Tuesday 18 July 2017

एथलेटिक्स में महानता की प्रतिमूर्ति कृष्णा पूनिया


 दुनिया भर में दिखाया अपनी ताकत का जलवा
श्रीप्रकाश शुक्ला
अपने शानदार खेल-कौशल से दुनिया भर में भारत को गौरवान्वित करने वाली पद्मश्री कृष्णा पूनिया भारतीय महिला एथलेटिक्स में महानता की प्रतिमूर्ति हैं। डिस्कस थ्रो में इनका राष्ट्रीय कीर्तिमान हर भारतीय महिला एथलीट के लिए आज एक प्रतिमान है। सच कहें तो जो महिला इस कीर्तिमान को तोड़ेगी वह राष्ट्रमण्डल ही नहीं ओलम्पिक खेलों में भी पदक जीत सकती है। 2010 में दिल्ली में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में कृष्णा पूनिया ने डिस्कस थ्रो में स्वर्ण पदक जीता था। कृष्णा पूनिया पहली एथलीट हैं जिन्होंने राष्ट्रमंड़ल खेलों में स्वर्ण जीता। 2011 में भारत सरकार द्वारा इस शानदार खेल उपलब्धि के लिए कृष्णा पूनिया को पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया। उन्होंने 2006 में दोहा एशियन खेलों में कांस्य पदक जीता था। कृष्णा पूनिया ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खेलों में कुल 55 पदक जीते हैं जिसमें 29 स्वर्ण, 16 रजत और 10 कांस्य पदक शामिल हैं।
कृष्णा पूनिया का जन्म हरियाणा के हिसार जिले के अगरोहा गाँव में हुआ था। बचपन में कृष्णा को डिस्कस थ्रो के बारे में कुछ भी मालूम नहीं था। कृष्णा वही खेल खेलती थीं जो और बच्चे खेला करते थे। कृष्णा की बुआ उनकी लम्बाई देखकर उनको इस खेल में लाईं। शादी होने के बाद भी कृष्णा का सम्बन्ध इस खेल से नहीं टूटा। कृष्णा पूनिया बताती हैं कि मेरी ससुराल में खेल के प्रति जागरूकता थी जिसकी वजह से उन्हें काफी प्रोत्साहन मिला। अपनी तमाम उपलब्धियों का श्रेय अपने पति वीरेन्द्र सिंह पूनिया को देते हुए कृष्णा पूनिया कहती हैं कि वह मेरे कोच ही नहीं हमेशा मार्गदर्शक भी हैं। कृष्णा पूनिया के इण्टर कॉलेज में लगातार हर वर्ष अच्छे प्रदर्शन को देखते हुए ही उन्हें नेशनल कैम्प में शामिल किया गया था। कृष्णा पूनिया ने इस खेल में अपने समर्पण की जो पटकथा लिखी है वह हर महिला एथलीट के लिए एक नजीर है।
कृष्णा पूनिया वैसे तो हरियाणा से हैं लेकिन उन्होंने उच्च शिक्षा जयपुर (राजस्थान) से प्राप्त की और उनकी शादी भी राजस्थान के चुरू जिले के गागरवास गांव निवासी वीरेन्द्र सिंह पूनिया से हुई है। खेलों के अलावा वे सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय हैं। 2008 से 2014 तक वे कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ राजस्थान सरकार की ब्रांड एम्बेसडर रहीं। 2010 से 2014 तक वह राजस्थान चुनाव आयोग की ब्रांड एम्बेसडर भी रहीं। उन्होंने दहेज के खिलाफ और लड़कियों को पढ़ने-लिखने, खेलों में सुधार के लिए कई कार्यक्रमों में हिस्सा लिया और लड़कियों को प्रोत्साहित किया तथा लड़कियों और महिलाओं को आत्मरक्षा की ट्रेनिंग भी दी। खिलाड़ी और कांग्रेस नेत्री कृष्णा पूनिया राजस्थान के प्रमुख लोगों में शुमार हैं।
इंसान का जीवन तो अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों का ही खेल तमाशा है। मुझे कृष्णा पूनिया का जो भी सान्निध्य मिला उसमें मैंने पाया कि वह बेजोड़ शख्सियत ही नहीं बल्कि हर काम के प्रति पूर्ण समर्पित हैं। कृष्णा पूनिया का जीवन किसी तरह के दिखावे से परे है। वह जो भी ठान लेती हैं, उसे पूरा करके ही दम लेती हैं।  
दिल्ली राष्ट्रमण्डल खेलों की पहली भारतीय स्वर्ण पदकधारी महिला एथलीट कृष्णा पूनिया ने 2006 में दोहा और 2010 में ग्वांगझू एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीते थे। चक्का फेंक की नेशनल रिकॉर्डधारी कृष्णा पूनिया राष्ट्रमण्डल खेलों की अपेक्षा एशियाई खेलों को हमेशा चुनौती मानती हैं। राष्ट्रमण्डल खेलों की एथलेटिक स्पर्धा का जहां तक सवाल है पहला स्वर्ण पदक 1958 में मिल्खा सिंह ने जीता था वहीं 2010 में कृष्णा पूनिया स्वर्णिम कामयाबी हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट बनीं। कृष्णा पूनिया ने 2006 के राष्ट्रमंडल खेलों और 2008 के बीजिंग ओलम्पिक खेलों में भी हिस्सा लिया था लेकिन पदक नहीं जीत सकी थीं बावजूद इसके उन्होंने मैदान से मुंह नहीं मोड़ा और 2010 के एशियन खेलों में वापसी करते हुए कांस्य पदक और एशियन ग्रांड-प्रिक्स 2010 में स्वर्ण पदक जीता। 46वें ओपन नेशनल एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में भी उन्होंने स्वर्ण पदक जीता था। यह उनका उस समय का सबसे अच्छा प्रदर्शन था। 2012 के लंदन ओलम्पिक में भी कृष्णा ने बेहतरीन प्रदर्शन किया और 63.62 मीटर डिस्कस फेंककर वह पांचवें स्थान पर रही थीं।
