Saturday 9 November 2013

सपा के गढ़ में मोदी की नमो-नमो

देश की सल्तनत के लिए चुनाव होने में अभी वक्त है, पर राजनीतिक दल पांच राज्यों में होने जा रहे विधान सभा चुनावों में अपनी ताकत का अंदाजा लगाने की पुरजोर कोशिश में जुट गए हैं। उत्तर प्रदेश अभी विधान सभा चुनावों से बहुत दूर है, पर यहां की 22 करोड़ जनता राजनीतिक दलों की नजर में है। चुनाव कोई भी हो देश का सबसे बड़ा सूबा उत्तर प्रदेश राजनीतिक दलों के मानस को जरूर हलाकान करता है। इसकी वजह यहां की 80 लोकसभा सीटें हैं। सभी दल जानते हैं कि उत्तर प्रदेश से ही देश के दिल दिल्ली के तख्तोताज को रास्ता जाता है। आगामी लोकसभा चुनावों का बिगुल बजने में अभी वक्त है, बावजूद कमल दल के प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार नरेन्द्र मोदी समाजवादी पार्टी के राजनीतिक गढ़ में सेंध लगाने की खातिर 19 अक्टूबर को कानपुर में नमो-नमो करने जा रहे हैं। भाजपा की इस भावना को भांपते हुए राज्य के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव 18 अक्टूबर को ही कानपुर को विकास की सौगातें सौंपकर कमल दल की हवा निकालने का जतन कर चुके हैं। इस नूरा-कुश्ती में नफा-नुकसान का पता लगने में अभी वक्त है, पर सपा का यह राजनीतिक पैंतरा मोदी के प्रयासों पर पानी फेर सकता है।
जो भी हो मोदी की 19 अक्टूबर की कानपुर रैली को ऐतिहासिक बनाने के लिए कमल दल ने पूरी ताकत झोंक दी है। पार्टी को भरोसा है कि कानपुर रैली न केवल ऐतिहासिक होगी बल्कि सपा के गढ़ में इस बार वह सेंध लगाने में जरूर सफल होगी। अनुमानित भीड़ को देखते हुए जहां भाजपा को मोदी की सुरक्षा की चिन्ता सताने लगी है वहीं प्रदेश में सत्तासीन समाजवादी पार्टी की पेशानियों में भी बल पड़ता दिख रहा है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में सपा-भाजपा की इस उठापटक पर बहुजन समाज पार्टी  की भी नजरें गड़ी हुई हैं। हालांकि वह अभी अपने पत्ते खोलने के मूड में नहीं है। नरेन्द्र मोदी की कानपुर रैली को उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान की शुरूआत माना जा रहा है। देखा जाए तो कानपुर क्षेत्र में कमल दल की हालत बेहद खस्ता है। वजह साफ है यहां सपा प्रमुख मुलायम सिंह ने अपनी राजनीतिक जमीन इतनी मजबूत कर ली है कि दूसरे दलों के लिए यहां सेंधमारी आसान बात नहीं है।  सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के गृह जिले इटावा तथा संसदीय क्षेत्र मैनपुरी सहित अन्य क्षेत्र उसके मजबूत गढ़ हैं। आलम यह है कि इस क्षेत्र की सात लोकसभा सीटों में से छह समाजवादी पार्टी के कब्जे में हैं जबकि कानपुर महानगर में कांग्रेस का कब्जा है।
