होने के बारे में तकनीक पर बातचीत की। अब मैं नहीं भी खेलूंगा तो भी हम तकनीक को लेकर बात करते रहेंगे। हम दोनों तकनीक को लेकर वाद-विवाद करते हैं। यह सिलसिला जारी रहेगा।
सचिन तेंदुलकर ने इसके बाद अपनी पत्नी अंजलि को धन्यवाद देते हुए कहा कि उन्होंने जिंदगी में आने के बाद हर कदम मेरी मदद की है। सचिन ने कहा, 'जब मैं अंजलि से पहली बार मिला, वह जिंदगी का एक खुशनुमा पल था। हमारी शादी होने के बाद वे हमेशा मेरे साथ खड़ी रहीं। डॉक्टर होने के नाते उनके सामने बहुत अच्छा करियर था, लेकिन जब हमने परिवार बढ़ाने के बारे में सोचा तो उन्होंने अपने करियर को त्याग दिया और मुझे कहा कि आप खेलना जारी रखो। मेरे साथ रहने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। अंजलि मेरी जिंदगी की बेस्ट पार्टनर है।'
सचिन ने अपने सास-ससुर की भी तारीफ की। उन्होंने कहा, 'मैंने कई पहलुओं पर उनसे चर्चा की। उन्होंने मुझे गाइड किया।' सचिन ने कहा कि वे उन्हें इसलिए भी धन्यवाद देना चाहते हैं, क्योंकि उन्होंने अंजलि से शादी करने के लिए अनुमति दी।
सचिन ने कहा कि सारा और अर्जुन उनकी जिंदगी के दो हीरे हैं। सचिन ने कहा, 'सारा 16 साल की हो गई है और अर्जुन 14 का हो चुका है। मैं उनके साथ बहुत समय बिताना चाहता था, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। मैं खेलने जाता था, तो उन्हें समय नहीं दे पाता था। दोनों ने मुझे समझा और कभी कोई जिद नहीं की। इसके लिए धन्यवाद। अब बाकी बचा जीवन तुम्हारे लिए होगा।' इसके बाद सचिन ने अपने उन दोस्तों को बधाई दी, जो उन्हें हमेशा मदद करते रहे। सचिन ने बताया कि जब उन्हें इंजरी हुई थी, तब उन्होंने सोचा था कि करियर खत्म हो गया। लेकिन दोस्तों ने हार नहीं मानी और उन्होंने समझाया कि अभी अंत नहीं हुआ है। इतना बोलने के बाद सचिन का गला फिर सूख चुका था। उन्होंने पानी के दो घूंट गटके और फिर बोलना शुरू किया।
सचिन ने कहा, '11 साल की उम्र में मेरा करियर शुरू हुआ। टर्निंग प्वाइंट वह था, जब भाई अजीत मुझे कोच आचरेकर के पास लेकर गए। मैं उनके स्कूटर पर बैठकर उनके साथ प्रैक्टिस करने जाता था। कभी एक मैदान में, कभी दूसरे मैदान में। सुबह की प्रैक्टिस शिवाजी मैदान पर होती थी तो दोपहर बाद की आजाद पार्क में।
सचिन ने बड़े ही सलीके से एक-एक कर सबको धन्यवाद कहा। उन्होंने मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन (एमसीए), भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई), सिलेक्टर्स, सीनियर और साथी क्रिकेटर्स (राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण और सौरव गांगुली), फिजियो, ट्रेनर, मैनेजर्स, मैनेजिंग टीम और मीडिया तक को धन्यवाद दिया। सचिन ने फोटोग्राफर्स को धन्यवाद देते हुए कहा, 'आपकी लिए गए फोटो मेरी बाकी जिंदगी में बहुत खास रहने वाले हैं।'
सचिन ने कहा, 'आप सब भाग्यशाली हैं कि हम टीम का हिस्सा हैं और देश की सेवा कर रहे हैं. आप सही से देश की सेवा कर रहे हैं और करते रहेंगे। मुझे आपमें पूरा भरोसा है।' सचिन जब अपनी बात खत्म करने पर आए तो मैदान में एक बार फिर सचिन...सचिन...सचिन की आवाजें आने लगीं। सचिन ने लोगों से कहा कि उन्हें उनकी बात कहने दीजिए। शोर कुछ थमा तो सचिन ने कहा, 'यहां दुनियाभर से लोग आए हैं। आप लोगों ने जो प्यार मुझे दिया है, वह बेहद खास है। मैं तहेदिल से आप सबका शुक्रिया अदा करता हूं।' अंत में सचिन ने कहा 'मैं अपनी आखिरी सांस तक 'सचिन-सचिन' का यह शोर याद रखूंगा.' और सचिन ने माइक छोड़ दिया। फिर मैदान से सचिन... सचिन का स्वर गूंज उठा।
जब अंतिम बार पिच को किया नमन
इसके बाद टीम इंडिया के खिलाड़ियों ने सचिन को अपने कंधों पर उठा लिया और मैदान का चक्कर लगवाया। सबसे पहले धोनी और कोहली ने सचिन को उठाया और फिर एक-एक करके कई और प्लेयर्स ने भी सचिन को कंधों पर उठाया। जब सब शांत हो गया तो सचिन एक बार फिर एमसीए स्टेडियम में पिच की तरफ लौटे और दोनों हाथों से पिच को छूकर नमन किया। यहां एक बार फिर सचिन की आंखों से आंसू आते दिखे। सचिन ने एक खिलाड़ी के तौर अंतिम बार पिच को अलविदा कह दिया।

Thursday, 14 November 2013

सचिन के बारे में जानें....

