दिल्ली राष्ट्रमण्डल खेलों में भ्रष्टाचार तो ग्लास्गो में हमारे खेलनहारों के कदाचार ने भारतीय अस्मिता पर अपयश की कालिख पोत दी। अरबों रुपये की बर्बादी के बाद मैदानों में जहां भारतीय खिलाड़ी एक-एक पदक को तरसते रहे वहीं जवाबदेह खेलनहारों ने बेशर्मी की लक्ष्मण रेखा लांघकर खेलों का बेड़ा गर्क कर दिया। भारतीय ओलम्पिक एसोसिएशन के महासचिव राजीव मेहता का सुरा प्रेम तो कुश्ती प्रशिक्षक वीरेन्दर मलिक की ग्लास्गो विश्वविद्यालय के क्वीन मारग्रेथ रेजीडेंस की महिला रिसेप्शनिस्ट से छेड़छाड़ के मामलों ने दुनिया भर में मादरेवतन की जमकर थू-थू कराई है। भारतीय खेलों में महिला कदाचरण के अब तक अनेकों मामले सामने आ चुके हैं लेकिन नेक नीयत के अभाव में हर बार खेल बेटियां ही झूठी और फरेबी करार दी गर्इं। भारत की बेटियां अपने ही पूज्य गुरुओं की बेहया आंखों और बेअदब मन का शिकार हो रही हैं।
दिल्ली राष्ट्रमण्डल खेलों से पूर्व भारत में गुरु-शिष्य परम्परा के नापाक रिश्ते पर दो गुरु घण्टालों ने बुरी नजर डालकर जहां खेलों को शर्मसार किया था वहीं ठीक चार साल बाद ग्लास्गो में राजीव मेहता और वीरेन्दर मलिक की करतूतों से जगहंसाई हो रही है। 2010 में हॉकी प्रशिक्षक महाराज किशन कौशिक तो भारोत्तोलक प्रशिक्षक रमेश मल्होत्रा पर खिलाड़ी बेटियों को संत्रास की आग में झोंकने के गम्भीर आरोप लगे थे लेकिन वे न केवल जांच की आंच से बच निकले बल्कि कुदृष्टि का शिकार बेटियों पर ही बदचलनी के आरोप मढ़ दिये गये। सोचनीय बात है कि कोई शिष्या अपने गुरु पर ऐसा झूठा इल्जाम तो हरगिज नहीं लगाएगी जिससे उसका जीवन तबाह हो रहा हो। भारत में गुरु-शिष्य परम्परा के पाक रिश्ते पर बुरी नजर डालकर चुल्लू भर पानी में डूब मरने का काम सिर्फ एक-दो शख्सियतों तक सीमित नहीं है बल्कि इस घिनौने कृत्य में सैकड़ों गुरु घण्टाल शामिल हैं। भारत में खेल बेटियां खेलनहारों की बदनीयत का शिकार होती हैं, इस पर सिडनी ओलम्पिक की कांस्य पदक विजेता भारोत्तोलक कर्णम मल्लेश्वरी, पूर्व भारतीय महिला हॉकी गोलकीपर हैलेन मैरी, पूर्व भारतीय महिला हॉकी कप्तान सुरिन्दर कौर, जसजीत कौर सहित दर्जनों अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों का बेटियों पर कुदृष्टि के मसलों पर बेबाक खुलासा यह सिद्ध करता है कि भारत की सम्पूर्ण खेल गंगोत्री ही मैली है। अफसोस, देश में खेल बेटियों पर कुदृष्टि और उनका खेल जीवन तबाह करने वाले भेड़िये जांच के बाद बेदाग साबित करार दिए जाते हैं। उनको वे लोग अच्छे चरित्र का सर्टीफिकेट देते हैं जिनका स्वयं का चरित्र बदनीयत को बदनाम होता है।
भारतीय खेलों में प्रशिक्षकों और खेल पदाधिकारियों की हैवानियत के एक-दो नहीं बल्कि हजारों ऐसे मामले हैं, जिनसे सिर शर्म से झुक जाता है। यह घिनौना कृत्य अमूमन हर खेल में विषबेल की तरह फैल चुका है। चौंकाने वाली बात तो यह है कि खेल बेटियों से दुराचार का यह दु:स्वप्न शहर ही नहीं अब गांव-गलियों के क्रीड़ांगनों तक जा पहुंचा है। भारतीय खेलों से हवस रूपी दानव को दूर भगाने और बार-बार अग्नि परीक्षा देती बेटियों को इंसाफ दिलाने का भारतीय ओलम्पिक एसोसिएशन और भारत सरकार के पास भी कोई उपाय नहीं है। खेलों में खेलनहारों की हैवानियत के मामलों पर जांच समितियां तो गठित कर दी जाती हैं पर खेल बेटियां मैदान छोड़ घर में घुट-घुट कर मरने को मजबूर न हों, इसके प्रयास नहीं होते। खेलों में मादरेवतन को गौरव दिलाती बेटियां आज मैदानों में कतई महफूज नहीं हैं। इन मामलों में महिला खिलाड़ियों