Wednesday, 21 December 2016

आंखों बिना जीता जहां


पैरा ओलम्पिक में भाग लेने वाला पहला ब्लाइंड एथलीट अंकुर धामा
छह साल की उम्र में अपनी आंखों की रोशनी खो देने वाले अंकुर धामा ने दिव्यांगता को कुछ ऐसी चुनौती दी है कि उसके जज्बे को आज सभी सलाम करते हैं। आंखों की रोशनी खो जाने या शरीर के किसी भी अंग में अपंगता आ जाने से कइयों का हौसला पस्त हो जाता है लेकिन अंकुर के साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ। पैरा एथलीट अंकुर धामा बेशक रियो पैरालम्पिक में पदक नहीं जीत सका लेकिन उसका रिकॉर्ड समय टोक्यो पैरालम्पिक में पदक दिलाने के लिए काफी है। दरअसल ट्रैक में गिर जाने की वजह से ही अंकुर धामा रियो पैरालम्पिक में पदक जीतने से वंचित रह गया था। अंकुर की उम्मीदें जिन्दा हैं, उसे भरोसा है कि वह टोक्यो में पदक जरूर जीतेगा।
अंकुर धामा की जहां तक बात है वह पैरालम्पिक की 15 सौ मीटर दौड़ में हिस्सा लेने वाला देश का पहला नेत्रहीन एथलीट है। अंकुर का कहता है कि मेरा लक्ष्य देश को पदक दिलाना है। मैं रियो की असफलता से निराश नहीं हूं बल्कि इसके लिए अभी से तैयारी में जुटा हूं। उत्तर प्रदेश के खेकड़ा की पट्टी रामपुर के किसान परिवार में जन्में अंकुर की आंखों में रोशनी नहीं है लेकिन उसने अपने हौसले की बदौलत न केवल नई जिन्दगी शुरू की बल्कि वह आज देश के टॉप एथलीटों में शामिल है। इंचियोन एशियन खेलों में एक रजत और दो कांस्य पदक जीतकर अंकुर ने कामयाबी की नई इबारत लिखी थी। ब्राजील के रियो डि जेनेरियो में पदक न जीत पाने का इस खिलाड़ी को मलाल तो है लेकिन वह बेबाकी से कहता है वह भविष्य में पैरालम्पिक में पदक जरूर जीतेगा। द्रोणाचार्य अवार्डी कोच डॉ. सत्यपाल सिंह के निर्देशन में वह लगातार अपनी प्रतिभा को निखार रहा है। अंकुर के गाइड विपिन कुमार को उम्मीद है कि यह जांबाज पैरालम्पिक में एक न एक दिन पदक जरूर जीतेगा।
भाई गौरव धामा के अनुसार अंकुर ने अपने दम पर अपनी पहचान बनाई है। गौरव कहते हैं कि उसकी आंखों की रोशनी तो जरूर चली गई लेकिन उसकी जिंदगी रोशन है। खेकड़ा के किसान इंद्रपाल सिंह के बेटे अंकुर की आंखों में बचपन के दिनों में दुल्हैड़ी के दिन केमिकल वाला रंग गिर गया था। खूब इलाज कराया लेकिन रोशनी चली गई। मां संतोष देवी, भाई गौरव धामा और बहन अंशु धामा निराश तो थे लेकिन नाउम्मीद कभी नहीं रहे। एक व्यक्ति के कहने पर अंकुर का एडमीशन दिल्ली के ब्लाइंड बच्चों के स्कूल में करा दिया गया। यहीं से अंकुर की जिंदगी बदल गई। अंकुर ने पहली बार वर्ष 2012 में हुई एशियन चैम्पियनशिप में दो स्वर्ण पदक जीतकर तहलका मचाया था, इसके बाद दौड़ में माहिर इस खिलाड़ी ने 800, 1500 और 5000 मीटर में कई मेडल जीत दिखाए। अंकुर ने वर्ष 2014 में इंचियोन के पैरा एशियन खेलों की 800 मीटर दौड़ में रजत, 1500 और 5000 मीटर दौड़ में कांस्य पदक जीते थे। वर्ष 2014 में शारजहां में हुई ओपन एशियन चैम्पियनशिप में भी उसने 1500 मीटर में स्वर्ण और 800 मीटर में कांस्य पदक जीता था। इसी साल दुबई में हुई इंटरनेशनल एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में अंकुर ने 800 मीटर में रजत तो 1500 मीटर में कांस्य पदक जीता था। अंकुर ने सेंट स्टीफंस कॉलेज से ग्रेजुएशन किया है। अंकुर के कोच और द्रोणाचार्य अवार्डी सत्यपाल सिंह कहते हैं कि इस धावक में बला की तेजी है। इस धावक से देश को बहुत सम्भावनाएं हैं।


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