अपने डांस से हरदिल अजीज बने विनोद ठाकुर
कहते हैं कि इंसान में यदि कुछ करने का जज्बा और लगन हो तो
वह कुछ भी कर सकता है। सवाल यह कि जो बिना पैरों ही जन्मा हो क्या वह भी रंगमंच पर
धाक जमा सकता है, उसके डांस की दुनिया मुरीद हो सकती है। एकबारगी तो यह सच नहीं
लगता क्योंकि डांस के लिए पैरों का होना जरूरी है। आपको यह जानकर अचरज होगा कि
दिल्ली के एक छोरे विनोद ठाकुर ने बिना पैरों डांस में इतनी शोहरत बटोरी है कि आज
भारत ही नहीं पूरी दुनिया उसके प्रतिभा की कायल है। यह परीलोक की कथा नहीं बल्कि
जमीनी हकीकत है। विनोद ठाकुर इण्डिया गाट टैलेण्ट और नच बलिए छह में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके हैं। विनोद के डांस को सिर्फ भारत ही
नहीं दुनिया के दर्जनों देश सराह रहे हैं।
विनोद ठाकुर की जिन्दगी के अनछुए पहलुओं पर नजर डालते ही यह
शख्स औरों से बिल्कुल अलग दिखाई देता है। इस शख्स के पैर नहीं लेकिन इसने अपने
करिश्माई प्रदर्शन से हर किसी का दिल जीत रखा है। विनोद ठाकुर के अंदर हौसले की
कमी नहीं है। अपने हौसले की वजह से इस शख्स ने जो मुकाम हासिल किया है वहां तक पहुंचना
हर किसी के लिए मुमकिन नहीं है। बचपन के शरारती विनोद ठाकुर को आज अपनी दिव्यांगता
पर कतई अफसोस नहीं है। वह दिव्यांगता को ईश्वर का अनमोल तोहफा मानते हुए कहते हैं
कि किसी अंग विशेष के कमजोर होने से जिन्दगी खत्म नहीं हो जाती। विनोद ठाकुर का
जीवन संघर्षों की ऐसी दास्तां है जिसे सुनकर हर मन व्यथित हो जाता है।
नच बलिए के मंच पर सबको कड़ी टक्कर देने वाले विनोद ठाकुर बताते
हैं कि बचपन में मुझे नाचना और गाना बिल्कुल पसंद नहीं था। मैं नाचना जानता भी
नहीं था, वजह भगवान ने मुझे जिस रूप में धरती पर भेजा, वह अपने आप में अधूरा था।
यही वजह थी कि नाच-गाने में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी आखिरकार मुझे कुछ खास
दोस्तों ने डांस का क्षेत्र चुनने के लिए प्रेरित किया। पहले तो मुझे अपने दोस्तों
की बात समझ में नहीं आई लेकिन उनकी जिद की वजह से मैंने नाचने की प्रैक्टिस शुरू
कर दी। मैंने संकल्प लिया कि मुझे कुछ ऐसा करना है जोकि सबसे अलग हो और उसकी हर
कोई तारीफ करे। अपनी लगन और मेहनत से मैं डांस में पारंगत हो गया। मुझे पहली बार 2010 में अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका इण्डिया गॉट
टैलेंट में मिला। इसके बाद मैंने डांस को ही अपना मकसद और लक्ष्य मान लिया। विनोद ठाकुर
बताते हैं कि मेरे घर की माली हालत ठीक नहीं थी। मेरे पिता जगदीश ठाकुर एक ट्रक
ड्राइवर थे। मां उर्मिला ने मेरा और मेरे दो भाई तथा दो बहनों का पालन पोषण किया।
जगदीश ठाकुर मूलतः बिहार के बेगूसराय के रहने वाले थे लेकिन विनोद का जन्म दिल्ली
में ही हुआ।
विनोद ठाकुर बताते हैं कि मैं जब कामयाबी की सीढ़ियां चढ़
ही रहा था कि मेरी मुलाकात रक्षा से हो गई। रक्षा ठाकुर के परिजन भी बिहार के
