अपने तेज, वेग और चमत्कारिक खेल से 24 साल तक क्रिकेट को गौरवान्वित करने वाले सचिन तेंदुलकर 18 नवम्बर को अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धी क्रिकेट से विरत होने जा रहे हैं। सचिन के इस शाही संन्यास के बाद क्रिकेट मुरीद इस नायाब खिलाड़ी का अश्क दूसरे खिलाड़ियों में जरूर खोजेंगे पर सूर्य सा तेज और वायु सा वेग हर किसी में नहीं होता। खिलाड़ियों का आगाज और अवसान खेल का हिस्सा है। शिखर सीधी-सपाट जगह नहीं होती जिस पर मनचाहे समय तक रुका जा सके। महानतम सचिन भी इसका अपवाद नहीं रहे। इस खिलाड़ी का जीवन भी उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। कई बार लगा कि इस खिलाड़ी की क्रिकेट अवसान पर है लेकिन फौलादी सचिन ने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के बूते न केवल खराब समय को जिया बल्कि कुंदन बनकर चमके भी।
सचिन ने बहुत कम अवसरों पर अपने मुरीदों को निराश किया। वह शिद्दत से भारतीय क्रिकेट का लोहा दुनिया भर में मनवाते रहे। अपनी पारी को हमेशा संभालने, संवारने और उसे बड़े स्कोर तक ले जाने की न केवल कोशिश की बल्कि उसमें सफलता भी पाई। उनमें अच्छे स्ट्रोक्स, तेज गेंदबाज को जीवट के साथ खेलने की क्षमता होने के साथ-साथ लम्बी पारियां खेलने का धैर्य भी रहा। यही वजह रही कि सचिन क्रिकेट की धड़कन और भारतीय जनसैलाब का प्रतीक बने। मैदान में उनका विध्वंसक खेल अतुलनीय तो मैदान के बाहर का उनका शौम्य-शिष्ट व्यवहार हमेशा लोगों के लिए अनुकरणीय रहा है। समय गतिमान है वह किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। 24 साल तक अपने मुरीदों के दिलों पर राज करने वाला यह खिलाड़ी तो रहेगा पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धी क्रिकेट उसके नायाब खेल से महरूम होगी।
आज क्रिकेट से बेशुमार मोहब्बत करने वाले हर शख्स के मन में सचिन के संन्यास की पीड़ा ही तो है जोकि इस खिलाड़ी को महानतम लोगों की कतार में शामिल करती है। दुनिया भर की तमाम समझदारी का साझा सच यही है। सचिन भारत का अनमोल हीरा है जिसकी चमक सदियों तक महसूस की जाएगी। उम्र सनातन सत्य है और हर सत्य का अपना अमिट प्रभाव होता है। 40 साल के सचिन में 20 साल के सचिन की चपलता, उसके रिफ्लेक्शन और शॉट सेलेक्शन से नाखुश लोग कुछ भी कहते हों पर सचिन की तुलना सिर्फ और सिर्फ सचिन से ही की जा सकती है।
आप ब्रेडमैन के फुटेज देखिए, आपको मालूम हो जाएगा कि वह अपने समकालीनों से पूर्णत: अलग क्लास के बल्लेबाज थे। उन्हें कोई ऐसी चीज प्रेरित करती थी जिसे शायद वह भी पूरी तरह से समझ नहीं पाते थे। यही हाल सचिन का भी है जिन्होंने 16 वर्ष की आयु में टेस्ट क्रिकेट खेलनी आरम्भ की और 24 वर्ष तक खेल में अपना महत्व और प्रभुत्व बनाए रखा। वह जब भी बल्लेबाजी करने के लिए उतरते हैं करोड़ों लोगों की उम्मीदों और आशाओं का बोझ उन पर होता है। मुम्बई में भी ऐसा ही होगा। आज भी लोगों का विश्वास जिन्दा है। सचिन के मुरीदों को भरोसा है कि वह अपने अंतिम टेस्ट में कुछ अनोखा करेगा। हो सकता है वह तिहरा शतक भी लगा दे। लोगों का सचिन पर यही विश्वास उन्हें अपने समकालीनों को छोड़िए, ब्रेडमैन से भी अलग कर देता है। ब्रेडमैन ने तो अपनी अधिकतर क्रिकेट इंग्लैण्ड के खिलाफ ही केली पर सचिन ने ज्यादा देशों व विभिन्न स्थितियों में क्रिकेट को अंजाम तक पहुंचाया। इस खिलाड़ी ने एक ऐसा बैटिंग रिकार्ड स्थापित किया है जिसे शायद कभी चुनौती न दी जा सके। यह केवल उनकी प्रतिभा नहीं है बल्कि भटकाने वाली चीजों से अपने को अलग रखने या स्विच आॅफ करने की अद्भुत क्षमता भी है।
