Tuesday 3 March 2015

श्रीनिवासन के आसन पर डालमिया

जगमोहन डालमिया सर्वसम्मति से भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष चुन लिए गये हैं। यह पहली बार नहीं हुआ है। जगमोहन डालमिया का क्रिकेट से 36 साल पुराना रिश्ता है। डालमिया के प्रयासों से ही न केवल बीसीसीआई मालामाल हुई बल्कि यह आज दुनिया की सबसे ताकतवर खेल संस्था भी है। कल के दुश्मन आज दोस्त हैं। यह दोस्ती दिल की नहीं बल्कि उस दलदल से निकलने का प्रयास है जिसमें आज आईसीसी अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन बुरी तरह से फंसे हुए हैं। भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड आज बदनाम संस्था है। जिन लोगों ने इसे बदनाम किया है, उनके छद्म प्रयासों से ही डालमिया को क्रिकेट की आसंदी मिली है।
 व्यक्ति जन्म से नहीं, कर्म से महान बनता है। विपत्ति में धैर्य, उत्कर्ष में विनम्रता, सभा में वाक-चातुर्य, युद्ध में वीरता, यश में समता, वाणी में सत्यता नेक इंसान के स्वाभाविक गुण हैं। निंदा-प्रशंसा, सम्पत्ति-विपत्ति, जीवन-मरण की स्थिति में भी वे कभी अपना संतुलन नहीं खोते। आज डालमिया को जो कांटों का ताज मिला है, उसके निहितार्थ उन्हें समझना होगा। भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड को भ्रष्टाचार के दलदल से निजात दिलाना उनकी पहली वरीयता होनी चाहिए। भद्रजनों का खेल क्रिकेट आज न सिर्फ कारोबार बल्कि सट्टेबाजी समेत कई तरह की आपराधिक गतिविधियों का अखाड़ा बन गया है। यही कारण है कि जो भी एक बार क्रिकेट बोर्ड पर काबिज हो जाता है, फिर वहां से जाने का नाम नहीं लेता। खेल की बदनामी और अपनी फजीहत के बावजूद एन. श्रीनिवासन कैसे भी भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड का अध्यक्ष बने रहना चाहते थे। भला हो सर्वोच्च न्यायालय का जिसके चलते श्रीनिवासन ने अपने निहित स्वार्थ से परे डालमिया को बीसीसीआई की अध्यक्षी दिलाई है। क्रिकेट को अपनी बपौती समझने वाले श्रीनिवासन के आसन पर आज डालमिया का बिराजना बेशक भारतीय क्रिकेट का सुखद संकेत माना जा रहा हो पर भविष्य में जो भी अड़चनें आएंगी उसमें कहीं न कहीं श्रीनिवासन के लोग ही संलिप्त होंगे। स्पॉट फिक्सिंग और सट्टेबाजी के चलते पूरी दुनिया में भारतीय क्रिकेट को बदनाम करवाने के बावजूद श्रीनिवासन जिस तरह इस कलंक कथा और इसके खलनायकों पर पर्दा डालने की कोशिश करते रहे हैं, उससे साफ है कि उनका दामन बेदाग नहीं है। श्रीनिवासन अपने दामाद कोे बचाने की हर मुमकिन कोशिश करेंगे। डालमिया 2001 से 2004 तक बीसीसीआई के अध्यक्ष रह चुके हैं। 2004 में कई तरह के आरोप लगने के बाद ही उन्होंने बीसीसीआई की अध्यक्षी गंवाई थी।  2014 में श्रीनिवासन को हटाए जाने के बाद बीसीसीआई अध्यक्ष की अंतरिम जिम्मेदारी सम्हालने वाले डालमिया का पुन: अध्यक्ष बनना, चुनाव में श्रीनिवासन के अधिकांश लोगों का जीतना, अनुराग ठाकुर का सचिव बनना तथा राजीव शुक्ला और ज्योतिरादित्य सिंधिया की पराजय भारतीय क्रिकेट के लिए शुभ संकेत नहीं है।
जगमोहन डालमिया को अपनी दूसरी पारी में बीसीसीआई ने सपाट पिच नहीं दी है। खेल के नजरिए से भी दूसरी पारी में बल्लेबाजी करना कभी आसान नहीं होता। डालमिया के सामने क्रिकेट बोर्ड की नई टीम में एकता कायम करना और फिर उसका नेतृत्व करना टेढ़ी खीर साबित होगा। साथ ही आईपीएल का अगला सीजन शुरू होने वाला है। भारतीय क्रिकेट  बोर्ड के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि कैसे लीग की विश्वसनीयता को बहाल किया जाये। उधर भारतीय टीम वर्ल्ड कप के महासमर में अपना ताज बचाने के लिए मजबूत दावा पेश करने में जुटी है और इधर जगमोहन डालमिया दुनिया के सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड का मुखिया बनने में कामयाब रहे हैं। भारतीय क्रिकेट में जग्गू दादा का नाम कोई नया नहीं है, लेकिन अपने जमाने में विकेटकीपर व बल्लेबाज रहे डालमिया बीसीसीआई की राजनीतिक पिच पर जो जोरदार वापसी की है, उसमें श्रीनिवासन का अहम रोल है। चतुर सयाने एन. श्रीनिवासन ने सुप्रीम कोर्ट के दबाव के चलते बेशक बोर्ड के अध्यक्ष पद का चुनाव नहीं लड़ सके पर उन्होंने वक्त के चक्र में जगमोहन डालमिया और शरद पवार को एक बार फिर आमने-सामने लाकर जरूर खड़ा कर दिया है।    