से अपेक्षा की जाती है कि वे सच का साथ देंगी पर ऐसे मामलों में महिला खिलाड़ियों की पदलोलुपता बार-बार दुष्ट कामांधों का हथियार बन जाती है। कदाचार में शामिल महिला खिलाड़ियों पर तो यही कहना ठीक होगा कि जाके पैर न फटे बिवार्इं वो क्या जाने पीर पराई। बेटियों के दैहिक शोषण में सिर्फ प्रशिक्षक ही नहीं बल्कि भारतीय ओलम्पिक एसोसिएशन, भारतीय खेल प्राधिकरण और खेलों में दखल देने वाले कई राजनीतिज्ञ भी शामिल हैं। भारत में खेल बेटियों के साथ न केवल ज्यादती होती है बल्कि उनके अश्लील वीडियोग्राफ भी तैयार होते हैं। वर्ष 2010 में चीन और कनाडा दौरे पर गई भारतीय महिला हॉकी टीम के साथ वीडियोग्राफर बसवराव भी गये थे और उन्होंने वहां ऐसी कारगुजारी की थी जिससे भारत शर्मसार हुआ था। तब बसवराव पर आरोप लगा था कि वह यह सब महाराज किशन कौशिक के इशारे पर करते थे, जिसके लिए उन्हें बतौर प्रोत्साहन 30 हजार रुपये भी मिलते थे। खैर, ये सब तो बीते समय की बाते हैं पर दो अगस्त को जो कुछ ग्लास्गो में हुआ उसकी जितनी निन्दा की जाए वह कम है। भारतीय खिलाड़ियों के मुखिया बतौर स्कॉटलैण्ड के ग्लास्गो गए राज सिंह लाख कहें कि ये दोनों सदस्य उनके दल का हिस्सा नहीं, पर हैं तो भारतीय खेलनहार ही। राजीव मेहता और वीरेन्दर मलिक की करतूतों से भारतीय खेल मंत्रालय लाख खफा हो, पर इनके खिलाफ कुछ होगा इसमें संदेह जरूर है। खेल मंत्री सर्बानंद सोनोवाल इस मामले पर भारतीय ओलम्पिक एसोसिएशन के महासचिव राजीव मेहता और कुश्ती रेफरी वीरेन्दर मलिक के खिलाफ शायद ही कुछ कर पाएं। वीरेन्दर मलिक भारतीय महिला कुश्ती के मुख्य प्रशिक्षक कुलदीप सिंह के भाई हैं। भारतीय खेलों में खेलनहारों की मौज-मस्ती का यह पहला और आखिरी मामला नहीं है। विदेशों में होने वाली प्राय: हर बड़ी खेल प्रतियोगिता में खिलाड़ियों और प्रशिक्षकों से कहीं अधिक खेल पदाधिकारियों का जाना दस्तूर बन चुका है। मोदी सरकार को इसे हल्के से नहीं लेना चाहिए क्योंकि यह देश की अस्मिता से जुड़ा मसला है। यदि राजीव मेहता और वीरेन्दर मलिक गुनहगार हैं तो इन्हें कड़ी से कड़ी सजा मिले ताकि फिर कभी कोई खेलनहार ऐसा घिनौना दुस्साहस न दिखा सके।
दिल्ली राष्ट्रमण्डल खेलों से पूर्व भारत में गुरु-शिष्य परम्परा के नापाक रिश्ते पर दो गुरु घण्टालों ने बुरी नजर डालकर जहां खेलों को शर्मसार किया था वहीं ठीक चार साल बाद ग्लास्गो में राजीव मेहता और वीरेन्दर मलिक की करतूतों से जगहंसाई हो रही है। 2010 में हॉकी प्रशिक्षक महाराज किशन कौशिक तो भारोत्तोलक प्रशिक्षक रमेश मल्होत्रा पर खिलाड़ी बेटियों को संत्रास की आग में झोंकने के गम्भीर आरोप लगे थे लेकिन वे न केवल जांच की आंच से बच निकले बल्कि कुदृष्टि का शिकार बेटियों पर ही बदचलनी के आरोप मढ़ दिये गये। सोचनीय बात है कि कोई शिष्या अपने गुरु पर ऐसा झूठा इल्जाम तो हरगिज नहीं लगाएगी जिससे उसका जीवन तबाह हो रहा हो। भारत में गुरु-शिष्य परम्परा के पाक रिश्ते पर बुरी नजर डालकर चुल्लू भर पानी में डूब मरने का काम सिर्फ एक-दो शख्सियतों तक सीमित नहीं है बल्कि इस घिनौने कृत्य में सैकड़ों गुरु घण्टाल शामिल हैं। भारत में खेल बेटियां खेलनहारों की बदनीयत का शिकार होती हैं, इस पर सिडनी ओलम्पिक की कांस्य पदक विजेता भारोत्तोलक कर्णम मल्लेश्वरी, पूर्व भारतीय महिला हॉकी गोलकीपर हैलेन मैरी, पूर्व भारतीय महिला हॉकी कप्तान सुरिन्दर कौर, जसजीत कौर सहित दर्जनों अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों का बेटियों पर कुदृष्टि के मसलों पर बेबाक खुलासा यह सिद्ध करता है कि भारत की सम्पूर्ण खेल गंगोत्री ही मैली है। अफसोस, देश में खेल बेटियों पर कुदृष्टि और उनका खेल जीवन तबाह करने वाले भेड़िये जांच के बाद बेदाग साबित करार दिए जाते हैं। उनको वे लोग अच्छे चरित्र का सर्टीफिकेट देते हैं जिनका स्वयं का चरित्र बदनीयत को बदनाम होता है।