पद्मश्री के अलावा कृष्णा पूनिया को खेलों के लिए मिलने वाले अर्जुन पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। खेलों में अच्छे प्रदर्शन के लिये कृष्णा पूनिया राजस्थान सरकार द्वारा महाराणा प्रताप पुरस्कार, हरियाणा सरकार द्वारा भीम पुरस्कार, मेवाड़ फाउंडेशन उदयपुर द्वारा अरावली पुरस्कार से भी नवाजा गया। इन सम्मानों के अलावा कृष्णा पूनिया को इंडिया टुडे द्वारा बेस्ट स्पोर्ट्स पर्सन ऑफ द ईयर का पुरस्कार भी दिया जा चुका है। जहां तक ओलम्पिक की बात है अब तक सात भारतीय एथलीट ही ट्रैक एण्ड फील्ड स्पर्धाओं के फाइनल में जगह बनाने में सफल हुए हैं। इनमें फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह, उड़नपरी पीटी ऊषा, श्रीराम सिंह, गुरुबचन सिंह रंधावा, लांग जम्पर अंजू बॉबी जॉर्ज, कृष्णा पूनिया और धावक ललिता बाबर शामिल हैं। पद्मश्री और अर्जुन अवार्डी कृष्णा ने आठ मई, 2012 को अमेरिका में 64.76 मीटर चक्का फेंककर नेशनल रिकॉर्ड अपने नाम किया था। आज तक किसी खेलप्रेमी को यह समझ में नहीं आया कि बेशुमार उपलब्धियों के बावजूद कृष्णा पूनिया को राजीव गांधी खेल रत्न क्यों नहीं दिया गया।
कृष्णा पूनिया बड़ी बेबाकी से कहती हैं कि उनकी सफलता में पति वीरेन्द्र सिंह पूनिया का बहुत बड़ा योगदान है। वर्ष 2000 में एथलीट वीरेन्द्र सिंह पूनिया के साथ परिणय सूत्र में बंधी कृष्णा पूनिया का कहना है कि उन्होंने न केवल बेहतर प्रशिक्षण दिया बल्कि हमेशा हौसला भी बढ़ाया। कृष्णा पूनिया अपने लाड़ले बेटे लक्ष्य की खेलों में अभिरुचि को लेकर बेहद खुश हैं वह चाहती हैं कि उनका बेटा मेरे अधूरे सपने पूरा करे। लक्ष्य की जहां तक बात है वह न केवल चक्का और हैमर थ्रो करता है बल्कि बास्केटबाल में भी हाथ आजमाता है। कृष्णा और वीरेन्द्र सिंह पूनिया चाहते हैं कि लक्ष्य उनके ही पदचिह्नों पर चले यानि खेलों में ही देश को गौरवान्वित करे। कृष्णा पूनिया अपने आपको राजस्थान और हरियाणा ही नहीं अपितु पूरे देश की बेटी मानती हैं। कृष्णा पूनिया को ओलम्पिक खेलों में अब तक किसी एथलीट द्वारा पदक न जीते जाने का बेहद मलाल है। कृष्णा पूनिया का कहना है कि भारत में खेलों के प्रति जमीनी स्तर पर बहुत कुछ किया जाना जरूरी है। अमेरिका, चीन आदि की सफलता पर कृष्णा पूनिया कहती हैं कि वहां बचपन से ही प्रतिभाओं की परख कर उन्हें खेलों का प्रशिक्षण दिया जाता है।
हमारे देश में खिलाड़ियों को उस तरह की सुविधाएं नहीं मिल रहीं। कृष्णा पूनिया हरियाणा के खिलाड़ियों द्वारा लगातार किए जा रहे शानदार प्रदर्शन पर कहती हैं कि वहां की नई खेल नीति सफलता का परिचायक है। कृष्णा का कहना है कि हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा स्वयं एक अच्छे खिलाड़ी रहे सो उनके कार्यकाल में कई खिलाड़ी हितैषी निर्णय लिए गये। उन्होंने खिलाड़ियों की भावनाओं को हमेशा तरजीह दी। मुख्यमंत्री हुड्डा ने प्रदेश के पदक विजेता खिलाड़ियों को सरकार की तरफ से भी लाखों रुपए की इनामी राशि देकर एक नजीर स्थापित की है जिसका आज भी हरियाणा सरकार अनुसरण कर रही है। कृष्णा पूनिया कहती हैं कि यदि भारत को खेलों में आगे जाना है तो उसे अपने सिस्टम को बदलना होगा। जब तक हम जमीनी हालातों को नहीं सुधारते और खिलाड़ियों को रोजगार नहीं मिलता तब तक हर प्रयास बेकार जाएगा। हम कुछ समय के प्रयासों से अच्छे खिलाड़ी नहीं निकाल सकते। यदि भारत को ओलम्पिक जैसी स्पर्धाओं प्रतिस्पर्धा करनी है तो हमें वर्ष भर खिलाड़ियों सुविधाएं देनी होंगी, उन्हें अच्छे प्रशिक्षकों से प्रशिक्षण दिलाना होगा।


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