Friday, 4 July 2014

ग्लासगो में चमकदार प्रदर्शन की चुनौती

बात खेल की हो या रण की जो मैदान में पौरुष दिखाता है, वही सिकंदर कहलाता है। स्काटलैण्ड की राजधानी ग्लासगो में 71 देशों के लगभग साढ़े छह हजार खिलाड़ियों के पौरुष की परीक्षा लेने को खेल मंच सज चुके हैं। तैयारियां मुकम्मल हो चुकी हैं। इंतजार है तो सिर्फ खिलाड़ियों का। राष्ट्रमण्डल खेलों की तीसरी बार मेजबानी करने जा रहे स्काटलैण्ड में 23 जुलाई से तीन अगस्त तक होने वाले राष्ट्रमण्डल खेलों पर किसी की नजर हो या नहीं भारतीय खेलप्रेमियों की जरूर है। यही वह खेल मंच है जहां भारतीय खिलाड़ियों ने यदा-कदा ही सही पर नायाब प्रदर्शन किया है। कमतर तैयारियों के बीच ग्लासगो जा रहे भारतीय खिलाड़ियों पर दिल्ली के प्रदर्शन को दोहराने का दबाव तो चमकदार प्रदर्शन की चुनौती है।
भारत ने आजादी के बाद बेशक हर क्षेत्र में खूब तरक्की की हो पर खेलों पर उतना ध्यान नहीं दिया गया जितना दिया जाना चाहिए। इन दिनों पूरे विश्व में फुटबाल की खुमारी छाई हुई है, पर हम सिर्फ तमाशबीन बने देर रात तक दूसरे के लिए तालियां पीट रहे हैं। भारत में दुनिया के नम्बर एक खेल फुटबाल को क्रिकेट जैसी लोकप्रियता कभी हासिल नहीं हो सकी। विश्व रैंकिंग में हमारी राष्ट्रीय टीम 147वें नम्बर पर है। दुर्भाग्य की बात है कि लगभग सवा अरब की जनसंख्या वाले हमारे देश में 11 विश्वस्तरीय खिलाड़ी अब तक तैयार नहीं हो सके हैं। फुटबाल ही नहीं उचित प्रशिक्षण, प्रोत्साहन, प्रबंधन आदि के अभाव में कमोबेश बहुत से खेलों का यही हाल है। क्रिकेट अपनी व्यावसायिकता के कारण बेशक खूब फल-फूल रहा हो, पर अन्य खेलों की स्थिति काफी दयनीय है। फिर भी यह देखना सुखद है कि कुछ खिलाड़ी अपने बिंदास प्रदर्शन से विश्व स्तर पर भारत का नाम ऊंचा कर रहे हैं। टेनिस में सानिया मिर्जा, लिएंडर पेस, महेश भूपति, बैडमिंटन में साइना नेहवाल, पीवी सिंधू, मुक्केबाजी में एमसी मैरीकाम, विजेन्दर सिंह, कुश्ती में सुशील कुमार, निशानेबाजी में गगन नारंग, अभिनव बिन्द्रा, राज्यवर्द्धन सिंह राठौर, विजय कुमार, ओमकार सिंह, एथलेटिक्स में मिल्खा सिंह, पीटी ऊषा, अंजू बॉबी जॉर्ज, कृष्णा पूनिया जैसे खिलाड़ियों ने भारतीयों को सफलता का स्वाद जरूर चखाया है।
दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों में कई बेनाम प्रतिभाओं ने भी अपने शानदार प्रदर्शन से दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया तो 2012 के लंदन ओलम्पिक में पहली बार छह पदक जीतकर भारतीय खिलाड़ियों ने इतिहास रचा था, पर ग्लासगो में हमारे खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर संदेह के बादल मंडरा रहे हैं। खेल में लय व जीत की प्रतिबद्धता बनाए रखना हमेशा चुनौती होती है। इन्हीं चुनौतियों का बोझ लिए सैकड़ों भारतीय खिलाड़ी ग्लासगो में होने जा रहे 20वें राष्ट्रमण्डल खेलों में दमखम दिखाने को बेताब हैं। 1930 से प्रारम्भ हुए इन खेलों में भारतीय खिलाड़ी 15 बार शिरकत कर चुके हैं। भारत ने 1930, 1950, 1962 और 1986 में इन खेलों में हिस्सा नहीं लिया था। 1938 और 1954 में हुए खेल भारतीय खिलाड़ियों के लिए बुरे फलसफे की तरह रहे तब हमें बिना पदक लौटना पड़ा था। इन खेलों में अब तक भारतीय खिलाड़ियों ने 141 स्वर्ण, 123 रजत तथा 104 कांसे के तमगों सहित कुल 372 पदक जीते हैं।
