गरीब की इस बेटी का संघर्षों से है चोली-दामन का
साथ
श्रीप्रकाश
शुक्ला
पूरा भारत एथलीट पीटी ऊषा को उड़न परी के नाम से जानता है। 37 साल पहले सिर्फ 16 वर्ष की पीटी ऊषा ने कामयाबी का एक नया इतिहास
रचा था। वह 100 मीटर फर्राटा दौड़ में ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई करने वाली देश की पहली महिला
बनी थीं। 1980 के मॉस्को ओलम्पिक में पीटी ऊषा का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा लेकिन 1984 के
लॉस एंजिल्स ओलम्पिक्स में पीटी ऊषा ने शानदार प्रदर्शन कर देशवासियों को पुलकित
कर दिया था। 400 मीटर हर्डल मुकाबले में पीटी ऊषा एक सेकेंड के 100वें हिस्से से कांस्य पदक जीतने से चूक गई थीं।
पीटी ऊषा के उस लाजवाब प्रदर्शन के तीन दशक बाद अब देश को एक नई उड़न परी मिली है,
जिसका नाम है दुती चंद। दुती चंद ने 2016 में
100 मीटर दौड़ में रियो ओलम्पिक के लिए न केवल क्वालीफाई किया था बल्कि गरीब की इस
बेटी ने फर्राटा दौड़ का राष्ट्रीय रिकार्ड भी बना डाला था। फिलवक्त दुती 100 मीटर
फर्राटा दौड़ की राष्ट्रीय रिकार्डधारी है। दुती चंद की यह कामयाबी उसके हौसले और
जुनून के साथ ही उसकी संघर्षगाथा भी है।
दुती चंद ने कजाकिस्तान के अलमाटी में कोसनोव मेमोरियल एथलेटिक्स मीट में महिलाओं
की 100 मीटर दौड़ 11.24 सेकेंड में पूरी कर न केवल दूसरा स्थान हासिल किया बल्कि
रियो ओलम्पिक के लिए भी क्वालीफाई किया था। ओलम्पिक में 100 मीटर की दौड़ में सहभागिता
करने वाली दुती चंद दूसरी भारतीय महिला खिलाड़ी है। इससे पहले पीटी ऊषा ने 1980 में मॉस्को ओलम्पिक
के लिए क्वालीफाई किया था। रियो ओलम्पिक में क्वालीफाई करने के लिए दुती चंद को
100 मीटर की दौड़ 11.32 सेकेंड में पूरी करनी थी लेकिन उसने 11.24 सेकेंड में दौड़
पूरी कर एक इतिहास लिख दिया। 2014 में दुतीचंद को कॉमनवेल्थ गेम्स से अयोग्य कर दिया गया था क्योंकि उसके
शरीर में टेस्टो-स्ट्रोन की मात्रा ज्यादा
पाई गई थी। टेस्टो-स्ट्रोन को पुरुष हार्मोन भी कहा जाता है और खेल में ऐसा माना
जाता है कि जिस खिलाड़ी में ये हॉर्मोन ज्यादा होता है उसका प्रदर्शन बेहतर हो जाता है। कई बार खिलाड़ी अपना प्रदर्शन
बेहतर करने के लिए भी इसे ड्रग के तौर पर ले लेते हैं। इसी शक की वजह से दुतीचंद पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, लेकिन 2015 में दुती चंद के पक्ष में फैसला मिला और उस पर लगा प्रतिबंध हटा
दिया गया। इसके बाद दुतीचंद ने ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई कर लिया।
दुती चंद की परेशानियां अभी कम नहीं हुई हैं लेकिन अब भारत के पास दुती चंद के
रूप में एक नई उम्मीद जरूर है। दुती चंद के सामने पहले के मुकाबले अब ज्यादा गम्भीर
चुनौतियां हैं लेकिन प्रतिबंध लगने के बाद जिस तरह दुती ने अपनी लड़ाई लड़ी
और कठिनाइयों पर फतह हासिल की, उससे देर-सबेर ही सही भारत के अंतरराष्ट्रीय स्तर
पर पदक जीतने की उम्मीदें बढ़ गई हैं। ओलम्पिक में पदक जीतने के लिए दुती चंद को
अपना समय 11 सेकेंड से कम करना होगा यानि दुतीचंद को अगर ओलम्पिक्स में मैडल जीतना
है तो उसे बहुत मेहनत करनी होगी तथा अपना प्रदर्शन और बेहतर करना होगा। जुलाई 2017
में भुवनेश्वर में हुई एशियाई एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में उड़ीसा की इस उड़न परी ने
100 मीटर दौड़ में कांस्य पदक जीता है लेकिन प्रतियोगिता से पहले उस पर लिंग सम्बन्धी
मामले का जो दबाव डाला गया उससे भी इस लड़की का प्रदर्शन प्रभावित हुआ।
दुती की सफलता के पीछे संघर्ष की एक लम्बी गाथा है। दुती का खेल जीवन काफी
उतार-चढ़ाव वाला रहा। गांव के धूल भरे कच्चे रास्तों से निकल सिंथेटिक ट्रैक तक
