Friday 27 March 2015

भारतीय राजनीति के उदारमना अटल

अपनी भाषणकला, मनमोहक मुस्कान, वाणी के ओज, लेखन एवं विचारधारा के प्रति निष्ठा तथा ठोस फैसले लेने के लिए विख्यात उदारमना अटल बिहारी वाजपेयी को शुक्रवार को जैसे ही देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया राजनीतिक गलियारों में खुशी की लहर दौड़ गई। आज के इस दौर में जब कोई भी सम्मान विवादों से परे न हो, ऐसे समय में वाजपेयी के सम्मान पर समूचे मुल्क का खुश होना उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व की व्यापक स्वीकार्यता ही है। राष्ट्रीय क्षितिज पर स्वच्छ छवि के साथ अजातशत्रु कहे जाने वाले कविमना, पत्रकार और सरस्वती पुत्र अटल बिहारी वाजपेयी, एक व्यक्ति का नाम नहीं वरन राष्ट्रीय विचारधारा का नाम है। राष्ट्रहित के प्रबल पक्षधर अटल जी राजनेताओं में नैतिकता के प्रतीक हैं।
अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसम्बर, 1924 को ब्रह्ममुहूर्त में ग्वालियर में हुआ था।  पुत्र होने की खुशी में जहां घर में फूल की थाली बजाई जा रही थी वहीं पास के गिरजाघर में घंटियों और तोपों की आवाज के साथ प्रभु ईसा मसीह का जन्मदिन मनाया जा रहा था। शिशु का नाम बाबा श्यामलाल वाजपेयी ने अटल रखा था। माता कृष्णा देवी प्यार-दुलार से उन्हें अटल्ला कहकर पुकारती थीं। पिता का नाम पण्डित कृष्ण बिहारी वाजपेयी था। पण्डित कृष्णबिहारी वाजपेयी का सम्मानित कवियों में शुमार था। उनके द्वारा रचित ईश प्रार्थना राज्य के सभी विद्यालयों में कराई जाती थी। यह कहना अतिश्योक्ति न होगी कि अटल जी को कवि रूप विरासत में मिला है।
अटल जी की शिक्षा-दीक्षा ग्वालियर में ही हुई। 1939 में जब वे ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज में अध्ययन कर रहे थे तभी से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में जाने लगे थे। वह प्रत्येक रविवार को आर्यकुमार सभा के कार्यक्रमों में भाग लेते थे, वहीं उनकी मुलाकात शाखा के प्रचारक नारायण जी से हुई। अटल जी उनसे बहुत प्रभावित हुए और रोज शाखा जाने लगे। 1942 में लखनऊ शिविर में अटल जी ने अपनी कविता हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, जिस ओजस्वी और तेजस्वी शैली में पढ़ी थी उसकी चर्चा आज भी की जाती है। समय को किसने देखा है। तब कौन जानता था कि ग्वालियर का लाल एक दिन भारत का प्रधानमंत्री बनेगा। वाजपेयी जी ने तमाम अवरोधों को तोड़ते हुए 1990 के दशक में राजनीतिक मंच पर भाजपा को स्थापित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह वाजपेयी के व्यक्तित्व का ही सम्मोहन था कि भाजपा के साथ उस समय नये सहयोगी दल जुड़ते गए जब बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद दक्षिणपंथी झुकाव के कारण उस जमाने में भाजपा को राजनीतिक रूप से अछूत माना जाता था।  वाजपेयी को भारत एवं पाकिस्तान के मतभेदों को दूर करने की दिशा में प्रभावी पहल करने का श्रेय दिया जाता है। इन्हीं कदमों के कारण ही वह भाजपा के राष्ट्रवादी राजनीतिक एजेण्डे से परे जाकर एक व्यापक फलक के राजनेता के रूप में जाने जाते हैं। कांग्रेस से इतर किसी दूसरी पार्टी के देश के सर्वाधिक लम्बे समय तक प्रधानमंत्री पद पर आसीन रहने वाले वाजपेयी को अक्सर भाजपा का उदारवादी चेहरा कहा जाता है।  उनके आलोचक हालांकि उन्हें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का ऐसा मुखौटा बताते रहे हैं जिनकी सौम्य मुस्कान उनकी पार्टी के हिन्दूवादी समूहों के साथ संबंधों को छुपाए रखती है।