राष्ट्रमण्डल खेलों की जहां तक बात है, इसमें अब तक आस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों का ही डंका पिटा है। कंगारुओं को इंग्लैण्ड और कनाडा के खिलाड़ियों से यदा-कदा चुनौती भी मिली पर उनके सिरमौर प्रदर्शन को कभी आंच नहीं आई। आस्ट्रेलिया इन खेलों में अब तक 803 स्वर्ण, 673 रजत तथा 604 कांस्य सहित कुल 2080 पदकों के साथ शीर्ष पर है जबकि अंग्रेज खिलाड़ी 612 स्वर्ण, 614 रजत और 612 कांस्य तमगों के साथ कुल 1838 पदक जीतकर दूसरे तो कनाडाई खिलाड़ी 436 स्वर्ण, 459 रजत और 493 कांस्य सहित कुल 1388 पदक जीतकर तीसरे स्थान पर हैं। कुल पदकों के मामले में भारत चौथे, न्यूजीलैण्ड पांचवें, दक्षिण अफ्रीका छठे तथा स्कॉटलैण्ड सातवें स्थान पर है। इस बार अपने दर्शकों के बीच स्कॉटलैण्ड चमकदार प्रदर्शन कर एक सीढ़ी ऊपर तो भारत एक पायदान नीचे आ सकता है। इन खेलों में अब तक 55 देश ही पदकों का खाता खोल सके हैं। दिल्ली राष्ट्रमण्डल खेलों में भारत अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए    38 स्वर्ण, 27 रजत तथा 36 कांस्य पदक जीतकर आस्ट्रेलिया के बाद दूसरे स्थान पर रहा था। यह पहला अवसर रहा जब भारत ने इन खेलों में पदकों का शतक (101) लगाया था। दिल्ली में आस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों ने 74 स्वर्ण, 55 रजत तथा 48 कांस्य सहित कुल 177 पदक जीते थे तो इंग्लैण्ड 37 स्वर्ण, 59 रजत तथा 46 कांस्य पदक के साथ तीसरे तथा कनाडा 26 स्वर्ण, 17 रजत और 32 कांस्य पदकों के साथ चौथे स्थान पर रहा था। भारत ने दिल्ली में 12 खेलों में पदकों का खाता खोला था जिसमें सर्वाधिक 30 पदक निशानेबाजों ने दिलाए थे। हमारे पहलवानों ने 19, एथलीटोें ने 12 तथा वेटलिफ्टरों और तीरंदाजों ने आठ-आठ पदकों से अपने गले सजाए थे। भारत को मुक्केबाजी में सात, टेबल टेनिस में पांच, बैडमिंटन तथा लॉन टेनिस में चार-चार पदक मिले थे।
अपने दर्शकों और क्रीड़ांगनों में उन खेलों में भी भारतीय खिलाड़ियों ने शानदार प्रदर्शन किया था जिनमें सम्भावनाएं क्षीण थीं। व्यक्तिगत स्वर्ण पदकों की बात करें तो शूटर गगन नारंग (4), ओमकार सिंह (3), विजय कुमार (3), गुरप्रीत सिंह (2), अनिसा सैयद और हरप्रीत सिंह ने दो-दो स्वर्ण पदकों पर सटीक निशाने लगाये थे। तीरंदाजी में दीपिका कुमारी (2) और राहुल बनर्जी ने भी स्वर्णिम लक्ष्य पर निशाना साधा था तो शटलर साइना नेहवाल, ज्वाला गुट्टा और अश्वनी पोनप्पा के गले भी स्वर्ण फलक से सुशोभित हुए थे। एथलेटिक्स में डिस्कस थ्रोवर कृष्णा पूनिया ने स्वर्णिम इतिहास लिखा तो मनजीत कौर, साइनी जोसे, अश्वनी अंकुजी और मनदीप कौर की चौकड़ी ने चार गुणा 400 मीटर रिले दौड़ का स्वर्ण पदक जीतकर राष्ट्रमण्डल देशों को हतप्रभ किया था। इस बार इन खिलाड़ियों की डगर समय से प्रशिक्षक और पर्याप्त संसाधन न मिल पाने से थोड़ा कठिन जरूर है पर हमारे शूटर, पहलवान, शटलर और वेटलिफ्टर और मुक्केबाज अपना चमकदार प्रदर्शन दोहराने की क्षमता जरूर रखते हैं।  

No comments:

Post a Comment