एक प्रशिक्षक की करुणगाथा
भारतीय महिला कुश्ती प्रशिक्षक कृपाशंकर बिशनोई ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लगाई न्याय की गुहार
ग्लास्गो में रोज जी और मर रहा हूं। हर नजर मेरी खिल्ली उड़ा रही है। स्कॉटलैण्ड पुलिस जब चाहे पकड़ लेती है। मेरा दिन-रात का अमन-चैन भारतीय खेल प्राधिकरण और खेल से जुड़े कुछ अन्य विघ्नसंतोषियों ने छीन लिया है। मेरी लाख मान-मनुहार के बाद भी एक्रीडेशन लेटर नहीं मिला। सारे प्रयास अकारथ चले गये, मेरी समझ में नहीं आ रहा कि मैं क्या करूं? मेरी लाख उपेक्षा की जाए पर मैं भारतीय बेटियों के साथ अन्याय नहीं होने दूंगा। यह दर्द उस शख्स का है जिसने कुश्ती के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा रखा है। हम बात कर रहे हैं इंदौर के कृपाशंकर बिशनोई का। साई की हिटलरशाही के खिलाफ भारतीय महिला कुश्ती प्रशिक्षक कृपाशंकर बिशनोई ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से न्याय की गुहार लगाई है।
भारतीय कुश्ती की पहचान, अर्जुन अवॉर्डी और वर्ष 2012 से मुल्क की पहलवान बेटियों को फौलादी बनाने वाले कृपाशंकर बिशनोई के साथ जो स्कॉटलैण्ड (ग्लास्गो) में हुआ वह न केवल शर्मनाक और निन्दनीय है बल्कि खेलों से होते खिलवाड़ का ज्वलंत उदाहरण भी। ग्लास्गो में खेले जा रहे 20वें राष्ट्रमण्डल खेलों में मैं निरंतर खिलाड़ियों और प्रशिक्षकों के सम्पर्क में रहा। उनकी पल-पल की खबर और प्रदर्शन के बीच भारतीय महिला कुश्ती प्रशिक्षक कृपाशंकर बिशनोई को जिस जलालत का सामना करना पड़ा वह भारतीय खेलों के इतिहास में हमेशा काले अध्याय के रूप में दर्ज किया जाएगा।
जिस देश में खेल गुरुओं के साथ ऐसा सलूक हो रहा हो, वहां खेल और खिलाड़ियों का भला कैसे सम्भव है। कृपाशंकर बिशनोई इससे पूर्व भी साई के षड्यंत्र का शिकार हो चुके हैं। साई की बेवजह की दखलंदाजी के चलते पूर्व में कृपाशंकर को अमेरिका और इटली जाने से भी रोका गया था। मध्य प्रदेश ही नहीं समूचा देश इस बात को जानता है कि पहलवान और कोच कृपाशंकर बिशनोई एक भद्र शख्सियत हैं, वे किसी को बंदूक तो क्या उंगली भी नहीं दिखा सकते। यह कितना शर्मनाक है कि भारत में खेलों का ठेकेदार साई कृपाशंकर बिशनोई को आपराधिक शख्स करार दे रहा है। जो भी हो साई की इस कारगुजारी से देश के द्रोणाचार्य अवॉर्डी बल्देव सिंह, राजिन्दर सिंह आदि दर्जनों प्रशिक्षक खासे गुस्से में हैं इनका कहना है कि भारत बेशक आजाद हो गया हो पर खेलों में आज भी गोरों और नाकाबिलों का बोलबाला है। इनका कहना है कि खेलों में राजनीति नहीं होनी चाहिए। भारतीय प्रशिक्षक आज भी श्रेष्ठ हैं लेकिन खेलों में गड़बड़झाला करने की खातिर ही खेलनहार विदेशी प्रशिक्षकों को भारत बुलाते हैं।
