Saturday 9 November 2013

सचिन बिना कैसी क्रिकेट!

लगभग तीन दशक से खेल मैदानों और खिलाड़ियों की निगहबानी करती आ रही मेरी आंखों को अब कुछ भी नहीं भा रहा। जेहन में बस एक ही सवाल परेशान कर रहा है कि गोया भारतीय टेस्ट क्रिकेट विलक्षण सचिन बिना कैसा होगी? उसकी सांगीतिक बल्लेबाजी किसके बल्ले की धुन बनेगी? यकीन ही नहीं हो रहा कि हर हिन्दुस्तानी में क्रिकेट की दिलचस्पी जगाने वाला सचिन 18 नवम्बर के बाद बल्ले पर हाथ नहीं लगाएगा और फिर कभी किसी शेन वार्न को कोई सपना नहीं डराएगा। सच कहें तो सचिन के संन्यास से हर भारतीय की तरह मैं भी अपने आपको असहज महसूस कर रहा हूं। वजह साफ है, हरदिल अजीज सचिन ने क्रिकेट की दुनिया में जो भी आयाम स्थापित किए उनमें कई लम्हों का मैं स्वयं जो गवाह रहा। एक लम्हा है,जो ठहर सा गया है। बात 31 मार्च, 2001 की है। रतजगे के बीच थकाऊ बस यात्रा ने शरीर को चूर-चूर कर दिया था बावजूद सचिन पर विश्वास था कि इंदौर के जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में वह कंगारुओं का मानमर्दन अवश्य करेगा। मुकाबला शुरू हुआ और सचिन ने अपने 266वें एकदिनी मुकाबले में 139 रनों की विध्वंसक पारी खेलकर न केवल कंगारुओं का गुरूर चूर-चूर किया बल्कि क्रिकेट के इस प्रारूप में दुनिया के पहले दसहजारी बल्लेबाज भी बन गये। मुझे याद है इस मुकाबले से पूर्व सचिन को लेकर आस्ट्रेलियाई टीम ने बड़ी-बड़ी ढींगें हांकी थीं।
फटाफट क्रिकेट में अपने प्रिय खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर के ग्वालियर के कैप्टन रूप सिंह मैदान में ऐतिहासिक नाबाद दोहरे शतक का भी मैं गवाह हूं। 24 फरवरी, 2010 को मीडिया बॉक्स में वाणी के सरताज सुशील दोषी मेरे स्वयं के खेल समाचार-पत्र की तारीफ करने के बाद जल्दी जाने की जिद कर रहे थे कि आसमान को ताकता सचिन, वीरेन्द्र सहवाग के साथ 22 गज की पट्टी के पास जा पहुंचा। मैंने सुशील दोषी जी से कहा- दादा आज सचिन कुछ नया करने के मूड में है। वह बोले ऐसा कैसे कह सकते हो। मैंने कहा मैं नहीं मेरा विश्वास बोल रहा है कि आज कुछ अनोखा होगा। दरअसल उस दिन सचिन ने पहली गेंद के साथ जो सलूक किया उसी से लग गया था कि वह कुछ करने वाला है। मेरा विश्वास सच में बदल गया और नटवर नागर ने दुनिया की सबसे संतुलित दक्षिण अफ्रीकी गेंदबाजी को सबक सिखाते हुए नाबाद दोहरा सैकड़ा जड़ दिया। भारतीय पारी के समापन के बाद कमेंटेटर दोषी ने विलक्षण सचिन की तारीफ की तो भारतीय टीम के जीतने के बाद सचिन न केवल हम सबसे रू-ब-रू हुए बल्कि विकेट और पिच क्यूरेटर की तहेदिल से सराहना की।
18 मार्च, 2012 को ढाका में भारत-पाक मैच के बाद जब सचिन ने फटाफट क्रिकेट से संन्यास की घोषणा की तो एकबारगी दिल धक्क से रह गया। पर तसल्ली थी कि बाकी फार्मेट  में क्रिकेट का नाटा उस्ताद खेलेगा। कुछ समय गुजरा छह अक्टूबर, 2013 को चैम्पियंस लीग ट्राफी जीतकर उसने टी-20 से भी विदाई की घोषणा कर दी। दरअसल, समय का चक्र और उस चक्र से जुड़े चक्रवातों को झेलने के लिये ही खुदा ने कायनात तैयार की है। क्रिकेट के दो प्रारूपों को अलविदा कहने के बाद आखिरकार 10 अक्टूबर, 2013 को सचिन ने 200वें टेस्ट के बाद पूर्ण संन्यास की घोषणा कर अपने मुरीदों और क्रिकेट को श्रीहीन कर दिया है। सचिन 199वां मैच कोलकाता और 200वां मैच अपने घरेलू मैदान वानखेड़े स्टेडियम में खेलेंगे। सचिन के विदाई टेस्ट को उनकी आई (मां) ही नहीं उनके निकट सम्बन्धी भी देखने को तैयार हैं।
