मां घर में
करती है चौका-बर्तन और बेटी है राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी
कहते हैं हिना जहां भी होती है उसकी रंगत अपनी मौजूदगी का एहसास जरूर करवा
देती है। बस्ती जिले के पॉलीटेक्निक चौराहे पर टीनशेड के एक छोटे से कमरे में रहने
वाली हिना खातून भी कुछ ऐसी ही है। गरीबी और मुफलिसी में रहकर भी हिना ने वह कर
दिखाया है जो औरों के लिए एक मिसाल है। गरीबी के सामने भी हिना ने कभी हिम्मत नहीं
हारी। अपनी हिम्मत और लगन से हिना न केवल राष्ट्रीय स्तर की हैंडबॉल खिलाड़ी बनी बल्कि
अब वह अपने जैसी अन्य लड़कियों के लिए एक मिसाल बनकर उभरी है। वह हैंडबाल में देश
का प्रतिनिधित्व करना चाहती है।
कहते हैं प्रतिभा किसी उम्र की मोहताज नहीं होती। यह बात हिना ने अपनी मेहनत
और लगन से साबित कर दिखा दिया। हिना की मां तराबुन्निशां दूसरे के घरों में बर्तन
मांजकर और अण्डे की दुकान लगाकर अपनी बेटी के सपनों को पंख लगा रही हैं। अपनी मां के
संघर्षों को बताते हुए हिना की आंखों में आंसू आ जाते हैं। हिना का सपना है कि वह
राष्ट्रीय स्तर पर खेलते हुए एक दिन अपने देश का नाम रोशन करे लेकिन गरीबी और
मुफलिसी हिना की राह का रोड़ा बन रही है बावजूद इसके हिना अपनी मंजिल को पाने के
लिए लगातार संघर्ष कर रही है। हिना का यह संघर्ष सिर्फ मैदान ही नहीं उसके सामाजिक
जीवन में भी जारी है।
हिना ने खेल के साथ-साथ अपनी पढ़ाई भी जारी रखी है। हिना अब तक राष्ट्रीय स्तर
की सात हैंडबॉल प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुकी है। हरियाणा, छत्तीसगढ़, कर्नाटक,
हैदराबाद में हुई राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में न केवल हिना ने हिस्सा लिया बल्कि
विपरीत परिस्थितियों में भी उसने कांस्य पदक जीतकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया।
हिना की इस उपलब्धि में उनकी मां और खेल अधिकारी सुरेश बोनकर का बहुत बड़ा योगदान
है। इसके अलावा मोहल्ले वालों ने भी हिना की हमेशा हौसला-अफजाई की है। हिना का
सपना है कि वह एक दिन हैंडबॉल में देश का नाम रोशन करे लेकिन घर की हालत ठीक न
होने की वजह से वह चाहती है कि कोई नौकरी मिल जाए ताकि उम्र के इस पड़ाव में उसकी
मां को काम न करना पड़े। हिना ने सरकार से भी मांग की है कि जितने भी गरीब घर के
खिलाड़ी हैं उनकी सरकार मदद करे ताकि वह भी आगे बढ़ सकें और देश का प्रतिनिधित्व
कर सकें।
हिना की इस कामयाबी में उसकी मां तराबुन्निशां का बहुत बड़ा हाथ है। हिना की
मां ने पूरी जिन्दगी संघर्ष कर अपनी बेटी को इस मुकाम तक पहुंचाया है। लगातार चार
बेटियां होने पर पति ने 20 साल पहले तलाक
दे दिया था जिसके बाद तराबुन्निशां पालिटेक्निक चौराहे पर ईंट की दीवार जोड़कर
टीनशेड डालकर रहने लगी। अपनी जीतोड़ मेहनत और लोगों के घरों का बर्तन और कपड़ा साफ
कर घर चलाने लगी। देर शाम तक तराबुन्निशां अण्डे की दुकान लगाती हैं। मेहनत करके
तीन बेटियों की शादी भी कर दी लेकिन चौथी बेटी हिना खातून पढ़ने और खेल में लगातार
उपलब्धियां हासिल करने लगी तो मां भी उसके अरमानों को पंख लगाने में जी-जान से जुट
गईं। तराबुन्निशां का शरीर उम्र के इस पड़ाव में जवाब दे रहा है लेकिन अब भी उनकी हिम्मत
हिमालय से टकराने की है।
कलेक्टर अरविन्द कुमार सिंह को जब इस खिलाड़ी के बारे में पता चला तो वह उस
खिलाड़ी के घर पहुंच गए। राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी की मुफलिसी और गरीबी को देखकर उन्होंने
फौरन एक कांशीराम आवास और जिस जमीन पर वह टीनशेड डालकर रहती है, उसे हिना के नाम
पट्टे का निर्देश दे दिया। कलेक्टर सिंह का कहना है कि जब उन्हें पता चला की हिना
हैंडबाल की राष्ट्रीय खिलाड़ी है और अच्छा खेलती है तो उसे प्रोत्साहित करने के
लिए मदद की। ऐसे खिलाड़ियों को प्रोत्साहन देने से अन्य खिलाड़ियों तक अच्छा मैसेज
जाएगा।
जिला क्रीड़ा अधिकारी सुरेश बोनकर का कहना है कि जब मैं इस बच्ची से मिला था
तो काफी प्रतिभाशाली थी। उस समय भी राष्ट्रीय स्तर पर यूपी का प्रतिनिधित्व कर
चुकी थी। मेडलिस्ट भी है लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि इसकी मां को अभी तक समाज से
कोई मदद नहीं मिली बावजूद इसके यह अब तक सात राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताएं खेल चुकी है
जोकि बहुत बड़ी बात है। राष्ट्रीय स्तर की हैंडबाल खिलाड़ी हिना ने गरीबी और मुफलिसी
में जो मुकाम हासिल किया है, वह अन्य खिलाड़ियों के लिए एक मिसाल है। हिना को अगर
सरकार कुछ मदद कर दे तो यह खिलाड़ी अपने सपनों को पंख लगा सकती है।
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