नमो-नमो की कानपुर रैली के निहितार्थ हैं। भाजपा कानपुर में हिन्दुत्व और विकास की अलख जगाकर देश के सबसे गरीब महानगर में जहां वोटों का ध्रुवीकरण करने की फिराक में है वहीं उसके इन प्रयासों से सपा पर भी अपने गढ़ को बचाने का मानसिक दबाव पड़ने से इंकार नहीं किया जा सकता। कमल दल की मंशा है कि वह सपा को उसके ही गढ़ में ललकार कर उसे इस क्षेत्र से इतर हाथ-पैर चलाने से रोक दे। भाजपा अपने इस मिशन में यदि सफल रहती है तो सपा का उत्तर प्रदेश में 60 सीटें जीतने का सपना हवा-हवाई होने से इंकार नहीं किया जा सकता। सपा एक जुझारू पार्टी है, वह आसानी से कमल दल से मात नहीं खाएगी। उसने इसका जवाब देने का तरीका ढूंढ़ निकाला है। नरेंद्र मोदी के कानपुर में नमो-नमो से एक दिन पहले 18 अक्टूबर को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव यहां कई विकास परियोजनाओं का पिटारा खोलने जा रहे हैं। सपा के इस सियासी पैंतरे से कमल दल भी सकपका गया है।
राजनीतिक बीथिका में चर्चा है कि कानपुर में गुजरात के विकास पुरुष नरेंद्र मोदी जहां भावी भारत की तस्वीर खींचेंगे वहीं प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव  महानगर को विभिन्न परियोजनाओं की सौगात देकर यह संदेश देने की कोशिश करेंगे कि समाजवादी पार्टी प्रदेश के सम्पूर्ण विकास के एजेण्डे पर चलने वाली पार्टी है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का कानपुर दौरा भाजपा की भभकी का ही सीधा विरोध है।  मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने कानपुर दौरे में आधुनिक पुलिस नियंत्रण कक्ष, एक बालिका इण्टर कॉलेज और गरीब परवरदिगारों के लिए बनाए गए पांच सौ से ज्यादा मकानों का उद्घाटन करने के साथ-साथ तीन सामुदायिक केन्द्रों और कानपुर विकास प्राधिकरण की बहुमंजिला पार्किंग का शिलान्यास करेंगे।
नरेन्द्र मोदी और अखिलेश यादव कानपुर की जनता पर अपना क्या प्रभाव छोड़ते हैं यह तो भविष्य तय करेगा पर अपने-अपने राज्यों में विकास की पटकथा लिख रही इन दोनों ही शख्सियतों में कई समानताएं भी हैं। जहां देश के अधिकांश राजनीतिक दल मोदी को मुस्लिम विरोधी करार देते हैं वहीं वे अपने सूबे में इस जमात के बीच खासे लोकप्रिय हैं। बीते विधान सभा चुनाव में राज्य के 35 फीसदी मुसलमानों का मोदी को मिला समर्थन इस बात की गवाही देता है कि लोग मोदी की विकास अवधारणा के कायल हैं। सपा और मुस्लिम बिरादर एक-दूसरे के पूरक हैं। सच कहें तो पिछले विधान सभा चुनावों में मुस्लिमों और युवाओं ने ही अखिलेश को प्रदेश की सल्तनत सौंपी है। मोदी और अखिलेश दोनों ही युवाओं के बीच खासे लोकप्रिय हैं। भारत आज युवाओं का देश है। आर्थिक क्षेत्र में भारत एक ताकत बनने की कोशिश कर रहा है, ऐसे में युवाओं के बीच खासे लोकप्रिय मोदी का यूपी में जादू चलेगा या युवा अखिलेश लोगों की आंखों का तारा बनेंगे यह कमोबेश कानपुर की रैली में देखने को मिल सकता है। आज उत्तर प्रदेश का युवा न केवल बेरोजगार है बल्कि वह भ्रमित भी है। उसे लगता है कि उसकी जिंदगी राजनीतिक आश्वासनों के बीच ठहर सी गई है। उसे जीवन चलाने के लिए रोजगार तो घर बसाने के लिए आटे-दाल का भाव पता होना चाहिए। पर ऐसा नहीं है। मोदी और अखिलेश में कौन इन युवाओं का रोल मॉडल होगा यह कुछ महीनों में ही पता चल जाएगा। फिलहाल इस समय राजनीतिक दलों की नजरें 18 और 19 अक्टूबर को कानपुर में होने जा रहे विकास जयघोष पर टिकी हैं।

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