पहुंचने के लिए दुती चंद को काफी संघर्ष करना पड़ा। दुती चंद को गरीबी के कारण अच्छी
ट्रेनिंग करने का मौका भी नहीं मिला। इसके अलावा गाहे-बगाहे दुती चंद राजनीति का
भी शिकार हुई लेकिन तमाम
विपरीत परिस्थितियों के बाद भी दुती चंद ने हिम्मत नहीं हारी। दुती चंद आज भारत
की सबसे तेज दौड़ने वाली महिला है। एथलीट दुती चंद बहुत ही गरीब परिवार से है। इसका
जन्म तीन फरवरी, 1996 को उड़ीसा के चाका गोपालपुर गांव में हुआ। गरीबी दुती चंद के
जज्बे को कभी कम नहीं कर पाई। गांव से दुतीचंद ने एथलीट बनने का सपना देखा और उसे
पूरा करने के लिए एक कठिन सफर पर निकल पड़ी। सफर के दौरान उनके सामने कई रुकावटें
भी आईं लेकिन उसके पैर थमे नहीं बल्कि आगे ही बढ़ते ही गये। दुती चंद भारतीय
बैडमिंटन प्रशिक्षक पुलेला गोपीचंद को भगवान मानती है। दुती चंद जब लिंग सम्बन्धी
विवाद के चलते काफी संकट में थी ऐसे समय में पुलेला गोपीचंद ने उसे हैदराबाद की
अपनी एकेडमी में न केवल अभ्यास का मौका दिया बल्कि हर मुमकिन मदद भी की।
दुती चंद के पिता एक गरीब बुनकर थे, जिनकी आय 500 से हजार रुपए थी। दुती के परिवार में कुल नौ लोग हैं, जिनमें
एक भाई और छह बहनें शामिल हैं। दुती बताती है कि खेल की वजह से बहुत कुछ मेरे जीवन में
बदलाव आया। खेल ने मुझे बहुत कुछ दिया है। काफी गरीबी से हमारा परिवार जूझ रहा था।
गरीबी के कारण मेरी बहनों की पढ़ाई नहीं हो पा रही थी, लेकिन खेल में आने के बाद मेरे परिवार में काफी कुछ बदलाव
आया और अब सब कुछ सामान्य चल रहा है। दुती चंद का गांव भुवनेश्वर से लगभग 100 किलोमीटर
की दूरी पर है। दुती का गांव बाढ़ आने पर मुख्य धारा से कट जाता है लेकिन दुती के
कारण गांव की चर्चा हमेशा होती रहती है। दुती के पिता चक्रधर चंद अपनी बेटी की
उपलब्धियों पर नाज करते हैं, वह कहते हैं कि मैं तो दुती का हर मुकाबला देखना
चाहता हूं लेकिन घर में कामकाज के चलते वह कहीं नहीं जा पाते। चौपायों की देखभाल करने के लिए उन्हें गांव में ही रुकना
पड़ता है।
ओलम्पियन दुती चंद का कहना है कि भुवनेश्वर के कलिंगा स्टेडियम से मेरा बहुत
पुराना नाता है। जुलाई-2006 से मैंने यहां कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताएं खेली हैं।
चूंकि मैं यहीं की रहने वाली हूं, सो मुझे समर्थन
भी अच्छा मिलता है। दुती 2012 में अंडर-18 वर्ग में नेशनल चैम्पियन बनी थी। दुती ने तब 100 मीटर की
दूरी 11.8 सेकेंड में पूरी की थी। 2012 में ही पुणे में
हुई एशियन चैम्पियनशिप में उसने कांस्य पदक जीता था। 2013 में दुती ग्लोबल की 100 मीटर रेस के
फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनी थी। 2013 में ही दुती 100 और 200 मीटर वर्ग में नेशनल
चैम्पियन बनी थी। चक्रधर चंद की यह बेटी अब तक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर
कई दर्जन पदक जीत चुकी है। दुती का कहना है कि उसमें आत्मविश्वास की कमी नहीं है।
2013 में मैंने पहली
बार एशियन चैम्पियनशिप में कदम रखा था, इसके बाद मैंने कई प्रतियोगिताओं में दौड़
लगाई है, जिसमें ओलम्पिक खेल भी शामिल हैं। दुती को भरोसा है
कि वह 100 और 200 मीटर दौड़ में देश के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक न एक दिन पदक
जरूर जीतेगी। हर खिलाड़ी की तरह मैं भी ओलम्पिक में पदक जीतना चाहती हूं। दुती का
कहना है कि अन्य देशों में हमें मौसम के साथ सामंजस्य बिठाने में समय लगता है,
पर हर खिलाड़ी को इसके लिए तैयार रहना होता है। दुती को अब जर्मनी के कोच राल्फ ईक्कट का
मार्गदर्शन मिल रहा है जिन्हें इंटरनेशनल एथलेटिक्स महासंघ ने एशियाई देशों के लिए
कोच नियुक्त किया है।
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