अंजू बॉबी जॉर्ज भारत की प्रसिद्ध एथलीट हैं। यह पहली
भारतीय एथलीट हैं जिन्होंने विश्व स्तर पर देश को पहला पदक दिलाया। अंजू ने
सितम्बर 2003 में पेरिस में
हुई विश्व एथलेटिक्स चैम्पियनशिप की लम्बीकूद स्पर्धा में कांस्य पदक जीता था। अंजू
के करिश्मे के 14 साल बाद भी कोई और महिला खिलाड़ी ऐसा कारनामा नहीं कर सकी है। भारत
को प्रथम बार विश्वस्तर की प्रतियोगिता में कांस्य पदक दिलाने वाली अंजू बॉबी
जॉर्ज तब 25 वर्ष की थीं। अंजू बॉबी
जॉर्ज का प्रदर्शन भारतीय महिला एथलेटिक्स के लिए एक नजीर है। अंजू के इस करिश्मे
से पहले भारत का नाम एथलेटिक्स में जरा-सी चूक के लिये जाना जाता था। इस शानदार
प्रदर्शन के लिए 2004 में अंजू बॉबी
जॉर्ज को खेलों में देश के सबसे बड़े सम्मान राजीव गाँधी खेल रत्न से नवाजा गया
था। अंजू को अर्जुन अवार्ड भी मिल चुका है।
अंजू का जन्म केरल के चांगनसेरी में हुआ था। बचपन की पढ़ाई सेंट
एनी गर्ल्स स्कूल में हुई। अंजू के पापा भारत के आम पापाओं जैसे नहीं थे। उन्होंने
बचपन से ही अपनी बेटी को खेलने के लिए प्रोत्साहित किया। उनका फर्नीचर का बिजनेस
था। अंजू ने स्कूल में एथलेटिक्स के बेसिक्स सीखे। पांच साल की उम्र में ही
उन्होंने एथलेटिक्स को आत्मसात कर लिया था। अंजू हमेशा ही एक शख्सियत यानी पी.टी. ऊषा
से प्रभावित थीं और उन्हें ही अपना आदर्श भी माना। पी.टी. ऊषा भारत की पहली महिला
एथलीट थीं जो किसी भी ओलम्पिक के फाइनल में पहुंची थीं। अंजू को भी पी.टी. ऊषा ही
बनना था। यही जिद उनकी कामयाबी की पहली सीढ़ी भी बनी। अंजू ने स्कूली जीवन से ही
अपनी प्रतिभा का जलवा दिखाना शुरू कर दिया था। उन्होंने स्कूल नेशनल गेम्स में भी हिस्सा
लिया और 100 मीटर दौड़ तथा 400 मीटर रिले रेस में तीसरे नम्बर पर रहीं। अंजू ने अपना
एथलेटिक्स करियर हैप्थलॉन खेल से शुरू किया। इस अकेले खेल में सात अलग-अलग इवेंट्स
होते हैं। बाद में उन्होंने सिर्फ जम्प वाले खेलों पर ध्यान देना शुरू किया।
1996 में अंजू ने दिल्ली जूनियर एशियाई खेलों में मैडल जीता।
इसके बाद वे त्रिचूर पहुंचीं जहां उनका करियर शेप-अप होना शुरू हुआ और उनका नाम
नेशनल लेवल पर उभरा। इसी दौरान उनका सेलेक्शन नेशनल कोचिंग कैम्प में हुआ। अंजू ने
पहले रेलवे में नौकरी की फिर 1998 में रेलवे छोड़ वह चेन्नई कस्टम से जुड़ीं। 20 साल
की उम्र में अंजू ने ट्रिपल जम्प में नेशनल रिकॉर्ड बना दिया था। 1999 में नेपाल
में हुए साउथ एशियन फेडरेशन कप में उन्होंने सिल्वर मेडल जीता। यह उनके अब तक के
करियर की सबसे बड़ी जीत थी लेकिन इसके साथ ही कुछ ऐसा हुआ जिसके कारण वह दो साल तक
खेलों से दूर रहीं। इस मैच में उनके एंकल में गहरी चोट आई थी। इसी चोट के चलते वह
2000 में हुए सिडनी ओलम्पिक में भी हिस्सा नहीं ले पाई थीं। अंजू हार मानने वालों
में से बिल्कुल भी नहीं थीं। 2001 में वह अपनी चोट से उभरीं और लम्बी कूद में 6.74
मीटर का रिकॉर्ड कायम किया। इसके बाद अंजू ने भारत के ट्रिपल जम्प के राष्ट्रीय चैम्पियन
राबर्ट बॉबी जॉर्ज से अपना खेल और बेहतर करने के लिए मदद ली और आगे चलकर अंजू ने
उन्हीं के साथ शादी भी कर ली।
