जिया जान लगा रही
फुटबाल की बेहतरी को जान
इस कश्मीरी लड़की को बचपन से फुटबॉल खेलने का शौक था इसलिये वह अक्सर लड़कों
के साथ फुटबॉल खेलती थी। दूसरी ओर लड़कों को उसका साथ पसंद नहीं था क्योंकि लड़कों
के साथी दोस्त उनको चिढ़ाते थे कि वे लड़की के साथ फुटबॉल खेलते हैं। लिहाजा उस
लड़की ने लड़कों जैसा दिखने के लिये अपने बाल काट लिये लेकिन फुटबॉल खेलना जारी
रखा। कश्मीर के श्रीनगर इलाके में रहने वाली यह लड़की उसी इलाके में रहती है जहां
एक ओर कुछ भटके हुए युवा सेना पर पत्थर बरसाते हैं तो दूसरी ओर यही लड़की अपने जैसे
दूसरे लड़के-लड़कियों को फुटबॉल की
कोचिंग देती है। घर वाले इस लड़की को प्यार से जिया जान कहते हैं लेकिन उस लड़की
की पहचान कश्मीर की पहली फुटबाल महिला कोच के तौर पर है। नादिया निघात से
प्रशिक्षण हासिल कर चुके दो युवाओं का चयन राष्ट्रीय स्तर पर अंडर 12 फुटबाल टीम के लिये हो चुका है। नादिया कहती
है कि यह तो अभी शुरुआत है, मैं कश्मीरी फुटबाल की जब तक रंगत नहीं बदल देती तब कर
उसे संतोष नहीं है।
तीन भाई बहनों में सबसे छोटी नादिया 11 साल की उम्र से प्रोफेशनल स्तर पर फुटबॉल खेल रही है। श्रीनगर के एक सरकारी
स्कूल से 12वीं तक की पढ़ाई करने
वाली नादिया को बचपन से ही फुटबाल खेलने का शौक था। अक्सर वह अपने घर के आंगन और
सड़क पर लड़कों के साथ फुटबाल खेला करती थी। एक बार उसे अपने फुटबाल के साथी
लड़कों के साथ श्रीनगर के अमर सिंह कॉलेज के कोच मोहम्मद अब्दुल्ला के साथ फुटबाल
खेलने का मौका मिला। नादिया ने अपने पिता के सपोर्ट से अमर सिंह कॉलेज एकेडमी में
फुटबॉल खेलना तो शुरू कर दिया लेकिन असली परेशानी उसके साथ तब शुरू हुई जब स्थानीय
स्तर पर लोग उसके कपड़ों और लड़कों के साथ फुटबाल खेलने पर छींटाकशी करने लगे। तब
लोग कहते कि ये खेल लड़कियों के लिए नहीं है। अगर कुछ करना ही है तो पढ़ाई करो।
दूसरी ओर बुलंद हौसलों वाली नादिया ने कभी ऐसी बातों की परवाह नहीं की क्योंकि
उसको अपने माता-पिता का पूरा सपोर्ट था। फुटबाल से नादिया को इतना लगाव था कि वह
कर्फ्यू के दौरान भी प्रैक्टिस के लिए जाया करती थी। जब कभी हालात ज्यादा ही खराब
हो जाते तो वो घर के आंगन और कमरे में फुटबाल की प्रैक्टिस किया करती थी। अमर सिंह
कॉलेज एकेडमी में 45 लड़कों के बीच
नादिया अकेली लड़की थी, जो फुटबाल खेलती थी। नादिया बताती है कि एक के बाद एक मिल
रही सामाजिक चुनौतियों का सामना करने के बाद भी इसका असर मैंने अपने खेल पर नहीं
पड़ने दिया और मैं तेजी से अपने खेल में निखार लाती गई। यही वजह रही कि मैं 2010 और 2011 में जम्मू-कश्मीर के लिए राष्ट्रीय स्तर पर फुटबाल खेलने
में सफल रही। वह कहती है कि तब टीम में ज्यादातर लड़कियां कश्मीर घाटी से हुआ करती
