Saturday, 9 November 2013

खुदाई से खजाने की परख

एक तरफ भारत अपने को 21वीं सदी में होने का दम्भ भर रहा है और तरक्की की ढींगें हांक रहा है तो दूसरी तरफ उसकी सरकारी मशनरी अतीत से गलबतियां कर रही है। इन दिनों उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले की तहसील बीघापुर का अति पिछड़ा गांव डौंड़ियाखेड़ा लोगों में कौतूहल का विषय बना हुआ है। इसकी मुख्य वजह है खजाने में दबा एक हजार टन सोना। एएसआई की निगहबानी में राजा राव रामबख्श सिंह के जमींदोज हो चुके आशियाने का उनकी मौत के 143 साल बाद पुन: पोस्टमार्टम हो रहा है। एएसआई द्वारा यह खुदाई सोभन सरकार के कहे पर नहीं बल्कि 1967 के उन दस्तावेजों को आधार मानकर की जा रही है, जिसमें बैसवारा के इस किले में बहुमूल्य धातुएं दफन होने के संकेत मिले थे।
फिलहाल राजा राव रामबख्श सिंह के किले में सोने के अकूत भण्डार के दफन होने पर जितने मुंह उतनी बातें हो रही हैं। सोभन सरकार उर्फ विरक्तानंद महाराज के अनुयायी उनकी कही हर बात को सौ फीसदी सही करार दे रहे हैं वहीं मीडिया और देश का आम जनमानस इस वाक्ये को दिवास्वप्न के सिवा कुछ भी मानने को तैयार नहीं है। खुदाई कर रहा पुरातत्व विभाग भी एक हजार टन सोने पर यकीन नहीं कर रहा पर वह खुदाई इस गरज से कर रहा है कि उसे सोने से भी बहुमूल्य कुछ ऐसी चीजें जरूर मिलेंगी जिसका आने वाली पीढ़ी गुणगान अवश्य करेगी।
आर्थिक संकट से जूझ रहे भारत के लिए एक हजार टन सोना मायने रखता है। यह सोना तंगहाल भारत की तकदीर और तस्वीर बदल सकता है। एक हजार टन न सही इसका एक चौथाई भी मिल गया तो मुल्क का भाग्य बदल जाएगा। देखा जाए तो भारत के पास इस वक्त सिर्फ 558 टन सोना ही है। दुनिया में सिर्फ आठ देश ही ऐसे हैं जिनके पास एक हजार टन से अधिक सोना है। राजा राव रामबख्श सिंह का खजाना मुल्क की कितनी तकदीर बदलेगा यह तो भविष्य तय करेगा पर डौंड़ियाखेड़ा में जो हो रहा है उस पर दुनिया ठहाके लगा रही है। यह खुदाई सच की पड़ताल नहीं बल्कि भारतीय जगहंसाई का कारण बन सकती है। माना कि हर खबर की अपनी एक तासीर होती है, वह अपनी जगह बना ही लेती है, पर खुदाई करने से पहले यह जानने का प्रयास किया जाना चाहिए था कि क्या पुरातत्व विभाग सपने के आधार पर खुदाई कर रहा है? क्या बिना किसी खुदाई के इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है कि फलां जगह पर एक हजार टन सोना निकलेगा ही।
पत्रकारिता की बुनियादी जरूरत होती है, खबर का आधार पता करना पर राजा राव रामबख्श सिंह के खजाने के मामले में कई बातों की अनदेखी की गई। पुरातत्व विभाग ने जैसे ही खुदाई प्रारम्भ की मीडिया को अपनी गलती का अहसास हुआ। खुदाई से पहले इलेक्ट्रानिक मीडिया ने जहां अपनी टीआरपी बढ़ाने को संत सोभन सरकार के सपने को आधार बनाया वहीं प्रिंट मीडिया ने भी अंधानुकरण करते हुए मनगढ़ंत खबरें प्रकाशित कीं। मेरा इस क्षेत्र से गहरा लगाव होने के चलते बक्सर से कोई पांच किलोमीटर दूर स्थित डौंड़ियाखेड़ा कई बार आना-जाना हुआ। कानपुर देहात के शिवली थाना क्षेत्र के सोभन आश्रम से ताल्लुक रखने वाले सोभन सरकार ने बक्सर में अपने गुरु सत्संगानंद बाबा की कर्म और तपस्थली में कई अतुलनीय कार्य किए। मां चंदिका मंदिर के जीर्णोद्धार के साथ उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार की मदद से गंगापुल निर्माण कराकर एक बड़ा काम किया है। संत सोभन सरकार ने बातचीत में खुलासा किया कि उन्होंने सपने में खजाने की बात किसी से नहीं की, अलबत्ता केन्द्रीय मंत्री चरणदास महंत को कुछ दस्तावेज जरूर सौंपे जिसमें राजा राव रामबख्श सिंह के किले में कुछ बहुमूल्य धातुएं मिलने के संकेत हैं। हां सोभन सरकार ने यह जरूर कहा कि यदि पुरातत्व विभाग उनके कहे अनुसार दीपावली से पूर्व खुदाई करवा दे तो वे अपने तप से सरकार की झोली अकूत सोने से भर सकते हैं।