अंजू ने मैनचेस्टर के राष्ट्रमंडल खेलों में सिल्वर मैडल
जीतकर अपनी पहचान बनाई। यह मैडल जीतने वाली वह भारत की पहली महिला एथलीट थीं। यहां
उन्होंने 6.49 मीटर लम्बी छलांग लगाई थी। इसके बाद बुसान एशियाई खेलों में
उन्होंने गोल्ड मैडल जीता। यहां उन्होंने 6.53 मीटर की लगाई थी। इसके बाद अंजू ने
दुनिया के जाने-माने एथलीट माइक पावेल से ट्रेनिंग ली। उन्होंने अंजू को अमेरिका
में कड़ी ट्रेनिंग दी। 2003 में उन्होंने वह कर दिखाया जो तब तक किसी खिलाड़ी ने
नहीं किया था। अंजू अपनी सफलता का राज बताते हुए कहती हैं आप जो भी कर रहे हैं उस
पर भरोसा होना चाहिए। जब कई गरीब देश के खिलाड़ी मैडल जीत सकते हैं तो भारत क्यों
नहीं। अगर मैं भारत में 6.74 मीटर की छलांग दो बार लगा सकती हूं तो आप भी ऐसा कर
सकते हैं।
अंजू ने पाँच साल की उम्र में ही एथलेटिक्स स्पर्धाओं में
भाग लेना शुरू कर दिया था। अंजू की माँ ग्रेसी तथा पिता के.टी. मार्कोस ने अपनी
बेटी को एथलेटिक्स की दिशा में प्रोत्साहित किया। के.टी. मार्कोस का फर्नीचर का
व्यवसाय है। एथलेटिक्स की जहां तक बात है 1960 रोम ओलम्पिक में मिल्खा सिंह विश्व रिकार्ड बनाने के बाद
भी पदक से चूक गए थे। 1976 में श्रीराम सिंह
मांट्रियाल में राष्ट्रीय रिकार्ड बनाने के बावजूद सातवें स्थान पर रहकर पदक पाने
से चूके। इसी प्रकार गुरबचन सिंग रंधावा भी पदक जीतते-जीतते रह गये। 1984 में लास एंजिल्स में पी.टी. ऊषा एक मिनट के
सौवें हिस्से से पदक पाने से चूक गई थीं। सितम्बर 2003 में पेरिस में हुई विश्व एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में अंजू
बॉबी जॉर्ज ने लम्बीकूद में कांस्य पदक जीतकर भारत को पहली बार विश्वस्तर की
प्रतियोगिता में पदक दिलाया। अंजू ने इस स्तर तक पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत की। अंजू
के घर और ससुराल दोनों जगह खेल का अच्छा माहौल रहा इसी वजह से वह लम्बे समय तक
खेलों से जुड़ी रहीं। पति बॉबी जॉर्ज ने अंजू के लिए अपना ट्रिपल जम्प में कैरियर
छोड़ दिया ताकि वह पूरा समय अंजू की कोचिंग में लगा सकें। अंजू अपनी सफलता का
श्रेय अपने पति को देते हुए कहती हैं कि वह आज जहाँ हैं अपने पति की वजह से हैं।
विश्व एथलेटिक्स में पदक जीतने वाली अंजू का कहना है देश के लिए पदक जीतना हर
खिलाड़ी के लिए गौरव की बात होती है। मैं भी दुनिया में देश का नाम रोशन करने पर
गर्व महसूस करती हूं।
दरअसल 2001 में अंजू बॉबी जॉर्ज
का भाग्योदय हुआ और उन्होंने 6.74 मीटर लम्बी कूद का रिकार्ड कायम किया। विमला
कालेज, त्रिचूर में आते ही उनके कैरियर को एक दिशा मिली और उसका नाम राष्ट्रीय
स्तर पर उभरा। इसी दौरान उसका चयन राष्ट्रीय कोचिंग कैम्प में हुआ। अंजू ने
मैनचेस्टर में राष्ट्रमंडल खेलों में कांस्य पदक जीतकर अन्य दिग्गज भारतीय
खिलाड़ियों के बीच अपनी पहचान बनाई। यहाँ उन्होंने 6.49 मीटर छलांग
लगाई। इसके बाद बुसान एशियाई खेलों में अंजू बॉबी जॉर्ज ने स्वर्ण पदक जीता और
अपनी श्रेष्ठता की छाप छोड़ी। यहाँ उसने 6.53 मीटर की छलांग लगाई। तत्पश्चात
अंजू ने दुनिया के जाने-माने एथलीट माइक पावेल से ट्रेनिंग ली। उन्होंने अंजू को
