सहारा समूह के दिन अच्छे नहीं चल रहे। उसकी साख को जहां बट्टा लग चुका है वहीं सल्तनत की दीवारें भी एक-एक कर दरक रही हैं। सुब्रत राय सींखचों से बाहर आने का हर जतन कर रहे हैं लेकिन न्यायपालिका मोहलत देने के मूड में नहीं है। सहारा समूह ने जिस तरह अकूत धनार्जन किया उस पर संदेह था, पर अब तो साक्ष्य भी चीख-चीख कर बता रहे हैं कि निवेशक ठगे गए। सहारा प्रमुख सुब्रत राय ही नहीं, मुल्क में हजारों ऐसे धन कुबेर हैं जिन्होंने नॉन बैंकिंग संस्थाओं के जरिए गरीबों के पैसे से अपनी सल्तनत का विस्तार किया है। आज भारत ही नहीं, दुनिया भर में शैडो बैंकिंग का चलन बढ़ा है, इससे सबसे बड़ा खतरा विकासशील देशों को है। शैडो बैंकिंग का गोरखधंधा भविष्य में विध्वंसात्मक रूप ले सकता है। शैडो बैंकिंग का कामकाज वाणिज्यिक बैंकों से भिन्न है पर इसका भूमण्डलीय वित्तीय व्यवस्था में लगभग एक चौथाई हिस्सा है। आज से दस साल पहले शैडो बैंकों की कुल परिसम्पत्ति 260 खरब डॉलर थी वहीं अब 710 खरब डॉलर से भी अधिक हो गई है।
सुब्रतो राय का साम्राज्य भी शैडो बैंकिंग के सहारे ही विस्तारित हुआ। इंजीनियरिंग में डिप्लोमाधारी सुब्रत राय ने साढ़े तीन दशक में ही अपनी सल्तनत को न केवल बुलंदियों तक पहुंचाया बल्कि बॉलीवुड कलाकारों, क्रिकेट सितारों और देश-दुनिया की नामचीन शख्सियतों की सोहबत में भी आ गये। उत्तर प्रदेश के पिछड़े इलाके गोरखपुर से चलकर देश-विदेश की नामचीन शख्सियतों तक पहुंचना आसान बात नहीं थी, पर सुब्रत राय न केवल पहुंचे बल्कि उनके ही सहारे अपने रसूख को बढ़ाने में भी आशातीत सफलता हासिल की। सुब्रत राय की पहली पसंद तो वायुसेना थी, पर वे कारोबार की दुनिया में ऐसे घुसे कि फिर बाहर नहीं निकल पाए। वायुसेना में जाने का राय का सपना भले ही साकार न हुआ हो पर उन्होंने जो चाहा कमोबेश वह सब हासिल कर लिया। उनका सहारा इण्डिया परिवार की स्थापना का मकसद जो भी रहा हो पर उन्होंने इण्डिया नाम से गरीब परवरदिगारों को कहीं का नहीं छोड़ा। एक समय सहारा इण्डिया परिवार की अपनी विमान सेवा थी, अखबार थे, टीवी चैनल थे, होटल थे, देश का हर खिलाड़ी उनका था, मैसिडोनिया में डेयरी थी तो रियल इस्टेट का कहना ही क्या? सुब्रत राय के पास यह सब गाढ़ी कमाई से नहीं आया बल्कि शैडो बैंकिंग के गोरखधंधे ने ही उन्हें सातवें आसमान पर पहुंचाया। वर्षों से सुब्रत राय रिक्शा चालकों, किसानों तथा दफ्तरों में काम करने वाले चपरासियों को आश्वस्त करते रहे कि वे अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा उन्हें सौंप दें जिस पर उन्हें अच्छा खासा ब्याज मिलता रहेगा। लोग लालच में आ गए और इसी लालच को न केवल सहारा ने भुनाया बल्कि अपने आठ करोड़ कर्मचारियों की गाढ़ी कमाई के लगभग 11 अरब डालर भी डकार लिये।