भारतीय खेलों में प्रशिक्षकों और खेल पदाधिकारियों की हैवानियत के एक-दो नहीं बल्कि हजारों ऐसे मामले हैं, जिनसे सिर शर्म से झुक जाता है। यह घिनौना कृत्य अमूमन हर खेल में विषबेल की तरह फैल चुका है। चौंकाने वाली बात तो यह है कि खेल बेटियों से दुराचार का यह दु:स्वप्न शहर ही नहीं अब गांव-गलियों के क्रीड़ांगनों तक जा पहुंचा है। भारतीय खेलों से हवस रूपी दानव को दूर भगाने और बार-बार अग्नि परीक्षा देती बेटियों को इंसाफ दिलाने का भारतीय ओलम्पिक एसोसिएशन और भारत सरकार के पास भी कोई उपाय नहीं है। खेलों में खेलनहारों की हैवानियत के मामलों पर जांच समितियां तो गठित कर दी जाती हैं पर खेल बेटियां मैदान छोड़ घर में घुट-घुट कर मरने को मजबूर न हों, इसके प्रयास नहीं होते। खेलों में मादरेवतन को गौरव दिलाती बेटियां आज मैदानों में कतई महफूज नहीं हैं। इन मामलों में महिला खिलाड़ियों से अपेक्षा की जाती है कि वे सच का साथ देंगी पर ऐसे मामलों में महिला खिलाड़ियों की पदलोलुपता बार-बार दुष्ट कामांधों का हथियार बन जाती है। कदाचार में शामिल महिला खिलाड़ियों पर तो यही कहना ठीक होगा कि जाके पैर न फटे बिवार्इं वो क्या जाने पीर पराई। बेटियों के दैहिक शोषण में सिर्फ प्रशिक्षक ही नहीं बल्कि भारतीय ओलम्पिक एसोसिएशन, भारतीय खेल प्राधिकरण और खेलों में दखल देने वाले कई राजनीतिज्ञ भी शामिल हैं। भारत में खेल बेटियों के साथ न केवल ज्यादती होती है बल्कि उनके अश्लील वीडियोग्राफ भी तैयार होते हैं। वर्ष 2010 में चीन और कनाडा दौरे पर गई भारतीय महिला हॉकी टीम के साथ वीडियोग्राफर बसवराव भी गये थे और उन्होंने वहां ऐसी कारगुजारी की थी जिससे भारत शर्मसार हुआ था। तब बसवराव पर आरोप लगा था कि वह यह सब महाराज किशन कौशिक के इशारे पर करते थे, जिसके लिए उन्हें बतौर प्रोत्साहन 30 हजार रुपये भी मिलते थे। खैर, ये सब तो बीते समय की बाते हैं पर दो अगस्त को जो कुछ ग्लास्गो में हुआ उसकी जितनी निन्दा की जाए वह कम है। भारतीय खिलाड़ियों के मुखिया बतौर स्कॉटलैण्ड के ग्लास्गो गए राज सिंह लाख कहें कि ये दोनों सदस्य उनके दल का हिस्सा नहीं, पर हैं तो भारतीय खेलनहार ही। राजीव मेहता और वीरेन्दर मलिक की करतूतों से भारतीय खेल मंत्रालय लाख खफा हो, पर इनके खिलाफ कुछ होगा इसमें संदेह जरूर है। खेल मंत्री सर्बानंद सोनोवाल इस मामले पर भारतीय ओलम्पिक एसोसिएशन के महासचिव राजीव मेहता और कुश्ती रेफरी वीरेन्दर मलिक के खिलाफ शायद ही कुछ कर पाएं। वीरेन्दर मलिक भारतीय महिला कुश्ती के मुख्य प्रशिक्षक कुलदीप सिंह के भाई हैं। भारतीय खेलों में खेलनहारों की मौज-मस्ती का यह पहला और आखिरी मामला नहीं है। विदेशों में होने वाली प्राय: हर बड़ी खेल प्रतियोगिता में खिलाड़ियों और प्रशिक्षकों से कहीं अधिक खेल पदाधिकारियों का जाना दस्तूर बन चुका है। मोदी सरकार को इसे हल्के से नहीं लेना चाहिए क्योंकि यह देश की अस्मिता से जुड़ा मसला है। यदि राजीव मेहता और वीरेन्दर मलिक गुनहगार हैं तो इन्हें कड़ी से कड़ी सजा मिले ताकि फिर कभी कोई खेलनहार ऐसा घिनौना दुस्साहस न दिखा सके।
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