अमेरिका में कड़ी ट्रेनिंग दी। अंजू का अधिकतम रिकार्ड 6.74 मीटर की लम्बी
कूद का है। 30 अगस्त, 2003 को पेरिस विश्व एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में
अंजू ने 6.70 मीटर की छ्लांग लगाकर कांस्य पदक जीता था। इसके पूर्व
भारतीय खिलाड़ी सीमा ने भी विश्व जूनियर एथलेटिक्स में पदक जीता था परंतु डोप
टेस्ट में पॉजिटिव पाए जाने पर उसका पदक वापस ले लिया गया था। अतः विश्व स्तर पर
सफलता केवल अंजू को ही मिल सकी। लम्बी कूद के विश्व रिकार्डधारी खिलाड़ी पॉवेल का
अंजू की सफलता में बड़ा हाथ है। पॉवेल स्वयं लम्बी कूद के विश्व रिकार्ड विजेता
रहे हैं। उन्होंने 1991 में टोकियो में 8.95 मीटर की छलांग लगाकर विश्व रिकार्ड बनाया था। देखा जाए तो एक समय ऐसा भी आया
जब महिला खिलाड़ियों ने सात मीटर से अधिक की छलांग लगाईं लेकिन डोप टेस्ट के बाद
ये आंकड़े सामान्य स्तर तक आ गए। अंजू विश्व के सर्वश्रेष्ठ आठ खिलाड़ियों में से
एक रही हैं। एथेंस ओलम्पिक में भारतीय ध्वजवाहक का सम्मान अंजू जॉर्ज को दिया गया।
अंजू ने एथेंस ओलम्पिक में कुल 30 खिलाड़ियों के साथ लम्बी कूद में हिस्सा लिया और 6.69 मीटर की लम्बी छलांग लगाकर फाइनल में प्रवेश किया। फाइनल में पहुँचने के लिए
कम से कम 6.65 मीटर छलांग लगानी अनिवार्य थी। फाइनल में 12 प्रतियोगी थीं लेकिन अंजू कोई भी पदक पाने में
असफल रहीं। अंजू ने पहले प्रयास में 6.83 मीटर की छलांग लगाकर नया राष्ट्रीय रिकार्ड कायम किया लेकिन रूसी तिकड़ी ने
सात मीटर से ऊपर की छलांग लगाकर भारतीय उम्मीदें समाप्त कर दीं। अंजू अंत में छठा
स्थान ही पास सकीं। वर्ष 2004 में 13 खिलाड़ियों का नाम देश के सर्वोच्च खेल सम्मान
राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार के लिए प्रस्तावित किया गया था लेकिन इनमें से अंजू
का नाम सबसे ऊपर रहा। पेरिस विश्व चैम्पियनशिप में अंजू को मिले कांस्य पदक के
कारण ही उन्हें राजीव गांधी खेल रत्न सम्मान से नवाजा गया। इसी साल उनके कोच पति
राबर्ट बॉबी जॉर्ज को द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया। ये पुरस्कार
अंजू व राबर्ट जॉर्ज को 21 सितम्बर, 2004 को राष्ट्रपति द्वारा प्रदान किए गए। अंजू वर्ष
2005 में कोई बड़ा कमाल नहीं
दिखा सकीं। वर्ष 2005 में हीरो होंडा
अकादमी ने एथलेटिक्स में वर्ष 2004 के लिए अंजू को
श्रेष्ठतम खिलाड़ी नामांकित किया। वर्ष 2006 में अंजू का प्रदर्शन बिगड़ने से महिला लम्बी कूद रैंकिंग
में वह चौथे स्थान से लुढ़क कर छठे स्थान पर पहुँच गईं। दिसम्बर 2006 में हुए दोहा एशियाई खेलों में अंजू अपना
सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन नहीं दोहरा सकीं। उन्होंने 6.52 मीटर की छलांग
लगाकर रजत पदक जीतने में सफलता हासिल की। सर्वश्रेष्ठ छलांग न लगा पाने के बावजूद अंजू खुश थीं कि आखिर उन्होंने पदक
तो जीता। अंजू ने छठवें और अंतिम प्रयास में 6.52 मीटर की छलांग
लगाई वरना कजाकिस्तान की खिलाड़ी 6.49 की कूद के साथ रजत पदक ले गई होती और अंजू को
कांस्य से संतोष करना पड़ता। बुसान एशियाई खेलों में अंजू ने स्वर्ण पदक जीता था।
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