1. क्रिकेटरों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले अच्छी क्वालिटी के पहले जूते सचिन तेंदुलकर को प्रवीण आमरे ने दिये थे।
2. सचिन तेंदुलकर रमेश पारधे को रबड़ वाली गेंद को पानी में भिगोकर फेंकने के लिए कहा करते थे ताकि वे जान सकें कि गेंद उनके बल्ले के बीच से लगी या नहीं।
3. अपने स्कूल के दिनों में सचिन तेंदुलकर लम्बे बाल रखते और उस पर एक बैंड लगाया करते थे ताकि वे टेनिस स्टार जॉन मैकनरो की तरह दिखें।
4. सचिन तेंदुलकर के पिता ने उनका नाम महान संगीतकार सचिन देव बर्मन के नाम पर रखा था।
5. जब सचिन 14 साल के थे तो सुनील गावस्कार ने उन्हें बेहद ही हल्के पैड गिफ्ट किए थे हालांकि इंदौर में अंडर-15 कैम्प के दौरान वो चोरी हो गए।
6. जब सचिन का चयन मुंबई की अंडर 15 टीम में हुआ तो दिलीप वेंगसरकर ने उन्हें बैट गिफ्ट किया।
7. सचिन तेंदुलकर ने अपने बचपन के कोच रमाकांत आचरेकर से 13 सिक्के जीते। जिस दिन प्रैक्टिस सेशन में सचिन नाबाद रहते उन्हें एक सिक्का मिलता।
8. सचिन तेंदुलकर तेज गेंदबाज बनना चाहते थे पर 1987 में आॅस्ट्रेलियाई खिलाड़ी डेनिस लिली ने उन्हें रिजेक्ट कर दिया था।
9. 1987 वर्ल्ड कप का एक सेमीफाइनल भारत और इंग्लैंड के बीच हुआ। यह वानखेड़े स्टेडियम में खेला गया और सचिन इस मैच में बॉल ब्वॉय थे।
10. 1989-90 ईरानी कप के एक मैच में गुरशरण सिंह ने एक हाथ (एक उंगली टूटी हुई थी) से बल्लेबाजी की ताकि सचिन शतक बना सकें।
11. सचिन तेंदुलकर ने रणजी ट्रॉफी, ईरानी कप और दिलीप ट्रॉफी के अपने पहले मैच में शतक जड़ा। यह अनोखा रिकॉर्ड सिर्फ उनके नाम पर है।
12. सचिन तेंदुलकर 1990 के इंग्लैंड दौरे से लौट रहे थे तब वे अपनी होने वाली पत्नी अंजलि से पहली बार मिले। दोनों की मुलाकात मुंबई के शांताक्रुज एयरपोर्ट पर हुई थी।
13. सचिन तेंदुलकर के ससुर आनंद मेहता 'ब्रिज' खेल के सात बार के राष्ट्रीय चैम्पियन हैं।
14. सचिन तेंदुलकर को अपने पहले वनडे शतक के लिए 79 मैचों का इंतजार करना पड़ा। यह दिन था 9 सितम्बर, 1994. इस समय तक सचिन टेस्ट क्रिकेट में सात शतक ठोंक चुके थे।
15. सचिन तेंदुलकर अकेले ऐसे भारतीय हैं जो सर्वकालिक वर्ल्ड इलेवन में जगह बनाने में कामयाब रहे।
16. सचिन तेंदुलकर सर डॉन ब्रैडमैन की सर्वकालिक टेस्ट इलेवन का भी हिस्सा हैं, मौजूदा जनरेशन के वे एकमात्र खिलाड़ी हैं।
17. टीम बस में सचिन तेंदुलकर हमेशा आगे वाली सीट की बायीं खिड़की की तरफ बैठते हैं।
18. 2008 में सचिन तेंदुलकर को पद्म विभूषण से नवाजा गया था, देश का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान।
19. 2007 के लॉर्ड्स टेस्ट मैच के दौरान सचिन तेंदुलकर का आॅटोग्राफ लेने के लिए 'हैरी पॉटर ' के नाम से मशहूर अभिनेता डेनियल रेडक्लिफ लाइन में खड़े हुए थे।
20. 1999 में सचिन तेंदुलकर को पद्मश्री अवार्ड मिला, देश का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान।
21. 1992 में सचिन तेंदुलकर इंग्लैंड की काउंटी टीम यॉर्कशायर का प्रतिनिधित्व करने वाले पहले विदेशी खिलाड़ी बने।
22. लंदन टाइम्स में जॉन वुडकॉक ने लिखा था, 'मैंने अपनी जिंदगी में जिन क्रिकेटरों को देखा सचिन उनमें सर्वश्रेष्ठ हैं, और मैंने सर डॉन ब्रैडमैन को भी देखा है।'
23. अगस्त 1987 में सचिन तेंदुलकर को बॉम्बे क्रिकेट एसोसियेशन का बेस्ट जूनियर क्रिकेटर आॅफ द ईयर अवार्ड नहीं मिला। इसके बाद सुनील गावस्कर ने सचिन का उत्साह बढ़ाने के लिए एक चिट्ठी लिखी। उसमें लिखा था, बीसीए का बेस्ट जूनियर क्रिकेटर अवार्ड न मिलने से निराश मत हो। अगर तुम बेस्ट अवार्ड विजेताओं की सूची देखोगे तो उसमें एक नाम नहीं है और वह शख्स टेस्ट क्रिकेट में बुरा प्रदर्शन नहीं कर रहा।
24. सचिन तेंदुलकर ने पाकिस्तान के लिए एक मैच में फील्डिंग की थी। वाक्या है 1988 के भारत-पाकिस्तान अभ्यास मैच का। सचिन पाकिस्तान के लिए स्थानापन्न क्षेत्ररक्षक के तौर पर मैदान पर उतरे थे।
25. अपने स्कूल शारदा आश्रम के लिए खेलते हुए सचिन तेंदुलकर ने विनोद कांबली के साथ मिलकर 1988 में संत जेवियर के खिलाफ मुकाबले में तीसरे विकेट के लिए 664 रनों की अविजित साझेदारी की थी। इस मैच में सचिन ने नाबाद 326 और विनोद कांबली ने नाबाद 349 रन बनाए थे।
26. विनोद कांबली के साथ 664 रनों की साझेदारी के दौरान सचिन तेंदुलकर गाने गाते और सीटियां बजाते। सिर्फ इसलिए कि उनकी नजर कोच के असिस्टेंट न मिले जो पारी घोषित करना चाहता था पर दोनों बल्लेबाजी करते रहना चाहते थे।
27. सचिन और कांबली के अविजित 664 रनों की रिकॉर्ड साझेदारी के बाद तिहाड़ जेल के दो वार्डों का नाम इन खिलाड़ियों के नाम पर रख दिया गया।
28. सचिन तेंदुलकर अपने पहले अंतरराष्ट्रीय वनडे मैच में शून्य पर आउट हुए थे। 18 दिसंबर 1989 को गुंजरावाला में खेला गया यह मुकाबला पाकिस्तान के खिलाफ था।
29. 1990 मैनचेस्टर टेस्ट में सचिन को पहला मैन आॅफ द मैच अवार्ड मिला। उन्हें पुरस्कार के तौर पर मैगनम शैंपेन की बोतल मिली जिसे सचिन ने 8 साल तक बचाए रखा। सचिन ने ये शैंपेन की बोतल अपनी बेटी सारा के पहले जन्मदिन पर खोली।