सचिन एक मिथ हैं। एक ऐसा मिथ जिसके लिए हर कल्पना छोटी है। दरअसल किसी खिलाड़ी की सफलता भले वैयक्तिक होती हो लेकिन उस सफलता का असर सार्वजनिक होता है। सफलता से प्रभावित होने वाले अनगिनत होते हंै तो सफलता से जलने वाले भी कम नहीं होते। ऐसा नहीं है कि सचिन से जो चिढ़ते हों, वे सचिन के समकालीन ही हों, क्रिकेटर ही हों और उन्हीं के जैसे विश्व क्रिकेट में नाम और महत्व रखते हों। सचिन से चिढ़ने वालों में कोई भी हो सकता है। उनसे कम उम्र का, ज्यादा उम्र का क्रिकेटर, गैर क्रिकेटर यानी कोई भी। सचिन इस सबके बावजूद भारतीय क्रिकेट के वह मिथक हैं, जिनकी व्याख्या कर पाना शब्दों के बस में भी नहीं है। दरअसल सचिन ऐसा मिथ हैं जिनके विरोधी हमेशा हाथ मलते रहेंगे और सिर धुनते रहेंगे कि आखिर वह कभी बेनकाब क्यों नहीं हुआ?
अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धी क्रिकेट में 24 साल तक अपने शानदार खेल का आगाज और शतकों का शतक तथा 33000 से अधिक रन बनाना हंसी खेल नहीं है। लोगों को बहुत समय तक याद नहीं रहता पर सचिन की चपलता, अपर कट और उसके स्ट्रेट ड्राइव की दर्शनीयता अक्षुण्ण है जोकि शायद ही लोग भूल पाएं। अगर हम सचिन को क्रिकेट का भगवान मानते हैं, अगर हम यह मानते हैं कि क्रिकेट इतिहास में वह दुर्लभ जीनियस हैं और इतिहास के पन्नों में हमेशा अजर अमर रहेंगे तो हमें इस नटवर नागर को दिल से सलाम करते हुए इस दुर्लभ संयोग का आनंद लेना ही चाहिए। पिछले कुछ समय से उसके चाहने वालों ने बेशक सचिन की बिजली की रफ्तार से कौंधती स्क्वायर ड्राइव और स्ट्रेट कट का लुत्फ न उठाया हो पर उसकी मौजूदगी हमेशा भारतीय क्रिकेट को बड़ा कद मुहैया कराती रही है। करोड़ों दिलों की इस धड़कन ने दुनिया भर को अतीत में ऐसी दुर्लभ कौंधें दिखाई हैं जिनका अब सिर्फ इतिहास के पन्नों में ही जिक्र मिलेगा।
सचिन ने बहुत कम अवसरों पर अपने मुरीदों को निराश किया। वह शिद्दत से भारतीय क्रिकेट का लोहा दुनिया भर में मनवाते रहे। अपनी पारी को हमेशा संभालने, संवारने और उसे बड़े स्कोर तक ले जाने की न केवल कोशिश की बल्कि उसमें सफलता भी पाई। उनमें अच्छे स्ट्रोक्स, तेज गेंदबाज को जीवट के साथ खेलने की क्षमता होने के साथ-साथ लम्बी पारियां खेलने का धैर्य भी रहा। यही वजह रही कि सचिन क्रिकेट की धड़कन और भारतीय जनसैलाब का प्रतीक बने। मैदान में उनका विध्वंसक खेल अतुलनीय तो मैदान के बाहर का उनका शौम्य-शिष्ट व्यवहार हमेशा लोगों के लिए अनुकरणीय रहा है। समय गतिमान है वह किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। 24 साल तक अपने मुरीदों के दिलों पर राज करने वाला यह खिलाड़ी तो रहेगा पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धी क्रिकेट उसके नायाब खेल से महरूम होगी।
आज क्रिकेट से बेशुमार मोहब्बत करने वाले हर शख्स के मन में सचिन के संन्यास की पीड़ा ही तो है जोकि इस खिलाड़ी को महानतम लोगों की कतार में शामिल करती है। दुनिया भर की तमाम समझदारी का साझा सच यही है। सचिन भारत का अनमोल हीरा है जिसकी चमक सदियों तक महसूस की जाएगी। उम्र सनातन सत्य है और हर सत्य का अपना अमिट प्रभाव होता है। 40 साल के सचिन में 20 साल के सचिन की चपलता, उसके रिफ्लेक्शन और शॉट सेलेक्शन से नाखुश लोग कुछ भी कहते हों पर सचिन की तुलना सिर्फ और सिर्फ सचिन से ही की जा सकती है।