अपने बेजार, विदेशियों पर अरबों निसार यह बात भारतीय खेलों पर शत-प्रतिशत सच साबित होती है। एक तरफ भारत सरकार खेलों के विकास का दम्भ भर रही है तो दूसरी तरफ भारतीय खेल प्राधिकरण के कुछ भामाशाह दुनिया के सामने अपनी ओछी हरकतों से देश को लजा रहे हैं। अर्जुन अवॉर्डी और भारतीय महिला कुश्ती प्रशिक्षक कृपाशंकर बिशनोई को ग्लास्गो में चल रहे 20वें राष्ट्रमण्डल खेलों के खेलगांव में प्रवेश न मिलना बड़े हैरत की बात है। भारतीय खेल प्राधिकरण की नादरशाही के चलते भारतीय महिला कुश्ती प्रशिक्षक कृपाशंकर बिशनोई को ग्लास्गो राष्ट्रमण्डल खेलों में मुश्किल हालातों का सामना करना पड़ा। वह जहां-जहां भी गए निराशा ही हाथ लगी। कृपा को जहां खेलगांव में प्रवेश नहीं मिला वहीं पुलिस भी बेवजह परेशान करती रही। कृपाशंकर को खेलगांव में प्रवेश से क्यों रोका गया इसकी कोई ठोस वजह नहीं है बावजूद इसके वे महिला पहलवानों के पास नहीं जा सके। यह सब तब हुआ जब खिलाड़ियों को प्रोत्साहन की दरकार थी। कृपा का दोष सिर्फ इतना है कि उन्होंने खिलाड़ियों के हक यानि डाइट की बात साई से की थी। यह मामला 2012 का है और साई अब खुन्नस निकाल रहा है। सवाल यह उठता है कि यदि महिला कुश्ती प्रशिक्षक से कोई गिला-शिकवा थी तो उसे ग्लास्गो क्यों भेजा गया? दरअसल कृपाशंकर को भारतीय ओलम्पिक संघ और भारतीय कुश्ती महासंघ ने ही ग्लास्गो भेजा था, पर साई ने बेवजह दखल देकर विवाद को जन्म दिया। कोच की नियुक्ति कुश्ती संघ का मामला था, इस मामले में भारतीय खेल प्राधिकरण को दखल देने का कोई अधिकार नहीं था, फिर भी उसने कुश्ती प्रशिक्षक पर आपराधिक होने के आरोप लगाए।
कृपाशंकर यदि वाकई अपराधी है तो उसे खेल मंत्रालय अर्जुन अवॉर्ड चयन समिति में क्यों रखता है? साई की लीला सबको पता है। देश के तकरीबन हर सेण्टर में खिलाड़ियों को वे सुविधाएं मयस्सर नहीं हैं जो उन्हें मिलनी चाहिए। साई के संचालक जिजी थामसन व्यवस्थाएं सुधारने की बजाय प्रशिक्षकों और खिलाड़ियों के साथ हो रहे अन्याय को और बढ़ावा दे रहे हैं। जिजी थामसन स्वयं भी दूध के धुले नहीं हैं, उन पर पामोलिव आॅइल मामले में प्रकरण चल रहा है तो उनके कार्यकाल में खिलाड़ियों में शक्तिवर्धक दवाएं लेने की गलत लत पड़ी। कृपाशंकर को खेलगांव में प्रवेश न मिलना सिर्फ उसी का नहीं बल्कि मुल्क की उन बेटियों का भी नुकसान है जो कुश्ती में अपना भविष्य संवारने का सपना देखती हैं। जो भी हो साई के षड्यंत्र का शिकार कुश्ती प्रशिक्षक कृपाशंकर बिशनोई ने देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर न्याय की गुहार लगाई है।
कुश्ती प्रशिक्षक कृपाशंकर पर 2013 में साई की रीजनल डायरेक्टर राधिका सामंत की शह पर एक कर्मचारी ने बंदूक दिखाकर धमकाने का आरोप लगाया था, जबकि कृपा के पास कोई लाइसेंसी हथियार ही नहीं है। खैर, पुलिस जांच के बाद कृपाशंकर निर्दोष साबित हुए और खिलाड़ियों के हक की बात पुन: उठाते हुए मामला अदालत तक ले गये। इस बीच साई ने उन्हें तरह-तरह के प्रलोभन भी दिए लेकिन इस पहलवान ने साफ कह दिया कि बेटियों के हक पर वह कतई डाका नहीं