संत सोभन सरकार की कर्मस्थली उन्नाव और कानपुर के अनुयायी उन्हें श्रद्धा से सरकार कहते हैं न कि बाबा, महाराज या गुरुजी। सोभन सरकार न कभी कैमरे के सामने आते हैं न ही उन्हें मंच प्रिय है। उन्हें ढोंग से भी चिढ़ है। उपदेश, प्रवचन, अनुष्ठान और दीगर कर्मकाण्डों से भी वे हमेशा दूर रहते हैं। उन्हें दान-दक्षिणा या चंदा लेना भी पसंद नहीं है। अपने अनुयायियों से चरण वंदन कराना तो दूर वे अपने पास भी किसी को फटकने नहीं देते। सोभन सरकार की इन्हीं खूबियों के चलते लोग उन्हें भगवान नहीं तो उससे कम भी नहीं मानते। सोभन सरकार से इतर राजा राव रामबख्श सिंह की बात करें तो उन्हें अंग्रेजों ने 28 दिसम्बर, 1859 को बक्सर में एक बरगद के पेड़ पर फांसी दे दी थी। चन्दिका मां का अनन्य भक्त आज बेशक जिन्दा नहीं है पर जनश्रुतियां इस बात की गवाही देती हैं कि वह निडर और पराक्रमी राजा थे, जिनसे अंग्रेज जीवन पर्यन्त खौफ खाते रहे। पतित पावनी गंगा के किनारे 50 एकड़ में फैले राजा राव रामबख्श सिंह के खण्डहर हो चुके किले के सौ मीटर क्षेत्र में पुरातत्व विभाग के कोई दो दर्जन लोग खजाना खोद और खोज रहे हैं। इस इलाके में सिर्फ राजा राव रामबख्श सिंह का किला ही नहीं बल्कि कई और किले, महल और हवेलियां लावारिस पड़े हैं। बैसवारा के राजाओं की बात करें तो कई अंग्रेजों के चाटुकार रहे पर राजा राव रामबख्श सिंह हमेशा अपने उसूलों पर जिए। राजा राव रामबख्श सिंह अपनी रियासत के 24वें और अंतिम राजा थे।
किले की खुदाई चल रही है। ऐसे में यह कहा जा रहा है कि 14 परगनों के दो-ढाई सौ गांवों की रियासत के इस छोटे से जागीरदार के पास भला एक हजार टन सोना आया कहां से? डौंड़ियाखेड़ा का इतिहास छठवीं सदी से प्रारम्भ होता है। स्थानीय मान्यता है कि गजनवी-गौरी के आक्रमण के समय पूरे अवध प्रांत की जागीरें और स्थानीय साहूकार अपने खजाने गंगा के किनारे स्थित इस अति सुरक्षित किले में रखते थे। यहां के 14 किलोमीटर क्षेत्र में सात समृद्ध बाजार थे, इनमें दो लखटकिया बाजार के रूप में प्रसिद्ध थे। जनश्रुति है कि इन बाजारों में उसी को दाखिल होने की इजाजत थी जिसके पास एक लाख स्वर्ण मुद्राएं होती थीं। ऐतिहासिक दस्तावेज और विलियम हार्वर्ड रसल की किताब माय इंडियन डायरी, अमृतलाल नागर की पुस्तक गदर के फूल और कानपुर का इतिहास खण्ड-एक में साफ-साफ उल्लेख है कि राजा राव रामबख्श सिंह महाजनी करते थे। कोलकाता और कानपुर के व्यापारी ही नहीं नाना राव पेशवा भी अपना सोना अति सुरक्षित डौंड़ियाखेड़ा किले में रखना ही महफूज समझते थे। किले के पास स्थित कामतेश्वर बाबा मंदिर का जीर्णोद्धार 1935-36 में पजनखेड़ा के जमीदार कामता प्रसाद दीक्षित कांति बाबा ने कराया था। जो भी हो पुरातत्व विभाग किले की निरंतर खुदाई कर रहा है, उसे भरोसा है कि इस खण्डहर से जरूर कुछ न कुछ निकलेगा। आओ हम दुआ करें कि उससे सोने का भण्डार ही निकले।

No comments:

Post a Comment