आप ब्रेडमैन के फुटेज देखिए, आपको मालूम हो जाएगा कि वह अपने समकालीनों से पूर्णत: अलग क्लास के बल्लेबाज थे। उन्हें कोई ऐसी चीज प्रेरित करती थी जिसे शायद वह भी पूरी तरह से समझ नहीं पाते थे। यही हाल सचिन का भी है जिन्होंने 16 वर्ष की आयु में टेस्ट क्रिकेट खेलनी आरम्भ की और 24 वर्ष तक खेल में अपना महत्व और प्रभुत्व बनाए रखा। वह जब भी बल्लेबाजी करने के लिए उतरते हैं करोड़ों लोगों की उम्मीदों और आशाओं का बोझ उन पर होता है। मुम्बई में भी ऐसा ही होगा। आज भी लोगों का विश्वास जिन्दा है। सचिन के मुरीदों को भरोसा है कि वह अपने अंतिम टेस्ट में कुछ अनोखा करेगा। हो सकता है वह तिहरा शतक भी लगा दे। लोगों का सचिन पर यही विश्वास उन्हें अपने समकालीनों को छोड़िए, ब्रेडमैन से भी अलग कर देता है। ब्रेडमैन ने तो अपनी अधिकतर क्रिकेट इंग्लैण्ड के खिलाफ ही केली पर सचिन ने ज्यादा देशों व विभिन्न स्थितियों में क्रिकेट को अंजाम तक पहुंचाया। इस खिलाड़ी ने एक ऐसा बैटिंग रिकार्ड स्थापित किया है जिसे शायद कभी चुनौती न दी जा सके। यह केवल उनकी प्रतिभा नहीं है बल्कि भटकाने वाली चीजों से अपने को अलग रखने या स्विच आॅफ करने की अद्भुत क्षमता भी है।
सचिन एक मिथ हैं। एक ऐसा मिथ जिसके लिए हर कल्पना छोटी है। दरअसल किसी खिलाड़ी की सफलता भले वैयक्तिक होती हो लेकिन उस सफलता का असर सार्वजनिक होता है। सफलता से प्रभावित होने वाले अनगिनत होते हंै तो सफलता से जलने वाले भी कम नहीं होते। ऐसा नहीं है कि सचिन से जो चिढ़ते हों, वे सचिन के समकालीन ही हों, क्रिकेटर ही हों और उन्हीं के जैसे विश्व क्रिकेट में नाम और महत्व रखते हों। सचिन से चिढ़ने वालों में कोई भी हो सकता है। उनसे कम उम्र का, ज्यादा उम्र का क्रिकेटर, गैर क्रिकेटर यानी कोई भी। सचिन इस सबके बावजूद भारतीय क्रिकेट के वह मिथक हैं, जिनकी व्याख्या कर पाना शब्दों के बस में भी नहीं है। दरअसल सचिन ऐसा मिथ हैं जिनके विरोधी हमेशा हाथ मलते रहेंगे और सिर धुनते रहेंगे कि आखिर वह कभी बेनकाब क्यों नहीं हुआ?
अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धी क्रिकेट में 24 साल तक अपने शानदार खेल का आगाज और शतकों का शतक तथा 33000 से अधिक रन बनाना हंसी खेल नहीं है। लोगों को बहुत समय तक याद नहीं रहता पर सचिन की चपलता, अपर कट और उसके स्ट्रेट ड्राइव की दर्शनीयता अक्षुण्ण है जोकि शायद ही लोग भूल पाएं। अगर हम सचिन को क्रिकेट का भगवान मानते हैं, अगर हम यह मानते हैं कि क्रिकेट इतिहास में वह दुर्लभ जीनियस हैं और इतिहास के पन्नों में हमेशा अजर अमर रहेंगे तो हमें इस नटवर नागर को दिल से सलाम करते हुए इस दुर्लभ संयोग का आनंद लेना ही चाहिए। पिछले कुछ समय से उसके चाहने वालों ने बेशक सचिन की बिजली की रफ्तार से कौंधती स्क्वायर ड्राइव और स्ट्रेट कट का लुत्फ न उठाया हो पर उसकी मौजूदगी हमेशा भारतीय क्रिकेट को बड़ा कद मुहैया कराती रही है। करोड़ों दिलों की इस धड़कन ने दुनिया भर को अतीत में ऐसी दुर्लभ कौंधें दिखाई हैं जिनका अब सिर्फ इतिहास के पन्नों में ही जिक्र मिलेगा।
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