डालने देगा। कुश्ती प्रशिक्षक कृपाशंकर बिशनोई के साथ जो शर्मनाक वाक्या घटा उसके बाद तो घर का जोगी जोगना आन गांव का सिद्ध वाली कहावत ही सटीक बैठती है। आज भारत में कोच पैदा करने के कई स्पोर्ट्स संस्थान कार्य कर रहे हैं बावजूद देशी खेलनहार विदेशी प्रशिक्षकों का मोह नहीं त्याग पाये हैं। साई की कृपा से बीते तीन साल में 88 विदेशी कोचों पर भारत सरकार ने 2569.63 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। एक आर्थिक रूप से कमजोर देश में पैसे की इस फिजूलखर्ची के लिए साई ही जिम्मेदार है।
आज हमारे प्रशिक्षक अल्प वेतन और भूखे पेट गुजारा करते हुए खिलाड़ी निखार रहे हैं वहीं विदेशी प्रशिक्षक अरबों रुपये पाकर भारतीय खिलाड़ियों को बिगाड़ रहे हैं। भारत में डोपिंग का डंक विदेशी प्रशिक्षकों की ही कारगुजारी है। बीते तीन साल में भारत सरकार ने विभिन्न खेलों में सुधार के नाम पर विदेशी प्रशिक्षकों पर अरबों रुपये पानी की तरह बहाए हैं। यही पैसा यदि भारतीय प्रशिक्षकों पर खर्च होता तो शायद खेलों की स्थिति कुछ और ही होती। देश में खेलों से होते खिलवाड़ पर तरस तो आता ही है, उन खेलनहारों पर रंज भी जो गरीबों की कमाई विदेशी जमाइयों पर खर्च कर रहे हैं। भारत ने 2011-12 में 31 विदेशी प्रशिक्षकों पर 790.02 करोड़ रुपये, 2012-13 में 34 प्रशिक्षकों पर 717.73 करोड़ और 2013-14 में 23 प्रशिक्षकों पर 1061.88 करोड़ रुपये खर्च किए हैं।
भारतीय महिला कुश्ती प्रशिक्षक कृपाशंकर बिशनोई ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लगाई न्याय की गुहार
ग्लास्गो में रोज जी और मर रहा हूं। हर नजर मेरी खिल्ली उड़ा रही है। स्कॉटलैण्ड पुलिस जब चाहे पकड़ लेती है। मेरा दिन-रात का अमन-चैन भारतीय खेल प्राधिकरण और खेल से जुड़े कुछ अन्य विघ्नसंतोषियों ने छीन लिया है। मेरी लाख मान-मनुहार के बाद भी एक्रीडेशन लेटर नहीं मिला। सारे प्रयास अकारथ चले गये, मेरी समझ में नहीं आ रहा कि मैं क्या करूं? मेरी लाख उपेक्षा की जाए पर मैं भारतीय बेटियों के साथ अन्याय नहीं होने दूंगा। यह दर्द उस शख्स का है जिसने कुश्ती के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा रखा है। हम बात कर रहे हैं इंदौर के कृपाशंकर बिशनोई का। साई की हिटलरशाही के खिलाफ भारतीय महिला कुश्ती प्रशिक्षक कृपाशंकर बिशनोई ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से न्याय की गुहार लगाई है।
भारतीय कुश्ती की पहचान, अर्जुन अवॉर्डी और वर्ष 2012 से मुल्क की पहलवान बेटियों को फौलादी बनाने वाले कृपाशंकर बिशनोई के साथ जो स्कॉटलैण्ड (ग्लास्गो) में हुआ वह न केवल शर्मनाक और निन्दनीय है बल्कि खेलों से होते खिलवाड़ का ज्वलंत उदाहरण भी। ग्लास्गो में खेले जा रहे 20वें राष्ट्रमण्डल खेलों में मैं निरंतर खिलाड़ियों और प्रशिक्षकों के सम्पर्क में रहा। उनकी पल-पल की खबर और प्रदर्शन के बीच भारतीय महिला कुश्ती प्रशिक्षक कृपाशंकर बिशनोई को जिस जलालत का सामना करना पड़ा वह भारतीय खेलों के इतिहास में हमेशा काले अध्याय के रूप में दर्ज किया जाएगा।
