Saturday 30 November 2013

आन-बान-शान का अपमान

तिरंगा झण्डा हमारे देश की सम्प्रभुता ही नहीं उसकी आन-बान और शान का प्रतीक है, मगर आजादी के 66 साल बाद भी हम अपने समाज को तिरंगे की महत्ता व उसके स्वाभिमान से अवगत कराने में नाकारा साबित हुए हैं। जहां तक तिरंगे के अपमान की बात है मुल्क में इसके अनगिनत उदाहरण हैं। तिरंगे के अपमान के जितने मामले सामने आये उनमें किसी को कोई सजा नहीं हुई। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। यह बात हर राजनीतिज्ञ और देश की आवाम मानती है पर कश्मीर के क्रियाकलापों पर नजर डालें तो लगता ही नहीं कि यह हमारा स्वर्ण मुकुट है। कश्मीर में चल रही हैदर की शूटिंग में कुछ अराजक तत्वों द्वारा तिरंगा नहीं फहराने दिया गया। चन्द विश्वविद्यालयीन छात्रों के विरोध का प्रतिकार करने की बजाय तिरंगा उतार लिया जाना हमारी सल्तनतों के मानसिक दब्बूपन का ही सूचक है।
अब सवाल यह उठता है कि कश्मीर में तिरंगे के साथ जो हुआ उसमें हमारी केन्द्र और कश्मीर सरकार ने क्या कदम उठाए? केन्द्र सरकार प्रतिवर्ष कश्मीर की सुरक्षा व्यवस्था पर अरबों रुपये पानी की तरह बहाती है लेकिन कभी सैनिकों के सर कलम कर दिये जाते हैं तो कभी तिरंगे के स्वाभिमान को चोट पहुंचती है। इतना सब होने के बाद भी कश्मीर हमारा है, यह हमें जान से प्यारा है, यह मानसिकता वहां के लोगों में आज तक हम पैदा क्यों नहीं कर सके? सवाल अकेले कश्मीर का नहीं है तिरंगे के अपमान की कई कारगुजारियां हमारी सरकारों को बार-बार मुंह चिढ़ाती रही हैं। दुर्भाग्य की बात है कि तिरंगे के अपमान के भूलवश वाक्यों में तो हमारे राजनीतिज्ञ खूब हायतौबा मचाते हैं लेकिन जान-बूझकर तिरंगे का अपमान और उसका सरेराह फूंका जाना किसी को नजर नहीं आता।
दरअसल, हम आजादी के 66 साल बाद भी में देश की आवाम के मन में तिरंगे के प्रति सम्मान की भावना नहीं ला सके हैं। निश्चय ही इस स्वाभिमान से जुड़े मसले पर हमारी सल्तनतों में कहीं न कहीं कोई कमी जरूर है। देखा जाए तो तिरंगे के अपमान पर सारा का सारा दोष केन्द्र सरकार पर मढ़ दिया जाता है, जबकि तिरंगे के स्वाभिमान की हिफाजत की जवाबदेही सभी राज्य सरकारों सहित हम सबकी है। हमें इसके लिए न केवल दूरगामी और साहसपूर्ण कदम उठाने होंगे बल्कि अपने अंतस में एक शक्तिशाली, मानवीय और दृढ़ मानसिकता लानी होगी। जाने-माने निर्माता-निर्देशक व संगीतकार विशाल भारद्वाज की फिल्म हैदर की श्रीनगर में चल रही शूटिंग के दौरान तिरंगा लहराने और शूटिंग करने पर विश्वविद्यालय के छात्रों ने न केवल हंगामा बरपाया बल्कि इन बिगड़ैलों ने मुल्क के खिलाफ नारे भी लगाए। अब सवाल यह उठता है कि श्रीनगर में फिल्म की शूटिंग में तिरंगा फहराना क्यों मुहाल हुआ?
इस वाक्ये से हमारी सल्तनतों और हमारी सम्प्रभुता पर कई सवाल खड़े होते हैं। इन कश्मीरी बिगड़ैलों का यह हंगामा सिर्फ हंगामा नहीं बल्कि देशद्रोह का मामला है। इस अक्षम्य हरकत पर हमारी सरकारों की मूकदर्शिता दयनीय स्थिति का ही परिचायक है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर मुल्क की सल्तनतें कुछ मुट्ठी भर लोगों के सामने इतनी दयनीय क्यों होती जा रही हैं? हमारे इस दब्बूपन से क्या एक देश की सीमाएं, उनकी शुतुरमुर्गी मानसिकता से बची रह सकती हैं? तिरंगे का यह अपमान क्या देश के सम्मान को ठेस नहीं है? दरअसल, यह पूरा का पूरा प्रकरण सम्प्रभु नागरिकों की मानसिकता को आहत करने वाला है। सरकार को जो भी सम्भव हो इसके लिए कठोर कदम उठाने चाहिए। किसी शक्तिशाली राष्ट्र के लिए जरूरी है कि वह अपनी आन-बान-शान से कोई समझौता न करे। कोई भी राष्ट्र अपनी शक्ति से ही पहचाना जाता है। तिरंगे के अपमान पर आंखें चुराने की यह मानसिकता देश के लिए दूरगामी तौर पर नुकसानदायक साबित हो सकती है। हमारे ही देश में ऐसे लोग क्यों हैं, जोकि यहां खुशहाल जीवन बसर करते हुए भी पाकिस्तान की मुखालफत करते हैं। एक सक्षम देश के लिए मानवीयता का सम्मान करना जहां उसका दायित्व है वहीं अपराध और देशद्रोह का पूरी ताकत के साथ प्रतिकार करना उसका नैतिक अधिकार है।
कश्मीर में हैदर फिल्म की शूटिंग के दौरान जो हुआ उसे सहजता से बिसराया नहीं जा सकता। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है बावजूद वहां जब-तब  कश्मीर की आजादी और पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाए जाते हैं। कश्मीर तो कश्मीर हैदराबाद सहित मुल्क के अन्य शहरों में भी पाकिस्तानपरस्त लोग प्राय: तिरंगे को आग के हवाले करते देखे गये पर हमारी डरपोक हुकूमतें हमेशा स्वाभिमान के इस मसले पर कार्रवाई करने की बजाय चुप्पी साध लेती हैं। दरअसल, जब तक मुल्क में राजनीतिज्ञ जातिवाद की अलख जगाते हुए वोट बैंक की राजनीति करते रहेंगे हमारी आवाम को अपने स्वाभिमान से बार-बार समझौता करना ही पड़ेगा। एक जाति विशेष के लोगों का तिरंगे के प्रति नफरत रखना अखण्ड भारत के लिए शुभ संकेत नहीं कहा जा सकता। मुल्क के भीतर इस नफरत को समय रहते खत्म नहीं किया गया तो सच मानिये देश एक और विभाजन की तरफ बढ़ जाएगा, जोकि हिन्दुस्तान के लिए काला अध्याय साबित होगा। हमारी सल्तनतों को ऐसे फिरकापरस्त लोगों पर नकेल डालनी ही होगी वरना मुल्क के स्वाभिमान को पहुंचाई जा रही ये छोटी-छोटी चोटें एक दिन नासूर का रूप ले लेंगी। 

No comments:

Post a Comment