एक दौर था जब भारतीय क्रिकेट को जगमोहन डालमिया अपनी ब्रीफकेस से चलाते थे। 1987 में विश्व कप को पहली बार इंग्लैंड से बाहर लाकर भारतीय उपमहाद्वीप में आयोजन कराने से लेकर क्रिकेट की सबसे बड़ी संस्था आईसीसी का प्रमुख बनने तक डालमिया ने विश्व क्रिकेट के केन्द्रबिंदु को लार्ड्स से हटाकर कोलकाता लाने में अहम भूमिका निभाई। डालमिया ने क्रिकेट के प्रसारण मामले में भारतीय क्रिकेट को आर्थिक सुपर-पावर बनाने की नींव रखी, लेकिन वक्त ने ऐसा पलटा खाया कि डालमिया अर्श से फर्श पर आ गए। मराठा सरदार शरद पवार ने डालमिया को बीसीसीआई की राजनीति से ही बेदखल कर दिया।
एक ऐसा भी दौर आया जब डालमिया पर फण्ड के घपले के आरोप लगे और वे बीसीसीआई से सस्पेंड कर दिये गये। लेकिन, डालमिया ने बंगाल क्रिकेट संघ में वापसी की, कोलकाता हाईकोर्ट में मुकदमा जीता और एन. श्रीनिवासन को अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी, तो अंतरिम अध्यक्ष बन गये। बाद में जैसे-जैसे मैच फिक्सिंग मामले में श्रीनिवासन गुट पर शिकंजा कसता चला गया, लड़ाई एक बार फिर से जगमोहन डालमिया बनाम शरद पवार के बीच हो गयी। आखिरकार, ईस्ट जोन के दो वोट डालमिया के लिए मैच विनर साबित हुए। पवार ने खुद को रेस से बाहर कर लिया और पावर डालमिया के पास दोबारा आ गयी। अब भारतीय क्रिकेट मुरीद तीन अहम सवाल कर रहे हैं। पहला, क्या जगमोहन डालमिया पिछली बार की तरह एक बार फिर से एन. श्रीनिवासन के डमी साबित होंगे? दूसरा, क्या बोर्ड की राजनीति में एन. श्रीनिवासन राज का खात्मा हो गया है? तीसरा, यहां से भारतीय क्रिकेट राजनीति की दिशा और दशा क्या होगी? जहां तक पहले सवाल का जवाब है, डालमिया पिछली बार आपात स्थिति में बोर्ड के अंतरिम अध्यक्ष बने थे, इस बार पूर्णकालिक अध्यक्ष बने हैं। जाहिर तौर पर, जहां पिछली बार श्रीनिवासन की खड़ाऊं कुर्सी पर रखकर राज किया, इस बार ऐसी कोई मजबूरी नहीं है। दूसरा, भारतीय जनता पार्टी के युवा नेता अनुराग ठाकुर ने करीबी लड़ाई में श्रीनिवासन के करीबी संजय पटेल को हराकर साफ कर दिया है कि बोर्ड में अब एन. श्रीनिवासन गुट का वर्चस्व खत्म हो रहा है। बोर्ड के सचिव का एक बड़ा कार्यक्षेत्र है और अनुराग ठाकुर तथा श्रीनिवासन के बीच छत्तीस का आंकड़ा जगजाहिर है। उम्र के ढलते पड़ाव पर खड़े डालमिया को बोर्ड चलाने के लिए अनुराग ठाकुर को साथ लेकर चलना होगा। देश के लोकप्रिय खेल की राजनीति से जुड़ा अहम सवाल है कि अब भारतीय क्रिकेट किस दिशा में आगे जायेगी?        
दरअसल, क्रिकेट में किस्सा कुर्सी का होने की वजह से भारतीय क्रिकेट से जुड़े कुछ सवाल हाशिये पर चले गये थे। मौजूदा विश्व कप में अब तक का प्रदर्शन भले ही अच्छा रहा हो, पर बीते चार साल में भारत विदेश में एक भी बड़ी टेस्ट सीरीज जीतने में कामयाब नहीं रहा है। महेन्द्र सिंह धोनी टेस्ट क्रिकेट से संन्यास ले चुके हैं और कोच डंकन फ्लेचर का कार्यकाल खत्म होने वाला है, ऐसे में क्रिकेट बोर्ड की नयी टीम और टीम इण्डिया की लीडरशिप को लेकर अहम फैसले लेने हैं। दूसरा, आईपीएल का अगला सीजन शुरू होने वाला है। बोर्ड के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि कैसे लीग की विश्वसनीयता को बहाल किया जाये। तीसरा, सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अब साफ है कि बोर्ड को पेशेवर और पारदर्शी बनाने के लिए ढांचागत बदलाव जरूरी है। भारत तेजी से बदल रहा है और अब बोर्ड को बंद ब्रीफकेस से नहीं चलाया जा सकता।  स्पोर्ट्स की तरह जिन्दगी के किसी भी सफर में हर बदलाव एक नयी चुनौती लेकर आता है। बोर्ड की कमान भले ही एक बार फिर से 74 साल के जगमोहन डालमिया के हाथों में है, लेकिन अब नये सिरे से शुरुआत की जरूरत है। जग्गू दादा को अपनी नयी युवा टीम को साथ लेकर बदले हालात के हिसाब से फैसले लेने होंगे। उनकी पहली पारी, विश्व क्रिकेट के भूगोल में पहचान के लिए संघर्ष की लड़ाई थी। उस लड़ाई को अपने साथियों के साथ मिलकर डालमिया ने जीता। दूसरी पारी, साख बहाल करने की लड़ाई है। इस लड़ाई को जीतने के लिए डालमिया और टीम को नये सिरे से, नये नियम-कायदों के साथ शुरू करने की जरूरत है।

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