खेल मैदानों से लम्बे जुड़ाव और सैकड़ों अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों की मुलाकातों के बाद मैं ख्यातिनाम धावक पीटी ऊषा और सचिन की सदाशयता से हमेशा प्रभावित रहा। आज खिलाड़ियों की मामूली सफलता जहां उनके मिजाज को खराब कर देती है वहीं क्रिकेट के बेशुमार कीर्तिमानों के शिल्पी सचिन में दम्भ नाम की बात मैंने कभी नहीं देखी। क्रिकेट को जीने वाले इंसान का इस खेल को अलविदा कहना कितना मुश्किल होगा, ये तो सचिन ही महसूस कर सकते हैं। पर हकीकत यही है कि अपना 200वां मैच खेलने के बाद सचिन प्रतिस्पर्धी क्रिकेट नहीं खेलेंगे और फिर कभी मैदानों में उनकी बल्ले-बल्ले नहीं सुनाई देगी। खेल में तमाम ऊंचाइयां और व्यक्तित्व में समुद्र-सी गहराई वाले इस शख्स ने तमाम आलोचनाओं के बावजूद कभी किसी के खिलाफ मुंह नहीं खोला। दरअसल बचपन में सचिन काफी नटखट थे। उन्हें क्रिकेट नहीं, टेनिस से लगाव था। उनका आदर्श कोई क्रिकेटर नहीं बल्कि जान मैकनरो थे। समय बीता और उनमें साहित्यकार पिता का  गहरा असर पड़ा। जब सचिन क्रिकेट जगत के सितारे बन रहे थे तब पिता रमेश तेंदुलकर ने कहा था कि तुम क्रिकेटर ही नहीं, इंसान भी अच्छे बनना। तुम्हारा क्रिकेट जीवन तो एक समय बाद ठहर जाएगा लेकिन यदि तुम अच्छे इंसान बने तो लोग तुम्हें ताउम्र याद रखेंगे। पिता की सीख सचिन ने हमेशा याद रखी, यही वजह है कि आज हिन्दुस्तान ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया उसकी शालीनता को सलाम कर रही है।
सचिन हमेशा विवादों से दूर रहे। उन्होंने क्रिकेट को नई ऊंचाइयां दीं। यही वजह है कि उन्हें क्रिकेट मुरीदों ने भगवान के रूप में पूजा। वे करोड़ों भारतीयों की उम्मीदों के प्रतीक रहे। जब भी टीम मुश्किल में होती लोग कहते कि अभी सचिन है ना। सचिन के क्रिकेट में अवतार के बाद भारतीय टीम में नई खेल संस्कृति पनपी और कई जुझारू खिलाड़ी सामने आए। कुदरत ने उन्हें क्रिकेट की सम्पूर्णता प्रदान की तो उन्होंने उसे तन-मन से निखारा भी। लगातार 24 साल खेलना और फिट रहना सहज नहीं है। वे कभी थके नहीं। उन्होंने क्रिकेट को नई गरिमा दी। सही मायनों में सचिन क्रिकेट के एक अनुकरणीय आदर्श हैं। उनके शून्य को भरने में लम्बा वक्त लगेगा। 24 अप्रैल, 1973 को जन्मे इस बल्लेबाज को खेलपे्रमियों से जहां अपार स्नेह मिला वहीं भारत सरकार ने उन्हें 1994 में अर्जुन, 1997-98 में राजीव गांधी खेलरत्न, 1999 में पद्मश्री, 2011 में महाराष्ट्र विभूषण और 2008 में पद्म विभूषण सम्मान से नवाज कर महान सचिन की गरिमा को चार चांद लगाए। मुल्क में तेंदुलकर के अलावा शायद ही कोई शख्सियत ऐसी रही, जिसे भारत-रत्न बनते देखने के लिए लोगों में इतनी उत्सुकता, इतनी उतावली रही हो। राज्यसभा के लिए जब उन्हें मनोनीत किया गया तो लोगों ने इसे कांग्रेस की चाल करार दिया। सचिन ने राज्यसभा की शपथ ग्रहण करते ही साफ कर दिया कि कोई कुछ भी कहे उन्हें जो भी मिला वह क्रिकेट की देन है। मेरे लिए सम्मान-सत्कार या कोई भी पद अहमियत नहीं रखता, सिवाय क्रिकेट के। सचिन की क्रिकेट के प्रति निष्ठा, सजगता, ईमानदारी और कर्मठता अद्वितीय है। यही वजह है कि उनके संन्यास की घोषणा के बाद खेल का हर दिग्गज कहीं न कहीं टीस का अनुभव कर रहा है। उनमें मैं भी शामिल हूं। जो भी हो अब क्रिकेट दो भागों में जरूर बंट जाएगी, एक सचिन से पहले और एक सचिन के बाद।

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