सहारा प्रमुख मुश्किल में हैं, उनका कोई मददगार दूर-दूर तक नहीं दिख रहा। वर्ष 1978 में स्थापित सहारा इण्डिया के गोरखधंधे से लगभग छह लाख से अधिक एजेण्ट जुड़े हैं। यही एजेण्ट गांवों और छोटे शहरों में जाकर छोटी आमदनी वालों को सहारा से जुड़ने के फायदे बताकर उनको चूना लगाते रहे। दरअसल, कम आमदनी का व्यक्ति अपनी अल्पबचत को अतिशीघ्र बढ़ाने की हमेशा सोचता है। उसकी इसी सोच का फायदा न केवल सहारा समूह बल्कि मुल्क में विषबेल की तरह फैली अन्य चिटफण्ड कम्पनियों ने भी उठाया है। देश में 1970 के दशक के मध्य से नॉन बैंकिंग कम्पनियां नई-नई स्कीमें लाकर कम आयवर्ग को लुभाती और फंसाती चली आ रही हैं।
सहारा के झूठे साम्राज्य को मजबूत धरातल देने का काम करने वालों में कई सफेदपोश भी शामिल हैं। इन्हीं राजनीतिज्ञों के नफा-नुकसान की गणित से ही सहारा पर संकट के बादल छाये हैं। सहारा के खिलाफ शिकवा-शिकायतों के पटाक्षेप की शुरुआत वर्ष 2008 से हुई। भारतीय रिजर्व बैंक ने सख्ती बरतते हुए आदेश दिये कि जमाकर्ताओं की कोई साढ़े चार अरब डालर की रकम अतिशीघ्र वापस की जाए। रिजर्व बैंक के आदेश के बाद सहारा समूह ने पैंतरा बदलते हुए वर्ष 2009 में ग्रामीण जनता को परिवर्तनीय बाण्ड बेचना शुरू कर दिए। सहारा प्रमुख को गुमान था कि रिजर्व बैंक उनके कारोबार में कोई दखल नहीं दे सकता, उनकी इसी सोच पर पानी फेरते हुए वर्ष 2011 में सेबी ने बाण्ड में पैसे लगाने वालों को पांच अरब डालर की रकम अतिशीघ्र लौटाने का आदेश दे सुब्रत के पैरों तले से जमीन खिसका दी। रिजर्व बैंक का दबाव पड़ते ही सहारा ने न केवल अपना कारोबार दूसरी संस्था के हवाले कर दिया बल्कि ऐलान किया कि भारतीय रिजर्व बैंक के पास इस संस्था के कार्य की छानबीन करने का कोई अधिकार नहीं है। कहते हैं कि कानून के लम्बे हाथ होते हैं अगर वह चाह ले तो कुछ भी असम्भव नहीं। सहारा प्रमुख के साथ भी यही हुआ। सुप्रीम कोर्ट की सख्ती का ही असर है कि आज सुब्रत राय जेल में हैं।
सहारा प्रमुख कोर्ट को बार-बार भरोसा दे रहे हैं कि वे अपनी सम्पत्ति बेचकर लोगों का पैसा वापस करेंगे पर कोर्ट को उनकी किसी बात पर भरोसा नहीं रहा। दरअसल यह सब सहारा की साख पर लगे बट्टे के चलते ही हो रहा है। सुब्रत की भी समझ में नहीं आ रहा कि आखिर वे गरीबों का पैसा लौटाएं तो कैसे? आज सहारा के बाण्डों में पैसा लगाने वाले मुश्किल में हैं। दरअसल राजनेताओं के पैसे भी फर्जी जमाकर्ताओं के नाम से लगाए गए हैं। वर्ष 2012 में जब जमाकर्ताओं की पड़ताल हुई तब कहीं सारे गड़बड़झाले का पता चला। सहारा प्रमुख का कहना है कि वह अपनी 36,631 एकड़ जमीन और न्यूयार्क और लंदन के होटलों को बेचकर निवेशकों का पाई-पाई चुकता करेंगे, पर लोगों का भरोसा खो चुके सुब्रत राय पर अब कोई यकीन करने को तैयार नहीं है। सुब्रत राय कहते हैं कि उन्होंने कोई गलत काम नहीं किया, पर वह यह क्यों नहीं बताते कि यह अकूत दौलत उनके पास आई भी तो कैसे? वर्ष 2013 में शारदा चिटफण्ड और उसके पहले पियरलेस का दिवाला निकल जाने के बाद कई लोगों ने खुदकुशी कर ली थी। यह अच्छी बात है कि अभी तक सहारा के खिलाफ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है। सहारा प्रमुख के खिलाफ कार्रवाई न हो इसके लिए पर्दे के पीछे सारे प्रयास