30. 1996 वर्ल्ड कप में सचिन सर्वाधिक रन बनाने वाले बल्लेबाज बने। हालांकि इस टूर्नामेंट के दौरान बल्ले को लेकर सचिन का किसी भी कंपनी के साथ कॉन्ट्रेक्ट नहीं था।
31. 1992 में सचिन तेंदुलकर ने यॉर्कशायर का प्रतिनिधत्व किया।
32. 19 साल की उम्र में काउंटी क्रिकेट खेलने वाले सचिन सबसे छोटी उम्र वाले भारतीय खिलाड़ी बने।
33. 14 नवम्बर, 1992 को डर्बन के किंग्समीड मैदान पर दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ मैच में सचिन तेंदुलकर को थर्ड अम्पायर ने रन आउट करार दिया। वे टीवी अम्पायर द्वारा आउट करार दिए जाने वाले पहले खिलाड़ी हैं।
34. 1998 में सचिन तेंदुलकर को राजीव गांधी खेल रत्न अवार्ड के लिए चुना गया।
35. 1999 के ऐतिहासिक चेन्नई टेस्ट में सचिन तेंदुलकर के शानदार शतक के बावजूद पाकिस्तान की जीत हुई। सचिन प्रजेंटेशन में नहीं पहुंचे। जब इसके बारे में तत्कालीन बीसीसीआई अध्यक्ष राजसिंह डूंगरपुर से पूछा गया तो उन्होंने कहा, 'वह ड्रेसिंग रूम में रो रहा है।'
36. तेंदुलकर ने पेप्सी का एक विज्ञापन करने से इसलिए मना कर दिया कि उन्हें ऐसा लगा कि यह विज्ञापन उन्हें क्रिकेट से बड़ा दिखलाएगा। सचिन के कहने पर निर्देशक प्रहलाद कक्कड़ को इस विज्ञापन में बदलाव करना पड़ा।
37. 2009 में इनवेस्टमेंट बैंकर कार्ल फ्लावर द्वारा स्थापित एक कंपनी ने तेंदुलकर ओपस नाम की किताब का विशेष संस्करण निकाला। 852 पन्नों वाली इस विशाल किताब का वजन 37 किलोग्राम है।
38. 2010 में भारतीय वायुसेना ने सचिन तेंदुलकर को मानद ग्रुप कैप्टन की उपाधि से विभूषित किया। ये उपाधि पाने वाले पहले खिलाड़ी थे।
39. टीम के ड्रेसिंग रूम में सचिन तेंदुलकर अपनी जगह सबसे पहले चुनते हैं। सचिन द्वारा इस अधिकार के इस्तेमाल के बाद ही अन्य खिलाड़ियों को अपनी-अपनी जगह चुनने का मौका मिलता है।
40. सचिन तेंदुलकर रोजर फेडरर और फॉर्मूला वन को फॉलो करते हैं। उन्हें संगीत और दवा की अच्छी समझ है। समुद्री खाने के शौकीन भी हैं, और अलग-अलग किस्म की वाइन की खासियत पर चर्चा भी कर सकते हैं।
41. टीम इंडिया में लेट-लतीफों पर लगता है आर्थिक जुर्माना। टीम मीटिंग या फिर बस में अगर कोई खिलाड़ी देर से आता है तो उसे जुर्माना देना पड़ता है। चौंकाने वाली बात यह है कि 24 साल के लम्बे करियर में सचिन तेंदुलकर पर आज तक एक बार भी जुर्माना नहीं लगा।
42. सचिन दायें हाथ के बल्लेबाज और बाएं हाथ के गेंदबाज हैं पर वे लिखते बायें हाथ से हैं।
43. 2002 में क्रिकेट की बाइबल कही जाने वाली विजडन ने सचिन को महानतम टेस्ट बल्लेबाजों की सूची में दूसरे स्थान पर रखा। पहले नंबर पर सर डॉन ब्रैडमैन थे।
44. 2003 में विजडन ने सचिन तेंदुलकर को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ एकदिवसीय बल्लेबाज बताया।
45. 2010 में सचिन तेंदुलकर आईसीसी क्रिकेटर आॅफ द ईयर बने। उन्होंने सर गैरी सोबर्स ट्रॉफी अवार्ड पर कब्जा जमाया।
46. सचिन तेंदुलकर राजीव खेल रत्न जीतने वाले पहले क्रिकेटर हैं।
47. महान बल्लेबाज सर डॉन ब्रैडमैन मानते थे कि सचिन तेंदुलकर की बैटिंग स्टाइल उनके स्टाइल से काफी मेल खाती है। ब्रैडमैन सचिन की कॉम्पेक्ट तकनीक और बेहतरीन शॉट खेलने की क्षमता के मुरीद हो गए थे।
48. सचिन तेंदुलकर ट्विटर पर मई 2010 को आए. उनके प्रोफाइल  की कऊ है...@२ंूँ्रल्ल_१३
49. सचिन तेंदुलकर एकमात्र भारतीय क्रिकेटर हैं जिनका मोम का पुतला मैडम तुसाद में है।
50. 1989-90 में मुंबई की ओर से अपना पहला फर्स्ट क्लास मैच खेलते हुए शतक जड़ा। उन्होंने नाबाद 100 रन बनाए थे। उस वक्त उनकी उम्र थी 15 साल और 232 दिन।
51. सचिन तेंदुलकर ने जब अपने टेस्ट करियर की शुरूआत की तो उस वक्त उनकी उम्र थी 16 साल 205 दिन। उस वक्त टेस्ट क्रिकेट खेलने वाले वे तीसरे सबसे युवा खिलाड़ी थे।
52. 1990 में सचिन तेंदुलकर ने अपना पहला टेस्ट शतक जड़ा और सबसे कम उम्र में टेस्ट शतक जड़ने वाले खिलाड़ियों की सूची में दूसरे स्थान पर पहुंच गए।
53. बैटिंग क्रम में किसी एक पोजीशन पर सबसे ज्यादा रन बनाने का कीर्तिमान सचिन के नाम है। टेस्ट में उन्होंने अपने पसंदीदा चौथे नम्बर पर बल्लेबाजी करते हुए करीबन 13500 रन बनाए हैं।
54. टेस्ट क्रिकेट में सर्वाधिक शतक बनाने का सुनील गावस्कर (34) के रिकॉर्ड को सचिन तेंदुलकर ने दिसंबर 2005 में तोड़ा था। अभी तक सचिन ने टेस्ट में 51 शतक जड़े हैं।
55. सचिन तेंदुलकर ने टेस्ट खेलने वाले सभी देशों के खिलाफ शतक जड़ा है।
56. सचिन तेंदुलकर ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में जो पहली गेंद खेली थी उसे पाकिस्तानी गेंदबाज वकार यूनुस ने डाली थी। वहीं दूसरे छोर पर मोहम्मद अजहरुद्दीन खड़े थे।
57. सचिन तेंदुलकर ने अपने पहले पांच टेस्ट शतक 20 साल की उम्र तक ही जड़ दिये थे। यह रिकॉर्ड आज भी उनके नाम पर है।
58.  सचिन तेंदुलकर ने 2010 में सात शतक जड़े थे। यह एक सीजन में किसी भारतीय बल्लेबाज द्वारा बनाये सर्वाधिक शतक हैं।
59. सचिन तेंदुलकर ने 20 मौकों पर टेस्ट में 150 से ज्यादा रन बनाए हैं। ऐसा करने वाले वे एकमात्र बल्लेबाज हैं।
60. सचिन तेंदुलकर टेस्ट में 14 बार मैन आॅफ द मैच अवार्ड जीत चुके हैं।

Tuesday, 12 November 2013

सैफ जूनियर एथलेटिक्स में भारत को 20 स्वर्ण के साथ पहला स्थान

