सब्जी
बेचकर मां ने बनाया बॉक्सर, दुनियाभर में
दिखाया दम
बेटियां सिर्फ दो घरों का ही नहीं देश का भी गौरव
हैं। हर क्षेत्र में सफलता दर सफलता हासिल कर रही बेटियों को आज भी उस तरह से
प्रोत्साहन नहीं मिल पाता जिसकी उन्हें दरकार है। खेल मैदानों की बात करें तो यहां
भी स्थितियां माकूल नहीं हैं। खेलों में तो प्रायः गरीब-मध्यम परिवार की बेटियां
ही दमखम दिखाती हैं लेकिन उचित प्रोत्साहन के अभाव में उनका मंजिल तक पहुंचना काफी
कठिन होता है। देश में खिलाड़ी बेटियों की उपेक्षा के अधिकांश मामले हमारी
हुकूमतों को मुंह चिढ़ाते दिखते हैं। असम की बेटी जमुना बोडो भी गरीबी और तंगहाली
के चलते अपने सपनों को पंख लगाकर उड़ान नहीं भर पा रही है।
भारत की यह बेटी बेहद गरीब है। असम के छोटे से गांव में उसका घर है। दस साल की
उम्र में ही उसके सिर से पिता का साया उठ गया था, पर मां की हिम्मत और उसके बुलंद
इरादों ने उसे देश की बेहतरीन मुक्केबाज बना दिया। असम के शोणितपुर जिले में छोटे
से गांव में जन्मी जमुना बोडो आज भारतीय महिला मुक्केबाजी में जाना-पहचाना नाम है।
जमुना के मुक्के का दम दुनिया कई बार देख चुकी है। एक गरीब परिवार से
अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाज बनने का सफर जमुना के लिए आसान नहीं था।
जब जमुना सिर्फ दस साल की थी उसके पिता इस दुनिया
से चले गए। बच्चे सदमें थे। मां बेहाल थी। बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी अब उन
पर थी। जमुना ने बातचीत में बताया कि उनकी मां बहुत हिम्मत वाली औरत हैं। जिनकी
वजह से मैं मुक्केबाज बन सकी। पिता के देहांत के बाद घर चलाने के लिए जमुना की मां
ने सब्जी बेचने का फैसला किया। मां बेलसिरी गांव के रेलवे स्टेशन के बाहर सब्जी
बेचने लगी। इस तरह से जिन्दगी पटरी पर लाने की कोशिश शुरू हुई। जमुना स्कूल जाने
लगी तो उसकी बड़ी बहन की शादी हो गई। जमुना के एक बड़ा भाई भी है जो पूजा-पाठ का
काम करता है। रुंधे गले से जमुना बताती है कि अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बनने के बावजूद
मुझे अब भी पैसों की बड़ी परेशानी होती है। प्रतियोगिताओं में शिरकत करने के लिए
घर से पैसे मांगने पड़ते हैं।
यह उन दिनों की बात है जब मैरीकॉम के नाम का डंका दुनिया भर में बजता था, पर
जमुना के गांव में वुशू गेम खेला जाता था। वह स्कूल से लौटते वक्त अक्सर लड़कों को
इस खेल को खेलते देखती थी। वुशू जूडो-कराटे और ताइक्वांडो की तरह एक मार्शल आर्ट
है। इस खेल में जमुना को मजा आने लगा। उसे यह खेल इतना रोमांचकारी लगता था कि वह
खुद को रोक नहीं पाई और लड़कों के साथ वुशू खेलना शुरू कर दिया। जल्द ही जमुना को
इस बात का अहसास हुआ कि वुशू गेम में उसके लिए कोई खास सम्भावना नहीं है।
जमुना ने बॉक्सर मैरीकॉम के बारे में काफी कुछ सुन रखा था। वह बॉक्सिंग सीखना
चाहती थी लेकिन गांव में इसकी ट्रेनिंग की कोई सुविधा नहीं थी। जब उसने अपने कोच
से बात की तो उन्होंने भी यही राय दी कि तुम्हें बॉक्सिंग सीखनी चाहिए। कोच को
यकीन था कि अगर इस लड़की को ट्रेनिंग मिले तो यह बेहतरीन बॉक्सर बन सकती है। जमुना
बताती है कि मैरीकॉम से उसे प्रेरणा मिली। जब वह तीन बच्चों की मां होकर बॉक्सिंग
सीख सकती हैं तो मैं क्यों नहीं। वह मेरी रोल मॉडल हैंष। मैं उनकी तरह ही बनना
चाहती हूं। फिर क्या था जमुना की लगन और कोच की मदद से उसने असम से गुवाहाटी जाने
का फैसला किया। मां से आशीर्वाद लेकर उसने बॉक्सिंग शुरू की और देखते ही देखते आगे
बढ़ती चली गई। जमुना ने बताया कि जब उसे भारतीय महिला बॉक्सिंग टीम के कैम्प में
शामिल किया गया तो वह लम्हा उसके लिए बेहद खास था। इंदिरा गांधी स्टेडियम में लगे
कैम्प में मैरीकॉम और एल. सरिता देवी जैसी खिलाड़ी उनके साथ थीं। पांच बार की
वर्ल्ड चैम्पियन और ओलम्पिक मेडलिस्ट मैरीकॉम के साथ पंचिंग प्रैक्टिस करना उसके
जीवन का सबसे बड़ा पल था।
साल 2013 जमुना के लिए
बेहद खास रहा। उस साल सर्बिया में इंटरनेशनल सब जूनियर गर्ल्स बॉक्सिंग टूर्नामेंट
में उसने गोल्ड मेडल जीतकर देश को एक बड़ा तोहफा दिया। इसके बाद साल 2014 में रूस में बॉक्सिंग टूर्नामेंट में गोल्ड
मेडल जीतकर वह चैम्पियन बनी। 2015 में ताइपे में
यूथ वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में उसने कांस्य पदक जीता। बावजूद इसके वह नौकरी
पाने की जद्दोजहद में लगी है। बॉक्सिंग के जानकार और कोच हिमांशु चौधरी की मानें
तो अगर वक्त रहते ऐसे होनहार मुक्केबाज को नौकरी मिल जाए तो वह दुनिया की बेहतरीन
मुक्केबाज बन सकती है। उन्होंने डर भी जताया कि अगर ऐसे खिलाड़ियों की सरकार
अनदेखी करेगी तो हम किसी बड़ी प्रतियोगिता में पदक की उम्मीद नहीं रख पाएंगे।
खिलाड़ियों का हौसला टूटेगा वो अलग। जमुना का अगला लक्ष्य 2020 में टोक्यों में होने वाले ओलम्पिक खेलों में
हिस्सा लेने का है। इसके लिए वह प्रैक्टिस में जुटी है। जमुना कहती है अब मेरा
लक्ष्य ओलम्पिक पदक है, जिसके लिए मैं अभी से तैयारियों में जुटी हूं। वह कहती है कि मुझे भी यदि सरकार से मदद मिले तो मैं
दुनिया फतह कर सकती हूं।
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