हुए पर रिजर्व बैंक, सेबी और सुप्रीम कोर्ट ने सख्त कदम उठाकर यह संदेश दिया कि कानून से ऊपर कोई नहीं है। अब सरकार का फर्ज बनता है कि सहारा और शारदा सहित हजारों चिटफण्ड कम्पनियों की ठगी का शिकार हो चुके लोगों को न केवल उनका पैसा वापस मिले बल्कि मुल्क में वाणिज्यिक बैंकों का दायरा भी बढ़े ताकि अधिकाधिक लोगों को बैंकिंग की सुविधाएं उपलब्ध हो सकें। देखा जाए तो अभी तक एक तिहाई से भी कम परिवारों की बचत राशि ही बैंकों में जमा होती है।
सुब्रतो राय का साम्राज्य भी शैडो बैंकिंग के सहारे ही विस्तारित हुआ। इंजीनियरिंग में डिप्लोमाधारी सुब्रत राय ने साढ़े तीन दशक में ही अपनी सल्तनत को न केवल बुलंदियों तक पहुंचाया बल्कि बॉलीवुड कलाकारों, क्रिकेट सितारों और देश-दुनिया की नामचीन शख्सियतों की सोहबत में भी आ गये। उत्तर प्रदेश के पिछड़े इलाके गोरखपुर से चलकर देश-विदेश की नामचीन शख्सियतों तक पहुंचना आसान बात नहीं थी, पर सुब्रत राय न केवल पहुंचे बल्कि उनके ही सहारे अपने रसूख को बढ़ाने में भी आशातीत सफलता हासिल की। सुब्रत राय की पहली पसंद तो वायुसेना थी, पर वे कारोबार की दुनिया में ऐसे घुसे कि फिर बाहर नहीं निकल पाए। वायुसेना में जाने का राय का सपना भले ही साकार न हुआ हो पर उन्होंने जो चाहा कमोबेश वह सब हासिल कर लिया। उनका सहारा इण्डिया परिवार की स्थापना का मकसद जो भी रहा हो पर उन्होंने इण्डिया नाम से गरीब परवरदिगारों को कहीं का नहीं छोड़ा। एक समय सहारा इण्डिया परिवार की अपनी विमान सेवा थी, अखबार थे, टीवी चैनल थे, होटल थे, देश का हर खिलाड़ी उनका था, मैसिडोनिया में डेयरी थी तो रियल इस्टेट का कहना ही क्या? सुब्रत राय के पास यह सब गाढ़ी कमाई से नहीं आया बल्कि शैडो बैंकिंग के गोरखधंधे ने ही उन्हें सातवें आसमान पर पहुंचाया। वर्षों से सुब्रत राय रिक्शा चालकों, किसानों तथा दफ्तरों में काम करने वाले चपरासियों को आश्वस्त करते रहे कि वे अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा उन्हें सौंप दें जिस पर उन्हें अच्छा खासा ब्याज मिलता रहेगा। लोग लालच में आ गए और इसी लालच को न केवल सहारा ने भुनाया बल्कि अपने आठ करोड़ कर्मचारियों की गाढ़ी कमाई के लगभग 11 अरब डालर भी डकार लिये।
सहारा प्रमुख मुश्किल में हैं, उनका कोई मददगार दूर-दूर तक नहीं दिख रहा। वर्ष 1978 में स्थापित सहारा इण्डिया के गोरखधंधे से लगभग छह लाख से अधिक एजेण्ट जुड़े हैं। यही एजेण्ट गांवों और छोटे शहरों में जाकर छोटी आमदनी वालों को सहारा से जुड़ने के फायदे बताकर उनको चूना लगाते रहे। दरअसल, कम आमदनी का व्यक्ति अपनी अल्पबचत को अतिशीघ्र बढ़ाने की हमेशा सोचता है। उसकी इसी सोच का फायदा न केवल सहारा समूह बल्कि मुल्क में विषबेल की तरह फैली अन्य चिटफण्ड कम्पनियों ने भी उठाया है। देश में 1970 के दशक के मध्य से नॉन बैंकिंग कम्पनियां नई-नई स्कीमें लाकर कम आयवर्ग को लुभाती और फंसाती चली आ रही हैं।
