Friday 14 July 2017

निखत जरीन के मुक्कों में बला की ताकत



ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीतना है लक्ष्य
श्रीप्रकाश शुक्ला
उदीयमान मुक्केबाज निखत जरीन के मुक्कों में बला की ताकत है। जूनियर स्तर पर अपने मुक्कों की धाक जमा चुकी तेलंगाना राज्य की यह बेटी अब ओलम्पिक में भारत के लिए सोने का तमगा जीतना चाहती है। जूनियर महिला चैम्पियनशिप का खिताब जीत सभी की नजरों में आने वाली तेलंगाना की मुक्केबाज निखत जरीन अब पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहती। वह लगातार अपने खेल को बेहतर करते हुए आगे बढ़ रही है। अपने शानदार सीधे पंचों के लिए मशहूर निखत वह करना चाहती है जो उनके प्रदेश से आने वाली सानिया मिर्जा, सायना नेहवाल और मुक्केबाजी में देश को प्रतिष्ठा दिलाने वाली मैरीकॉम भी अब तक नहीं कर पाई हैं। निखत का लक्ष्य ओलम्पिक में गोल्ड मैडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनना है।
सीनियर महिला मुक्केबाजी की राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में हिस्सा ले चुकी निखत का मानना है कि उसमें और सीनियर मुक्केबाजों में ज्यादा फर्क नहीं है लिहाजा मैं ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचना चाहती हूं। निखत ने कहा- मेरा सिर्फ एक ही लक्ष्य टोक्यो ओलम्पिक-2020 में स्वर्ण पदक जीतकर पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनना है। अगर मैं ऐसा कर पाई तो हर ओलम्पिक तक मेरा नाम रहेगा। मैं बूढ़ी भी हो जाऊंगी तो लोग याद रखेंगे की ओलम्पिक में निखत भारत के लिए स्वर्ण हासिल करने वाली पहली महिला थी। ज्ञातव्य है कि अब तक ओलम्पिक के इतिहास में कोई भारतीय महिला किसी खेल में स्वर्ण पदक नहीं जीत सकी है।
51 किलोग्राम भारवर्ग में खेलने वाली निखत ने मैरीकॉम के साथ विश्व चैम्पियनशिप में हिस्सा लिया था हालांकि वह क्वार्टर फाइनल में चीनी प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ हार गई थी। निखत रियो ओलम्पिक क्वालीफाइंग में 54 किलोग्राम भारवर्ग में गई थी क्योंकि 51 किलोग्राम भारवर्ग में मैरीकॉम थीं। निखत का कहना है कि वह इस बार कोई कमी नहीं छोड़ेंगी। उन्होंने कहा कि मैं अब तक अपने प्रदर्शन से खुश हूं लेकिन अगली बार ऐसा नहीं होगा। मैं अपनी पूरी कोशिश करूंगी और पूरी तैयारी करूंगी ओलम्पिक में जाने के लिए। निखत के मुक्केबाजी करियर की शुरुआत की कहानी दूसरों से अलग है। वह इससे पहले एथलेटिक्स में 100 मीटर और 200 मीटर में कई प्रतिस्पर्धाएं खेल चुकी है लेकिन एक वाकये ने उसे रिंग में पहुंचा दिया। अपनी इस अलग शुरुआत के बारे में निखत बताती हैं मैं एथलेटिक्स में ट्रेनिंग के लिए गई थी। मैंने वहां खेले जा रहे अर्बन खेलों में देखा कि हर खेल में लड़कियां हैं लेकिन मुक्केबाजी में नहीं हैं। मैंने अपने पिता से पूछा कि क्या मुक्केबाजी लड़कियों का खेल नहीं है तो उन्होंने कहा कि नहीं ऐसा नहीं है लेकिन हमारे यहां कौन अपनी लड़की को बॉक्सिंग में डालेगा। इसके बाद मैंने अपने पिता से कहा कि मैं मुक्केबाजी करूंगी। इस तरह मैं रिंग में उतर गई।
साल 2009 से मुक्केबाजी की शुरुआत करने वाली निखत ने खेल को समझने और महारत हासिल करने में ज्यादा समय नहीं लिया और एक साल बाद ही 2010 में जूनियर राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक और सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाज का तमगा हासिल कर अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया। लगातार अच्छे प्रदर्शन ने उसे जूनियर विश्व चैम्पियनशिप का टिकट दिलाया और निखत ने वहां भी स्वर्ण पदक हासिल कर देश का नाम रोशन कर दिया। रिंग को ही अपनी कर्मस्थली मान चुकी छात्रा निखत पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाती लेकिन समय मिलने पर वह कॉलेज जरूर जाती है। उसकी प्राथमिकता मुक्केबाजी है। सुबह तीन घंटे और शाम को तीन घंटे अभ्यास करने वाली निखत राष्ट्रमंडल खेलों में अपना सर्वश्रेष्ठ देना चाहती है। मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखने वाली निखत को शुरुआत में अपने परिवार के कुछ लोगों की खिलाफत का भी सामना करना पड़ा। परिवार के कुछ सदस्यों का कहना था कि मुक्केबाजी में कोई भविष्य नहीं है लेकिन निखत ने अपने शानदार खेल से उन्हें गलत साबित कर दिखाया। निखत ने कहा कि वह अपने समुदाय की दूसरी सानिया मिर्जा बनना चाहती है।

निखत बताती है कि मैं मुस्लिम समुदाय से आती हूं और जब मैं शुरुआत कर रही थी तो मेरे परिवार वालों का कहना था कि मुक्केबाजी में जाने से क्या फायदा उसमें कोई भविष्य नहीं है लेकिन मैंने सबको गलत साबित किया। मैंने अपने प्रदर्शन से सिद्ध किया कि मुक्केबाजी में भविष्य है और इसे लड़कियां और मुस्लिम समुदाय की लड़कियां भी कर सकती हैं। सानिया मिर्जा ने भी हमारे हैदराबाद और समुदाय का नाम ऊंचा किया है। मैं भी अपने समुदाय में दूसरी सानिया मिर्जा बनना चाहती हूं और अपना नाम हमेशा के लिए कायम करना चाहती हूं। मुक्केबाजी अब मेरे लिए सिर्फ एक खेल ही नहीं बल्कि धर्म भी बन चुकी है। मैं वह मुकाम हासिल करना चाहती हूं जोकि कोई अन्य भारतीय खिलाड़ी नहीं कर सकी है।

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