Thursday 19 December 2013

सपा की जमीनी सियासत

हाल के पांच राज्यों के चुनाव नतीजों ने यह दिखा दिया कि देश में हवा और युवाओं का रुख किस ओर है। यह कहना अभी मुश्किल है कि यह हवा आने वाले महीनों में तूफान की शक्ल लेगी या नहीं लेकिन भाजपा के पक्ष में बह रहे हवा के इस प्रवाह को रोकने के लिए उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने जमीनी प्रयास तेज कर दिये हैं। सपा जानती है कि यदि आगामी लोकसभा भी अंग-भंग हुई तो देश की सियासत में उसकी क्या अहमियत होगी। समाजवादी पार्टी यह भी जानती है कि मुल्क के तख्तोताज में उत्तर प्रदेश कितना मायने रखता है। खुशखबर है कि सपा उत्तर प्रदेश की सरताज है।
देखा जाए तो मुल्क के प्रत्येक राज्य की राजनीतिक परिस्थितियां भिन्न-भिन्न हैं और आगामी लोकसभा चुनाव में समीकरण अलग-अलग ढंग से काम करेंगे। केन्द्र सरकार से जुड़कर 10 साल मजे करने वाले राजनीतिक दलों को अब अहसास हो रहा है कि गलाकाट महंगाई के चलते कांग्रेस के पैरों के नीचे से जमीन बहुत तेजी से खिसक रही है। कांग्रेस से मोहभंग होते मतदाता भाजपा की गोदी में न बैठें इसके लिए छोटे-छोटे राजनीतिक दलों ने अपने-अपने सूबों में युवाओं को लोकलुभावन सौगातों का प्रलोभन देना प्रारम्भ कर दिया है। आगत लोकसभा चुनानों में कांग्रेस की मतदाताओं पर कमजोर होती पकड़ का असर कई तरह से पड़ने वाला है, इस बात के मद्देनजर उसकी सहयोगी पार्टियां कांग्रेस की सरपरस्ती में चुनाव लड़ने से जरूर परहेज करेंगी। सबको डर है कि कहीं उनके लिए कांग्रेस की यारी आत्मघाती न साबित हो जाए। एक माह पहले तक जो दल कांग्रेस का हाथ थामकर कमल दल के खिलाफ चुनाव लड़ने का मन बना रहे थे, उन्हें अब सांप सूंघ गया है और वे अब एकला चलकर ही दिल्ली पहुंचने में भलाई समझ रहे हैं।  सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव, मायावती, ममता बनर्जी, नवीन पटनायक, नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव हवा देखकर रुख बदलने में माहिर हैं और वे सिद्धांतों या आदर्शों की परवाह किए बिना सफलता की जहां गारण्टी मिलेगी उसी के साथ चल पड़ेंगे। कांग्रेस के सहयोगी दलों की चिन्ताएं दो तरह की हैं। सबसे पहली चिन्ता यह कि क्या कांग्रेस ऐसा नेतृत्व दे सकती है जो चुनाव में विजय दिलाने की क्षमता रखता हो। पिछले कुछ समय से कांग्रेस घोषित तौर पर न सही, लेकिन साफ संकेत दे रही है कि आगत लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ही उसके तारणहार होंगे। कांगेस के अब तक के प्रदर्शन को देखें तो राहुल गांधी यह भरोसा नहीं जगा पाए हैं कि वे कारगर नेतृत्व देने की क्षमता रखते हैं। जबकि उसके उलट कमल दल ने अनुभवी और वाक्पटु नरेन्द्र मोदी को जब से आगे किया है, देश का युवा मतदाता केसरिया रंग में रंगता दिख रहा है।
समय कम है और सामने चुनौती बड़ी है इस बात को ध्यान में रखते हुए समाजवादी पार्टी ने चार राज्यों की असफलता पर विधवा विलाप करने की बजाय उत्तर प्रदेश में ही अपनी सारी शक्ति झोंक देने का मन बना लिया है। सपा जानती है कि यूपी में उसके पास न केवल मुस्लिमों का बड़ा जनाधार है बल्कि अखिलेश सरकार ने युवाओं के हाथ कम्प्यूटर सौंपकर अन्य दलों को उलझन में डाल दिया है। उत्तर प्रदेश में चार राजनीतिक दलों का जनाधार है और हर दल यहां की 80 लोकसभा सीटों में अधिक से अधिक पर विजय हासिल करने को उतावला है। कांग्रेस ने  खाद्य सुरक्षा कानून और लोकपाल के जरिये आमजन का दिल जीतने की कोशिश तो जरूर की है पर महंगाई की धार इतनी तेज है कि उसका असर शायद ही लोगों के दिलोदिमाग पर असर दिखाए।
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस, भाजपा, बसपा और सपा की शक्ति का अंदाजा लगाएं तो सपा का वजूद ज्यादा मजबूत दिखाई दे रहा है। लोकपाल विधेयक पर कांग्रेस का साथ न देकर सपा ने जता दिया है कि वह लोकसभा चुनाव से पहले सूबे के प्रशासनिक अधिकारियों के जेहन में किसी प्रकार का कोई डर पैदा नहीं करना चाहती। सपा जानती है कि युवा शक्ति और प्रशासनिक मशीनरी ही उसे अधिक से अधिक सीटें दिला सकती है। कुछ दिन पहले मुलायम सिंह ने आधी आबादी को तरजीह देने की मंशा जताकर भाजपा को बैकफुट पर ला दिया है। सूबे के मुखिया अखिलेश यादव की मंशा है कि प्रदेश में चहुंओर विकास की बयार बहे। इसी गरज से उन्होंने वित्त वर्ष शुरू होने से पहले ही महत्वपूर्ण विकास कार्यों का विभागवार एजेण्डा बनाकर इसे लागू करने का काम तेज गति से प्रारम्भ कर दिया है। प्रदेश के विकास को गति देने को सरकार ने लोक निर्माण, ऊर्जा, अवस्थापना, औद्योगिक विकास और चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में जान फंूक दी है। अखिलेश सरकार ने चिकित्सकों की कमी को दूर करने और लोगों को अच्छी चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के लिए न केवल एमबीबीएस की 500 सीटों में बढ़ोत्तरी कराई बल्कि नए मेडिकल कॉलेजों के संचालन की भी नेक पहल प्रारम्भ कर दी है। राज्य में अच्छी सड़कों एवं पुलों का जाल बिछने लगा है तो सरकार ने लगभग दो लाख किलोमीटर ग्रामीण सड़कों के अनुरक्षण के लिए ग्राम सम्पर्क मार्ग अनुरक्षण नीति बनाकर लागू करने का फैसला भी ले लिया है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने प्रदेश की बिजली समस्या के समाधान के लिए कमर कस ली है तो खेल-खिलाड़ियों के प्रोत्साहन और मदद के लिए अपना पिटारा खोल दिया है। सूबे के मुखिया का मानना है कि जब तक उत्तर प्रदेश का विकास नहीं होगा, तब तक देश   का विकास नहीं होगा, इसी गरज से राज्य सरकार कृषि के साथ-साथ औद्योगीकरण पर भी खास ध्यान दे रही है। सपा उत्तर प्रदेश में अधिक से अधिक सीटें जीतकर अपने सुप्रीमो मुलायम को मुल्क का तख्तोताज सौंपना चाहती है लेकिन यह तभी सम्भव होगा जब कमल दल सूबे में उससे आगे न निकले।

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