साल 1999 की वाजपेयी की पाकिस्तान यात्रा की उनकी ही पार्टी के कुछ नेताओं ने आलोचना की थी लेकिन वह बस पर सवार होकर लाहौर पहुंचे।    वाजपेयी की इस राजनयिक सफलता को भारत -पाक संबंधों में एक नए युग की शुरुआत की संज्ञा देकर सराहा गया। लेकिन इस दौरान पाकिस्तानी सेना ने गुपचुप अभियान के जरिए अपने सैनिकों की कारगिल में घुसपैठ करायी और इसके हुए संघर्ष में पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी। भाजपा के चार दशक तक विपक्ष में रहने के बाद वाजपेयी 1996 में पहली बार प्रधानमंत्री बने लेकिन संख्या बल नहीं होने से उनकी सरकार महज 13 दिन में ही गिर गयी।
 आंकड़ों ने एक बार फिर वाजपेयी के साथ लुकाछिपी का खेल खेला और स्थिर बहुमत नहीं होने के कारण 13 महीने बाद 1998 की शुरुआत में उनके नेतृत्व वाली दूसरी सरकार भी गिर गई। अन्नाद्रमुक प्रमुख जे जयललिता द्वारा केंद्र की भाजपा की अगुआई वाली गठबंधन सरकार से समर्थन वापस लेने की पृष्ठभूमि में वाजपेयी सरकार धराशायी हो गयी। लेकिन 1999 के चुनाव में वाजपेयी पिछली बार के मुकाबले एक अधिक स्थिर गठबंधन सरकार के मुखिया बने जिसने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। गठबंधन राजनीति की मजबूरी के कारण भाजपा को अपने मूल मुद्दों को पीछे रखना पड़ा। इन्हीं मजबूरियों के चलते जम्मू कश्मीर से जुड़े अनुच्छेद 370, अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करने और समान नागरिक संहिता लागू करने जैसे उसके चिर प्रतीक्षित मुद्दे ठंडे बस्ते में चले गए। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फलक पर जवाहरलाल नेहरू की शैली और स्तर के नेता के रूप में सम्मान पाने वाले वाजपेयी का प्रधानमंत्री के रूप में 1998-99 का कार्यकाल साहसिक और दृढ़निश्चयी फैसलों के वर्ष के रूप में जाना जाता है । इसी अवधि के दौरान भारत ने मई 1998 में पोखरण में श्रृंखलाबद्ध परमाणु परीक्षण किए।
वाजपेयी के करीबी लोगों का कहना है कि उनका मिशन पाकिस्तान के साथ संबंधों को सुधारना था और इसके बीज उन्होंने 1970 के दशक में मोरारजी देसाई की सरकार में बतौर विदेश मंत्री रहते हुए ही बोये थे। लाहौर शांति प्रयासों के विफल रहने के बाद वर्ष 2001 में वाजपेयी ने जनरल परवेज मुशर्रफ के साथ आगरा शिखर वार्ता की एक और पहल की लेकिन वह भी मकसद हासिल करने में सफल नहीं रही। वाजपेयी भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के करीबी अनुयायी और सहयोगी बन गए। जब मुखर्जी ने 1953 में कश्मीर में प्रवेश के लिए परमिट लेने की व्यवस्था के खिलाफ आमरण अनशन किया तो वाजपेयी उनके साथ थे। मुखर्जी ने परमिट व्यवस्था को कश्मीर की यात्रा करने वाले भारतीय नागरिकों के साथ तुच्छ व्यवहार करार दिया था। साथ ही उन्होंने कश्मीर को विशेष दर्जा दिए जाने के खिलाफ भी आमरण अनशन किया था। मुखर्जी के अनशन और विरोध की परिणति परमिट व्यवस्था समाप्त करने और कश्मीर के भारतीय संघ में विलय की प्रक्रिया तेज किए जाने के रूप में हुई। लेकिन कई सप्ताह की जेलबंदी, बीमारी और कमजोरी के चलते मुखर्जी का निधन हो गया। इन सारी घटनाओं ने युवा वाजपेयी के मन पर गहरी छाप छोड़ी।
