भारत में महिला
जिमनास्टिक की पहचान दीपा करमाकर आज भी रियो में पदक न जीत पाने से व्यथित हैं।
दीपा कहती हैं कि रियो के टाइम के हिसाब से मेरा इवेंट दो-ढाई बजे था। मुझे सिर्फ
इतना याद है कि नंदी सर ने कहा था कि बेटा तुम्हें कुछ भी नया नहीं करना है, जो अब
तक सीखती आई हो, बस उसी को खूब अच्छी तरह करना। अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन करना। तुमने
फाइनल के लिए जगह बनाई जोकि अपने आप में बड़ी कामयाबी है। तुमने आठवें नम्बर पर
क्वालीफाई किया है। अब इससे नीचे तो जा नहीं सकती हो। इससे ऊपर आने का मौका
तुम्हारे पास जरूर है। मेरे ऊपर किसी तरह का दबाव नहीं था। मैं बिल्कुल फ्री थी।
हमारे साथ जो साइकोलॉजिस्ट भावना मैडम थीं उन्होंने भी कहा कि तुम बिल्कुल हंसते
हुए अपना इवेंट करना। तुम जब हंसकर जाती हो तो अच्छा करती हो। तुम्हारे दांत दिखते
रहने चाहिए।
फिर मैंने कम्पटीशन
किया। मेरा फाइनल नम्बर चौथा था। मैं जानती थी कि आठवें से चौथे नम्बर पर आना
कितना टफ है। जब मैं एरीना से बाहर निकली, तब मुझे पता चला कि मैं कितने कम अंतर
से चौथे पायदान पर आई। इसके बाद तो मैं अपने आंसू रोक नहीं पाई। तब मुझे लगा कि
मेरा मैडल मिस हो गया। मैं लगातार रोती जा रही थी। रह-रहकर बस यही ख्याल आ रहा था
कि अगर थोड़ी सी मेहनत और कर ली होती तो आज मैं ओलम्पिक मेडल जीत सकती थी।
सर ने मुझे
समझाना शुरू किया। कम्पटीशन से पहले सर ने एक भी दिन भी मुझे मैकडॉनल्ड में खाने
नहीं दिया था। उस दिन वह खुद बोले- चलो मैकडॉनल्ड चलते हैं। तुम्हें जो मन करे, वह
खाओ। अब मेरे दिमाग से रियो ओलम्पिक निकल चुका है। सर जानते थे कि मुझे कैसे सम्हालना
है। मैं दोबारा रोने लगीए तो उन्हें भी रोना आ गया। चौथे पायदान पर आने का दुख
बहुत बड़ा होता है। मैं एशियन गेम्स में भी चौथे नम्बर पर आई थी। पांचवें-छठे नम्बर
पर शायद दुख कम होता है। चौथे नम्बर पर आने का मतलब है, मैडल आते-आते रह जाना। फिर
नंदी सर ने मुझे समझाया कि अगली बार और मेहनत करेंगे और मैडल लाएंगे। उस दिन किसी
से घर पर बात भी नहीं हुई। अगले दिन जब बात हुई तो पापा-मम्मी बहुत खुश थे।
उन्होंने भी समझाया कि मैडल के पीछे मत रोओ, यह सोचो कि तुम ओलम्पिक में चौथे नम्बर
पर आई। हो। तुमको मैडल मिल जाता तो क्या पता तुम जिमनास्टिक छोड़ ही देती पर अभी
तुम्हें खुद को मोटिवेट करके अगली बार और अच्छा करना है। अगले दिन जब मुझे पता चला
कि अमिताभ बच्चन जैसे बड़े स्टार मेरा खेल देख रहे थे तो मुझे बहुत अच्छा लगा। मुझे
लगता है कि अब मेरी जिम्मेदारी बढ़ गई है। मुझे अब देश के लिए मैडल जीतना है।
मैं रियो में साक्षी
और सिंधु से नहीं मिल पाई थी पर भारत लौटने के बाद मैंने दोनों से मिलकर उन्हें
बधाई दी। मुझे बहुत अच्छा लग रहा था कि जहां-जहां उन दोनों का नाम लिया जा रहा था
वहां मुझे भी बुलाया गया लेकिन उनमें और मेरे में बहुत फर्क है। उनके पास ओलम्पिक मैडल
है। मेरे कोच सर ने अगले ओलम्पिक के लिए तैयारियां शुरू करा दी हैं। हमें देश के
लिए मैडल जीतना है। ओलम्पिक से पहले स्पोर्ट्स अथॉरिटी ने बहुत सहयोग दिया। उनके
सपोर्ट के बिना इस मुकाम पर नहीं पहुंच सकते थे। यहां सभी लोग बहुत मदद करते हैं।
दिल्ली में हमारे स्टेडियम की एडमिनिस्ट्रेटर मंजूश्री मैडम हैं। वह हमें बिल्कुल
घर की तरह रखती हैं। यहां तक कि हम यहीं हॉस्टल में पार्टी करते हैं। दोस्तों के
जन्मदिन मनाते हैं। त्योहार मनाते हैं। चार साल से मैंने अपना जन्मदिन कैम्प में
ही मनाया है।
अब मैं आगे की तैयारी पर फोकस कर रही हूं। हमारे जो मूवमेंट होते हैं उसमें प्वाइंट
कट जाते हैं। मुझे अब वह गलती दोबारा नहीं करनी है। जिमनास्टिक के अलावा मेरा कोई
शौक नहीं है। 2015 के बाद तो मुझे फिल्म
देखने जाने का समय भी नहीं मिला। कुछ पाने के लिए छोटे-मोटे त्याग तो कर ही सकते
हैं। हम जब मन चाहे, तब घर नहीं जा सकते। जो मन करे, वह खा नहीं सकते। लेकिन इन
सारी बातों को मैं बहुत छोटा त्याग मानती हूं। मुझे मिठाई बहुत पसंद है लेकिन मैं
खा नहीं सकती हूं। रियो के बाद बहुत सारे पुराने दोस्तों के फोन आए। उनमें से कई
मिलने भी आए। 2016 में मुझे और मेरे
कोच को एक साथ सम्मानित भी किया गया। मुझे खेल रत्न दिया गया और कोच सर को
द्रोणाचार्य अवॉर्ड। उस दिन को मैं अपनी जिन्दगी में कभी नहीं भूल सकती। सचिन
तेंदुलकर और अभिनव बिंद्रा मुझे बहुत अच्छे लगते हैं। मैं सचिन सर से दो बार मिली
भी। उन्होंने कहा कि खूब मेहनत करो। दिमाग को जमीन पर रखो। कुछ इधर-उधर का मत
सोचो। अभी अगर कोई त्रिपुरा के बारे में पूछता है तो लोग कहते हैं कि वही स्टेट,
जहां से दीपा है। मुझे इस बात का बहुत गर्व है।
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