Saturday 23 November 2013

पड़ोसी राज्यों में सपा का इम्तिहान

मध्य प्रदेश और राजस्थान की सल्तनत का फैसला तो आठ दिसम्बर को सुनाया जाएगा पर उससे पहले मतदाताओं ने अपना फैसला सुनाने का मन बना लिया है। इस बार चुनाव आयोग की शक्ति जहां राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों के चुनाव पूर्व हथकण्डों पर भारी पड़ी वहीं राजनीतिक विशेषज्ञों के आकलन भी धरे के धरे रह गये। इन दोनों सूबों में प्रमुख मुकाबला भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच ही होता दिख रहा है, पर आगामी लोकसभा चुनावों से पहले इन दोनों राज्यों में समाजवादी पार्टी भी अपनी ताकत का आकलन पुरजोर तरीके से कर रही है। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को भरोसा है
कि उत्तर प्रदेश से सटे इन दोनों ही राज्यों में उनकी पार्टी बीते विधान सभा चुनावों से बेहतर प्रदर्शन करेगी।
देश की सल्तनत के लिए समाजवादी पार्टी वर्तमान नही बल्कि भविष्य देख रही है। इसी गरज से उसने मध्य प्रदेश और राजस्थान में तीसरे मोर्चे का गठन किया है।  इन दोनों राज्यों के विधान सभा चुनावों में तीसरे मोर्चे का क्या हश्र होगा यह तो समय बताएगा पर तीसरा मोर्चा यदि अपने मकसद में कामयाब हुआ तो आगामी लोकसभा चुनाव काफी पेंचीदा हो जाएगा। मध्य प्रदेश और राजस्थान में समाजवादी पार्टी ने अलग-अलग दलों से गठबंधन और सीटों का बंटवारा किया है। राजस्थान में समाजवादी पार्टी जनता दल (यू), जनता दल (एस), सीपीआई और सीपीएम के साथ गठबंधन कर 200 में से 50 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। पिछले चुनाव में ये सभी दल अलग-अलग चुनाव लड़े थे। 2008 में समाजवादी पार्टी को एक, जनता दल (यू) को एक और सीपीएम को तीन सीटें मिली थीं।
देखा जाए तो समाजवादी पार्टी लम्बे समय से राजस्थान में अपना जनाधार बढ़ाने की जुगत में है। अपनी प्राथमिक शिक्षा का धौलपुर से श्रीगणेश करने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का भी राजस्थान से दिली लगाव है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद से वह कई बार राजस्थान का दौरा कर चुके हैं। जो भी हो राजस्थान की सियासत फिलहाल कांग्रेस और भाजपा के बीच ही चल रही है। मौजूदा विधान सभा चुनावों में सियासत का ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो समय बतायेगा पर इन चुनावों में तीसरे मोेर्चे की उम्मीदों को जिस तरह पर लगे हैं उससे कांग्रेस और भाजपा की दाल में कंकड़ परड़ने से इंकार नहीं किया जा सकता।
राजस्थान से इतर समाजवादी पार्टी ने मध्य प्रदेश में सीपीआई, सीपीएम और समानता दल से गठबंधन किया है जबकि रिपब्लिकन पार्टी आॅफ इंडिया मोर्च को बाहर से समर्थन कर रही है। मध्य प्रदेश में 25 नवम्बर को होने जा रहे विधान सभा चुनाव में 67 दलों के 2583 प्रत्याशी 230 सीटों के लिए मशक्कत कर रहे हैं। सत्तासीन भाजपा जहां सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है वहीं कांग्रेस 229 सीटों पर अपना भाग्य आजमा रही है। बहुजन समाज पार्टी 227 तो समाजवादी पार्टी 164 सीटों पर ताल ठोक रही है। मध्य प्रदेश सपा अध्यक्ष गौरीशंकर यादव को भरोसा है कि इस बार उनकी पार्टी पिछले चुनाव से बेहतर प्रदर्शन करेगी। मध्य प्रदेश में 2008 के विधान सभा चुनावों में समाजवादी पार्टी 187 सीटों पर चुनाव लड़ी थी जिसमें उसे केवल निवाड़ी में सफलता मिली थी। तब मीरा यादव ने समाजवादी पार्टी का जीत का खाता खोला था।
देखा जाए तो इस बार के चुनावों में सपा ने राजस्थान और मध्य प्रदेश में जातीय गणित और वोटों को ध्यान में रखकर मोर्चा बनाया है। राजस्थान और मध्य प्रदेश में सपा के पास एक-एक सीट थी। इस बार जिस तरह कांग्रेस और भाजपा के असंतुष्ट भितरघात कर रहे हैं उसे देखते हुए अगर सारे जातीय समीकरण और वोट मिल जाते हैं तो इन दोनों राज्यों में तीसरे मोर्चे को कुछ हद तक संजीवनी मिल सकती है। राजस्थान में समाजवादी पार्टी ने मुस्लिम और जनजातियों को अपने वोट का आधार बनाते हुए जहां उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं वहीं मध्य प्रदेश में मुस्लिम, जनजाति, यादव और दलित वोटों पर फोकस किया है, एमपी में उसका यह काम आसान नहीं लगता। हां, इस बार सपा ग्वालियर चम्बल सम्भाग की कुछ सीटों खासकर भिण्ड में अपना जनाधार बढ़ा सकती है। मध्य प्रदेश में पिछली बार समाजवादी पार्टी 187 सीटों पर चुनाव लड़ी थी जिसमें 183 सीटों पर उसके प्रत्याशियों की जमानत तक जब्त हो गई थी और उसे केवल 1.99 फीसदी वोट ही मिले थे।  इस बार सपा की सीटों और जनाधार में इजाफा होने से इंकार नहीं किया जा सकता।  सपा की प्रमुख प्रतिद्वन्द्वी बहुजन समाज पार्टी से तुलना की जाए तो पिछले चुनाव में उसे ज्यादा वोट और सीटें मिली थीं। बसपा मध्य प्रदेश में पिछली बार 228 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और सात सीटों पर परचम लहराते हुए 8.97 फीसदी वोट कबाड़े थे। इस बार भी बहुजन समाज पार्टी बेहतर स्थिति में है। वह मौजूदा चुनावों में अपने जीत का आंकड़ा दो अंकों में कर सकती है।

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