Friday 22 August 2014

ताक पर राजनीतिक मर्यादा

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और भारतीय संस्कृति को आखिर क्या हो गया है। मोदी जहां जा रहे हैं, उनके साथ मंच साझा करने वाले राज्य के अलम्बरदारों की जमकर हूटिंग हो रही है। जो हो रहा है वह नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता से कहीं अधिक राजनीतिक अवनति का सूचक है। कैथल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सभा में हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा की हूटिंग के बाद रांची में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की भी  हूटिंग हुई। कैथल और रांची में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यक्रमों के दौरान भाजपाइयों द्वारा मुख्यमंत्रियों की हूटिंग व महाराष्ट्र में मोदी के खिलाफ किया गया प्रदर्शन न केवल अशोभनीय है बल्कि भारतीय राजनीति के गिरते स्तर का भी सूचक है। किसी भी योजना का लोकार्पण क्यों न हो उस राज्य के मुखिया की उपस्थिति प्रोटोकाल के तहत लाजिमी होती है लिहाजा ऐसे कार्यक्रमों को राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए।
राजनीति में लोक रुझान अपनी जगह है लेकिन सामान्य शिष्टाचार समाज और राजनीति से अलग नहीं हो सकते। यदि हम राजनेताओं से साफ-सुथरी आचार संहिता की अपेक्षा रखते हैं तो हमारा भी दायित्व बनता है कि लोकतंत्र की इकाई के रूप में अमर्यादित व्यवहार न किया जाए। भारतीय जनता पार्टी और उसके कार्यकर्ता सुसंस्कारित आचरण के लिए जाने जाते हैं, उन्हें अपनी इस छवि को बरकरार रखना चाहिए। बात हरियाणा की हो, झारखण्ड या फिर महाराष्ट्र की, हमारा अमर्यादित व्यवहार दुनिया में मुल्क को लजाता है। देशकाल परिस्थितियों के अनुरूप केन्द्र में सत्ता परिवर्तन हुआ, नये नेतृत्व ने आसंदी सम्हाली, यही तो भारतीय लोकतंत्र की खासियत  है। भाजपा कार्यकर्ताओं को उन्माद में बहने की बजाय देश की आवाम ने जो दायित्व सौंपा है, उसकी समृद्धि पर मंथन करना चाहिए। प्रधानमंत्री की सभा में मुख्यमंत्री किसी भी दल विशेष का क्यों न हो भारतीय संस्कृति इस बात की इजाजत नहीं देती कि उसके विरुद्ध नारे लगाए जाएं या उसकी हूटिंग हो।
भारतीय राजनीति खराब दौर से गुजर रही है। किसी भी समाज में विभिन्न वर्गों के बीच अमन और भाईचारा हो, ऐसी बातों और कोशिशों से भला किसी को क्या गिला हो सकता है? आज जब पड़ोसी देश हमें आंखें तरेर रहे हों, ऐसे नाजुक समय में ऐसी कोशिशों की दरकार है जिससे मुल्क में सद्भाव पैदा हो। हाल ही संघ प्रमुख मोहन भागवत ने प्रखर हिन्दुत्व का राग अलाप कर एक नए विवाद को जन्म दे दिया है। भागवत कुछ भी कहें पर केवल दलितों, आदिवासियों और हिन्दू धर्म के विभिन्न समूहों के बीच जब वे हिन्दू की अपनी परिभाषा में दलितों और आदिवासियों को शामिल करते हैं, तो क्या वह यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि अब किसी दलित को मंदिर जाने से नहीं रोका जाएगा, उसके घोड़ी चढ़ने पर किसी सवर्ण को आपत्ति नहीं होगी और कोई भी हज्जाम दलित के बाल काटने से मना नहीं करेगा।
दिल्ली की सल्तनत के लिए भारतीय जनता पार्टी का चुनावी नारा सबका साथ-सबका विकास था, ऐसे में यदि उनके ही लोग सार्वजनिक कार्यक्रमों में अमर्यादित आचरण करेंगे तो उससे प्रतिकूल संदेश जाने का डर है। हिन्दुत्व के प्रबल हिमायती मोदी ने प्रधानमंत्री की आसंदी सम्हालने के बाद जिस तरह दुश्मन देशों को दोस्ती का पैगाम भेजा उसकी सर्वत्र प्रशंसा हुई है। जाहिर है कि नरेन्द्र मोदी ऐसे किसी विवाद में नहीं पड़ना चाहते, जो उनकी सर्व समावेशी नीति को प्रभावित करे। मोदी जनप्रिय हैं यह बात उन्होंने चुनावी प्रचार से लेकर अब तक अपनी असरदार वाणी से सिद्ध किया है। स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले की प्राचीर से दिया गया उनका उद्बोधन लोगों के मानस में अमिट है। अब तक लोगों ने न केवल मोदी को ध्यान से सुना है बल्कि उनमें उत्साही रंग भी भरा है। आसमान छूती महंगाई के बावजूद लोगों को भरोसा है कि देश में अच्छे दिन आएंगे। यहां इस कहावत को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता कि एक मछली सारे तालाब को तो गंदा कर सकती है लेकिन अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। एक तरफ मोदी मुल्क के समुन्नत विकास के लिए मेक इन इण्डिया कहकर विदेशी निवेश को निमंत्रण दे रहे हैं तो दूसरी ओर मेड इन इण्डिया के माध्यम से देश की आवाम को राष्ट्रयज्ञ में पूर्णाहुति देने का आग्रह करना उनकी नेक-नीयत का सूचक है।
खैर, हरियाणा के मुख्यमंत्री की हूटिंग के बाद उनका निकट भविष्य में प्रधानमंत्री की जनसभा में भाग नहीं लेने या फिर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण का मोदी के साथ मंच साझा नहीं करने का फरमान यही साबित करता है कि आज देश का प्रधानमंत्री अपने ही कार्यकर्ताओं के कारनामों से अछूत हो रहा है। कार्यकर्ताओं की ऐसी कुचेष्टाएं विस्तार लें इससे पहले भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की जिम्मेदारी बनती है कि वह अपनी वानर सेना को मर्यादा का पाठ पढ़ाये। जिस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री एक साथ हों ऐसा व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए। इससे कोई सकारात्मक संकेत नहीं जाता। यह तो भारतीय परम्परा और संस्कृति का भी तकाजा है कि तमाम मतभेदों के बजाय भी हमें अपने परिवार के मुखिया का लिहाज और उसकी मर्यादा का ख्याल रखना चाहिए।
दरअसल, यह सब लोकतंत्र के भीड़तंत्र में तब्दील होने की मानसिकता का ही परिचायक है, जिससे बचा जाना चाहिए। समय रहते इस मनोवृत्ति को स्वस्थ लोकतंत्र में परिपाटी और परम्परा बनने से नहीं रोका गया तो उसके परिणाम भयावह हो सकते हैं। आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने आम आदमी की उम्मीदों पर खरा उतरने की कठिन चुनौती है। जब देश आकंठ महंगाई से जूझ रहा हो ऐसे नाजुक समय में भाजपा कार्यकर्ताओं को आग में काठ की हांडी चढ़ाने के बजाय आमजन की पीड़ा दूर करने का संकल्प लेना चाहिए। भाजपा ने समान नागरिक संहिता के आधार पर अगड़ों-पिछड़ों, अमीरों-गरीबों और अल्पसंख्यकों-बहुसंख्यकों को एक घाट का पानी पिलाने की मंशा पाली थी, जिसे उसके ही लोग हुल्लड़बाजी में अकारथ कर रहे हैं।

No comments:

Post a Comment