सहारा के झूठे साम्राज्य को मजबूत धरातल देने का काम करने वालों में कई सफेदपोश भी शामिल हैं। इन्हीं राजनीतिज्ञों के नफा-नुकसान की गणित से ही सहारा पर संकट के बादल छाये हैं। सहारा के खिलाफ शिकवा-शिकायतों के पटाक्षेप की शुरुआत वर्ष 2008 से हुई। भारतीय रिजर्व बैंक ने सख्ती बरतते हुए आदेश दिये कि जमाकर्ताओं की कोई साढ़े चार अरब डालर की रकम अतिशीघ्र वापस की जाए। रिजर्व बैंक के आदेश के बाद सहारा समूह ने पैंतरा बदलते हुए वर्ष 2009 में ग्रामीण जनता को परिवर्तनीय बाण्ड बेचना शुरू कर दिए। सहारा प्रमुख को गुमान था कि रिजर्व बैंक उनके कारोबार में कोई दखल नहीं दे सकता, उनकी इसी सोच पर पानी फेरते हुए वर्ष 2011 में सेबी ने बाण्ड में पैसे लगाने वालों को पांच अरब डालर की रकम अतिशीघ्र लौटाने का आदेश दे सुब्रत के पैरों तले से जमीन खिसका दी। रिजर्व बैंक का दबाव पड़ते ही सहारा ने न केवल अपना कारोबार दूसरी संस्था के हवाले कर दिया बल्कि ऐलान किया कि भारतीय रिजर्व बैंक के पास इस संस्था के कार्य की छानबीन करने का कोई अधिकार नहीं है। कहते हैं कि कानून के लम्बे हाथ होते हैं अगर वह चाह ले तो कुछ भी असम्भव नहीं। सहारा प्रमुख के साथ भी यही हुआ। सुप्रीम कोर्ट की सख्ती का ही असर है कि आज सुब्रत राय जेल में हैं।
सहारा प्रमुख कोर्ट को बार-बार भरोसा दे रहे हैं कि वे अपनी सम्पत्ति बेचकर लोगों का पैसा वापस करेंगे पर कोर्ट को उनकी किसी बात पर भरोसा नहीं रहा। दरअसल यह सब सहारा की साख पर लगे बट्टे के चलते ही हो रहा है। सुब्रत की भी समझ में नहीं आ रहा कि आखिर वे गरीबों का पैसा लौटाएं तो कैसे? आज सहारा के बाण्डों में पैसा लगाने वाले मुश्किल में हैं। दरअसल राजनेताओं के पैसे भी फर्जी जमाकर्ताओं के नाम से लगाए गए हैं। वर्ष 2012 में जब जमाकर्ताओं की पड़ताल हुई तब कहीं सारे गड़बड़झाले का पता चला। सहारा प्रमुख का कहना है कि वह अपनी 36,631 एकड़ जमीन और न्यूयार्क और लंदन के होटलों को बेचकर निवेशकों का पाई-पाई चुकता करेंगे, पर लोगों का भरोसा खो चुके सुब्रत राय पर अब कोई यकीन करने को तैयार नहीं है। सुब्रत राय कहते हैं कि उन्होंने कोई गलत काम नहीं किया, पर वह यह क्यों नहीं बताते कि यह अकूत दौलत उनके पास आई भी तो कैसे? वर्ष 2013 में शारदा चिटफण्ड और उसके पहले पियरलेस का दिवाला निकल जाने के बाद कई लोगों ने खुदकुशी कर ली थी। यह अच्छी बात है कि अभी तक सहारा के खिलाफ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है। सहारा प्रमुख के खिलाफ कार्रवाई न हो इसके लिए पर्दे के पीछे सारे प्रयास हुए पर रिजर्व बैंक, सेबी और सुप्रीम कोर्ट ने सख्त कदम उठाकर यह संदेश दिया कि कानून से ऊपर कोई नहीं है। अब सरकार का फर्ज बनता है कि सहारा और शारदा सहित हजारों चिटफण्ड कम्पनियों की ठगी का शिकार हो चुके लोगों को न केवल उनका पैसा वापस मिले बल्कि मुल्क में वाणिज्यिक बैंकों का दायरा भी बढ़े ताकि अधिकाधिक लोगों को बैंकिंग की सुविधाएं उपलब्ध हो सकें। देखा जाए तो अभी तक एक तिहाई से भी कम परिवारों की बचत राशि ही बैंकों में जमा होती है।
No comments:
Post a Comment