मुजफ्फरपुर के ही रहने वाले हैं लेकिन रक्षा का जन्म भी दिल्ली में ही हुआ। विनोद
बताते हैं कि मेरी और रक्षा की पहली मुलाकात दिल्ली के एक डांस क्लास में डांस
सीखने के दौरान हुई। हम दोनों के बीच प्यार परवान चढ़ा और 2012 में हम दोनों ने शादी कर ली। दोनों पैर से
विकलांग विनोद के साथ रक्षा ने परिवार की मर्जी के बिना नजफगढ़ के आर्य समाज मंदिर
में शादी की थी। दोनों को अपनी शादी धूमधाम से नहीं होने का मलाल था। उनकी इस मंशा
को नच बलिए के सेट पर पूरा किया गया था। विनोद कहते हैं कि रक्षा और मेरी शादी
पुच्छल तारे की तरह साबित हुई। कटाक्ष भरे स्वर में वह कहते हैं कि कुत्ते को घी
अच्छा नहीं लगा। खैर दो साल से अब मैं नहीं जानता कि रक्षा कहां और कैसे है। मैं
जानना भी नहीं चाहता क्योंकि उसने मुझे धोखा दिया, वह मेरी कामयाबी को भुनाना
चाहती थी। विनोद कहते हैं कि मेरे अपने कुछ लक्ष्य हैं, जीवन के उसूल हैं जिनसे
मैं समझौता नहीं कर सकता। मैं अपने लक्ष्य हर हाल में हासिल करना चाहता हूं।
विनोद ठाकुर ने अपनी डांस कला से सिर्फ भारत ही नहीं
अमेरिका, ताईवान, कोरिया, मैक्सिको, हांगकांग, दुबई सहित दुनिया भर के दर्जनों
मुल्कों के कलाप्रेमियों को अपना मुरीद बनाया है। अंधेरी मुम्बई में अपनी टीम के
साथ रह रहे विनोद ठाकुर इन दिनों पंख बिना उड़ान मूवी पर काम कर रहे हैं। इस मूवी
में विनोद ठाकुर के सम्पूर्ण जीवन को ही फिल्माया जा रहा है। उम्मीद है कि यह मूवी
दो साल बाद दर्शकों के दीदार को आ जाएगी। विनोद ठाकुर द इण्डियन डिसेबल्ड टैलेण्ट
हण्ट नाम की खुद की एक संस्था चलाते हैं, जहां वह डांस के इच्छुक ऐसे बच्चों को
डांस सिखाते हैं जोकि दिव्यांग हैं। इस संस्थान को चलाने के लिए विनोद कोई सरकारी
मदद नहीं लेते बल्कि अपने स्टेज शो से मिलने वाली धनराशि का 20 फीसदी हिस्सा द इण्डियन डिसेबल्ड टैलेण्ट हण्ट
पर ही खर्च कर देते हैं। संघर्ष ही विनोद ठाकुर का मूलमंत्र है। इस शख्स को बेवजह
की तारीफ करना और सुनना कतई पसंद नहीं है। विनोद को खाने में बैंगन का भरता और भिण्डी
का भुजिया बेहद पसंद है।
अपनी भविष्य की योजनाओं पर विनोद ठाकुर का कहना है कि वह
चाहते हैं कि देश का हर दिव्यांग अपने पैरों पर खड़ा हो। वह कहते हैं कि हर किसी
के जीवन में मुश्किलें आती हैं, जो मुश्किलों का डटकर मुकाबला करता है वही सफलता
भी हासिल करता है। शादी के सवाल पर विनोद ठाकुर का कहना है कि मैं चाहता हूं कि
मेरी जीवन संगिनी न केवल आर्टिस्ट हो बल्कि आत्मनिर्भर भी हो। वह कहते हैं कि मुझे
दिव्यांग महिला से शादी करने में भी गुरेज नहीं होगा बशर्ते वह अपने कामकाज स्वयं
करने में समर्थ हो। विनोद ठाकुर कहते हैं कि मैंने जीवन की हर मुफलिसी के दौर को
देखा है। सच तो यह है कि दिव्यांगता ही मेरी ताकत है। यह ईश्वर का मेरे लिए अनमोल
तोहफा है।
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