रांची में  सम्पन्न हुई द्वितीय दक्षिण एशियाई जूनियर एथलेटिक्स प्रतियोगिता में भारत ने जहां 20 स्वर्ण, 20 रजत और 12 कांस्य के साथ कुल 52 पदक जीतकर अपनी श्रेष्ठता कायम रखी। श्रीलंका ने भी आज हुई 16 स्पर्धाओं में से आठ में स्वर्ण पदक जीतकर प्रतियोगिता में कुल दस स्वर्ण पदकों के साथ दूसरा स्थान हासिल किया।
आज यहां होतवार स्थित अत्याधुनिक बिरसा मुंडा खेल परिसर में एथलेटिक स्टेडियम में श्रीलंका ने मेजबान भारत को कड़ी टक्कर देते हुए 16 स्पर्धाओं में से आठ के स्वर्ण पदक जीत लिये। श्रीलंका ने प्रतियोगिता में कुल दस स्वर्ण, दस रजत और 14 कांस्य के साथ 34 पदक जीते। श्रीलंका के खिलाड़ियों ने जहां कल 14 स्पर्धाओं में सिर्फ दो ही स्वर्ण पदक जीते थे और शेष 12 स्वर्ण पदक भारतीय एथलीटों ने हथियाये थे वहीं आज नजारा बिल्कुल अलग था। वर्ष 2007 में कोलंबो में हुए पहले दक्षिण एशियाई जूनियर एथलेटिक्स प्रतियोगिता के मुकाबले इस बार भारत को एक स्वर्ण पदक कम मिला। श्रीलंका की ओर से सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वालों में आज 110 मीटर बाधा दौड़ में सुपुन विराज रनदेनिया रहे जिन्होंने 13.64 सेकेंड का समय निकालकर इस स्पर्धा में भारत के टी. बालामुरुगन के 14.62 सेकेंड के रिकार्ड में सुधार किया। इस स्पर्धा में इस बार भारत को सिर्फ कांस्य पदक से ही संतोष करना पड़ा जो तरुणदीप सिंह ने 14.51 सेकेंड का समय निकाल कर जीता। रजत पदक भी श्रीलंका के ही मालिन उदय ने 14.41 सेकेंड में जीता।
प्रतियोगिता के दूसरे और अंतिम दिन कुल सात स्पर्धाओं में नये कीर्तिमान स्थापित किये गये जिनमें महिलाओं की 100 मीटर बाधा दौड़ में भारत की मेघना शेट्टी ने 14.54 सेकेंड का समय निकाल कर मीट के भारत की ही सीटी राजी के 14.86 सेकेंड के कीर्तिमान को तोड़ दिया। स्पर्धा में भारत की दीपिका ने रजत और श्रीलंका की इरेशानी ने कांस्य पदक जीते। लड़कियों की ऊंची कूद में श्रीलंका की पूर्णिमा जयमाली ने 1.68 मीटर की छलांग लगाकर स्वर्ण पदक जीता जबकि रजत पदक भारत की स्वप्ना वर्मन ने 1.65 मीटर की छलांग लगाकर जीता। कांस्य पदक भी भारत की ही ज्योति ने 1.60 मीटर की छलांग लगाकर जीता। लड़कों की चक्का फेंक प्रतियोगिता भारत के सचिन ने 54.44 मीटर की दूरी के साथ जीती। साथ ही उन्होंने स्पर्धा का पहले का 54 मीटर का रिकार्ड तोड़ने में सफलता पायी। भारत के दिल योगी ने रजत और श्रीलंका के आशेन ने कांस्य पदक जीता। लड़कों की लंबी कूद में भारत के पी. अंबुराजा ने 7.41 मीटर लंबी छलांग लगाकर स्वर्ण पदक जीता और मीट का पूर्व का श्रीलंका के एस नदीश का 7.36 मीटर का कीर्तिमान भी ध्वस्त कर दिया। इस प्रतियोगिता में रजत और कांस्य श्रीलंका ने जीते।
 तीन हजार मीटर की लड़कियों की दौड़ में भारत की पीयू चित्रा ने देश का परचम लहराया। उन्होंने प्रतियोगिता का स्वर्ण पदक 9 मिनट 51.13 सेकेंड के समय के साथ जीता। स्पर्धा का रजत पदक भारत की प्रीती लांबा और कांस्य श्रीलंका ने जीता। लड़कियों की 200 मीटर की दौड़ भारत की एस अर्चना ने मीट रिकार्ड के साथ जीती। उन्होंने यह स्पर्धा 24.32 सेकेंड में जीती जबकि इससे पहले रिकार्ड भारत की जे अरुलप्पन के नाम था जो उन्होंने 2007 में 25.32 सेकेंड के साथ बनाया था। इस प्रतियोगिता में भारत की सी रेंगिथा ने 25.04 सेकेंड और श्रीलंका की निर्मली ने भी 25.23 सेकेंड का समय निकाल कर मीट रिकार्ड तोड़ा लेकिन उन्हें रजत और कांस्य पदक से ही संतोष करना पड़ा। लड़कों की 200 मीटर की दौड़ श्रीलंका के हिमाशा इशान ने 21.44 सेकेंड में जीतकर मीट का रिकार्ड तोड़ दिया जो श्रीलंका के ही एस अंबेपितिवा के नाम था जो 21.91 सेकेंड का था। भारत के हसनदीप सिंह ने 21.63 सेकेंड का समय और श्रीलंका के मलिक खान फर्नांडो ने 21.69 सेकेंड का समय निकाल कर प्रतियोगिता का रजत और कांस्य पदक जीता। इन दोनों ने भी मीट रिकार्ड तोड़ने में सफलता पाई।
भारत के शैलेन्द्र सिंह ने लड़कों की 1500 मीटर दौड़ 4 मिनट 02.39 सेकेंड में जीत कर स्वर्ण पदक अपने नाम किया। लड़कियों की चक्का फेंक प्रतियोगिता श्रीलंका की डब्ल्यू अमंथी ने 41.65 मीटर चक्का फेंक कर जीती जबकि भारत की नंदिनी और मनीषा ने क्रमश: रजत और कांस्य पदक जीता। लड़कियों की लंबी कूद भारत की जेनिमोल जाय ने 5.4 मीटर की छलांग लगाकर जीती जबकि भारत की ही शिपू मंडल ने 5.39 मीटर की छलांग लगाकर रजत पदक जीता। कांस्य पदक श्रीलंका की लक्षिणी ने जीता। भारत की जेसी जोसफ ने 2 मिनट 08.38 सेकेंड में लड़कियों की 800 मीटर की दौड़ जीती। श्रीलंका की नदीशा और भारत की अर्चना ने स्पर्धा का रजत और कांस्य पदक जीता। लड़कियों की 4 गुणा 100 मीटर रिले श्रीलंका की टीम ने 47.31 सेकेंड में जीती। भारत को इस स्पर्धा का रजत और बांग्लादेश को कांस्य पदक हासिल हुआ। लड़कों की 4 गुणा 100 मीटर रिले दौड़ भी श्रीलंका के खिलाड़ियों ने 41.42 सेकेंड में जीती। भारत की टीम 41.81 सेकेंड के साथ दूसरे स्थान पर और 43.15 सेकेंड के साथ पाकिस्तान तीसरे स्थान पर रहा। लड़कियों की 4 गुणा 400 मीटर रिले श्रीलंका ने 3 मिनट 51.04 सेकेंड में जीती। भारत की टीम इस स्पर्धा में 3 मिनट 59.14 सेकेंड से दूसरे स्थान पर रही। बांग्लादेश ने प्रतियोगिता का कांस्य जीता। श्रीलंका की टीम ने लड़कों की 4 गुणा 400 मीटर की दौड़ भी 3 मिनट 15 46 सेकेंड में जीती। भारत की टीम 3 मिनट 15.66 सेकेंड से दूसरे स्थान पर रही जबकि बांग्लादेश ने कांस्य पदक जीता। दूसरी सैफ जूनियर एथलेटिक्स में तीसरे स्थान पर बांग्लादेश रहा जिसे तीन कांस्य पदक मिले जबकि पाकिस्तान की टीम को सिर्फ एक कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा और उसकी टीम चौथे स्थान पर रही। मालदीव और नेपाल का इस प्रतियोगिता में खाता नहीं खुल सका। अगली सैफ जूनियर एथलेटिक्स श्रीलंका के कोलंबो में 2015 में होगी। 

