Friday 8 August 2014

बाबुओं की लीला न्यारी, मजे कर रहे खूब अनाड़ी

75 फीसदी संविदा कर्मी फर्जी दस्तावेजों से कर रहे चाकरी
आठ साल बाद संविदा वालीबाल प्रशिक्षक रीमा चौहान बर्खास्त
सिवनी के दो प्रशिक्षकों को दिखाया बाहर का रास्ता
मध्य प्रदेश खेल एवं युवा कल्याण विभाग
ग्वालियर। कहते हैं कि गुनाह लाख छिपाया जाये पर वह एक न एक दिन उजागर जरूर होता है। यही कुछ हुआ है भिण्ड में आठ साल से कार्यरत रही संविदा वालीबाल प्रशिक्षक रीमा चौहान  के साथ। उनके फर्जी दस्तावेजों को लेकर पहले से ही संदेह था लेकिन खेल एवं युवा कल्याण विभाग के कर्ताधर्ता कान में उंगली डाले बैठे रहे। मामला जब हद से बाहर गया तो रीमा को बर्खास्त करने का अप्रिय निर्णय लेना पड़ा।
खेल एवं युवा कल्याण विभाग में रीमा अकेले ही कसूरवार नहीं हैं बल्कि विभाग में कार्यरत 554 संविदा कर्मियों और दो साल पहले व्यापम के माध्यम से हुई 85 नियमित बाबुओं के कागजातों को खंगाला जाए तो 75 फीसदी ऐसे लोग मिलेंगे जोकि फर्जी दस्तावेजों के जरिए विभाग की मलाई छान रहे हैं। अब सवाल यह उठता है कि इतने बड़े पैमाने पर यह फर्जीवाड़ा हुआ भी तो आखिर कैसे? सूत्रों की कही सच मानें तो इस गोरखधंधे में विभाग के आला अफसरों सहित जिला खेल अधिकारी और बाबू शामिल हैं। रीमा ही नहीं खेल विभाग में फर्जी दस्तावेजों से नौकरी हासिल करने वालों की लम्बी फेहरिस्त है। ग्वालियर-चम्बल सम्भाग में भी नियुक्तियों में जमकर गोलमाल हुआ है। संविदा खेल प्रशिक्षक (ग्रेड-2) सहित दीगर कर्मचारियों से पैसे लेकर नियुक्तियां की गर्इं। इस फर्जीवाड़े में भोपाल खेल एवं युवा कल्याण विभाग की स्थापना शाखा में कार्यरत मुख्य बाबू बाबूलाल श्रीवास्तव और रवि बंसौड़ शक के दायरे में हैं।
दरअसल खेल विभाग में लम्बे समय से तबादला नीति पर ध्यान न दिए जाने के चलते जो जहां तैनात है वह जिला खेल अधिकारी अपने आपको वहां का अलम्बरदार मान बैठा है। उसे  भोपाल का रत्ती भर भी डर नहीं है। डरे भी तो आखिर क्यों? दरअसल हर फर्जीवाड़े में ऊपर से नीचे तक लेन-देन जो होता है। सिवनी जिले में मकसूदा खान 30 साल से अड़ंगी मारे बैठी हैं, उनके खिलाफ तमाम आरोप-प्रत्यारोप हैं बावजूद इसके किसी की क्या मजाल जो मकसूदा को उनके मकसद से डिगा सके। सिवनी की मकसूदा ही नहीं इंदौर, शिवपुरी तथा अन्य जिलों में भी जिला खेल अधिकारी लम्बे समय से काबिज हैं। जो भी हो सिवनी में भी फर्जी दस्तावेजों से नौकरी कर रहे दो लोगों को विभाग से बेदखल किया गया है। मुरैना, दतिया, शिवपुरी और ग्वालियर में भी जो नियुक्तियां हुई हैं वे पाक साफ नहीं हैं। पाठकों को जानकर आश्चर्य होगा खेलनहारों ने क्रीड़ाश्री तक की नियुक्तियों में गोलमाल किया है। दरअसल यह सब विभाग की कमजोर बुनियाद का ही प्रतिफल है वरना विभाग में प्रतिनियुक्ति पर आये अलम्बरदार आज कहीं और होते।
क्या सारे प्रतिभाशाली भोपाल में ही पैदा होते हैं?
दो साल पहले विभाग में हुई 85 बाबुओं की नियुक्ति भी संदेह के घेरे में है। लोग दबी जुबान यह तक कह रहे हैं कि क्या सारे प्रतिभाशाली भोपाल में ही पैदा होते हैं? बात सही भी है बाबुओं की जो नियुक्ति हुई है उनमें 50 फीसदी तो भोपाल से ही हैं। खेल विभाग में फर्जी दस्तावेजों से नौकरी हासिल करने का खेल पुराना है। कुछ साल पहले भी एक मोहतरमा फर्जी दस्तावेजों के सहारे बुलंदियों तक पहुंची थीं लेकिन अलम्बरदार की जैसे ही नजर फिरी धड़ाम से नीचे आ गिरीं। लोग आज मोहतरमा को ढूंढ़ रहे हैं लेकिन उनका कहीं अता-पता नहीं है।     

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