थीं और टीम की कुछ ही खिलाड़ी जम्मू से थीं।
आज हालात बदल गये हैं क्योंकि नादिया के अलावा उन सभी लड़कियों ने फुटबाल
खेलना छोड़ दिया है जो कभी उनके साथ फुटबॉल खेलती थीं। साल 2015 में नादिया ने फुटबाल कोचिंग से जुड़ा कोर्स
किया जिसके बाद वह कश्मीर की पहली महिला फुटबाल कोच बन गई। जब मीडिया के जरिये
लोगों को उसके बारे में पता चला तो ऐसे कई लोग उसके समर्थन में आये जो पहले विरोध
करते थे। नादिया के इस मुकाम तक पहुंचने में जम्मू-कश्मीर फुटबाल एसोसिएशन ने काफी
मदद की। एसोसिएशन ने नादिया को कोचिंग का प्लेटफार्म उपलब्ध कराकर उसको फुटबाल का
कोर्स कराया। नादिया इस समय श्रीनगर में फुटबाल की तीन एकेडमियां चला रही है। रामबाग
ग्रास रूट एकेडमीए अंडर 12 बच्चों के लिए
है। इसमें लड़के और लड़कियां दोनों खेलने के लिये आते हैं। इस समय इस अकेदमी में 50 बच्चे फुटबाल की कोचिंग ले रहे हैं। दूसरी
एकेडमी का नाम जेजे-7 बॉयज फुटबाल क्लब है, इसमें अंडर 19 के 45 लड़कों को वह
फुटबाल की कोचिंग दे रही है जबकि तीसरी एकेडमी अंडर 19 सिर्फ लड़कियों के लिए है। जेजे-7 गर्ल्स फुटबाल एकेडमी में इस समय 34 लड़कियां फुटबॉल की कोचिंग ले रहीं हैं। लड़कियों के लिये
अलग से एकेडमी बनाने के पीछे एक खास वजह है। नादिया के मुताबिक अंडर 19 लड़के और लड़कियों को कोचिंग देने का तरीका शुरुआत
में थोड़ा अलग रहता है। लड़कियों को जहां शुरुआती स्तर से फुटबाल सिखाना पड़ता है
वहीं लड़कों को केवल खेल की बारीकियां और तकनीक सिखानी होती है। दूसरी ओर लड़कियों
को फुटबाल की कोचिंग देने पर नादिया को स्थानीय लोग फिकरे कसते हैं। अक्सर लोग
नादिया से कहते हैं कि वह तो पहले से बिगड़ी हुई है अब वह दूसरी लड़कियों को
बिगाड़ रही है। बावजूद न तो नादिया और न ही फुटबाल की कोचिंग लेने वाली लड़कियों
पर इसका कोई असर पड़ता है क्योंकि इनका मानना है कि वे क्या खेल खेलती हैं यह उनका
अपना मामला है।
दो साल में नादिया की फुटबाल एकेडमी से अंडर 12 के दो लड़कों का चयन नेशनल लेवल पर हुआ है। जल्द ही ये
दोनों लड़के अंडर-15 की टीम के साथ
नेशनल खेलेंगे। नादिया का मानना है कि अगर कश्मीर के हालात सुधर जायें तो वहां पर
खेल का काफी अच्छा माहौल तैयार हो सकता है। यहां के बच्चों में हर खेल को लेकर
काफी टैलेंट है लेकिन मौका न मिलने के कारण वे आगे नहीं बढ़ पाते। फिलहाल कश्मीर के
असरार, इशफाक और बासित जैसे खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर फुटबाल खेल रहे हैं। अपनी
भविष्य की योजनाओं के बारे में नादिया का कहना है कि वह चाहती है कि कश्मीर में
हालात सुधरें और यहां पर बच्चों को सिर्फ टैलेंट के सहारे आगे बढ़ने का मौका मिले।
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