अतुलनीय-अनुकरणीय सचिन

अपने तेज, वेग और चमत्कारिक खेल से 24 साल तक क्रिकेट को गौरवान्वित करने वाले सचिन तेंदुलकर 18 नवम्बर को अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धी क्रिकेट से विरत होने जा रहे हैं। सचिन के इस शाही संन्यास के बाद क्रिकेट मुरीद इस नायाब खिलाड़ी का अश्क दूसरे खिलाड़ियों में जरूर खोजेंगे पर सूर्य सा तेज और वायु सा वेग हर किसी में नहीं होता। खिलाड़ियों का आगाज और अवसान खेल का हिस्सा है। शिखर सीधी-सपाट जगह नहीं होती जिस पर मनचाहे समय तक रुका जा सके। महानतम सचिन भी इसका अपवाद नहीं रहे। इस खिलाड़ी का जीवन भी उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। कई बार लगा कि इस खिलाड़ी की क्रिकेट अवसान पर है लेकिन फौलादी सचिन ने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के बूते न केवल खराब समय को जिया बल्कि कुंदन बनकर चमके भी।
सचिन ने बहुत कम अवसरों पर अपने मुरीदों को निराश किया। वह शिद्दत से भारतीय क्रिकेट का लोहा दुनिया भर में मनवाते रहे। अपनी पारी को हमेशा संभालने, संवारने और उसे बड़े स्कोर तक ले जाने की न केवल कोशिश की बल्कि उसमें सफलता भी पाई। उनमें अच्छे स्ट्रोक्स, तेज गेंदबाज को जीवट के साथ खेलने की क्षमता होने के साथ-साथ लम्बी पारियां खेलने का धैर्य भी रहा। यही वजह रही कि सचिन क्रिकेट की धड़कन और भारतीय जनसैलाब का प्रतीक बने। मैदान में उनका विध्वंसक खेल अतुलनीय तो मैदान के बाहर का उनका शौम्य-शिष्ट व्यवहार हमेशा लोगों के लिए अनुकरणीय रहा है। समय गतिमान है वह किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। 24 साल तक अपने मुरीदों के दिलों पर राज करने वाला यह खिलाड़ी तो रहेगा पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धी क्रिकेट उसके नायाब खेल से महरूम होगी।
आज क्रिकेट से बेशुमार मोहब्बत करने वाले हर शख्स के मन में सचिन के संन्यास की पीड़ा ही तो है जोकि इस खिलाड़ी को महानतम लोगों की कतार में शामिल करती है। दुनिया भर की तमाम समझदारी का साझा सच यही है। सचिन भारत का अनमोल हीरा है जिसकी चमक सदियों तक महसूस की जाएगी। उम्र सनातन सत्य है और हर सत्य का अपना अमिट प्रभाव होता है। 40 साल के सचिन में 20 साल के सचिन की चपलता, उसके रिफ्लेक्शन और शॉट सेलेक्शन से नाखुश लोग कुछ भी कहते हों पर सचिन की तुलना सिर्फ और सिर्फ सचिन से ही की जा सकती है।
आप ब्रेडमैन के फुटेज देखिए, आपको मालूम हो जाएगा कि वह अपने समकालीनों से पूर्णत: अलग क्लास के बल्लेबाज थे। उन्हें कोई ऐसी चीज प्रेरित करती थी जिसे शायद वह भी पूरी तरह से समझ नहीं पाते थे। यही हाल सचिन का भी है जिन्होंने 16 वर्ष की आयु में टेस्ट क्रिकेट खेलनी आरम्भ की और 24 वर्ष तक खेल में अपना महत्व और प्रभुत्व बनाए रखा। वह जब भी बल्लेबाजी करने के लिए उतरते हैं करोड़ों लोगों की उम्मीदों और आशाओं का बोझ उन पर होता है। मुम्बई में भी ऐसा ही होगा। आज भी लोगों का विश्वास जिन्दा है। सचिन के मुरीदों को भरोसा है कि वह अपने अंतिम टेस्ट में कुछ अनोखा करेगा। हो सकता है वह तिहरा शतक भी लगा दे। लोगों का सचिन पर यही विश्वास उन्हें अपने समकालीनों को छोड़िए,  ब्रेडमैन से भी अलग कर देता है। ब्रेडमैन ने तो अपनी अधिकतर क्रिकेट इंग्लैण्ड के खिलाफ ही केली पर सचिन ने ज्यादा देशों व विभिन्न स्थितियों में क्रिकेट को अंजाम तक पहुंचाया। इस खिलाड़ी ने एक ऐसा बैटिंग रिकार्ड स्थापित किया है जिसे शायद कभी चुनौती न दी जा सके। यह केवल उनकी प्रतिभा नहीं है बल्कि भटकाने वाली चीजों से अपने को अलग रखने या स्विच आॅफ करने की अद्भुत क्षमता भी है।
सचिन एक मिथ हैं। एक ऐसा मिथ जिसके लिए हर कल्पना छोटी है। दरअसल किसी खिलाड़ी की सफलता भले वैयक्तिक होती हो लेकिन उस सफलता का असर सार्वजनिक होता है। सफलता से प्रभावित होने वाले अनगिनत होते हंै तो सफलता से जलने वाले भी कम नहीं होते। ऐसा नहीं है कि सचिन से जो चिढ़ते हों, वे सचिन के समकालीन ही हों, क्रिकेटर ही हों और उन्हीं के जैसे विश्व क्रिकेट में नाम और महत्व रखते हों। सचिन से चिढ़ने वालों में कोई भी हो सकता है। उनसे कम उम्र का, ज्यादा उम्र का क्रिकेटर, गैर क्रिकेटर यानी कोई भी। सचिन इस सबके बावजूद भारतीय क्रिकेट के वह मिथक हैं, जिनकी व्याख्या कर पाना शब्दों के बस में भी नहीं है। दरअसल सचिन ऐसा मिथ हैं जिनके विरोधी हमेशा हाथ मलते रहेंगे और सिर धुनते रहेंगे कि आखिर वह कभी बेनकाब क्यों नहीं हुआ?
अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धी क्रिकेट में 24 साल तक अपने शानदार खेल का आगाज और शतकों का शतक तथा 33000 से अधिक रन बनाना हंसी खेल नहीं है। लोगों को बहुत समय तक याद नहीं रहता पर सचिन की चपलता, अपर कट और उसके स्ट्रेट ड्राइव की दर्शनीयता अक्षुण्ण है जोकि शायद ही लोग भूल पाएं। अगर हम सचिन को क्रिकेट का भगवान मानते हैं, अगर हम यह मानते हैं कि क्रिकेट इतिहास में वह दुर्लभ जीनियस हैं और इतिहास के पन्नों में हमेशा अजर अमर रहेंगे तो हमें इस नटवर नागर को दिल से सलाम करते हुए इस दुर्लभ संयोग का आनंद लेना ही चाहिए। पिछले कुछ समय से उसके चाहने वालों ने बेशक सचिन की बिजली की रफ्तार से कौंधती स्क्वायर ड्राइव और स्ट्रेट कट का लुत्फ न उठाया हो पर उसकी मौजूदगी हमेशा भारतीय क्रिकेट को बड़ा कद मुहैया कराती रही है। करोड़ों दिलों की इस धड़कन ने दुनिया भर को अतीत में ऐसी दुर्लभ कौंधें दिखाई हैं जिनका अब सिर्फ इतिहास के पन्नों में ही जिक्र मिलेगा।

सचिन, लोग मुझे मार देंगे: शोएब अख्तर

भारत के महान बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर के सम्मान में आयोजित कार्यक्रम में पाकिस्तान के पूर्व तेज गेंदबाज शोएब अख्तर ने सचिन के साथ अपना एक अनुभव बताते हुए कहा कि भारत में एक क्रिकेट सीरीज के दौरान जब हम भारत आए थे तो मेरी सभी भारतीय खिलाड़ियों के साथ अच्छी ट्यूनिंग हो गई थी। रात को जब खाने के बाद मैं, युवराज, सहवाग और सचिन तफरीह के लिए जा रहे थे, तो मुझे शरारत सूझी। मैंने सचिन से कहा, मैं तुम्हें कंधों पर उठा लूं? सचिन ने मना किया और वह मना करते रहे लेकिन मैंने उन्हें कंधे पर उठा लिया। अचानक बैलेंस बिगड़ा और सचिन मेरे कंधे से गिर गए। मैं डर गया मैंने सचिन को उठाते हुए पूछा, तुम ठीक तो हो न? अगर तुम्हें कुछ हो गया तो इंडिया में लोग मुझे मार देंगे और फिर सभी हंसने लगे। शोएब ने सचिन से अपने दोस्ताना ताल्लुकात का खुलासा करते हुए कहा, अल्लाह ने सचिन को बहुत इज्जत दी। कोई ऐसे ही इतना बड़ा खिलाड़ी नहीं बन जाता। इसके पीछे सचिन की कड़ी मेहनत है। शोएब ने कहा कि मैं जब सचिन को गेंदबाजी करता था तो मुझे सोचना पड़ता था कि कैसी गेंदबाजी करूं कि कम से कम रन पड़ें।
पाकिस्तान के पूर्व कप्तान वकार यूनुस ने सचिन की तारीफ करते हुए कहा कि 1989 में पाकिस्तान में जब सचिन सियालकोट टेस्ट में उतरे तो मुझे लगा कि यह बच्चा कहां से आ गया? वकार ने बताया कि उस समय मैंने सचिन को बहुत कम आंका था, लेकिन बाद में जब सचिन का खेल देखा तो मैं समझ गया कि यह बड़ा प्लेयर है। वकार ने कहा, भारत और पाकिस्तान ने पिछले 10 साल से क्रिकेट नहीं खेली। मुझे इसका मलाल है, सचिन को भी होगा। उन्होंने कहा कि भारत-पाक की क्रिकेट एशेज से भी बड़ी है। पाकिस्तान के खिलाफ रन नहीं करने का मलाल सचिन को भी होगा।

...वापस जाओ और देश के लिए खेलो: अजीत तेंदुलकर

सचिन तेंदुलकर की जिंदगी के बहुत सारे किस्से आप जानते हैं उनके संघर्ष की ढेर सारी कहानियां आपने अखबारों-पत्रिकाओं में पढ़ी होंगी लेकिन अब भी कई ऐसी बातें और यादें हैं जो कहने से रह गई हैं। सचिन के बड़े भाई अजित तेंदुलकर ने क्या बताया आप भी जानें... 24 साल से आप उनके साथ हैं। अब क्या बदलेगा 18 नवंबर के बाद?
-सचिन इंडिया की कैप नहीं पहनेगा इस तारीख के बाद। यही बहुत बड़ा बदलाव है। वह पिछले 24 साल से गर्व के साथ यह रंग, यह कैप पहन रहा है. उसकी पूरी जिंदगी क्रिकेट से ही बनी है. वह जब भी पिच पर उतरा, सबने शतक की उम्मीद की. बहुत दबाव था इसका. अब इसका खात्मा हो जाएगा. अब शायद वह सुबह उठे, तो न सोचे कि इस बॉलर को कैसे खेलूं. एक्सरसाइज में कुछ कमी आएगी. भरपेट बटर-चिकन खा सकेगा और मीडिया भी उसकी आलोचना और स्क्रूटनी से बचेगी.