जिस देश में खेल गुरुओं के साथ ऐसा सलूक हो रहा हो, वहां खेल और खिलाड़ियों का भला कैसे सम्भव है। कृपाशंकर बिशनोई इससे पूर्व भी साई के षड्यंत्र का शिकार हो चुके हैं। साई की बेवजह की दखलंदाजी के चलते पूर्व में कृपाशंकर को अमेरिका और इटली जाने से भी रोका गया था। मध्य प्रदेश ही नहीं समूचा देश इस बात को जानता है कि पहलवान और कोच कृपाशंकर बिशनोई एक भद्र शख्सियत हैं, वे किसी को बंदूक तो क्या उंगली भी नहीं दिखा सकते। यह कितना शर्मनाक है कि भारत में खेलों का ठेकेदार साई कृपाशंकर बिशनोई को आपराधिक शख्स करार दे रहा है। जो भी हो साई की इस कारगुजारी से देश के द्रोणाचार्य अवॉर्डी बल्देव सिंह, राजिन्दर सिंह आदि दर्जनों प्रशिक्षक खासे गुस्से में हैं इनका कहना है कि भारत बेशक आजाद हो गया हो पर खेलों में आज भी गोरों और नाकाबिलों का बोलबाला है। इनका कहना है कि खेलों में राजनीति नहीं होनी चाहिए। भारतीय प्रशिक्षक आज भी श्रेष्ठ हैं लेकिन खेलों में गड़बड़झाला करने की खातिर ही खेलनहार विदेशी प्रशिक्षकों को भारत बुलाते हैं।
अपने बेजार, विदेशियों पर अरबों निसार यह बात भारतीय खेलों पर शत-प्रतिशत सच साबित होती है। एक तरफ भारत सरकार खेलों के विकास का दम्भ भर रही है तो दूसरी तरफ भारतीय खेल प्राधिकरण के कुछ भामाशाह दुनिया के सामने अपनी ओछी हरकतों से देश को लजा रहे हैं। अर्जुन अवॉर्डी और भारतीय महिला कुश्ती प्रशिक्षक कृपाशंकर बिशनोई को ग्लास्गो में चल रहे 20वें राष्ट्रमण्डल खेलों के खेलगांव में प्रवेश न मिलना बड़े हैरत की बात है। भारतीय खेल प्राधिकरण की नादरशाही के चलते भारतीय महिला कुश्ती प्रशिक्षक कृपाशंकर बिशनोई को ग्लास्गो राष्ट्रमण्डल खेलों में मुश्किल हालातों का सामना करना पड़ा। वह जहां-जहां भी गए निराशा ही हाथ लगी। कृपा को जहां खेलगांव में प्रवेश नहीं मिला वहीं पुलिस भी बेवजह परेशान करती रही। कृपाशंकर को खेलगांव में प्रवेश से क्यों रोका गया इसकी कोई ठोस वजह नहीं है बावजूद इसके वे महिला पहलवानों के पास नहीं जा सके। यह सब तब हुआ जब खिलाड़ियों को प्रोत्साहन की दरकार थी। कृपा का दोष सिर्फ इतना है कि उन्होंने खिलाड़ियों के हक यानि डाइट की बात साई से की थी। यह मामला 2012 का है और साई अब खुन्नस निकाल रहा है। सवाल यह उठता है कि यदि महिला कुश्ती प्रशिक्षक से कोई गिला-शिकवा थी तो उसे ग्लास्गो क्यों भेजा गया? दरअसल कृपाशंकर को भारतीय ओलम्पिक संघ और भारतीय कुश्ती महासंघ ने ही ग्लास्गो भेजा था, पर साई ने बेवजह दखल देकर विवाद को जन्म दिया। कोच की नियुक्ति कुश्ती संघ का मामला था, इस मामले में भारतीय खेल प्राधिकरण को दखल देने का कोई अधिकार नहीं था, फिर भी उसने कुश्ती प्रशिक्षक पर आपराधिक होने के आरोप लगाए।