मुखर्जी की विरासत को आगे बढ़ाते हुए वाजपेयी ने 1957 में अपना पहला चुनाव लड़ा और जीता। भारतीय जनसंघ के नेता के रूप में उन्होंने इसके राजनीतिक दायरे, संगठन और एजेंडे का विस्तार किया। अपनी युवावस्था के बावजूद वाजपेयी जल्द ही विपक्ष में एक सम्मानित हस्ती बन गए जिनकी तर्कशक्ति और बुद्धिमत्ता के उनके विरोधी भी कायल होने लगे। उनकी व्यापक अपील ने उभरते राष्ट्रवादी सांस्कृतिक आंदोलन को सम्मान, पहचान और स्वीकार्यता दिलायी।
ग्वालियर में जन्मे वाजपेयी जनसंघ के अध्यक्ष और भाजपा के संस्थापक अध्यक्ष रहे। वह तीन बार प्रधानमंत्री बने।  वह देश के ऐसे पहले प्रधानमंत्री बने, जिनका कांग्रेस से कभी नाता नहीं रहा। वाजपेयी और महामना भारत रत्न से नवाजे जाने वाली 44वीं व 45वीं हस्ती हैं। वाजपेयी उम्र से जुड़ी बीमारियों के चलते इन दिनों सार्वजनिक जीवन से दूर हैं। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और अब वाजपेयी ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्हें उनके जीवनकाल में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। इनमें नेहरू और इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री रहते ही इस पुरस्कार से नवाजा गया था। प्रधानमंत्री मोदी ने वाजपेयी को भारत रत्न से सम्मानित किए जाने पर खुशी जताते हुए कहा वह एक ऐसे नेता हैं जिन्होंने अपना पूरा जीवन राष्ट्र को सपर्पित कर दिया। उन्होंने कहा, अटल बिहारी वाजपेयी भारत माता के ऐसे प्रिय सपूत हैं जिन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया। आज हमें उन्हें भारत रत्न से सम्मानित करने का सौभाग्य मिला।
मोदी ने कहा, अटलजी का जीवन राष्ट्र को समर्पित था, वह देश के लिए जिए और हर पल देश के बारे में सोचा। भारत में मेरे जैसे करोड़ों कार्यकर्ता हैं जिनका जीवन वाजपेयीजी से प्रेरित है। वाजपेयी के निवास से बाहर आने पर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संवाददाताओं से कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री को यह सम्मान दिया जाना एक शक्तिशाली राष्ट्रवादी नेता के रूप में देश के लिए उनकी सेवाओं को मान्यता देना है। उन्होंने कहा कि वह केवल अपनी ही पार्टी के नहीं बल्कि पूरे देश के नेता हैं। वह भारत नहीं बल्कि पूरे विश्व के नेता हैं। यह हम सबके लिए खुशी का अवसर है। उन्होंने बताया कि वाजपेयी के निवास पर आज आयोजित यह समारोह राष्ट्रपति भवन की ओर से किया गया। अस्वस्थ होने के कारण वाजपेयी राष्ट्रपति भवन नहीं जा सकते थे। इस अवसर पर वाजपेयी के निवास पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री एन चन्द्रबाबू नायडू, जदयू अध्यक्ष शरद यादव आदि उपस्थित थे।
   

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