परिवार क्या सोच रहा है इस मौके पर? मां पहली बार लाइव देखेंगी. दोनों भाई अजीत और नितिन, बहन सरिता और पत्नी अंजलि भी स्टेडियम में होंगी?
सब खुश हैं. मां ने तो उसे कभी नेट पर प्रैक्टिस करते भी नहीं देखा. लोकल गेम तो छोड़ ही दीजिए. सचिन के लिए यह खास मोमेंट है. 200वां टेस्ट. पूरा परिवार स्टेडियम में मौजूद होगा. हम सब बहुत बेसब्री से इसका इंतजार कर रहे हैं. अब तक हम इससे बचते रहे हैं. कई दोस्त हम पर हंसते हैं, जब हम कहते हैं कि हम सचिन को लाइव देखने नहीं जाते. टीवी पर ही उनकी पारी देखते हैं. लेकिन इस बार लाइव देखेंगे.
परिवार स्टेडियम में देखने क्यों नहीं जाता था मैच? अंजलि एक बार 2004 में मेलबर्न में टेस्ट देख रही थीं. सचिन डक पर आउट हुए, तो अंजलि न सिर्फ स्टेडियम बल्कि शहर से ही बाहर चली गईं. क्यों?
-हमें दो चीजों का डर था, तब भी जब वह बहुत रन बना रहा था. एक, अपना विकेट फेंकने की आदत. दूसरा कैलकुलेशन की आदत, धैर्य खोने की बात. एक बार राजसिंह डूंगरपुर ने पापा से कहा था कि सचिन को बोलिए कि कार पहले गेयर से चलाना शुरू करे, पांचवें से नहीं. तो ये सब बातें हैं, जिसकी वजह से हम स्टेडियम नहीं जाते थे. पर हां, मां से बोलता था कि अब सचिन खेल रहा है. प्रार्थना करिए. बहन सरिता व्रत रखती थी. अंजलि भी कुछ न कुछ करती थी. मैंने कुछ क्रिकेट खेला है, तो मैं मन में ये कल्पना करने लगता था कि वो अच्छा खेल रहा है. रन बना रहा है. इससे सकारात्मक बने रहने में मदद मिलती थी. हम सब जानते हैं कि जब कोई बैट्समैन पिच पर पहुंच जाता है, उस पर किसी का कंट्रोल नहीं रहता, ऐसे में जोर इस बात पर था कि भावनात्मक रूप से, रूहानी रूप से हम उसके साथ रहें. इसका कोई वैज्ञानिक तर्क नहीं है. मगर हम हमेशा उसकी बैटिंग के वक्त उसके इर्द-गिर्द ही रहे, ख्याली रूप से.
अतीत में चलते हैं, जब सचिन साहित्य सहवास कॉलोनी में टेनिस बॉल से खेलते थे और आप उन्हें लेकर रमाकांत आचरेकर के पास ले गए?
सच कहूं तो तब ये टैलेंट या जीनियस का नहीं सोचा था. टेनिस बॉल से खेलते थे. तीन चीजें थीं. जिस तरह से वह अपना बल्ला उठाता था. इजी बैकलिप्ट थी. आज भी है. बिल्कुल नहीं बदली है. बहुत रिलैक्स्ड सी है. ये पहली चीज थी जिसे नोटिस किया. दूसरी चीज उसके हाथों का स्विंग. बॉल मिडल होती थी. रबर बॉल बाउंस बहुत करती है. सचिन उसी ऐज से बॉल की लेंथ बहुत अच्छे से पिक कर रहा था. इन तीन चीजों पर गौर करने के बाद मुझे लगा कि उसे आगे बढ़ाना चाहिए. मुझे लगा कि इसमें प्रतिभा है और अब उसे आगे बढ़ाने की जरूरत है. हम रमाकांत सर के पास गए. सचिन ने हाफ पैंट और टीशर्ट पहन रखी थी. ट्राउजर भी नहीं था. मैंने आचरेकर सर से बात की. वो बोले ठीक है, कल से आ जाए. मगर फुल पैंट पहनकर आए. फिर बोले कि अच्छा आया है, तो कुछ फील्डिंग प्रैक्टिस कर ले. उसने मुझे चौंकाते हुए ऊंचे-ऊंचे कैच आराम से ले लिए और फिर अच्छे अंदाजे के साथ विकेटकीपर को बॉल लौटाई. उम्मीद थी कि अगले दिन वो बैटिंग भी ठीक कर लेगा.
शुरूआत में कुछ दिन मुश्किल रहे. उसे पैड और ग्लब्स के साथ खेलने की आदत नहीं थी. बैट भी प्रॉपर नहीं था. मगर फिर वह जल्द ही रिदम में आ गया. एक दिन वह नेट्स के बाद आया. आचरेकर सर पहुंचे और बोले कि इस तरह से तुम्हें खेलना होगा, आगे भी. तभी तय हुआ कि वह नंबर चार पर खेलेगा. ऐसा रमाकांत सर बोले.
क्रिकेट करियर के शुरूआत में ही कई टेस्ट सेंचुरी जड़कर वह सुर्खियों में आ गए. वह पहले मिलियेनर क्रिकेटर बने. मेरे लिए पैसों का कोई मतलब नहीं था. उसकी सेंचुरी बनी तो वह मिलियंस कमाने की तरह था. अगर वो अच्छा खेला तो हमें रिक्शे में घूमने में भी मजा आया. रन नहीं बने, तो फरारी चलाने में भी मजा नहीं आया. लोग कह सकते हैं कि बहुत पैसा कमा लिया. मगर हमारे घर में उसके रन और सेंचुरी का ही महत्व था. आज मैं उसके करियर की आखिरी बेला में कह सकता हूं कि इंटरनेशनल क्रिकेट में 100 से ज्यादा शतक, पचास हजार से ज्यादा रन फर्स्ट क्लास क्रिकेट में. तीन वर्ल्ड कप में भारत के लिए सबसे ज्यादा रन बनाना. अब इन सबके बाद हम कह सकते हैं कि वह हमेशा ही मिलियेनर रहेंगे हमारे लिए.
सचिन रिक्शे और टैक्सी पर कब बैठे?