कृपाशंकर यदि वाकई अपराधी है तो उसे खेल मंत्रालय अर्जुन अवॉर्ड चयन समिति में क्यों रखता है? साई की लीला सबको पता है। देश के तकरीबन हर सेण्टर में खिलाड़ियों को वे सुविधाएं मयस्सर नहीं हैं जो उन्हें मिलनी चाहिए। साई के संचालक जिजी थामसन व्यवस्थाएं सुधारने की बजाय प्रशिक्षकों और खिलाड़ियों के साथ हो रहे अन्याय को और बढ़ावा दे रहे हैं। जिजी थामसन स्वयं भी दूध के धुले नहीं हैं, उन पर पामोलिव आॅइल मामले में प्रकरण चल रहा है तो उनके कार्यकाल में खिलाड़ियों में शक्तिवर्धक दवाएं लेने की गलत लत पड़ी। कृपाशंकर को खेलगांव में प्रवेश न मिलना सिर्फ उसी का नहीं बल्कि मुल्क की उन बेटियों का भी नुकसान है जो कुश्ती में अपना भविष्य संवारने का सपना देखती हैं। जो भी हो साई के षड्यंत्र का शिकार कुश्ती प्रशिक्षक कृपाशंकर बिशनोई ने देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर न्याय की गुहार लगाई है।
कुश्ती प्रशिक्षक कृपाशंकर पर 2013 में साई की रीजनल डायरेक्टर राधिका सामंत की शह पर एक कर्मचारी ने बंदूक दिखाकर धमकाने का आरोप लगाया था, जबकि कृपा के पास कोई लाइसेंसी हथियार ही नहीं है। खैर, पुलिस जांच के बाद कृपाशंकर निर्दोष साबित हुए और खिलाड़ियों के हक की बात पुन: उठाते हुए मामला अदालत तक ले गये। इस बीच साई ने उन्हें तरह-तरह के प्रलोभन भी दिए लेकिन इस पहलवान ने साफ कह दिया कि बेटियों के हक पर वह कतई डाका नहीं डालने देगा। कुश्ती प्रशिक्षक कृपाशंकर बिशनोई के साथ जो शर्मनाक वाक्या घटा उसके बाद तो घर का जोगी जोगना आन गांव का सिद्ध वाली कहावत ही सटीक बैठती है। आज भारत में कोच पैदा करने के कई स्पोर्ट्स संस्थान कार्य कर रहे हैं बावजूद देशी खेलनहार विदेशी प्रशिक्षकों का मोह नहीं त्याग पाये हैं। साई की कृपा से बीते तीन साल में 88 विदेशी कोचों पर भारत सरकार ने 2569.63 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। एक आर्थिक रूप से कमजोर देश में पैसे की इस फिजूलखर्ची के लिए साई ही जिम्मेदार है।
आज हमारे प्रशिक्षक अल्प वेतन और भूखे पेट गुजारा करते हुए खिलाड़ी निखार रहे हैं वहीं विदेशी प्रशिक्षक अरबों रुपये पाकर भारतीय खिलाड़ियों को बिगाड़ रहे हैं। भारत में डोपिंग का डंक विदेशी प्रशिक्षकों की ही कारगुजारी है। बीते तीन साल में भारत सरकार ने विभिन्न खेलों में सुधार के नाम पर विदेशी प्रशिक्षकों पर अरबों रुपये पानी की तरह बहाए हैं। यही पैसा यदि भारतीय प्रशिक्षकों पर खर्च होता तो शायद खेलों की स्थिति कुछ और ही होती। देश में खेलों से होते खिलवाड़ पर तरस तो आता ही है, उन खेलनहारों पर रंज भी जो गरीबों की कमाई विदेशी जमाइयों पर खर्च कर रहे हैं। भारत ने 2011-12 में 31 विदेशी प्रशिक्षकों पर 790.02 करोड़ रुपये, 2012-13 में 34 प्रशिक्षकों पर 717.73 करोड़ और 2013-14 में 23 प्रशिक्षकों पर 1061.88 करोड़ रुपये खर्च किए हैं।
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