हम बीएमडब्ल्यू जे फाइव में थे. दो रेगुलर सूटकेस, एक हैंडबैग और एक कोफिन था. बांद्रा फ्लाईओवर पर पहुंचे, तो कुछ गड़बड़ी समझ आई. सचिन बोले कुछ गलत चल रहा है. बाहर आए तो देखा कि कार पंक्चर थी. हमारे साथ सिक्योरिटी गार्ड नहीं था उस वक्त. कुछ आपस में बात करनी थी. सुबह के 6.30 बजे थे. ज्यादा ट्रैफिक नहीं था. हम दूसरी कार के लिए नहीं बोल सकते थे. एयरपोर्ट पर लेट हो जाते थे. हमने टैक्सी रोकी और रिक्शा भी रोका. तब सचिन बाहर आए. टैक्सी और रिक्शे वालों को यकीन नहीं हुआ. हमें सारे बैगेज टैक्सी में रखे. सचिन टैक्सी में सामान के बीच थे, और मैं रिक्शे पर था. एयरपोर्ट पर सब चौंके हुए थे.
सबसे यादगार कमेंट किसका रहा अब तक?
शारजाह में आॅस्ट्रेलिया के खिलाफ जब बैक टु बैक दो सेंचुरी मारीं. जब फाइनल में सेंचुरी मारी, तो मेरे करीबी दोस्त ने फोन किया. उनकी मां ने सचिन की पारी देखी थी. हम लाइव नहीं देखते थे. वह बोला, तुम्हें यकीन नहीं होगा, सचिन इतना अच्छा खेला कि मेरी मां मैच देखने के बाद खुशी के मारे रोने लगीं. वो लम्हा बार बार याद आता है.
1998 का आपने किस्सा सुनाया. 1999 में वर्ल्ड कप के दौरान पिता का देहांत हुआ. अंजलि ने बताया कि वह आधी रात सचिन के कमरे में गईं और बताया. अगर पापा पांच मिनट के लिए फिर से जिंदा हो जाते तो वह भी वही कहते, जो हमने कहा कि वापस जाओ और देश के लिए खेलो. पापा का उसके करियर पर सबसे ज्यादा असर रहा. जाहिर है कि जब वह अंतिम संस्कार के लिए घर आया, तो दुखी था. पापा के अटैक के दो महीने पहले भी एक हार्ट अटैक हुआ था. उस वक्त भी मुझे याद है भारतीय टीम श्रीलंका में थी. पापा बेड पर थे, आॅक्सीजन मास्क लगा था. अगले दिन सचिन को जाना था वहां. मैंने पापा को बताया रात के वक्त, कल सचिन को जाना है खेलने. मैं उसे नहीं बताऊंगा कि आपको अटैक हुआ है. वह मुस्कुराए. उन्होंने इशारे में कहा कि ठीक किया.
अगले दिन सचिन श्रीलंका गया. और वह हॉस्पिटल से ही उसे खेलते देख खुश थे. इसीलिए मैं कह रहा हूं कि अगर वह पांच मिनट के लिए भी फिर से जीवित होते तो यही खेलते, खेल जाकर. इसलिए हमने उसे समझाया और उसे फिर से इंग्लैंड भेजा.
आप लोग सचिन के साथ बहुत सख्ती से पेश आते हैं.कौन सी पारी ज्यादा करीब है आपके?
चेन्नई की टेस्ट पारी जब भारत हार गया और हरियाणा के खिलाफ रणजी पारी. व्यक्तिगत तौर पर चेन्नई में भारत पाकिस्तान से सचिन के शतक के बावजूद हार गया. वह न्यूजीलैंड दौरे से लौटा तो बहुत थका था. मैंने पाकिस्तान टूर की बात की, तो वो बोला कि मैं शायद नहीं खेलूं. मेरा उत्साह चला गया. वह वसीम अकरम और वकार यूनुस के खिलाफ नहीं खेलने की सोच रहा था. फिर वह खेला. पहली पारी में जीरो पर आउट हो गया. चौथे दिन वह 20 पर नाबाद खेलकर लौटा. भारत को 270 रन चेज करने थे. पिच खराब हो चुकी थी.जब वह खेलने गया था, तब 6 रन पर दो विकेट गिर चुके थे. उसे अपना और टीम का स्कोर बढ़ाना था. वह 256 पर आउट हुआ. जब आउट हुआ तो शतक (113) बन चुका था, उससे भी अहम था कि टीम पूरी तरह संकट से उबरी लग रही थी.मगर फिर वह हार से इतना दुखी था कि ड्रेसिंग रूम में रो रहा था. इकलौता मौका था, जब वह अपना मैन आॅफ द मैच अवॉर्ड लेने नहीं गया. राजसिंह डूंगरपुर ने जाकर समझाया कि अगर वह अब नहीं निकला, तो टीम घर नहीं जा पाएगी.
18 नवंबर की दोपहर कैसी होगी. क्या कई जिम्मेदारियों का सर्किल पूरा होगा?
सच कहूं तो हमें सचिन के लिए कभी कुछ बहुत खास नहीं करना पड़ा. वह शुरू से अनुशासन में रहता था. बस हमें उसके इर्द गिर्द रहना होता था. लेकिन हां, 18 नवंबर की दोपहर अलग होगी. हमने हमेशा उसके क्रिकेट के बारे में सोचा, ये सिर्फ उसका नहीं सबका साझा सपना था. वह खत्म हो जाएगा. लेकिन ये बहुत खुशनुमा नोट पर खत्म होगा. उसके ज्यादातर सपने सच हो चुके हैं और उम्मीद है कि उसने क्रिकेट आॅडियंस को खुश रखा.
अजीत, 24 साल से आप सचिन का मैच देखने नहीं गए हैं, अब जाएंगे आप?
हां मैं जाऊंगा क्योंकि ये आखिरी बार होगा. मैं ये मौका नहीं छोड़ूंगा. मेरा भाई 200 वां टेस्ट खेल रहा है. उस जगह खेल रहा है, जहां उसने क्रिकेट खेलना शुरू किया. सिर्फ मैं ही नहीं हमारा पूरा का पूरा परिवार खेलने जाएगा.
भाइयों में कभी आपसी मुकाबला भी हो जाता है, आपने पूरा जीवन सचिन के लिए समर्पित कर दिया. कभी बहस हुई हो?
हम हमेशा क्रिकेट पर ही बात करते हैं. कई बार आप चीजों की अलग अलग ढंग से व्याख्या करते हैं. सचिन बहुत नाइस है. उसने हमेशा मेरी राय सुनी. 12 साल से वह टूर करने लगा था. उसने दुनिया के बेस्ट बॉलर्स को खेला. मैं तो कभी घर से ही नहीं निकला. बस टीवी पर उसे देखा और अपनी राय दी. पर फिर भी मैं बोलता था और वो सुनता था. हां कभी कभी बहस हुई, पर वो क्रिकेट से जुड़े मुद्दों पर ही हुई. कुछ देर हुई. फिर कुछ देर में भूल गए और अगली बात करने लगे.